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Thursday, October 31, 2019

नॉर्मल डिलीवरी हेतु रामबाण प्रयोग


ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू अपने सत्संगो में सामान्य प्रसूति के लिए रामबाण प्रयोग बताते हैं : “सामान्य प्रसूति में यदि कहीं बाधा जैसी लगे तो देशी गाय के गोबर का १०-१२ ग्राम ताजा रस निकालें,  गुरुमंत्र का जप करके अथवा ‘नारायण.... नारायण.....’ जप करके गर्भवती महिला को पिला दें | 

एक घंटे में प्रसूति नहीं हो तो वापस पिला दें | सहजता से प्रसूति होगी | अगर प्रसव-पीड़ा समय पर शुरू नहीं हो रही हो तो गर्भिणी ‘जम्भला... जम्भला....’ मंत्र का जप करे और पीड़ा शुरू होने पर उसे गोबर का रस पिलायें तो सुखपूर्वक प्रसव होगा |’

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

Wednesday, October 30, 2019

असाध्य रोग का रामबाण इलाज



कोई बीमार व्यक्ति हो और डॉक्टर, वैद्य बोले, ‘यह नहीं बचेगा’ तो वह व्यक्ति गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाया करे और गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगे हाथों की उँगलियों के अग्रभाग से उसके शरीर के भीतर प्रवेश करेंगी, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और वह व्यक्ति तंदुरुस्त हो जायेगा; ४ से ६ महीने लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से ठीक हो सकता है | - पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

देशी गाय के गोबर के लाभ


८४ लाख योनियों के प्राणियों में गाय ही एक ऐसा प्राणी है जिसका गोबर (पुरीष) मल नहीं है बल्कि उत्कृष्ट कोटि का मलशोधक, रोगाणु-विषाणुनाशक तथा लाभकारी जीवाणुओं का पोषक है |
१] गोबर व गोमूत्र से पृथ्वी की उत्पादन शक्ति बढती है |
२] गोबर सभी प्रकार के चर्मरोगों की श्रेष्ठ औषधि है |
३] जले हुए भाग पर स्वस्थ गाय के गोबर का रस लगाना लाभकारी है |
४] गोबर में परमाणु विकिरण व आकाशीय विद्युत् को रोकने की क्षमता है |
५] दीवारों, आँगन, चूल्हे पर इसका लेप करने से सभी प्रकार के कीटाणुओं व रेडिओधर्मिता के प्रभाव से बचा जा सकता है |
६] गोबर में ऐसी क्षमता है कि यदि कूड़े-कचरे के ढेर में इसका घोल डाला जाय तो ३-४ महीने में उसकी उपयोगी खाद बन जाती है |
७] इसके कंडो को ईंधन के रूप में जलाने के बाद बची हुई राख एक उत्तम कीटनाशक व खाद है | खेतों में राख पड़ने से दीमक आदि  कीड़े नहीं पनपते तथा फसल अच्छी होती है |
८] गोबर के कंडों की राख बर्तनों की सफाई में उपयोगी है | क्लीनिंग पाउडर से बर्तन साफ़ करने पर हाथों में चर्मरोग होने का खतरा रहेगा और यदि ठोड़ी भी मात्रा में पाउडर बर्तनों में लगा रह जाता है तो शरीर को हानि पहुंचेगी | गोबर के कंडे की राख से बर्तनों को जो पवित्रता मिलती है वह क्लीनिंग पाउडर आदि से नहीं मिलती है |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

दिव्य औषधि : गोमूत्र


गोमूत्र सभी रोगों, विशेषकर गुर्दे, यकृत, पेट के रोग, कुष्ठरोग, ह्रदयरोग, दमा, पीलिया, प्रेमह, मधुमेह, अजीर्ण तथा जलोदर के लिए रामबाण औषधि है | इसमें २४ प्रकार के रसायन जैसे – पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ्लोराइड, यूरिया, अमोनिया, लौह तत्त्व, ताम्र तत्त्व, सल्फर, लैक्टोज आदि पाये जाते हैं | २५ जून २००२ को भारत लप गोमूत्र का पेटंट मिला | आज सम्पूर्ण विश्व में एंटी-कैंसर ड्रग तथा सर्वोत्तम एंटीबायोटिक एवं हानिरहित सर्वोत्तम कीटकनाशक गोमूत्र है | यह महौषधि है |

