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Wednesday, March 6, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ




२८ मार्च   - भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज प्राकट्य दिवस

१ अप्रैल  - पापमोचनी एकादशी (व्रत करने पर पापराशि का विनाश )

२ अप्रैल  - वारुणी योग (सुबह ८-३९ से रात्रि १२-४९ तक) (गंगा आदि तीर्थ में स्नान, दान, उपवास १०० सूर्यग्रहणों के समान फलदायी )



६ अप्रैल   - गुडी पाडवा (पूरा दिन शुभ मुहूर्त), चैत्री नवरात्र प्रारंभ, चेटीचंड



९ अप्रैल    - मंगलवारी चतुर्थी ( सूर्योदय से शाम ४-०७ तक )

                                                                                                                      १४ अप्रैल   - श्रीराम नवमी (भागवत) (इस दिन व्रत, जप, तप आदि करनेवाले की अनेक जन्मों की पापराशि भस्मीभूत हो जाती है एवं उसमें इन्द्रिय-संयम का गुण विकसित होने लगता है |), संक्रांति (पुण्यकाल : सुबह १०-१० से शाम ६ -११), रविपुष्यामृत योग (सूर्योदय से सुबह ७-४० )



१६ अप्रैल   - कामदा एकादशी (ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाशक व्रत )

१९ अप्रैल से १८ मई – वैशाख मास व्रत (इसमें जो भक्तिपूर्वक दान, जप, हवन, स्नान आदि शुभ कर्म किये जाते हैं, उनका पुण्य अक्षय तथा १०० करोड़ गुना अधिक होता है | -पद्म पुराण )

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से
            
     

मनोबल व आत्मबल वृद्धि हेतु


जो किसीके सामने बोलने में हिचकिचाते या भय करते हैं वे रोज सोते समय फिटकरी के चूर्ण से दाँत साफ़ करें व बुधवार को देशी गाय को हरी घास खिलाये | इससे उनमें मनोबल बढ़ेगा व हिचकिचाहट भी कम होगी |

इससे भी सरल और उत्तम उपाय जो मनोबल तो क्या सीधे आत्मबल जगाता है वह है रोज १०-१५ मिनट या अधिक ॐकार का दीर्घ (लम्बा) गुंजन करना | 
साथ में आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध ‘निर्भय नाद’‘जीवन रसायन’ पुस्तकों का पठन, मनन भी करें तो सोने में सुहागे का काम करेगा | 

पूज्य बापूजी बताते हैं : “जब डर लगे तो अपने शुद्ध ‘मैं’ की ओर भाग जाओ या दौड़ के आओ | ‘हो-होकर क्या होगा ? मैं निर्भीक हूँ | ॐ....ॐ.....ॐ.... मैं अमर आत्मा हूँ | हरि ॐ.....ॐ....ॐ....’ ऐसा चिन्तन करो तो भय भाग जायेगा |”

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

मेधाशक्ति प्राप्ति हेतु वैदिक उपाय


जो मेधा (धारणा-शक्ति) को पाना चाहे वह प्रतिदिन इन ३ ऋचाओं का जप करें :

सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् |
सर्नि मेधामयासिषम् ||
यस्मादृते न सिद्यति यज्ञो विपश्चितश्चन |
स धीनां योगमिन्वति ||
आदृद्योति हविष्कृतिं प्राच्चं कृणोत्यध्वरम् |
होत्रा देवेषु गच्छति ||
(ऋग्वेद :मंडल १, सूक्त १८, मंत्र ६ – ८)


ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

इससे वाणी में प्रभाव आएगा





जिन्हें लगता हो कि बाहर या घर के लोग उनकी उचित बात भी सुनते नहीं हैं वे नियमितरूप से जल में गुड़ मिलाकर सूर्यदेव को ‘ॐ घृणि सूर्याय नम: |’ मंत्र जपते हुए अर्घ्य दें | 

