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Tuesday, August 10, 2021

सीमन्तोन्नयन संस्कार क्यों ?

 

सोलह संस्कारों में तीसरा संस्कार होता है  सीमन्तोन्नयन | इसका उद्देश्य गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु व गर्भवती स्त्री की रक्षा करना तथा गर्भवती स्त्री को मानसिक बल प्रदान करते हुए उसके ह्रदय में प्रसन्नता, उल्लास और सांत्वना उत्पन्न है और गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क आदि को बलवान बनाना है |

यह संस्कार  गर्भावस्था के चौथे, छठे या आठवें  मास में किया जाता है क्योंकि ४ महीने के बाद गर्भस्थ शिशु के अंग – प्रत्यंग प्रकट हो जाते हैं और चेतना – संस्थान – ह्रदय के निर्माण हो जाने से गर्भ में चेतना का प्राकट्य हो जाता है, जिससे उसमें इच्छाओं का उदय होने लगता है | वे इच्छाएँ माता के ह्रदय में प्रतिबिब्मित होकर प्रगट होती है |

सीमन्तोन्नयन संस्कार में गर्भस्थ बालक का पिता मंत्रोच्चारण करते हुए शास्त्रवर्णित वनस्पतियों द्वारा गर्भिणी पत्नी से सिर की माँग (सीमंत) निकालना आदि क्रियाएँ करते हुए यह वेद – मंत्र बोलता है :

ॐ येनादिते: सीमानं नयति  प्रजाप्तिर्महते सौभगाय |

तेनाहमस्यै सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टिं कृणोमि ||

जिस प्रकार प्रजापति ने देवमाता अदिति का सीमन्तोन्नयन किया था, उसी प्रकार इस गर्भिणी का सीमन्तोन्नयन करके इसकी संतान को मैं जरावस्था तक दीर्घजीवी करता हूँ |

तत्पश्यात गर्भिणी को यज्ञावशिष्ट पर्याप्त घीयुक्त खिचड़ी खिलाने का विधान है | अंत में इस संस्कार के समय उपस्थित वृद्ध महिलाएँ गर्भिणी को सौभाग्यवती होने और उत्तम, स्वस्थ व भगवदभक्त संतानप्राप्ति के आशीर्वाद देती हैं |

पाश्यात्य अन्धानुकरण में पडकर सीमन्तोन्नयन संस्कार के स्थान पर ‘बेबी शॉवर’ नामक पार्टी करके केवल बाह्य मौज-मजा में न कपं बल्कि सनातन संस्कृति के अनुसार शिशु को दिव्य संस्कारों से संस्कारित करें |

इस समय गर्भस्थ शिशु शिक्षण के योग्य हो जाता है | अत: आचरण – व्यवहार, चिंतन-मनन शास्त्रानुकूल हो इस बात का गर्भिणी को विशेष ध्यान रखना चाहिए | उसे सत्शात्रों, ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के जीवन-प्रसंगो व उपदेशों पर आधारित सत्साहित्य का अध्ययन करना चाहिए | सत्संग-श्रवण, ध्यान, जप आदि नियमित करना चाहिए | घर में ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के श्रीचित्र अवश्य हों, अश्लील व भयावह तस्वीरें बिल्कुल न लगायें |

  

लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२१ से

विविध बीमारियों में लाभकारी सरल घरेलू उपाय

 



उलटी : पुदीना और नींबू का १ – १ चम्मच रस मिलाकर दिन में ३ – ४ बार पीने से पित्तजन्य उलटी में लाभ होता है |

पेचिश : १] आधा से १ ग्राम जायफल को भूनकर ताज़ी छाछ के साथ लेने से पेचिश में आराम मिलता है |

२] चावल को पकाकर उसमें दही, भुना हुआ जीरा तथा सेंधा नमक डाल के खायें |

दाँतों की समस्या : दन्तमंजन व दंत सुरक्षा तेल लगाने से जादुई लाभ होता है | कभी दन्तमंजन, कभी दंत सुरक्षा तेल लगा सकते हैं |