भावप्रकाश के अनुसार ‘गोमूत्र तीखा, तेज, उष्ण, क्षार (खारा), कड़वा, कसैला, लघु (पचने में हलका), जठराग्नि-प्रदीपक, मेधा के लिए हितकर, पित्तकारक तथा कफ-वातशामक है | यह शूल (दर्द), गुल्म (उदरस्थ गाँठ), उदररोग, कब्ज, खुजली, कृमि, अतिसार, अफरा, नेत्ररोग, वस्ति संबंधी रोग, मुख के रोग, कुष्ठ, वातरोग, आम, मूत्र-संबंधी रोग, त्वचा-विकार, खाँसी, श्वास (दमा), सूजन, पीलिया तथा पांडूरोग (अनामिया) को नष्ट करता हैं |’

गोमूत्र विषनाशक है | यह विषाक्त भोजन या औषधि के विष को अथवा मानसिक विषादजन्य विष को समाप्त करता है, घाव में पैदा होनेवाले मवाद को सुखाता है | यह सडनरोधी (एन्टीसेफ्टिक) व रोगाणुरोधक (एन्टीबायोटिक) तथा रोगप्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है | गोमूत्र में विटामिन ‘बी’ तथा कार्बोलिक एसिड होता है जो रोगाणुओं का नाश करता है | ताजा गोमूत्र सर्वोत्तम है | इसे रखना हो तो काँच के बर्तन में ८ पर्तवाले सूती कपड़े से छानकर रखना चाहिए | यदि गोमूत्र नहीं मिले तो गोमूत्र अर्क का सेवन करें |

गोमूत्र से आँखों को धोने से उनकी ज्योति वृद्धावस्था तक बनी रहती है | इसके सेवन से पेट के कीड़े  मर जाते हैं | इसलिए प्रसूता स्त्री के लिए इसका सेवन महत्त्वपूर्ण बताया गया है | गोमूत्र को गुनगुना करके कान में डालने से कान का बहना बंद हो जाता है | काली गाय के मूत्र को १५ दिन तक पीने से गले में सुंदर स्वर उत्पन्न होता है |

अमेरिकन डॉ, क्रॉफोर्ड हैमिल्टन का कहना है कि, ‘कुछ दिनों तक गोमूत्र के सेवन से धमनियों में रक्त का दबाव सामान्य होने से ह्रदयरोग दूर होता है | इसके सेवन से भूख बढती है तथा पेशाब खुलकर होता है | यह गुर्दे की विफलता की उत्तम औषधि है |’

ध्यान दें : गोमूत्र देशी गाय का ही होना चाहिए, बैल आदि या जर्सी, होल्सटीन आदि विदेशी पशुओं का नहीं.

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

गाय के रंग का उसके दूध पर प्रभाव


काली गाय का दूध अग्निमांद्यजनित रोगों का नाशक, उत्तम वातनाशक तथा अधिक गुणवान होता है | पीली गाय का दूध वात-पित्तशामक होता है | श्वेत गाय का दूध कफकारक तथा पचने में भारी होता है परंतु उसमें सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, पिप्पलीमूल, हल्दी आदि डालकर पीने से वह त्रिदोषशामक व सुपाच्य हो जाता होता है | यह रोगों से रक्षा करता है |

गोदुग्ध-सेवन संबंधी सावधानी :  गोदुग्ध हमेशा छानकर ही पीना चाहिए, अन्यथा उसमें आया गाय का रोम पेट में जा सकता है जो बहुत ही हानिकारक है | इससे रोग हो सकते हैं और पुण्यों का नाश होता है |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

जठराग्निवर्धक गोतक (मट्ठा )



यथा सुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्रमाहु: ||

‘जिस प्रकार देवताओं के लिए सुखकारी अमृत है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को सुखकारी तक्र है |’ (भावप्रकाश निघंटु)

दही में चौथाई भाग पानी मिलाकर मथने से तक्र तैयार होता है | इसे मट्ठा भी कहते हैं | ताजा मट्ठा सात्त्विक आहार की दृष्टी से श्रेष्ठ द्रव्य है | यह जठराग्नि प्रदीप्त कर पाचन-तंत्र कार्यक्षम बनाता है | अत: भोजन के साथ तथा पश्चात मट्ठा पीने से आहार का ठीक से पाचन हो जाता है | जिन्हें भूख न लगती हो, खट्टी डकारें आती हों और पेट फूलने-अफरा चढने से छाती में घबराहट होती हो, ठीक से पाचन न होता हो उनके मट्ठा अमृत के समान है |