इससे बहुत लाभ होगा |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से 

विद्यार्थी अपने उत्तम स्वास्थ्य के लिए


क्या करें
१] मुख खुला रखना दुर्बल चरित्र का चिन्ह तो है ही, इससे फेफड़े भी खराब होते हैं अत: श्वास सदा नाक से ही लेना चाहिए |
२] समतल व कड़े बिस्तर पर सोने से पाचनक्रिया ठीक रहती है | रात्रि को बायीं करवट ले के सोना चाहिए |
३] मालिश के समय पहले नाभि में तेल लगायें तथा पैरों के अंगूठों व तलवों की अच्छे-से मालिश करें, इससे नेत्र सुरक्षा होती है |
४] सत्संग, ध्यान, प्रार्थना आध्यात्मिक उन्नति व सर्वांगीण विकास के राजमार्ग हैं | इनसे चिंता, भय, अशांति सहज में ही मिटती हैं |

क्या न करें
१] लेट के, झुककर, कम प्रकाश में व किताब नेत्रों के खूब पास ला के पढना हानिकारक है |
२] पेट के बल सोने से श्वसन तंत्र व पाचनक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है | मुख ढक के सोने से बुद्धि मंद होती है | दिन को न सोयें ( यदि लेटना जरूरी हो तो दायी करवट लेटें |)
३] बिना सोचे-समझे जोश में आ के कार्य करने से नस-नाड़ियों का संतुलन बिगड़कर रोगों की उत्पत्ति होती है |
४] चिंता करने से नाड़ियों की शक्ति क्षीण हो जाती है | योग्यता का ह्रास, बुद्धि का नाश तथा स्वास्थ्य की हानि होती हैं |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

बल – बुद्धिवर्धक विशेष लाभकारी उत्पाद




१)   शारीरिक व मानसिक विकास हेतु :

सुवर्णप्राश : सेवन विधि हेतु उत्पाद डिब्बी के अंदर की पर्ची देखें |

२)   याददाश्त बढ़ाने के लिए :

शंखपुष्पी सिरप : ५-१० मि.ली. सुबह-शाम खाली पेट लें |

३)   भूख की कमी व बच्चों के कृमिरोग में :

कोष्ठशुद्धि कल्प : १ से २ गोली सुबह खाली पेट गुनगुने पानी से लें |
तुलसी अर्क : ५ से १० मि.ली. अर्क सुबह-शाम खाली पेट गुनगुने पानी से लें |

४)   वजन एवं बल बढ़ाने हेतु :

देशी गाय का घी : दूध या भोजन के साथ १-२ चम्मच लें |
च्यवनप्राश : आधा से १ चम्मच च्यवनप्राश सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ घोल बना के लें फिर २०-३० मिनट बाद दूध लें |

(उपरोक्त सभी उत्पादों हेतु प्राप्ति-स्थान : सत्साहित्य सेवाकेन्द्र व संत श्री आशारामजी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्र |)

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

प्राकृतिक नियमों का करें पालन, बना रहेगा स्वस्थ जीवन (भाग-१)


प्राकृतिक नियमों का पालन करने से शरीर, मन, बुद्धि का विकास तथा स्वास्थ्य की रक्षा सहज में होती है और उनकी उपेक्षा करने से अनेक समस्याओं में उलझते-जूझते जीवन का ह्रास हो जाता है | ध्यान रखने योग्य कुछ उपयोगी बातें :

१] संतुलित भोजन : कई विद्यार्थी भोजन में केवल पसंदीदा खाद्य पदार्थ लेते रहते हैं लेकिन तन- मन -बुद्धि  के विकास के लिए भोजन संतुलित व पोषक तत्त्वों से युक्त होना चाहिए | इसलिए विद्यार्थियों को यथासम्भव फल, सब्जियों तथा षडरस युक्त आहार लेना चाहिए | प्रोटीन शरीर-वृद्धिकारक व शक्तिप्रद हैं | अत: बच्चों के लिए दूध, छिलकेवाली दालें, शकरकंद आदि प्रोटीनयुक्त आहार विशेष सेवनिय है | सर्दियों में पर्याप्त मात्रा में एवं अन्य दिनों में अल्प मात्रा में सूखे मेवे ले सकते हैं | स्मृतिशक्ति-वृद्धि हेतु फॉस्फोरस की अधिकतावाले फल जैसे – अंजीर, बादाम, अखरोट, अंगूर, संतरा, सेब आदि का सेवन उत्तम है | 

समिति सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध शंखपुष्पी सिरप, ब्राह्मीघृत आदि का सेवन स्मरणशक्ति व एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है | सेब पेय व ब्राह्मी शरबत का सेवन भी लाभदायी है |

