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Friday, July 10, 2015

निरोगी व तेजस्वी आँखों के लिए

आँख हमारे शरीर के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व कोमल अंगों में से एक है | वर्तमान समय में आँखों की समस्याओं से बहुत लोग ग्रस्त देखे जाते हैं , जिनमे विद्यार्थियों की भी बड़ी संख्या है | निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाय तो आँखों को जीवनभर स्वस्थ रख सकते हैं और चश्मे से भी छुटकारा पा सकते हैं |

आँखों के लिए हानिकारक

o कम प्रकाश में, लेटे –लेटे व चलते वाहन में पढना आँखों के लिए बहुत हानिकारक हैं |

o मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर आदि की स्क्रीन को अधिक समय तक लगातार देखने व हेयरड्रायर के उपयोग से आँखों को बहुत नुकसान होता है |

o आँखों को चौंधिया देनेवाले अत्यधिक तीव्र प्रकाश में देखना, ग्रहण के समय सूर्य या चन्द्रमा को देखना आँखों को हानि पहुँचता है |

o सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँखों पर तनाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखों की रोशनी कम तथा वे रुखी व तीखी होने लगती है |

o तेज रफ्तार की सवारी के दौरान आँखों पर सीधी हवा लगने से तथा मल-मूत्र और अधोवायु के वेग को रोकने एवं ज्यादा देर तक रोने आदि से आँखें कमजोर होती है |

o सिर पर कभी भी गर्म पानी न डालें और न ही ज्यादा गर्म पानी से चेहरा धोया करें |

o खट्टे, नमकीन, तीखे, पित्तवर्धक पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए |

नेत्र - रक्षा के उपाय

o पढ़ते समय ध्यान रखें कि आँखों पर सामने से रोशनी नहीं आये, पीठ के पीछे से आये, आँख तथा पुस्तक के बीच की दूरी ३० से.मी. से अधिक हो | पुस्तक आँखों के सामने नहीं, नीचे की ओर हो | देर रात तक पढने की अपेक्षा प्रात: जल्दी उठकर पढ़ें |

o तेज धूप में धूप के चश्मे या छाते का उपयोग करें | धूप में से आकर गर्म शरीर पर तुरंत ठंडा पानी न डालें |

o चन्द्रमा व हरियाली को देखना आँखों के लिए विश्रामदायक हैं |

o सुबह हरी घास पर १५ – २० मिनट तक नंगे पैर टहलने से आँखों को तरावट मिलती है | (ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४, पृष्ठ २७ पर दिये गये नेत्र-सुरक्षा के उपायों का भी लाभ लें|)

कुछ विशेष प्रयोग

o अंजन : प्रतिदिन अथवा कम-से- सप्ताह में एक बार शुद्ध काले सुरमे (सौवीरांजन) से अंजन करना चाहिए | इससे नेत्ररोग विशेषत: मोतियाबिंद का भय नहीं रहता |

o जलनेति : विधिवत जलनेति करने से नेत्रज्योति बढती है | इससे विद्यार्थियों का चश्मा भी छूट सकता हैं | (विधि हेतु आश्रम की पुस्तक ‘योगासन’ का पृष्ठ ४३ देखें )

o नेत्रों के लिए विशेष हितकर पदार्थ : आँवला, गाय का दूध व घी, शहद, सेंधा नमक, बादाम, सलाद, हरी सब्जियाँ – विशेषत: डोडी की सब्जी, पालक, पुनर्नवा, हरा धनिया, गाजर, अंगूर, केला, संतरा, मुलेठी, सौंफ, गुलाबजल, त्रिफला चूर्ण |

o सर्वांगासन नेत्र-विकारों को दूर करने और नेत्रज्योति बढ़ानेवाला सर्वोत्तम आसन है | (आश्रम की पुस्तक ‘योगासन’ का पृष्ठ १५ देखें |)

- स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जून २०१५ से

यशप्राप्ति का अदभुत मंत्र

कौनसा भी कार्य की शुरवात करने से पहिले – ‘नारायण ... नारायण ..., नारायण ..., नारायण ...’ इसी मंत्र का सभी नर - नारी में छूपी सर्वव्यापक परमात्मा के नामस्मरण या उच्चारण करनेवालों को यश अवश्य मिलता है |