मक्खन निकाला हुआ तक्र पथ्य अर्थात रोगियों के लिए हितकर तथा पचने में हलका होता है | मक्खन नहीं निकाला हुआ तक्र भारी, पुष्टिकारक एवं कफजनक होता है | वातदोष की अधिकता में सोंठ व सेंधा नमक मिला के, कफ की अधिकता में सोंठ, काली मिर्च व पीपर मिलाकर तथा पित्तजन्य विकारों में मिश्री मिला के तक्र का सेवन करना लाभदायी है |

दही को मथकर मक्खन निकाल लिया जाय और अधिक मात्रा में पानी मिला के उसे पुन: मठ जाय तो छाछ बनती है | यह शीतल, हलकी तथा वात-पित्त एवं प्यास का शमन करनेवाली और कफ बढ़ानेवाली होती है |

ताजे दही को मथकर उसी समय मट्ठे का सेवन करें | ऐसा मट्ठा दही से कई गुना अधिक गुणकारी होता है | देर तक रखा हुआ खट्टा व बासी मट्ठा हितकर नहीं है | ताजे दही का अर्थ है – रात को जमाया हुआ दही, जिसका उपयोग सुबह किया जाय एवं सुबह जमाया हुआ दही, जिसका सेवन मध्यान्हकाल में अथवा सूर्यास्त के पहले किया जाय | सायंकाल के बाद दही या छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए |

सावधानी : दही या मट्ठा ताँबे, काँसे, पीतल एवं एल्युमिनियम के बर्तन में न रखें | दही बनाने के लिए मिट्टी अथवा चाँदी के बर्तन विशेष उपयुक्त हैं, स्टील के बर्तन भी चल सकते हैं |

अति दुर्बल व्यक्तियों को तथा क्षयरोग, मूर्च्छा, भ्रम, दाह व रक्तपित में तक्र का उपयोग नहीं करना चाहिए | उष्णकाल अर्थात शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में तक्र का सेवन निषिद्ध है | इन दिनों यदि तक्र पीना ही हो तो जीरा व मिश्री मिला के ताजा व कम मात्रा में लें | 

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

विशिष्ट गुणों से युक्त दही


सब प्रकार के दहियों में गाय के दूध से बना दही श्रेष्ठ और अधिक गुणकारी है | आयुर्वेद शास्त्र ‘भावप्रकाश निघंटु’ में आता है कि ‘गाय के दूध से बना दही सब प्रकार के दहियों में श्रेष्ठ, विशिष्ट गुणोंवाला, रूचि एवं भूख वर्धक, ह्रदय को बल देनेवाला, पुष्टिकारक व वातशामक है |’

रुसी जीव वैज्ञानिक एली मेचनीकोफ़ ने दही पर अनेक प्रयोग करने पर पाया कि दही में दूध के अम्ल से उत्पन्न सूक्ष्म जीवाणु आँतो में विषाणुओं की उत्पत्ति को रोकते हैं | दही भूख तथा पाचनशक्ति को बढ़ता है | अतिसार का उपचार दही से तत्काल होता है | दही से कैंसर की भी चिकित्सा होती है |

ध्यान दें : उपरोक्त गुण पूरी तरह जमे हुए ताजे व खटासहित दही में होते हैं |

सेवन-विधि : दिन में जब भी दही खाना हो तो गाय का घी, मिश्री, मूँग, शहद, आँवला-इनमें से किसीके साथ खायें | दही में नमक नहीं मिलायें | रात्रि में दही नहीं खाना चाहिए |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

बलवर्धक मलाई



दूध की मलाई बहुत पौष्टिक और शक्तिवर्धक होती है | आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘भावप्रकाश निघंटु’ के अनुसार ‘मलाई भारी, शीतल, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक तथा पित्त-रक्तविकार और वात को दूर करनेवाली, पुष्टिदायी, स्निग्ध तथा कफ, बल, शुक्र एवं रस-रक्तादि वर्धक होती है |’

मलाई में पीसी मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट खाने से शरीर पुष्ट, सुडौल और शक्तिशाली होता है | इसके सेवन से पेट की जलन, वायु-प्रकोप (गैस), पित्त-प्रकोप, प्यास और पेट में बढ़ी हुई गर्मी का शमन होता है | चेहरे की त्वचा पर मलाई का लेप लगाने से त्वचा कांतिपूर्ण, चिकनी, मुलायम और स्वस्थ रहती है | दुध पीते समय मलाई हटानी नहीं चाहीए | सोने के दो घंटे पहले मलाई के साथ ही दूध पीना चाहिए | दूध और मलाई मिलकर बहुत पौष्टिक और शक्तिवर्धक आहार बन जाता है |