शारीरिक गर्मी : १] सेंके हुए जीरे एवं धनिये का चौथाई=चौथाई चम्मच चूर्ण नारियल-पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से शरीर की गर्मी मल-मूत्र के साथ निकल जाती है और रक्त साफ़ हो जाता है |

२] खीरे के २५-३० मि.ली. रस में थोडा-सा सेंधा नमक एवं सेंके हुए जीरे व धनिये का चूर्ण मिलाकर पीने से शारीरिक गर्मी कम हो जाती है |


 लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२१ से

चीकू के बड़े – बड़े लाभ

 


चीकू मधुर, पौष्टिक, रुचिकारक , कफवर्धक  व पित्तशामक होता है | इसमें शर्करा अधिक होती है अत: इसके सेवन से शरीर को तुरंत ऊर्जा मिलती है | चीकू के सेवन से आँतों की शक्ति बढती है और वे मजबूत होती हैं | गोल की अपेक्षा लम्बे-गोल चीकू श्रेष्ठ माने जाते हैं |

चीकू मल-मूत्र को साफ़ लाने में सहायक है | इसमें विटामिन ‘ए’ भरपूर मात्रा में हैं, जो आँखों को स्वस्थ रखने में उपयोगी हैं | इसमें लौह तत्त्व अधिक होने से यह रक्ताल्पता में लाभदायी है | इसमें विटामिन ‘सी’ होता है, जिससे यह रोगप्रतिकारक शक्ति को बढाता है व् जीवाणुओं के संक्रमण से रक्षा करता है | इसमें विद्यमान रेशे व विटामिन ‘ए’ बड़ी आँत, फेफड़ों व मुख के कैंसर से रक्षा करते हैं |

चीकू रक्त-संचार को सुव्यवस्थित व उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है | इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह तत्त्व अच्छी मात्रा में होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में उपयोगी हैं | यह मानसिक तनाव व अवसाद को कम करने में सहायक है |

चीकू में कार्बोहाइड्रेट, फोलिक एसिड तथा मैग्नेशियम, पोटैशियम आदि खनिज तत्त्व भी काफी मात्रा में होते हैं |

ध्यान दें : पके चीकू ही खाने चाहिए | कच्चे चीकू खाने कब्ज व पेटदर्द की समस्या होती है | फलों का सेवन सुबह खाली पेट करना हितकारक है | भोजन के तुरंत बाद फल नहीं खाने चाहिए |


लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२१ से

Wednesday, August 4, 2021

पुण्यदायी तिथियाँ व योग

 


१७ अगस्त : विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर १२:४६ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का लाख गुना फल )

१८ अगस्त : पुत्रदा एकादशी ( पुत्र की इच्छा से इसका व्रत करनेवाला पुत्र पाकर स्वर्ग का अधिकारी भी हो जाता है |)

२२ अगस्त : रक्षाबंधन ( इस दिन धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है | इसे वर्ष में एक बार धारण करने से मनुष्य वर्षभर रक्षित हो जाता है | - भविष्य पुराण )

२९ अगस्त : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से रात्रि ११:२६ तक)

३० अगस्त : अजा एकादशी ( समस्त पापनाशक व्रत, माहात्म्य पढने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल )

६ सितम्बर : सोमवती अमावस्या (सुबह ७:३९ से ७ सितम्बर सुबह ६:२२ तक ) ( तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता - नाश )

 


१० सितम्बर : गणेश चतुर्थी, चन्द्र – दर्शन निषिद्ध ( चंद्रास्त : रात्रि ९:२० ) ( इस दिन ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दुर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न- निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढती है | इस दिन चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता हिया | यदि भूल से भी चन्द्रमा दिख जाय तो उसके कुप्रभाव को मिटाने के लिए  shorturl.at/koKY3 इस लिंक पर दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी की कथा पढ़ें तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण के निम्नलिखित मंत का २१, ५४, या १०८ बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पियें |

