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Monday, February 25, 2019

गृहस्थ-जीवनोपयोगी बातें


महाभारत में आता है :
१] जो धर्म एवं कल्याण-मार्ग में तत्पर हैं और मोक्ष के विषय में जिनका निरंतर अनुराग है वे विवेकी हैं |

२] जो अपने घर पर आ जाय उसे आत्मीयताभरी दृष्टी से देखें, उठकर उसके लिए आसन दें, मन से उसके प्रति उत्तम भाव रखें, मधुर वचन बोले | यह गृहस्थियों का सनातन धर्म है | अतिथि को आते देख उठकर उसकी अगवानी और यथोचित रीति से आदर-सत्कार करें |

३] प्यासे को पानी, भूखे को भोजन, थके-माँदे को बैठने के लिए आसन और रोग आदि से पीड़ित मनुष्य के लिए सोने हेतु शय्या देनी चाहिए |

४] गृहस्थ के भोजन में देवता, पितर, मनुष्य एवं समस्त प्राणियों का हिस्सा देखा जाता है |

५] नित्य प्रात: एवं सायंकाल कुत्तों और कौओं के लिए पृथ्वी पर अन्न डाल दें |

६] निकम्मे पशुओं की भी हिंसा न करें और जिस वस्तु को विधिपूर्वक देवता आदि के लिए अर्पित न करें, उसे स्वयं भी न खायें |

७] यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, मन और इन्द्रियों का संयम तथा लोभ का परित्याग – ये धर्म के ८ मार्ग हैं |

पूर्णतया संकल्पों को एक ध्येय में लगा देने से, इद्रियों को भली प्रकार वश में कर लेने से, अहिंसा आदि व्रतों का अच्छी प्रकार पालन करने से, भली प्रकार सदगुरु की सेवा करने से, कर्मों को भलीभाँति भगवतसमर्पण करने से और चित्त का भली प्रकार निरोध करने से मनुष्य परम कल्याण को प्राप्त होता है |

लोककल्याणसेतु- फरवरी २०१९ से     

लौकी का विविध प्रकार से लाभ


लौकी पौष्टिक, कफ-पित्तशामक, रुचिकर, वीर्यवर्धक, शीतल, रेचक, ह्रदय के लिए बलप्रद तथा गर्भपोषक है | यह विटामिन ए, बी, सी, ई , के तथा लौह, पोटैशियम, मैंगनीज आदि खनिज तत्त्वों से भरपूर है |

लौकी के कुछ विशेष गुण
ü इसमें लगभग ९० प्रतिशत पानी होने से यह प्राकृतिक रूप से शरीर में जलीय अंश की पूर्ति करने में सहायक है तथा गर्मी-संबंधी बीमारियों जैसे नाक से खून बहना, मुँह के छाले, फुंसी, मुँहासे, अल्सर आदि में बहुत लाभकारी है |
ü पानी व रेशों की प्रचुरता के कारण यह पाचनतंत्र की सफाई में सहाय्यक है | इसका सेवन कब्ज, पेट फूलने की समस्या में तथा वजन नियंत्रित करने में लाभदायी है | कब्ज, बवासीर की पुरानी समस्या व अम्लपित्त में कोमल लौकी की सब्जी का नियमित सेवन विशेष लाभदायी है |
ü दूध मिलाये बिना बनाया हुआ लौकी का हलवा मस्तिष्क व शरीर की पुष्टि में खूब लाभदायी है | यह शुक्र धातु की क्षीणता से उत्पन्न दौर्बल्य में विशेष हितकारी है |

लौकी का रस
लौकी का रस गर्मीशामक है तथा ह्रदय की समस्याओं, पाचन व मूत्र संबंधी विकारों, पथरी व अन्य कई बीमारियों में भी लाभकारी है |



कुछ औषधीय प्रयोग :
१] फटी हुई एड़ियाँ : एड़ियों पर लौकी के रस में अरंडी का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है |