सावधानी : कफ, खाँसी, अपच व कब्ज के रोगी को मलाई का सेवन नहीं करना चाहिए |

लोककल्याण सेतु –अक्टूबर २०१९ से

गौर वर्ण व ओजस्वी-तेजस्वी संतान हेतु


काश्यप ऋषि ने कहा है :
श्वेताया: श्वेत पुं वत्साया गो: क्षीरणे | (का.शा. : १९)

यदि गर्भवती माताएँ श्वेत रंग के बछड़ेवाली श्वेत गाय के दूध का चाँदी के पात्र में सेवन करें तो उनको दीर्घायु, गोरे तथा ओजस्वी, तेजस्वी व स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है |

राजस्थान की एक गोपालक संस्था द्वारा यह प्रयोग २५०० महिलाओं पर किया गया | सभीकी सही समय पर प्रसूति हुई | किसी भी महिला को सिजेरियन डिलीवरी (शल्यक्रिया द्वारा प्रसूति) नहीं करवानी पड़ी | सभीके शिशु ओजस्वी, तेजस्वी व स्वस्थ पैदा हुए |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

ग्रहबाधा व वास्तुदोष दूर करने का अचूक उपाय


आजकल वास्तुदोष-निवारण के नाम पर तीन टॉग के कछुआ, मेंढक की मूर्ति घरों में रखने का रिवाज चल पड़ा है | यह तथाकथित फेंगशुई चीनी गृहसज्जा करना है | यदि भवन में किसी भी प्रकार का वास्तुदोष है तो उसमें एक देशी गाय रख लें, समस्त वास्तुदोष दूर हो जायेंगे | यदि गाय पालना सम्भव न हो तो ड्योढ़ी (दहलीज या द्वार के पास की भूमि) अथवा आँगन में सवत्सा (बछड़ेवाली) गाय का चित्र लगा लें और घर में गोमूत्र या गोमूत्र अर्क का छिड़काव करें |

शनि, राहू-केतु आदि ग्रहों के दोष-निवारण के लिए प्रत्येक मंगलवार या शनिवार को अपने हाथ से आटे की लोई गुड़सहित प्रेमपूर्वक किसी नंदी अथवा गाय को खिलायें | कैसी भी ग्रहबाधा हो, दूर हो जायेगी |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से


मेधावी व निरोगी संतान हेतु अनुभूत प्रयोग


गर्भवती महिला रोज श्रद्धापूर्वक गाय का पूजन कर उसकी कम-से-कम एक परिक्रमा करे, उसे अपने हाथ से रोटी तथा गुड़ खिलाये और सुबह-शाम गोदुग्ध का पान करे तो निश्चित ही आनेवाली संतान फुर्तीली, सशक्त, मेधावी एवं निरोगी होगी और प्रसव भी सहज ढंग से होगा | 

प्रसव-पीड़ा कम होगी | उपरोक्त लाभों के लिए यह प्रयोग प्रतिदिन करना अनिवार्य है | प्रतिदिन सम्भव न हो तो जितने दिन सम्भव हो करे, तब भी लाभ होगा |

लोककल्याण सेतु –अक्टूबर २०१९ से

बाँसुरी की आवाज से गायों में प्रेम, मधुरता व वात्सल्य


गो-दोहन बेला के पूर्व प्रात:काल बाँसुरी की ध्वनि में राग ललित, राग बिभास, भैरवी, आसावरी के स्वर निकालने पर अल्प समय में अतिशीघ्र दूध निकल आता है | यह गुण देशी गाय में ही होता है |

लोककल्याण सेतु – अक्टूबर २०१९ से

शास्त्रों में वर्णित गौ-महिमा


जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है, वह मनुष्य सब प्रकार के स्थूल पापों से भी मुक्त हो जाता है | जो गौओं के खुर से उडी हुई धूल को सिर पर धारण करता है, वह मानो तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा प् जाता है | (पद्म पुराण, सृष्टि खंड, अध्याय:५७)

गौ का स्पर्श करने, सात्त्विक-सदाचारी ब्राह्मण को नमस्कार करने और सद्गुरु, देवता का भलीभाँति पूजन करने से गृहस्थ सारे पापों से छुट जाते हैं | (स्कंद पुराण, प्रभास खंड)

गंडस्पर्श कर लेने मात्र से ही गौएँ मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट कर देती हैं और आदरपूर्वक सेवन किये जाने पर अपार सम्पत्ति प्रदान करती हैं | वे ही गायें दान दिये जाने पर सीधे स्वर्ग ले जाती हैं | ऐसी गौओं के समान और कोई भी धन नहीं हैं | (बृहत्पराशर स्मृति)

