- Jan'09 Delhi, Amdavad
Tips for an all round Success in Life from His Holiness Saint Shri Asharamji Bapu.
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Monday, January 19, 2009
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी (२८ जनवरी २०१२ ) के दिन विद्यार्थियों को चाहिए की माँ सरस्वती की आराधना करें, सारस्वत्य मंत्र का जप करें, माँ सरस्वती की सफ़ेद फूलो से पूजा करें, सफ़ेद खीर का भोग लगाये। इस दिन जप-ध्यान-मौन अधिक करें।
पौष्टिक आटा
गुरुदेव ने आटा को पौष्टिक बनने के लिए निम्नलिखित composition बताया है:
गेहूं - ५ kg
सोयाबीन - १ kg
मक्का - १ kg
जाऊ - १ kg
इसके अलावा अपने रूचि और पाचन के अनुसार बाजरी भी डाल सकते हैं।
- Dec'08 Surat
Labels:
स्वाश्थ्य(Health)
Thursday, January 8, 2009
सूर्योपासना
इस आदित्य देव की उपासना करते समय सूर्य गायित्री का जप करके अगर जल चढाते हो, और चढा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहां की मिट्टी लेकर तिलक लगाते हो, और ताम्बे के लोटे में बचा हुआ जल, शेष घूँट भर बचा कर रखा हुआ जल, महा मृत्युंजय का जप करते ही पीते हैं तो आरोग्य की भी खूब रक्षा होती है;
आचमन लेते समय उच्चारण करना होता है -
यह श्लोक का अर्थ यह समझ लो की अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्य नारायण के चरणों का जल, मैं अपनी जठर में धारण करता हूँ...जठर, भीतर के रोगों को, और, सूर्य की कृपा बाहर के शत्रु-विघ्न आदि, अकाल मृत्यु आदि रोगों को हरे;
सूर्य को अर्घ्य देते समय,
इस सूर्य गायित्री के द्वारा भी सूर्य नारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभ-कारी माना गया है; नहीं तो
ॐ सूर्याय नमः, ॐ रवये नमः, करके भी दे सकते हैं;
ॐ सुर्याये नमः, ॐ आदित्याये नमः, ॐ अदित्याये विद्महे भास्कराए धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात,
यह सूर्य गायित्री से सूर्य नारायण को अर्घ्य दें ; बाद में आँखें बंद करके सूर्य नारायण का भू-मध्य में ध्यान करते ही ॐकार का जप करने का बड़ा भारी महत्व है; क्योंकि सृष्टि का मूल ॐकार, परब्रह्म का वाचक है, और भगवान् सूर्य भी इसी ॐकार की उपासना से बड़ी पूर्णता की सामर्थ्य से सम्पान् होते हैं; यह ॐकार की मूल गायत्री; ओमकार, "ॐ आदित्याये नमः" में भी आदित्य में भी "ॐ" तो आया ही है; यह लिखा है शास्त्रों में सूर्य नारायण भी ओमकार की उपासना जप करते हैं, निरंतर विचरण करते रहते हैं
आचमन लेते समय उच्चारण करना होता है -
अकाल-मृत्यु-हरणं सर्व-व्याधि-विनाशनम
सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्
सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्
यह श्लोक का अर्थ यह समझ लो की अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्य नारायण के चरणों का जल, मैं अपनी जठर में धारण करता हूँ...जठर, भीतर के रोगों को, और, सूर्य की कृपा बाहर के शत्रु-विघ्न आदि, अकाल मृत्यु आदि रोगों को हरे;
सूर्य को अर्घ्य देते समय,
"ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात"
इस सूर्य गायित्री के द्वारा भी सूर्य नारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभ-कारी माना गया है; नहीं तो
ॐ सूर्याय नमः, ॐ रवये नमः, करके भी दे सकते हैं;
ॐ सुर्याये नमः, ॐ आदित्याये नमः, ॐ अदित्याये विद्महे भास्कराए धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात,
यह सूर्य गायित्री से सूर्य नारायण को अर्घ्य दें ; बाद में आँखें बंद करके सूर्य नारायण का भू-मध्य में ध्यान करते ही ॐकार का जप करने का बड़ा भारी महत्व है; क्योंकि सृष्टि का मूल ॐकार, परब्रह्म का वाचक है, और भगवान् सूर्य भी इसी ॐकार की उपासना से बड़ी पूर्णता की सामर्थ्य से सम्पान् होते हैं; यह ॐकार की मूल गायत्री; ओमकार, "ॐ आदित्याये नमः" में भी आदित्य में भी "ॐ" तो आया ही है; यह लिखा है शास्त्रों में सूर्य नारायण भी ओमकार की उपासना जप करते हैं, निरंतर विचरण करते रहते हैं
-14th Jan'08, Amdavad
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