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Friday, July 16, 2021

जीवन को प्रेमाभक्ति, ज्ञान व माधुर्य से भरने का अवसर

 चतुर्मास : २० जुलाई से १५ नवम्बर

चतुर्मास शुरू हो जाता है देवशयनी एकादशी से और कार्तिक की देवउठी एकादशी तक रहता है | इन ४ महीनों में भगवान नारायण योगनिद्रा में, ब्रह्मसुख में , एकांत में, सागर में शयन करते हैं तो जल का तेज, प्रभाव बढ़ जाता है | ऐसे ही साधक श्वासोच्छ्वास में अजपाजप करके ब्रह्मसुख के करीब जाता है  तो ऊसके मन-बुद्धि का प्रभाव बढ़ जाता है | इन ४ महीने में शादी – विवाह और सकाम कर्म करनेवाले को घाटा पड़ेगा किन्तु उपवास, मौन, जप, दान, ध्यान और प्रात: स्नान विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी हैं |

इन ३ महीनों में भोग-विलास, पति-पत्नी का संबंध, स्पर्श ज्यादा हानि करेगा और जीवन संयमी रहा तो जैसे भगवान नारायण ब्रह्म में विराजते हैं ऐसे ही आपको भी ब्रह्मचिंतन, ब्रह्मध्यान, ब्रह्मविश्रांति में बड़ी मदद मिलेगी |

चतुर्मास में विशेष लाभदायी

·      चतुर्मास में सूर्योदय के पहले नदी-स्नान, तालाब-स्नान, सागर-स्नान करें अथवा तो बाल्टी में ३ बिल्वपत्र डालकर घुमा दें या तिल, आँवला और जौ का चूर्ण बना के रखें | थोडा-सा मिश्रण बाल्टी में दाल दें या कटोरी में घोल बना के शरीर पर रगड़ दें फिर ‘ॐ नम:शिवाय, ॐ नम: शिवाय...’ अथवा ‘ब्रह्म ही जलरूप बन के आया हैं, ऐसा चिंतन करके स्नान करें तो यह पुण्यदायी, पापनाशक, आत्मिक तेजवर्धक स्नान होगा | इसके सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होगा | सप्तधान्य उबटन १ में जौ और तिल है अत: वह उबटन भी स्नान के लिए सुखदायी, आनंददायी होता है | और भक्त को हाथ में जल लेकर ‘यह भगवान विष्णु का चरणोदक है’ ऐसा समझ के वह जल सिर  पर डालना चाहिए | किसी कारण वह नहीं नहा सकता हो तो फिर मानसिक, मांत्रिक अथवा भस्म का स्नान भी किया जा सकता है |

·        दीपदान करनेवाले की बुद्धि, विचार व व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है |

·    पलाश के पत्तो पर भोजन करनेवाले व्यक्ति की बुद्धि सात्त्विकता- प्रधान होती है और उसे भवान की प्रियता प्राप्त होती है |

·        चतुर्मास में सप्ताह में एक दिन उपवास नहीं कर सकें तो १५ दिन में १ दिन उपवास तो नितांत जरूरी है |

यह अवसर चूकना नहीं चाहिए

  • ४ मास तक भगवान अपने बेसामान, बेसाथी और बेमन भाव में रहते हैं | इन दिनों आप भी ऐसे रहेंगे तो यह आध्यात्मिक उन्नति में मददरूप होगा | अपने जीवन को भगवान की प्रेमाभक्ति से, भगवान के ज्ञान व माधुर्य से भरने का अवसर यह चतुर्मास हैं |
  • तपस्या, साधन-भजन करने का यह चातुर्मास का अवसर चूकना नहीं चाहिए | मैंने किया था ४० दिन का अनुष्ठान, शायद वह चातुर्मास ही होगा जहाँ तक मुझे याद है | और उन ४० दिनों में मुझे जो शक्तियाँ मिली, जो खजाना मिला उसे बाँटते – बाँटते ५० साल हो गये किंतु अब भी उसमें कोई कमी नहीं लग रही है |


ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२१ से


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