जो प्यास से व्याकुल हुई गौओं को पानी पीने से विघ्न डालता है, उसे ब्रह्मघाटी समझना चाहिए | (महाभारत, अनुशासन पर्व : २४.७ )

जो एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन के पहले दुसरे की गाय को एक मुट्ठी घास खिलाता है, उसका वह व्रत समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाला होता है | (महाभारत, अनुशासन पर्व : ६९.१२)

प्रतिपदा का  चन्द्र-दर्शन केवल गाय ही कर पाती है | यमदूतों व प्रेतत्माओं को देख लेने में गाय सक्षम है | उनके दिखने पर वह विशिष्ट प्रकार की आवाज निकालने लगती है | गाय रँभाने की तरंगे जहाँ तक पहुँचती हैं वहाँ तक आसुरी शक्तियों का प्रभाव नष्ट हो जाता है |

लोककल्याण सेतु -  अक्टूबर २०१९ से

Monday, October 14, 2019

लक्ष्मी किसको सताती है, किसको सुख देती है ?


जहाँ शराब-कबाब का सेवन, दुर्व्यसन, कलह होता है वहाँ की लक्ष्मी ‘वित्त’ बनकर सताती है, दुःख और चिंता उत्पन्न करती है | जहाँ लक्ष्मी का धर्मयुक्त उपयोग होता है वहाँ वह महालक्ष्मी होकर नारायण के सुख से सराबोर करती हैं |
ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से

ग्रहपीड़ा से रक्षा तथा आरोग्य व लक्ष्मी प्राप्ति हेतु

दीपावली के दिन लक्ष्मी-पूजन के समय लक्ष्मीजी को गेंदे के फूलों का हार चढ़ाने से धन-सम्पदा एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है | जो व्यक्ति भगवान विष्णु को गेंदे के फुल अर्पित करता है, उसका सर्वार्थ कल्याण होता है तथा उसकी ग्रहपीड़ाएँ कम होती हैं |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से    

स्वास्थ्य के लिए वरदान है गौशाला की भूमि में बोया अनाज


स्वास्थ्य के लिए विटामिन ‘बी-१२’ बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है | यह बड़ी उम्र में कम बनता है अत: इस उम्र में तो इसकी परम आवश्यकता पडती है | इसके लिए लोग गोलियाँ आदि क्या-क्या खाते हैं | शरीर में डी.एन.ए. एवं लाल रक्तकणों के सुव्यवस्थित निर्माण के लिए तथा तंत्रिका तंत्र के सही कार्य करने हेतु इसकी ख़ास जरूरत होती है |

देशी गाय का गोबर. गोमूत्र, गोभूमि आदि आरोग्य के लिए वरदान हैं | देशी गाय के दूध, दही, छाछ, मक्खन में विटामिन ‘बी-१२’ पाया जाता है | यह देखकर विज्ञानी चकित हुए कि गौ-गोबर से पोषण प्राप्त करके जो चारा, अनाज या सब्जी बनती है उसमें विटामिन ‘बी-१२’ पाया गया | 

गौ-गोबर, गोमूत्र, गोभूमि से पोषित (गौशाला की भूमि में बोया हुआ) जौ, गेहूँ, चावल, चना आदि अन्न, सब्जी भी महत्त्वपूर्ण आहार हो जाते हैं, ‘बी-१२’ से सम्पन्न हो जाते हैं |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से

ब्रह्ममुद्रा


लाभ : ब्रह्ममुद्रा योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है | इसके नियमित अभ्यास से –
१] ध्यान,साधना, सत्संग व अध्ययन में मन लगने लगता है |
२] चक्कर आने बंद होते हैं |
३] अनिद्रा और अतिनिद्रा पर स्थायी प्रभाव पड़ता है |
४] नींद से अधिक सपने आने कम हो जाते हैं |
५] मानसिक अवसाद व तनाव कम होते हैं |
६] एकाग्रता बढती है |
७] कम्प्यूटर या लैपटॉप पर कार्य करनेवालों के लिए यह अत्यंत उपयोगी है | इससे गर्दन की मांसपेशियाँ लचीली व मजबूत होती हैं तथा यह सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस में लाभदायी है |
८] मस्तिष्क में रक्तसंचार तेज होता है |
९] थकान एवं आँखों की कमजोरी दूर होती है | इससे यह अध्ययन करनेवाले छात्रों के लिए विशेष लाभप्रद है |