२] मानसिक तनाव, पित्तजन्य समस्याएँ आदि : लौकी के ४०-५० ग्राम रस में चौथाई चम्मच जीरा चूर्ण व एक चम्मच शहद मिलाकर प्रात:काल खाली पेट लेने से मानसिक तनाव (depression) में लाभ होता है | यह अनिद्रा, मिर्गी तथा ज्ञानतंतुओं से संबंधित अन्य रोगों के उपचार में उत्तम प्रभाव दिखाता है | इससे ह्रदय की स्नायुओं को बल मिलता है | अम्लपित्त, छाती में जलन आदि पित्तजन्य समस्याओं में भी यह लाभदायी है |

३] पेशाब की जलन : लौकी के १ कप रस में थोडा-सा नींबू का रस व १ छोटा चम्मच धनिया चूर्ण मिला के लेने से शीघ्र आराम मिलता है |

४] मधुमेह(diabetes) व रक्तचाप (blood pressure) में : ४०- ५० मि.ली. रस का सुबह खाली पेट सेवन रक्त-शर्करा के स्तर को स्थिर करने तथा रक्तचाप को सामान्य रखने में सहायक है |

सावधानियाँ : १) कड़वी लौकी में विषैले द्रव्य होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं | इंजेक्शन देकर कृतिम रूप से बड़ी की गयी लौकी का सेवन कैंसर का खतरा उत्पन्न करता है | अत: छोटी, ताज़ी व कोमल लौकी लें तथा उपयोग से पूर्व चख लें, कड़वी न हो तो ही उसका उपयोग करें |
२) जब रस निकालना हो उसी समय लौकी काटें एवं रस का सेवन भी तुरंत करें | लौकी के रस को किसी भी सब्जी या फल के रस में मिलाकर न पियें |
३) सर्दी, खाँसी, दमा आदि कफजन्य रोगों में लौकी का उपयोग न करें |
४) नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है |
लोककल्याणसेतु – फरवरी २०१९ से

कालभैरवासन


सृष्टि – संहार के समय कालभैरव जैसा भयंकर रूप धारण करते हैं, वैसी ही शारीरिक स्थिति इस आसन में होती है अत: इसे सिद्धों ने ‘कालभैरवासन’ कहा है |

लाभ : इस आसन के नियमित अभ्यास से –
१]  शरीर में दृढ़ता व स्फूर्ति आती है और आंतरिक बल भी बढ़ता है | निर्भीकता आती है |
२] जिव्हा व गले के रोग और टॉन्सिल्स की तकलीफ में आराम मिलता है |
३] चेहरे पर होनेवाले फोड़े-फुँसियाँ ठीक हो जाते हैं व अद्भुत कांति आ जाती है |
४] सीना चौड़ा व सुंदर हो जाता है |
५] यह आँखों के लिए भी अत्यंत उपयोगी माना गया है |

विधि : दोनों पैरों के बीच एक फीट का अंतर रखकर इस प्रकार खड़े हों कि एक पैर के पीछे दूसरा पैर हो | फिर एक हाथ को आगे और दूसरे हाथ को पीछे करते हुए तथा मुख को पूरी तरह से खोल के जीभ बाहर निकालें | इस दौरान आँखों को पूर्णतया खोलकर दोनों भौंहों को देखें | अब बिना किसी हिलचाल के इस स्थिति में रहें | यह आसन पैर बदलकर भी करें |

लोककल्याणसेतु – फरवरी २०१९ से

Thursday, February 7, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ



१५ मार्च : षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल:सूर्योदय से दोपहर १२-४८ तक ) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल )

१७ मार्च : आमलकी एकादशी (व्रत करके आँवले के वृक्ष के पास रात्रि-जागरण, उसकी १०८ या २८ परिक्रमा से सब पापों से मुक्ति और १००० गोदान का फल), रविपुष्यामृत योग (सूर्योदय से रात्रि १२-१२ तक )

२० मार्च : होलिका दहन (रात्रि-जागरण, जप, मौन और ध्यान बहुत ही लाभदायी )

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

प्रायश्चित जप


पूर्वजन्म या इस जन्म का जो भी कुछ पाप-ताप है, उसे निवृत्त करने के लिए अथवा संचित नित्य दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए प्रायश्चितरूप जो जप किया जाता है उसे प्रायश्चित जप कहते हैं |