 सिंह : प्रसेनमधीत् सिंहों जाम्बवता हत: |

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक: ||

 

१२ सितम्बर : रविवारी सप्तमी ( शाम ५:२२ से १३ सितम्बर सूर्योदय तक )

 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से    

 

चिंता, चिडचिडापन व तनाव कम करने हेतु

 

जो व्यक्ति स्नान करते समय पानी में ( ५ मि.ली.) गुलाबजल मिलाकर ‘ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा |’ यह मंत्र बोलते हुए सर पर जल डालता है, उसे गंगा-स्नान का पुण्य होता है तथा साथ ही मानसिक चिंताओं में कमी आती है और तनाव धीरे-धीरे दूर होने लगता है, विचारों का शोधन होने लगता है, चिडचिडापन कम होता है तथा वह अपने – आपको तरोताजा अनुभव करता है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से

सौ गुना फलदायी ‘शिवा चतुर्थी’

 

(१० सितम्बर )

भविष्य पुराण के अनुसार ‘भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का नाम ‘शिवा है | इस दिन किये गये स्नान , दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म सौ गुना हो जाते हैं | इस दिन जो स्त्री अपने सास – ससुरे को गुड के तथा नमकीन पूए खिलाती है वह सौभाग्यवती होती है | पति की कामना करनेवाली कन्या को विशेषरूप से यह व्रत करना चाहिए |’

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से

बारिश के दिनों में लाभदायी कुछ घरेलू प्रयोग

 

कफ - खाँसीवाला बुखार : काली मिर्च के ३ ग्राम चूर्ण और अदरक के ५ मि.ली. रस को १० ग्राम शहद में मिलाकर दिन में २ – ३ बार चाटने से कफ – खाँसीवाले बुखार में आराम मिलता है |

   

कफ व खाँसी : कफ जम जाने से साँस लेने में तकलीफ हो तो आधा कप गुनगुने पानी में १५ – २० मि.ली. गोमूत्र ( ७ बार कपडछन करके) अथवा ५ से १० मि.ली. गोमूत्र अर्क तथा २ – ४ चुटकी हल्दी मिलाकर सुबह खाली पेट पियें |

 

·        उबले पानी में हल्दी, अजवायन, भीमसेनी कपूर को अथवा केवल अमृत द्रव को डालकर सूँघे |

·        सरसों के तेल में २ कली लहसुन डालकर गरम करें | हल्का गर्म रहने पर छाती पर मालिश करें | इससे छाती में जमा हुआ कफ बाहर निकलने में मदद मिलती है |

 

कब्ज : २० ग्राम ग्वारपाठे में २ से ४ चुटकी काला नमक मिलाकर सुबह – शाम खाली पेट लें अथवा घृतकुमारी रस (Aloe Vera Juice) का सेवन करें |

 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से

स्वास्थ्यवर्धक एवं उत्तम पथ्यकर ‘परवल’

 


आयुर्वेद के अनुसार परवल स्निग्ध, उष्ण, पचने में हल्का, पाचक, रुचिकर एवं त्रिदोषशामक है | यह बल-वीर्यवर्धक, ह्रदय-हितकर व रक्तशुद्धिकर है | यह कफ, बुखार व कृमि का नाश तथा अपानवायु एवं मल-मूत्र का निष्कासन करनेवाला है |

 

परवल अजीर्ण, अम्लपित्त, पीलिया तथा यकृत व पेट के रोग, त्वचारोग, बवासीर, सूजन, रक्तपित्त आदि में लाभदायी है |

 

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार परवल में प्रोटीन और विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में पाया जाते हैं | साथ ही इसमें विटामिन ‘सी, रेश तथा कैल्शियम, मैग्नेशियम , फॉस्फोरस, सोडियम, पोटैशियम, लोह, सल्फर आदि तत्त्व भी पाये जाते हैं | मधुमेह तथा कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि में इसका सेवन लाभदायी है |