विधि : वज्रासन या पद्मासन में कमर सीधी रखते हुए बैठे | हाथों को घुटनों पर रखें | कंधों को ढीला रख के गर्दन को सिर के साथ ऊपर-नीचे करें | सिर को ऊपर ले जाते समय आरामपूर्वक जितना अधिक पीछे ले जा सकें, ले जायें | श्वास की गति स्वाभाविक रहे | फिर गर्दन को सीधा रखते हुए दायी तरफ इतना घुमायें की ठोड़ी और कंधा एक ही सीध में आ जायें | इस स्थिति में कुछ सेकंड रुकें | फिर इसी प्रकार गर्दन को बायीं तरफ ले जाकर सेकंड रुकें | अंत में गर्दन ढीली छोड़ के गोलाई में चारों तरफ, फिर विपरीत दिशा से चारों तरफ गोल घुमायें | इस कर्म में कानों को कंधों से छुआयें |प्रत्येक क्रिया ५-१० बार खूब धीरे-धीरे करें |

सावधानियाँ : अ] गर्दन को ऊपर-नीचे करते समय झटका न दें |
ब] परी क्रिया के दौरान आँखें खुली रखें |        
क] गर्दन या गले में कोई गम्भीर रोग हो तो चिकित्सक की सलाह से ही करें |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से

शीत ऋतू में स्वास्थ्य-संवर्धन हेतु


(शीत ऋतू : २३ अक्टूबर से १८ फरवरी )
क्या करें
१] मधुर, लवण (नमकयुक्त) और अम्ल (खट्टे)रसयुक्त तथा गरम प्रकृति के व स्निग्ध पदार्थो का सेवन पाचनशक्ति के अनुसार करें |
२] प्रात:काल प्राणायाम करना, दौड़ लगाना या तेज चलना, व्यायाम, योगासन, सूर्यनमस्कार, सूर्यस्नान, मोटे व गर्म कपड़े पहनना, गुनगुने पानी से स्नान पथ्य विहार है |
३] च्यवनप्राश, सौभाग्य शुंठी पाक, अश्वगंधा पाक आदि बल-वीर्यवर्धक व पौष्टिक पदार्थों का सेवन करके वर्षभर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है |
४] रात्रि को भिगो के सुबह उबाले हुए देशी चने, गुड, केले, सिंघाड़े, खजूर, खोपरा, सूखे मेवे, उड़द, मेथीदाना, आँवला, मट्ठा आदि का सेवन व दूध में अश्वगंधा चूर्ण, शतावरी चूर्ण अथवा घी डालकर पीना शक्ति व पुष्टि दायक है |
५] इस ऋतू में तिल या सरसों के तेल की मालिश विशेष लाभदायी है | इससे त्वचा के रूखेपन एवं वातविकारों से भी बचाव होता है | मालिश के बाद उबटन ( सप्तधान्य उबटन) से स्नान करना चाहिए | कान व नाक में तिल का तेल या योगी आयु तेल डालने से मस्तिष्क, ज्ञानेन्द्रियाँ व बालों की जड़े पुष्ट होती है |
६] हेमंत ऋतू ( २३ अक्टूबर से २१ दिसम्बर) में हरड चूर्ण में चौथाई से आधा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर तथा शिशिर ऋतू ( २२ दिसम्बर से १८ फरवरी) में आठवाँ भाग पीपर (पिप्पली) चूर्ण मिला के ४ से ५ ग्राम मिश्रण प्रातः पानी से लेना हितकारी है | ये उत्तम रसायन हैं |

क्या न करें
१] रूखे, कसैले, कडवे, तीखे, शीत प्रकृति के व वायुवर्धक पदार्थों के सेवन से बचें |
२] देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, श्रम और व्यायाम न करना, देर तक भूखे रहना, बहुत ठंड सहना, रात को देर से भोजन करना और भोजन के तुरंत बाद सो जाना, दिन में सोना, अधिक ठंडे पानी से स्नान करना अपथ्य विहार है |
३] ठंडा पानी, ठंडी हवा, बासी पदार्थों का सेवन, खुले वाहन में सवारी करना, खटाई का अधिक प्रयोग , आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, सत्तू आदि का सेवन, चित्त को काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष से व्याकुल रखना हानिकारक है |
४] इस ऋतू में रुक्ष पदार्थों के सेवन एवं अति अल्पाहार से व अधिक उपवास से शारीरिक धातुओं का ह्रास होकर शरीर दुर्बल हो जाता है |
५] सुबह देर तक सोने एवं नहाने में आलस्य करने से शरीर की बढ़ी हुई गर्मी सिर, आँखों, पेट, पित्ताशय, मूत्राशय, मलाशय आदि अंगों पर बुरा असर करती है, जिससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं ( सुबह जल्दी स्नान करने से गर्मी बाहर निकल जाती है |)
६] यह ऋतू प्रारम्भ हो जाने मात्र से ही गरिष्ठ व पौष्टिक पदार्थों का सेवन शुरू कर देना उचित नहीं हैं, बल्कि जैसे-जैसे ठंड बढती जाय व भूख बढने लगे वैसे-वैसे युक्तिपूर्वक खान-पान बदलना चाहिए |
७] कार्तिक मास में दाले व करेला न खायें |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से