२] शारीरिक कसरत : व्यायाम व योगासन से शरीरवृद्धि तेजी से होती है तथा मानसिक व बौद्धिक विकास में भी मदद होती है | सूर्यनमस्कार, दौड़, कबड्डी, कुश्ती आदि खेलों से बच्चों को शारीरिक लाभ के साथ आपसी सहयोग, सफलता-असफलता को स्वीकार करने की वृत्ति, एकाग्रता, तन्मयता आदि के विकास का भी सुअवसर मिलता है | 

पूज्य बापूजी की प्रेरणा से संचालित बाल संस्कार केन्द्रों व गुरुकुलों में खिलाये जानेवाले खेलों से विद्यार्थियों को उपरोक्त फायदे तो मिलते ही हैं, साथ ही उन्हें खेल-खेल में उत्तम संस्कार भी प्राप्त होते हैं |

३] पढ़ाई के बीच में विश्रांति : निरंतर अधिक समय तक पढने से थकान व उबान का अनुभव होता है | अत: बीच-बीच में खड़े होकर पंजों के बल कूदना, पानी पीना, थोड़ी देर खुले में (जैसे छत पर) घूम के आना, देव-मानव हास्य प्रयोग करना तथा थोड़ी देर श्वासोच्छ्वास में भगवन्नाम जप अर्थात श्वास अंदर जाय तो ‘ॐ’ बाहर आये तो ‘१’ .... श्वास अंदर जाय तो ‘आनंद’ बाहर आये तो ‘२’... श्वास अंदर जाय तो ‘शांति’ व सर्तकतापूर्वक एवं हिले बिना श्वासोच्छ्वास की गिनती करनी चाहिए | इससे एकाग्रता एवं सोचने-समझने, ग्रहण करने व याद रखने की क्षमता बढ़ेगी तथा शांति, सुख व प्रसन्नता के साथ स्वास्थ-लाभ भी मिलेगा |

४] उचित समय पर निद्रा : देर रात तक जागकर टी.वी. देखते रहना, मोबाइल, इंटरनेट आदि का उपयोग  - ये घातक आदतें विद्यार्थियों के समय, स्वास्थ्य व सूझबूझ को उलझा देती हैं | देर रात तक जाग के पढना भी हितकर नहीं है, इससे ज्ञानतंतु दुर्बल होते हैं व बुद्धि कमजोर होती है | 

रात को जल्दी (९ बजे ) सोकर प्रात: जल्दी उठ के अध्ययन करनेवाले विद्यार्थी सूझबूझ सम्पन्न होने लगते हैं, उन्हें पढ़ा हुआ लम्बे समय तक याद रहता है |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से


पूज्य बापूजी की स्वास्थ्य-कुंजी


यदि रात्रि को बुरे विचार आते हैं या स्वप्नदोष होता है तो तकिये पर अपनी माँ का नाम केवल ऊँगली से (स्याही से नहीं) लिखकर सोयें | 

अगर कामविकार से बचना है, कामकेंद्र को रूपांतरित करना है तो राम-राम..... शिव-शिव.... हनुमान..... ॐ अर्यमायै नम: .... इस प्रकार रोज सुमिरन करने से काम ‘राम’ में बदल जायेगा | प्राणायाम और गुरुमंत्र जप भी इसमें बड़ी मदद करेंगे |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

विविध रोगनाशक एवं स्वास्थ्यरक्षक नीम


प्राकृतिक वनस्पतियाँ लोक-मांगल्य एवं व्याधिनिवारक गुणों से युक्त होने के कारण भारतीय संस्कृति में पूजनीय मानी जाती हैं | इनमें नीम भी एक है | इसकी जड़, फूल-पत्ते, फल, छाल – सभी अंग औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं |

आयुर्वेद अनुसार नीम शीतल, पचने में हलका, कफ-पित्तशामक व थकान, प्यास, खाँसी, बुखार, अरुचि, कृमि, घाव, उलटी, जी मिचलाना, प्रमेह (मूत्र-संबंधी रोगों ) आदि को दूर करनेवाला है |

