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Monday, November 3, 2014

गर्भिणी का आहार




आचार्य चरक कहते हैं कि गर्भिणी के आहार का आयोजन तीन बातों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए – गर्भवती के शरीर का पोषण, स्तन्यनिर्मिती की तैयारी व गर्भ की वृद्धि | माता यदि सात्त्विक, संतुलित, पथ्यकर एवं सुपाच्य आहार का विचारपूर्वक सेवन करती है तो बालक सहज ही हृष्ट-पुष्ट होता है | प्रसव भी ठीक समय पर सुखपूर्वक होता है |
अत: गर्भिणी रुचिकर, सुपाच्य, मधुर रसयुक्त, चिकनाईयुक्त एवं जठराग्नि प्रदीपक आहार लें |
पानी – सगर्भा स्त्री पतिदिन आवश्यकता के अनुसार पानी पिये परन्तु मात्रा इतनी अधिक ण हो कि जठराग्नि मंद हो जाय | पानी को १५-२० मिनट उबालकर ही लेना चाहिये | सम्भव हो तो पानी उबालते समय उसमें उशीर (सुंगधीबाला ), चंदन, नागरमोथ आदि डालें तथा शुद्ध चाँदी या सोने (२४ कैरेट) का सिक्का या गहना साफ़ करके डाला जा सकता है |
दूध – दूध ताजा व शुद्ध होना चाहिये | फ्रीज का ठंडा दूध योग्य नहीं हैं | यदि दूध पचता न हो या वायु होती हो तो २०० मि.ली. दूध में १०० मि.ली. पानी के साथ १० नग वायविडंग व १ से.मी. लम्बा सौंठ का टुकड़ा कूटकर डालें व उबालें | भूख लगनेपर एक दिन में १-२ बार लें सकते हैं | नमक, खटाई, फलों और दूध के बीच २ घंटे का अंतर रखें |
छाछ – सगर्भावस्था के अंतिम तीन-चार मासों में मस्से या पाँव पर सूजन आने की सम्भावना होने से मक्खन निकाली हुई एक कटोरी ताज़ी छाछ दोपहर के भोजन में नियमित लिया करें |
घी – आयुर्वेद ने घी को अमृत सदृश बताया है | अत: प्रतिदिन १-२ चम्मच घी पाचनशक्ति के अनुसार सुबह-शाम लें |
दाल – घी का छौंक लगा के नींबू का रस डालकर एक कटोरी दाल रोज सुबह के भोजन में लेनी चाहिये, इससे प्रोटीन प्राप्त होते है | दालों में मूंग सर्वश्रेष्ठ है | अरहर भी ठीक है | कभी-कभी राजमा, चना, चौलाई, मसूर कम मात्रा में लें | सोयाबीन पचने में भारी होने से न लें तो अच्छा है |
सब्जियाँ -  लौकी, गाजर, करेला, भिन्डी, पेठा, तोरई, हरा ताजा मटर तह सहजन बथुआ, सुआ, पुदीना आदि हरे पत्तेवाली सब्जियाँ रोज लेनी चाहिये | ‘भावप्रकाश निघुंट’ ग्रन्थ के अनुसार सुपाच्य, ह्र्द्यपोषक, वाट-पित्त का संतुलन करनेवाली, वीर्यवर्धक एवं सप्तधातु पोषक ताज़ी, मुलायम लौकी की सब्जी, कचूमर (सलाद), सूप या हलवा बनाकर रूचि अनुसार उपयोग करें |
शरीर में रक्तधातू लौह तत्त्व पर निर्भर होने से लौहवर्धक काले अंगूर, किशमिश, काले खजूर, चुकन्दर, अनार, आँवला, सेब, पुराना देशी गुड़ एवं पालक, मेथी हरा धनिया जैसी शुद्ध व ताज़ी पत्तोंवाली सब्जियाँ लें | लौह तत्त्व के आसानी से पाचन के लिये विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, अत: सब्जी में नींबू निचोड़कर सेवन करें | खाना बनाने के लिये लोहे की कढाई, पतीली व तवे का प्रयोग करे |
फल -  हरे नारियल का पानी नियमितसे गर्भोदक जल की उचित मात्रा बनी रहने में मदद मिलती है | मीठा आम उत्तम पोषक फल हैं, अत: उसका उचित मात्र में सेवन करे | वर, कैथ, अनन्नास, स्ट्राँबेरी, लीची आदि फल ज्यादा न खायें | चीकू, रामफल, सीताफल, अमरुद, तरबूज, कभी-कभी खा सकती हैं | पपीते का सेवन कदापि ण करें | कोई भी फल काटकर तुरंत खा लें | फल सूर्यास्त के बाद न खाये |
गर्भिणी निम्न रूप से भोजन का नियोजन करे :
-    सुबह – ७ – ७.३० बजे नाश्ते में रात के भिगोये हुए १-२ बादाम, १-२ अंजीर व ७-८ मुनक्के अच्छे-से चबाकर खाये |
-    साथ में पंचामृत पाचनशक्ति के अनुसार ले | वैद्यकीय सलाहानुसार आश्रमनिर्मित शक्तिवर्धक योग – सुवर्णप्राश, रजतमालती, च्यवनप्राश आदि ले सकती हैं |
-    सुबह ९ से ११ के बीच तथा शाम को ५ से ७ ले बीच प्रकृति-अनुरूप ताजा , गर्म, सात्त्विक, पोषक एवं सुपाच्य भोजन करें |
-    भोजनसे पूर्व हाथ-पैर धोकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके सीधे बैठकर ‘गीता’ के १५ वे अध्याय का पाठ करे और भावना करे कि ‘ह्रदयस्थ प्रभु को भोजन करा रही हूँ |’ पाँच प्राणों को नीचे दिये मंत्रसहित मानसिक आहुतियाँ देकर भोजन करना चाहिये |
ॐ प्राणाय स्वाहा |
ॐ अपानाय स्वाहा |
ॐ व्यानाय स्वाहा |
ॐ उदानाय स्वाहा |
ॐ समानाय स्वाहा |
-    ऋषिप्रसाद अक्टूबर २०१४ से