स्मृतिशक्ति बढ़ाने के लिए


स्मृतिशक्ति बढ़ाने हेतु सिर में नित्य बादाम का तेल अल्प मात्रा में अथवा बादाम तेल व नारियल तेल मिलाकर लगाना लाभप्रद है |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से

भोजन में उपयोगी बर्तन

भोजन की शुद्धि, पौष्टिकता व हितकारिता हेतु जितना ध्यान हम भोज्य पदार्थो आदि पर देते हैं, उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने, परोसने, रखने व करनेवाले बर्तनों पर भी देना चाहिए | बर्तनों के गुण-दोष भोजन में आ जाते हैं | अत: कौन-से बर्तन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और कौन-से लाभकारी है :

१] नॉन स्टिक बर्तन : शहरों में रहनेवाले अधिकांश लोग भोजन बनाने के लिए नॉन-स्टिक बर्तनों का उपयोग करने लगे हैं | ये स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होते हैं | इन बर्तनों पर कलई करने हेतु टेफ्लॉन का प्रयोग होता है जो अधिक तापमान पर एक प्रकार की गैस छोड़ता है, जिससे टेफ्लॉन-फ्लू ( बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण ) होने आंशका बढती है तथा फेफड़ों पर बहुत विपरीत परिणाम होता है | ‘International Journal of Hygiene and Environmental Health’ में छपे एक शोध के अनुसार नॉन-स्टिक बर्तनों में उपयोग किये जानेवाले टेफ्लॉन को बनाने में ‘परफ्लोरोओक्टेनोइक एसिड’ रसायन का उपयोग होता है | अमेरिका में इसका उपयोग बंद करने पर कम वजन के शिशुओं क जन्मना और उनमें तत्संबंधी मस्तिष्क –क्षति की समस्या में भारी कमी हुई है |

२] एल्यूमिनियम के बर्तन : नमकवाले  खाद्य पदार्थो के अधिक समय तक सम्पर्क में आने से यह धातु गलने लगती है तथा भोजन में मिलकर शरीर में आ के जमती है | एल्युमिनियम की अधिक मात्रा शरीर में जाने से कब्ज, चर्मरोग, मस्तिष्क के रोग, याददाश्त की कमी, अल्जाइमर्स डिसीज, पार्किन्सन्स डिसीज जैसे रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है |

३] स्टेनलेस स्टील के बर्तन : इनमें भोजन बना व खा सकते हैं लेकिन इनसे काँसा, पीतल आदि की तरह कोई अन्य लाभ नहीं मिलते |

४] ताँबे के बर्तन : ये आकर्षक व टिकाऊ होते हैं | रात को ताँबे के बर्तन में पानी रख के  सुबह पीना स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभदायी है | मधुमेह के रोगियों को ताँबे के बर्तनों में रखे पानी का उपयोग करना लाभदायी है | इनमें खट्टे व नमकवाले पदार्थ न पकायें, न रखें |

५] काँसे के बर्तन : इनमें भोजन करना बुद्धिवर्धक, रुचिकर, रोगप्रतिकारक शक्तिवर्धक, रक्तशुद्धिकर व रक्तपित्तशामक होता है | इन बर्तनों में खट्टी चीजें पकानी व रखनी नहीं चाहिए क्योंकि वे इनसे रासायनिक क्रिया करके विषैली हो जाती हैं | टूटा हुआ अथवा दरारवाला कांस्य-पात्र घर में होना अशुभ माना जाता है | चतुर्मास में काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए |

६] पीतल के बर्तन : पीतल ऊष्मा का सचालक होने से इसके बर्तन भोजन पकाने हेतु उपयुक्त हैं | इसके लिए कलई किये हुए पीतल के बर्तनों में खट्टे पदार्थ बनाना व रखना हानिकारक है | पीतल के पात्र में भोजन करना कृमि व कफनाशक है |