- ऋषिप्रसाद (विशेषांक) –मई २०१५ से

Tuesday, July 7, 2015

विपरीतकरणी मुद्रा

इस आसन के नियमित व विधिवत अभ्यास से प्राणों के प्रवाह में सूक्ष्म परिवर्तन आता हैं | मणिपुर चक्र से प्राणशक्ति का प्रवाह प्रचुर मात्रा में विशुद्धाख्य चक्र की ओर होता है | इस प्रकार समस्त सूक्ष्म शरीर के शुद्धिकरण में सहायता मिलती हैं | इसका नियमित अभ्यास कई बीमारियों को रोकता हैं | यह ओजशक्ति को ऊपर के केन्द्रों में ले जाने की एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा हैं | महर्षि घेरंड के अनुसार जो नित्यप्रति इसकी साधना करता हैं, वह बुढापे पर विजय प्राप्त करता हैं | इसके अभ्यास से प्राय: सर्वांगासन व शीर्षासन से होनेवाले सभी लाभ होते हैं |

लाभ : १) गले को तथा उसके ऊपर के अंगों को अधिक मात्रा में शुद्ध रक्त की प्राप्ति होती है |
२) मस्तिष्क में विशेषकर प्रमस्तिष्क आवरण ( सेरेब्रल काँर्टक्स ) तथा पीयूष ( पिट्यूटरी ) ग्रंथि एवं शीर्ष ( पीनियल ) ग्रंथि में रक्त का संचार बढ़ जाता है | प्रमस्तिष्क की अक्षमता तथा बुढापे के कारण होनेवाला मनोभ्रंश प्रभावहीन होते हैं तथा मानसिक सतर्कता बढती है |
३) स्नायविक दुर्बलता दूर होती है |
४) सफेद बाल काले होने लगते हैं और चेहरे की झुरियाँ दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है |
५) अल्पक्रियाशील थायराँइड संतुलित बनती है तथा सर्दी – जुकाम, गले की सूजन व श्वसन – संबंधी रोगों से बचाव होता है |
६) भूख व पाचन – क्रिया बढती हैं तथा कब्ज के उपचार में मदद मिलती हैं |
७) यह बवासीर एवं हर्निया के उपचार में सहायक है |
८) महिलाओं का बाँझपन और मासिक धर्म संबंधी विकार दूर होते हैं |

विधि : जमीन पर कम्बल बिछाकर शवासन में लेट जायें | दोनों पैरों को एक साथ धीरे – धीरे ऊपर उठायें | कमर को हथेलियों से सहारा देकर ऊपर उठायें | गर्दन से कमर तक का भाग जमीन से ४५ डिग्री पर ऊपर रखें तथा पैरों को सीधा रखते हुए सिर की ओर उतना ही झुकायें जिससे पैर दृष्टि की सीध में आ जायें | जीभ से तालू का स्पर्श करें | पैर के अँगूठों  पर दृष्टि एकाग्र करें अथवा ध्यान मणिपुर (नाभि) केंद्र में रखें |

आरम्भिक स्थिति में लौटने के लिए पैरों को सिर की ओर झुकायें, फिर धीरे – धीरे मेरुदंड को नीचे लायें तथा घुटने मोड बिना धीरे – धीरे पैरों को नीचे लायें | कुछ देर शवासन में लेटे रहें |

विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास प्रतिदिन एक ही समय पर प्रात:काल करना लाभप्रद हैं |  प्रथम दिन कुछ सेकंड तक अभ्यास करें | धीरे – धीरे अवधि बढाते हुए १० – १५ मिनट तक कर सकते हैं | अपने नित्य योगाभ्यास के अंत में तथा ध्यान के पूर्व इसका अभ्यास करें |

सावधानियाँ : भोजन के कम – से – कम तीन घंटे बाद तक इसका अभ्यास न करें | उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोग, थायराँइड अभिवृद्धि या शरीर में विषाक्त तत्त्वों की वृद्धि होने पर यह आसन न करें | गर्भवती महिलाओं व १४ वर्ष से कम आयु के बालकों को यह आसन नहीं करना चाहिए |


    स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१५ से