 

घी में जीरे का छौंक लगा के बनायी गयी परवल की सब्जी पाचन-तंत्र को सुधारने में लाभदायी है क्योंकि इसमें दीपन (भूखवर्धक) व पाचन गुण पाये जाते हैं |यह कब्ज में भी लाभकारी है |

 

तृप्तिकारक व सुपाच्य सूप

पौष्टिक तथा शीघ्र पचनेवाला होने से परवल रोगियों के लिए उत्तम पथ्यकर है | सूप बनाने के लिए परवल के टुकड़ों को १६ गुना पानी में उबालें | उबालते समय इसमें अदरक, काली मिर्च, जीरा, धनिया व सेंधा नमक डालें | चौथाई भाग जल शेष रहने पर छानकर पिलायें | यह सूप पचने में हलका, तृप्तिकारक एवं शक्तिवर्धक है,  साथ ही यह आमदोष (कच्चा रस) दूर करने में लाभदायी है |

 

शरीर में कफ बढ़ जाने से भूख नहीं लगती हो तथा भोजन की इच्छा न हो तो इस सूप में थोड़ी-सी भुनी हुई हींग व भुनी हुई अजवायन का चूर्ण मिला लें | इस सूप का ३-४ दिन नियमित सेवन करने से लाभ होगा |

 

बार-बार या अधिक प्यास लगती हो तो परवल उबालकर उसमें सेंधा नमक मिला के सेवन करना लाभदायी है |

 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से

दीप – प्रज्वलन अनिवार्य क्यों ?

 

भारतीय संस्कृति में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दीपक प्रज्वलित करने की परम्परा है | दीपक हमें अज्ञानरुपी अंधकार को दूर करके पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने का संदेश देता है | आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमें अज्ञान-अंधकार से आत्मिक ज्ञान-प्रकाश की ओर ले चलें |

 

मनुष्य पुरुषार्थ कर संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीपक हमें देता है | दीपावली पर्व में, अमावस्या की अँधेरी रात में दीप जलाने के पीछे भी यही उद्देश्य छुपा हुआ है | घर में तुलसी की क्यारी के पास भी दीप जलाये जाते हैं | किसी भी नये कार्य की शुरुआत भी दीप जलाकर की जाती है | अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है |

 

दीपक की लौ किस दिशा में हो ?

पूज्य बापूजी के सत्संग- अमृत में आता है : “आप दीया जलाते है, आरती करते हैं, इसका बहुत पुण्य माना गया है परंतु आरती के दीपक की बत्ती या लौ अगर पूर्व की तरफ है तो आयु की वृद्धि होगी, अगर उत्तर की तरफ है तो आपको धन-लाभ में मदद मिलेगी, यदि दक्षिण की तरफ है तो धन-हानि और पश्चिम की तरफ है तो दुःख व विघ्न लायेगी | इसीलिए घर में ऐसी जगह पर आरती करें जहाँ या तो पूर्व की तरफ लौ हो या तो उत्तर की तरफ | ऋषियों ने कितना – कितना सूक्ष्म खोजा है !

 

लौ दीपक के मध्य में लगाना शुभ फलदायी है | इसी प्रकार दीपक के चारों ओर लौ प्रज्वलित करना भी शुभ है |

 

दीपक के समक्ष इन श्लोकों के पठन से विशेष लाभ होता है :

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं सुखसम्पदाम |

शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ||  

 

‘शुभ एवं कल्याणकारी, स्वास्थ्य एवं सुख-सम्पदा प्रदान करनेवाली तथा शत्रुबुद्धि का नाश करनेवाली हे दीपज्योति ! मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ |’

 

दीपज्योति: परब्रह्म दिपज्योतिर्जनार्दन: |

दीपो हरतु में पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ||

 

‘उस परब्रह्म-प्रकाशस्वरूपा दीपज्योति को नमस्कार है | वह विष्णुस्वरूपा दीपज्योति मेरे पाप को नष्ट करे |’