नीम के पत्ते नेत्रहितकर तथा विषनाशक होते हैं | इसके फल बवासीर में लाभदायी हैं | नीम के सभी अंगों की अपेक्षा इसका तेल अधिक प्रभावशाली होता है | यह जीवाणुरोधी कार्य करता है |

औषधीय प्रयोग


नीम के पत्ते : १] स्वप्नदोष : १० मि.ली. नीम-पत्तों के रस या नीम अर्क में २ ग्राम रसायन चूर्ण मिला के पियें |
२] रक्तशुद्धि व गर्मीशमन हेतु : सुबह खाली पेट १५-२० नीम पत्तों का सेवन करें |

फूल व फल : १] पेट के रोगों से सुरक्षा : नीम के फूल तथा पकी हुई निबौलियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते |

नीम तेल : १] चर्मरोग व पुराने घाव में : नीम का तेल लगायें व इसकी ५-१० बूँदे गुनगुने पानी से दिन में दो बार लें |
२] गठिया व सिरदर्द में : प्रभावित अंगों पर नीम तेल की मालिश करें |
३] जलने पर : आग से जलने से हुए घाव पर नीम तेल लागने से वह शीघ्र भर जाता है |

(नीम अर्क, नीम तेल, मुलतानी नीम तुलसी साबुन एवं रसायन चूर्ण सत्साहित्य सेवाकेंद्रो व संत श्री आशारामजी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

महानता की ओर ले जानेवाले अनमोल मोती



१.  विद्या किसको कहते हो ? विद्या का यह एल. एल. बी., एम.ए. अथवा डी. लिट. की बड़ी-बड़ी उपाधियाँ प्राप्त की जायें | वह विद्या किस काम की जो शर्म गँवाये | विद्या का अर्थ है जानकारी अथवा ज्ञान | वह प्रकाश, वह ज्ञान, जिसके जानने से हमें पता पड़े कि धर्म क्या है, अधर्म क्या है, हमारे कर्तव्य क्या हैं, जिन्हें पालने से सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है | विद्या पढ़कर उस पर आचरण न किया तो फिर वह विद्या किस काम की ?

२.    प्रात: उठने एवं रात्रि को सोते समय प्रतिदिन भगवान से प्रार्थना करो की ‘प्रभु ! हमें अच्छी बुद्धि और शक्ति दें ताकि हम अच्छे काम करें, आपस में सहानुभूति, मिलाप तथा प्रेम से चलें |’

३.   सिनेमा चरित्र पर बुरा प्रभाव डालता है, इससे विचार और संकल्प खराब होते हैं | इसे बिल्कुल न देखा करो |

४.    कभी भी मन में अपवित्र विचार उत्पन्न होने न दो | ज्ञान के अंकुश से अशुभ विचारों को दबा दो |

५.  अभ्यास द्वारा मन को वश में करते रहो | अभ्यास अर्थात मन को कुमार्ग से निकालकर सुमार्ग पर चलाना | बार-बार उसे सुमार्ग पर चलाते जाओगे तो आखिर तुम्हारी विजय होगी |

६.    ‘सत्संग’ बुद्धि के लिए मानो भोजन है | सत्संग करने से बुद्धि का विकास होता है |

७.    जिन कार्यों को करने से हानि-ही-हानि हो ऐसे कार्यों को करते रहने से रुदन के अतिरिक्त अन्य कुछ हाथ नहीं लगता |

८.    पुरुषार्थ और प्रयत्न से तुम बड़े- से – बडी खराब अवस्था को भी बदल सकते हो |

९.    यदि पहली बार तुम्हें सफलता नहीं मिलती तो फिर यत्न करो, लगातार प्रयत्न करते रहो तो सफलता अवश्य मिलेगी |

१०. परस्त्री को माता अथवा बहन मानना चाहिए | सबसे प्रेम एवं सच्चाई से मिलो | दूसरों के दुःख दूर करो | सबको सुख दो |

११.  बच्चों को बचपन से ही जल्दी उठने की आदत डालनी चाहिए |

१२.  हमें सदैव हँसमुख रहना चाहिए |

१३. विषय-विकारों के पंजे में एक बार फँसे तो फिर रोग आकर तुम पर आक्रमण करेंगे, फिर वहाँ से छूटना कठिन हो जायेगा | अत: विषय-विकारों से बचो |

