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Thursday, July 23, 2020

इन लक्षणों को आत्मसात कर सर्वज्ञता पायें


भूखे को रोटी और प्यासे को पानी की जितनी आवश्यकता होती है उतना ही जीवन में उत्तम गुणों एवं धर्मसम्मत व्यवहार का होना आवश्यक है | इनके बिना व्यक्ति मनुष्य हो के भी पशु के समान ही है | कहा भी गया है : धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: | मनुष्यमात्र के कल्याण के लिए समर्थ रामदासजी अपने सदग्रंथ ‘दासबोध में कहते हैं : “उत्तम गुणों के लक्षणों को श्रोतागण ध्यान से सुनें, जिन्हें आत्मसात करने से सर्वज्ञता प्राप्त होती है |

कही भी जाना हो तो मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी लिये बिना न जायें | फल खाने के पहले उसकी ठीक से जानकारी लिये बिना खायें नहीं | रास्ते में पड़ी हुई वास्तु एकाएक उठाये नहीं | अधिक वाद-विवाद नहीं करें तथा किसीसे कपट से व्यवहार न करें | कुल-खानदान और चरित्र की जानकारी लिये बिना किसी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए |

विचार किये बिना ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना चर्चा किसी कार्य कि शुरुआत न करें | लोगों से व्यवहार करते समय मर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए | जहाँ प्रेम न हो वहाँ रूठना नहीं चाहिए | चोर से उसका परिचय नहीं पूछना चाहिए तथा रात में अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए |

लोगों में व्यवहार करते समय सरलता कभी न छोड़ें | पापमार्ग से धन को एकत्र न करें तथा किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में पुण्यमार्ग को छोड़ना नहीं चाहिए | किसीकी निंदा तथा द्वेष कभी न करें एवं बुरी संगति न करें | बलपूर्वक किसीका धन अथवा स्त्री का अपहरण नहीं करना चाहिए | (जब तक कोई अत्यंत अनर्थकारी स्थिति उत्पन्न न हो रही हो तब तक ) वक्ता के बोलते समय बीच में उसका खंडन न करें | लोगों की एकता तोड़ के उनमें फूट नहीं डालनी चाहिए | विद्या का अभ्यास करना कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए | सभा में लज्जा न करें | व्यर्थ की बाते न बोलेन | किसी भी स्थिति में शर्त नहीं लगानी चाहिए | अधिक चिंता नहीं करें तथा लापरवाह भी न रहें | परस्त्री को पापबुद्धि से न देखें | हो सके तो किसीका उपकार न लें | यदि किसी कारणवश लेना ही पड़े तो बदले में उपकार किये बिना न रहें |”

लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

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