आँखों की समस्याओं और नेत्रज्योति-वृद्धि के उपाय

१) कान के पीछे गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मालिश करे |

२) पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन में या कुर्सी पर आराम से बैठ जायें | रीढ़ की हड्डी, गला व सिर को सीधा रखें | आँखों के बराबर ऊँचाई पर रखे दीपक की ज्योति को एक मिनट तक एकटक देखें | फिर आँखों को एकाध मिनट बंद रखे | यह क्रिया ५ बार दोहरायें | इससे एकाग्रता व नेत्रज्योति दोनों में वृद्धि होती है |

३) आँखों को स्वच्छ जल से धोकर नेत्रबिंदु डालें | ॐ... ॐ.....मम आरोग्यशक्ति जाग्रय –जाग्रय’ अथवा ‘ॐ...ॐ.... मेरी आरोग्यशक्ति जाग्रत हो, जाग्रत हो ‘ – ऐसा कहते हुए या चितन करते हुए हाथों की हथेलियाँ आपस में रगडकर आँखों पर रखें | मौका मिले तो आँखों की पुतलियों को गोल घुमायें, फिर दायीं ओर व उसके बाद बायीं ओर ले जायें | सुबह मुँह में एक कुल्ला पानी भर लें, फिर कटोरी में थोडा पानी भर के उसमें आँखें डुबाकर पटपटायें, जिससे आँखों व् सिर की गर्मी निकल जाए | इससे सिरदर्द में आराम व नेत्रज्योति में वृद्धि होती है |

नेत्र –सुरक्षा व नेत्रज्योति-वृद्धि के लिये

· आँखों को सीधी धूप से बचायें |

· सुबह नंगे पैर हरी घास पर चलें |

· हरी पत्तेदार सब्जियाँ, ताजे फल व दूध का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें (दूध व् फल में २ घंटे का अंतर रखे ) |

· रात्रि-जागरण से बचे |

- ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से

घुटनों के दर्द का अनुभूत प्रयोग




६ ग्राम विजयसार की लकड़ी, २५० ग्राम दूध, ३७५ ग्राम पानी, २ चम्मच मिश्री (या चीनी) डालकर धीमी आँच पर पकायें | जब दूध २५० ग्राम रह जाय, तब छानकर सोने से १ घंटा पहले पिये | इससे घुटनों की हड्डियों का कैल्शियम तर रहता है, जिससे वृद्धावस्था में कैल्शियम की कमी के कारण होनेवाली घुटनों की समस्या से रक्षा होती है | पूरानी चोट का दर्द दूर होता है | इससे टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है | कमर व घुटनों का दर्द भी दूर होता है |
इसका सेवन करनेवाले की वृद्धावस्था में भी कभी गर्दन व हाथ नहीं कॉपेंगे और हाथ-पैरों व शरीर की हड्डियाँ चोट लगने पर सहज में नहीं टूटेंगी | यह प्रयोग सर्दियों में ही करना चाहिये |
जोड़ो की कड़कड़ाहट दूर हड्डियों बने मजबूत
नीचे दिये प्रयोग को करने से हड्डियाँ मजबूत होती है व जोड़ों की कडकड बंद होती है | यह मधुमेह में भी लाभप्रद है |
विधि – १] विजयसार की लकड़ी का ६ ग्राम बुरादा रात को एक काँच के बर्तन में २५० ग्राम पानी में भिगो दें और प्रात: छानकर पी लें | इसी तरह सुबह का भिगोया हुआ पानी शाम को पियें | यह पानी एक बार में इस्तेमाल करे और हर बार नया बुरादा भिगोयें |
२] पारिजात (हरसिंगार) की ५ से ११ पत्तियाँ १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी शेष रहने पर छानकर प्रातः खाली पेट पियें | कुछ दिन लगातार यह प्रयोग करने से जोड़ों का दर्द, गठिया अथवा अन्य कारणों से शरीर में होनेवाले पीड़ा में राहत मिलती है | पथ्यकर आहार लें |
-    ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से

तुलसी महिमा










· तुलसी के निकट जिस मन्त्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वश सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है |

· प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत, दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते है |

· ब्रह्महत्या आदि पाप तथा पाप और खोटे विचार से उत्पन्न होनेवाले रोग तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से नष्ट हो जाते है |

· तुलसी का पूजन, रोपण व धारण पाप को जलाता है और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है |

· श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है |

· जो चोटी में तुलसी स्थापित करके प्राणों का परित्याग करता है, वह पापराशि से मुक्त हो जाता है |

· तुलसी के नाम-उच्चारण से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है |

· तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है |

· तुलसी पत्ते से टपकता हुआ जल जो अपने सिर पर धारण करता है, उसे गंगास्नान और १० गोदान का फल प्राप्त होता है |

 पद्मपुराण (ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से )