(शीत ऋतू : २३ अक्टूबर से १८ फरवरी )
क्या करें
१] मधुर, लवण (नमकयुक्त) और अम्ल (खट्टे)रसयुक्त तथा गरम प्रकृति के व स्निग्ध
पदार्थो का सेवन पाचनशक्ति के अनुसार करें |
२] प्रात:काल प्राणायाम करना, दौड़ लगाना या तेज चलना, व्यायाम, योगासन,
सूर्यनमस्कार, सूर्यस्नान, मोटे व गर्म कपड़े पहनना, गुनगुने पानी से स्नान पथ्य
विहार है |
३] च्यवनप्राश, सौभाग्य शुंठी पाक, अश्वगंधा पाक आदि बल-वीर्यवर्धक व पौष्टिक
पदार्थों का सेवन करके वर्षभर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है |
४] रात्रि को भिगो के सुबह उबाले हुए देशी चने, गुड, केले, सिंघाड़े, खजूर,
खोपरा, सूखे मेवे, उड़द, मेथीदाना, आँवला, मट्ठा आदि का सेवन व दूध में अश्वगंधा
चूर्ण, शतावरी चूर्ण अथवा घी डालकर पीना शक्ति व पुष्टि दायक है |
५] इस ऋतू में तिल या सरसों के तेल की मालिश विशेष लाभदायी है | इससे त्वचा के
रूखेपन एवं वातविकारों से भी बचाव होता है | मालिश के बाद उबटन ( सप्तधान्य उबटन)
से स्नान करना चाहिए | कान व नाक में तिल का तेल या योगी आयु तेल डालने से
मस्तिष्क, ज्ञानेन्द्रियाँ व बालों की जड़े पुष्ट होती है |
६] हेमंत ऋतू ( २३ अक्टूबर से २१ दिसम्बर) में हरड चूर्ण में चौथाई से आधा भाग
सोंठ का चूर्ण मिलाकर तथा शिशिर ऋतू ( २२ दिसम्बर से १८ फरवरी) में आठवाँ भाग पीपर
(पिप्पली) चूर्ण मिला के ४ से ५ ग्राम मिश्रण प्रातः पानी से लेना हितकारी है | ये
उत्तम रसायन हैं |
क्या न करें
१] रूखे, कसैले, कडवे, तीखे, शीत प्रकृति के व वायुवर्धक पदार्थों के सेवन से
बचें |
२] देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, श्रम और व्यायाम न करना, देर तक
भूखे रहना, बहुत ठंड सहना, रात को देर से भोजन करना और भोजन के तुरंत बाद सो जाना,
दिन में सोना, अधिक ठंडे पानी से स्नान करना अपथ्य विहार है |
३] ठंडा पानी, ठंडी हवा, बासी पदार्थों का सेवन, खुले वाहन में सवारी करना,
खटाई का अधिक प्रयोग , आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, सत्तू आदि का सेवन, चित्त को
काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष से व्याकुल रखना हानिकारक है |
४] इस ऋतू में रुक्ष पदार्थों के सेवन एवं अति अल्पाहार से व अधिक उपवास से
शारीरिक धातुओं का ह्रास होकर शरीर दुर्बल हो जाता है |
५] सुबह देर तक सोने एवं नहाने में आलस्य करने से शरीर की बढ़ी हुई गर्मी सिर,
आँखों, पेट, पित्ताशय, मूत्राशय, मलाशय आदि अंगों पर बुरा असर करती है, जिससे कई
प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं ( सुबह जल्दी स्नान करने से गर्मी बाहर निकल जाती
है |)
६] यह ऋतू प्रारम्भ हो जाने मात्र से ही गरिष्ठ व पौष्टिक पदार्थों का सेवन
शुरू कर देना उचित नहीं हैं, बल्कि जैसे-जैसे ठंड बढती जाय व भूख बढने लगे
वैसे-वैसे युक्तिपूर्वक खान-पान बदलना चाहिए |
७] कार्तिक मास में दाले व करेला न खायें |
ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१९ से
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