७] लोहे के बर्तन : इन पात्रों में भोजन बनाना बलवर्धक, लौह तत्त्व –प्रदायक तथा सूजन, रक्ताल्पता व पीलिया दूर करनेवाला होता है | खट्टे पदार्थो को छोड़ के अन्य पदार्थ लोहे के पात्रों में रखना व बनाना उत्तम है | इनमें दूध उबालना स्वास्थप्रद है | लौकिक दृष्टि से तो उपरोक्त बात है और ब्रह्मवैवर्त पुराण ( श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय ८५, श्लोक ४ -५ ) के अनुसार ‘लोहे के पात्र में दूध, दही, घी आदि जो कुछ रखा जाय वह अभक्ष्य हो जाता है |’

लोहे के बर्तनों में भोजन बना सकते हैं लेकिन इनमें भोजन करने से बुद्धि का नाश होता है |

८] मिट्टी के बर्तन : ये भोजन पकाने के लिए उपरोक्त सभी बर्तनों की अपेक्षा उत्तम माने जाते हैं | इनमें भोजन पकाने से वह अधिक स्वादिष्ट व सुंगधित होता है | मिट्टी के पात्र में दही जमाने से वह कम खट्टा होता है | मिट्टी के पात्र में दही जमाने से वह कम खट्टा होता है | इनमें भोजन बना तो सकते हैं लेकिन भावप्रकाश ग्रंथ के अनुसार इनमें भोजन करने से धन का नाश होता है |

मिट्टी से बनने के कारण इन बर्तनों की संरचना वैसी ही होती है जैसी हमारे शरीर के लिए आवश्यक है | मिट्टी में मैंगेनिज, मैग्नेशियम, लौह, फ़ॉस्फोरस, सल्फर व अन्य अनेक खनिज पदार्थ उचित मात्रा में होते हैं | इनमें भोजन बनाने में समय थोडा ज्यादा लग सकता है पर उत्तम स्वास्थ्य के लिए भोजन धीरे-धीरे ही पकाया जाना हितकारी है |

९] पत्तों से बने भोजन-पात्र (पत्तल आदि) : इनमें भोजन करना जठराग्निवर्धक, रुचिकर तथा विष व पाप नाशक होता है |

१०] प्लास्टिक के बर्तन : इन बर्तनों से किसी भी खाद्य व पेय पदार्थ का संयोग स्वास्थ्य हेतु हितकारी नहीं है | कठोर प्लास्टिक में बी.पी.ए. जैसा विषैला पदार्थ होता है, जिसकी कम मात्रा भी कैंसर, मधुमेह, रोगप्रतिकारक शक्ति के ह्रास और समय से पूर्व यौवनावस्था प्रारम्भ होने का कारण बन सकती है | अत: इनके उपयोग से बचे |

११] सोने-चाँदी के पात्र : इनमें भोजन करना  त्रिदोषशामक, आँखों के लिए हितकर तथा स्वास्थ्यप्रद होता है |

इन बातों का भी रखे खयाल
१] पानी पीने के लिए ताँबे व काँच के पात्रों का उपयोग करना चाहिए | इनके अभाव में मिट्टी के पात्र उपयोगी हैं, वे पवित्र एवं शीतल होते हैं | घी काँच के पात्र में रखना चाहिए |

२] टूटे हुए, दरारवाले तथा जिसमें खड्डे पड़े हों अथवा छिद्र हो ऐसे पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए |
३] टूटे-फूटे बर्तनों या अंजलि से पानी नही पीना चाहिए |

भोजन बनाने योग्य बर्तन :
मिट्टी, काँसा (खट्टी चीजें छोड़ के ), पीतल (कलई किया हुआ) लोहा (खट्टे पदार्थ छोड़ के ), स्टेनलेस स्टील

भोजन करने योग्य पात्र :
काँसा (खट्टी चीजें छोड़ के, चतुर्मास में वर्जित), पीतल (कलई किया हुआ), स्टेनलेस स्टील, पत्तल, सोना या चाँदी (यदि किसीको उपलब्ध हो )

भोजन न बनाने योग्य बर्तन :
नॉन-स्टिक, प्लास्टिक, एल्युमिनियम

भोजन न करने योग्य पात्र :
प्लास्टिक, एल्युमिनियम, लोहा, मिट्टी

ऋषिप्रसाद –अक्टूबर २०१९ से