 

ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमस: परमुच्यते | (गीता : १३.१७ )

 

ज्योतियों -की-ज्योति आत्मज्योति है | जिसको सूर्य प्रकाशित नहीं कर सकता बल्कि जो सूर्य को प्रकाश देती है, चंदा जिसको चमका नहीं सकता अपितु जो चंदा को चमकाती है वह आत्मज्योति है | महाप्रलय में भी वह नहीं बुझती | उसके प्रतीकरूप में यह दीपक की ज्योति जगमगाते हैं |

 

दीपज्योति: परब्रह्म .... अंतरात्मा ज्योतिस्वरूप है, उसको नहीं जाना इसलिए साधक बाहर की ज्योति जगाकर अपने गुरुदेव की आरती करते हैं :

 

ज्योत से ज्योत जगाओ

सदगुरु ! ज्योत से ज्योत जगाओ |

मेरा अंतर तिमिर मिटाओ,

सदगुरु ! ज्योत से ज्योत जगाओ |

अंतर में युग-युग से सोयी,

चितिशक्ति को जगाओ ||.....

 

यह अंदर की ज्योत जगाने के लिए बाहर की ज्योत जगाते हैं | इससे बाहर के वातावरण में भी लाभ होता है |

 

दीपो हरतु में पापं.... दीपज्योति पापों का शमन करती है, उत्साह बढाती है लेकिन दीपज्योति को भी जलाने के लिए तो आत्मज्योति चाहिए और दीपज्योति को नेत्रों के द्वारा देखने के लिए भी आत्मज्योति चाहिए | यह आत्मज्योति है तभी नेत्रज्योति है और नेत्रज्योति है तभी दीपज्योति है, वाह मेरे प्रभु ! भगवान् का चिंतन हो गया न ! आपस में मिलो तो उसीका कथन करो, उसीका चिंतन करो, आपका ह्रदय उसके ज्ञान से भर जाय |

 

दीप-प्रज्वलन का वैज्ञानिक रहस्य

दीया इसलिए जलाते हैं कि वातावरण में जो रोगाणु होते हैं, हलके परमाणु होते हैं वे मिटें | मोमबत्ती जलाते हैं तो अधिक मात्रा में कार्बन पैदा होता है और दीपक जलाते हैं तो दिपज्योति से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, सात्विकता पैदा होती है, हानिकारक जीवाणु समाप्त होते हैं |

घी या तेल का दीपक जलने से निकलनेवाला धुआँ घर के वातावरण के लिए शोधक (Purifier)  का काम करता है और स्वच्छ व मनमोहक वातावरण रोगप्रतिरोधी तंत्र को मजबूत करने में सहायक है |

 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से

 

कितना भी ढीला विद्यार्थी हो .....

 

दोनों नथुनों से गहरा श्वास लो | मन में भगवन्नाम जपो फिर हरि ॐ का प्लुत गुंजन करो – हरि ओऽऽ.... म् .. | जब ॐकार का ‘म बोलें तब होंठ बंद कर ‘म का दीर्घ (लम्बा) गुंजन करें |

 

इस प्रकार के प्राणायम करने से मनोबल, बुद्धिबल में विकास होता है, रोगप्रतिकारक शक्ति बढती है, अनुमान शक्ति, क्षमा शक्ति, शौर्य शक्ति आदि का विकास होता है | रोज १५ मिनट ऐसा करनेवाला विद्यार्थी कितना भी ढीला हो, प्रभावशाली, शक्तिशाली हो जायेगा | तो चाहे आई. जी. बनना है,  चाहे डी,आई, जी. बनना है , चाहे कुछ भी बनना है, अपनी अंदर की शक्ति जागृत करो तो अच्छे उद्योगपति भी बन सकते हैं, अच्छे भक्त भी बन सकते हैं और भगवान को प्रकट करनेवाले महापुरुष, संत भी बन सकते हैं, क्या बड़ी बात है !

 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२१ से