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Monday, February 25, 2008

उत्तम संतान प्राप्ति के लिए

किसी भी देश का भविष्य बालकों पर निर्भर करता है जो दम्पति सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्रात्मा हैं तथा शास्त्रोक्त नियमों के पालन में तत्पर हैं ऐसे दम्पति के घर में दिव्य आत्माएँ जन्म लेती हैं ऐसी संतानों में बचपन से ही सुसंस्कार, सदगुणों के प्रति आकर्षण एवं दिव्यता देखी जाती है वर्त्तमान में देश के सामने बालकों में संस्कारों की कमी यह एक प्रमुख समस्या है, जिससे उबरने ले हेतु संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पति को ब्रह्मज्ञानी संतों-महापुरुषों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी बनना चाहिए, साथ ही उत्तम संतानप्राप्ति के नियमों को भी जान लेना चाहिए

वास्तव में पत्थर, पानी, खनिज देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ॠषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी बालक ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं लेकिन मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान पैदा करने में नहीं देता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो वह परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली सिद्ध होगी गर्भाधान के लिए 20 फरवरी 2008 तक ग्रहदशा बहुत ही अनुकूल है इसके प्रभाव से उच्च आत्माएँ पृथ्वी पर आयेंगी

उत्त्म संतानप्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए वर्ष में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है

गर्भाधान के लिए समय:
ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित है

यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए

यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए

कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है

रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए

निषिद्ध रात्रियाँ: पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, ऊत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं चाहिए शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए

माता पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है

दिन में समागम करने से आयु व बल का बहुत ह्रास होता है गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं :

रवि >> 8 से 9 >> 1.30 से 5
सोम >> 10.30 se 12 >> 1.30 से 4
मंगल >> 7.30 से 9 >> 10.30 से 1.30
बुध >> 7.30 से 10 >> 3 से 4.30
गुरु >> 12 से 1.30 >> 3 से 4
शुक्र >> 9 से 10.30 >> 12 से 3.30
शनि >> 9 से 12


रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 14 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें

गर्भधारण के पूर्व कर्तव्य
रात्रि तथा समय कम-से-कम तीन दिन पूर्व निश्चित कर लेना चाहिए निश्चित रात्रि में शाम होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर सदगुरु व इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए संभव हो तो हवन करना चाहिए

गर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है इसलिए इस सतत यज्ञ की भावना रखनी चाहिए, विलास की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए

पति-पत्नी दोंनो को अपनी चित्तवृत्तियाँ परमात्मा में स्थिर करनी चाहिए व उत्तम आत्माओं को प्रार्थना करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए :’हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहीं सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओं ! हम दोंनो आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें हम दोंनो अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बानायेंगे ’

पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में श्य्या पर चढ़े तत्पश्चात शय्या पर निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति
ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम्

‘हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें
चरक संहिता, शारीरस्थान : 8.8
दोंनो गर्भ विषय में मन लगाकर रहें ऐसा करने से तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज ग्रहण करती है विधिपूर्वक गर्भधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है
Download: htm-pdf
  • जनवरी २०११ से जून २०११ तक गर्भधारण का उत्तम समय है, पति-पत्नी १ महीने का संयम रखकर गर्भ धारण करें (-Pujya Bapuji Shajapur 30thJan2011)
  • मानव को शुभ योगों का लाभ लेना चाहिए व अशुभ योगों से बचना चाहिए। दिसम्बर 2008 से गुरू-राहू का ‘चाण्डाल योग’ शुरू हो रहा है, इसलिए 1 मार्च 2008 से 20 अप्रैल 2009 तक गर्भ (प्रेग्नॅन्सि) न रहे इसका ध्यान रखें। इस कालखण्ड के बीच में 20 अगस्त 2008 से 5 अक्तूबर 2008 तक का समय गर्भधारण (प्रेग्नॅन्सि) के लिए अच्छा है। इस काल में गर्भधारण का प्रयत्न कर सकते हैं। 20 अप्रैल 2009 के बाद का समय भी गर्भधारण के लिए अच्छा है। 20 अगस्त 2009 से 20 जनवरी 2010 तक का काल गर्भधारण हेतु अति उत्तम है।
  • जिसकी जन्मकुण्डली में तीव्र चाण्डाल योग हो व अन्य शुभ ग्रहों की स्थिति ठीक न हो तो उसके अशांत व शारीरिक-मानसिक पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। फिर भी यदि अनुचित समय में गर्भ रह जाय तो गर्भपात न करके आने वाले बालक के कल्याण के लिए प्रार्थना, पूजा, रामायण आदि का पाठ, जप, अनुष्ठान करें।
  • अपने यहाँ स्वस्थ, तंदरुस्त और पुण्यात्मा बालक का जन्म हो इस हेतु सभी दम्पत्तियों को जप, अनुष्ठान, रामायण एवं श्री गुरुगीता का पाठ करके गर्भाधान करना चाहिए।
- ऋषि प्रसाद Feb & March 2008

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