१४. दूसरों का कभी बुरा न चाहो | यदि कोई तुमसे किसी बात में आगे हो गया हो तो उसे गिराने का प्रयत्न न करो बल्कि कोशिश करके अधिक गुण स्वयं में धारण करो |

-भगवत्पाद साँई श्री लीलाशाहजी महाराज

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

कुछ ही दिनों में परमात्मा की झाँकियाँ देखेंगी


नित्य अपने साथ शिक्षाप्रद श्लोक, सुवाक्य या स्तोत्र रखो | दिन में जब भी समय मिले, उनका लाभ लो | कुछ ही दिनों में तुम्हें एक निराला आनंद, आत्मा-परमात्मा की अनोखी झाँकियाँ दिखने लगेंगी |

(इस हेतु सत्साहित्य सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध श्रीमद्भगवद्गीता, श्री गुरुगीता, श्री नारायण स्तुति, जीवन रसायन, मधुर व्यवहार, निर्भय नाद, आत्मगुंजन, श्री ब्रह्मरामायण आदि सत्साहित्य का लाभ ले सकते हैं |) – पूज्य बापूजी


ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

बुद्धि व स्मृति शक्ति बढाये अन्य अनेक लाभ दिलाये


लाभ : इसमें सहज ही बच्चों द्वारा मंत्रजप होगा, जिससे उनकी बुद्धि व स्मृति शक्ति का विकास होगा तथा और भी अनेक लाभ होंगे |

विधि : बच्चे गोल घेरे में बैठेंगे | शिक्षक का संकेत मिलने पर एक के बाद एक विद्यार्थी ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ या ‘ॐ श्री सरस्वत्यै नम: |’ मंत्र का एक शब्द बोलेगा, जैसे – पहला विद्यार्थी ‘ॐ’, दूसरा विद्यार्थी ‘गं’, तीसरा ‘गणपतये’, चौथा ‘नम:’ तथा पाँचवाँ पुन: ‘ॐ’ .... ऐसे बोलते जायेंगे | जो बीच में रुकेगा या गलत बोलेगा वह खेल से बाहर हो जायेगा | 

इस प्रकार अंत में जो बचेगा वह विजेता होगा |


       ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

याद न रहने के मूल कारण क्या ?


विद्यार्थियों के लिए घातक बातें क्या हैं ? याद न रहने के मूल कारण क्या हैं ? कि
१] मनोयोग का अभाव
२] रूचि का अभाव
३] एकाग्रता का अभाव और
४] संयम का अभाव

नहीं तो बहुत कुछ याद रह सकता है | इसमें कोई जादूगरी नहीं है, कोई चमत्कार नहीं हैं | स्मृतिकेंद्र को विकसित करनेवाला मंत्र ले लिया, ज्ञानतंतुओं को शुद्ध करनेवाला ‘ॐ गं गणपतये नम: ..... ॐ गं गणपतये नम: ...’ जप करके थोडा ध्यान किया तो यह स्मृतिशक्ति बढ़ाना आदि या परीक्षा में अच्छे अंक लाना – यह कोई बड़ी बात नही हैं |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

विद्यार्जन में बाधक ७ दोष


आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठिरेव च |
स्तब्धता चाभिमानित्वं तथात्यागित्वमेव च |
एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मता: ||

‘आलस्य, मद-मोह, चंचलता, गोष्ठी (इधर-उधर की व्यर्थ बातें करना), जड़ता (मूर्खता), अभिमान तथा स्वार्थ-त्याग का अभाव – ये सात विद्यार्थियों के लिए सदा ही दोष हैं |’
(महाभारत, उद्योग पर्व :४०.५)
ऋषिप्रसाद –मार्च २०१९ से

पढाई में आशातीत लाभ हेतु



विद्यार्थी अध्ययन-कक्ष मी अपने इष्टदेव या गुरुदेव का श्रीविग्रह अथवा स्वस्तिक या ॐकार का चित्र रखें तथा नियमित अध्ययन से पूर्व उसे १०-१५ मिनट अपनी आँखों की सीध में रखकर पलकें गिराये बिना एकटक देखें अर्थात त्राटक करें | इससे पढ़ाई में आशातीत लाभ होता हैं |

-ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से