आपका मन जैसा सोचता है, तन में ऐसे कण बनने लग जाते
हैं | शोक और बीमारी के समय शोक और बीमारी का चिंतन न करो बल्कि आप पक्का निर्णय
करो कि ‘मैं स्वस्थ हूँ, निरोग हूँ...मैं बिल्कुल स्वस्थ हो रहा हूँ, मैं प्रसन्न
हो रहा हूँ और मेरे सहायक ईश्वर है, सद्गुरु है, मै क्यों डरूँ!’ तो आपके ऐसे ही
स्वास्थ्यप्रद, अमृतमय, हितकारी कण बनने लगेंगे |
जो खुश रहता है, प्रसन्न रहता है उसकी बीमारियों का
विष भी नष्ट होने लगता है, उसके स्वास्थ्य के कण बनने लग जाते हैं और जो जरा-जरा
बात में दु:खी, चिंतित, भयभीत हो जाता है तथा बीमारी के चिंतन में खोया रहता है,
उसके शरीर में रोग के कण बन जाते हैं | इसलिए आप स्वस्थ रहिये, प्रसन्न रहिये और
शरीर का रोग मन तक मत आने दीजिये, मन का रोग, मन का दुःख बुद्धि तक मत आने दीजिये
एवं बुद्धि का राग-द्वेष ‘स्व’तक मत आने दीजिये |’स्व’ को हमेशा स्वस्थ रखिये |
ऋषिप्रसाद – मई २०२० से
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