कोई पाप हो गया, कुछ गलतियाँ हो गयीं, इससे कुल-खानदान में कुछ समस्याएँ हैं अथवा अपने से गलती हो गयी और आत्म-अशांति है अथवा भविष्य में उस पाप का दंड न मिले इसलिए प्रायश्चित – संबंधी जप किया जाता है |

ॐ ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोऽध्यजायत |
ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णव: ||
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत |
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ||
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् |
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व: || 
                                         (ऋग्वेद :मंडल १०, सूक्त १९०, मंत्र १ - ३ )

इन वेदमंत्रों को पढ़कर त्रिकाल संध्या करे तो किया हुआ पाप माफ हो जाता है, उसके बदले में दूसरी नीच योनियाँ नहीं मिलतीं | इस प्रकार की विधि है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

अचल जप साधना


इसमें नियम, संयम, संकल्प होता है, स्थान तथा जप की संख्या निश्चित होती है | जप करते समय हमें अर्थिग न मिले ऐसे विद्युत् के कुचालक आसन पर बैठकर या लेट के भी जप किया जा सकता है | लेटने की अपेक्षा बैठना बहुत अच्छा है | इस प्रकार जप करने को बोलते हैं अचल जप |

अचल जप की संख्या : यदि एक अक्षर का मंत्र हो तो १,११,११० ,मंत्रजप करने से वह मंत्र सिद्ध हो जाता है | एक से अधिक अक्षरोंवाले मंत्र के लिए मंत्र में जितने अक्षर हैं उस संख्या को १,११,११० से गुणा करने पर अनुष्ठान की जप-संख्या प्राप्त होती है | जैसे – ‘ॐ नम: शिवाय |’ षडक्षरी मंत्र है तो ६,६६,६६० जप एवं १२ अक्षर के ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ मंत्र के लिए १३,३३,३२० जप करना होता है ( इसमें अनुष्ठान के दिनों व मंत्रजप की संख्या के अनुसार प्रतिदिन की मालाएँ निश्चित कर जप करें ) | 

उस सिद्ध मंत्र के साधक की अकाल मृत्यु नहीं हो सकती है | और दैवयोग से अकाल मृत्यु की घटनावाले लोगों के बीच बैठा हो तो भी उसका बाल तक बाँका नहीं होगा |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

बाधाएँ आती है तो ...


यदि आपको किसी कार्य में बाधा आ रही हो तो किसी शुभ समय में पीपल के पत्ते पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ मंत्र तीन बार लिख के उसे अपने पूजा-स्थल में रखकर पूजन करें | इससे बाधाएँ समाप्त होंगी |

लेकिन इससे भी ऊँची बात एवं ऊँचा प्रयोग करूणासिंधु पूज्य बापूजी के सत्संग से हमें जानने को मिलता है कि जब तक अज्ञान बना रहेगा तब तक कार्यों में कर्तापन व उनके फलों में भोक्तापन बना रहेगा और बाधाएँ पीड़ा पहुँचाती रहेंगी तथा जन्म-मरणरूपी सबसे बड़ी बाधा तो बनी ही रहेगी | 

अत: सदा के लिए समस्त बाधाओं की जड़ ही समाप्त करनी हो तो उपरोक्त मंत्र या अपने इष्टदेव का मंत्र अथवा ॐकार का प्रथम दीर्घ एवं बाद में प्लुत गुंजन करते हुए ॐकार, स्वस्तिक या गुरुदेव के श्रीचित्र को एकटक देखें | यह करते समय जितनी देर उच्चारण किया उतनी देर चुप, शांत रहकर आत्मविश्रांति पायें | 

इससे वर्तमान एवं भविष्य के सभी कार्यों के लिए बाधा-निवारक व कार्य-साफल्य प्रदायक ऊर्जा का संचय होगा, साथ ही समस्त बाधाओं की जड़ अज्ञान के समूल उच्छेदन में तीव्र गति से उन्नति होगी |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

घर में लक्ष्मी का आगमन


प्रत्येक अमावस्या को पूरे घर की सफाई कर पूजा-साधना स्थल पर धूप-दीप करके १०८ या अधिक बार अपने गुरुमंत्र या किसी भी भगवन्नाम का जप करने से घर में लक्ष्मी का आगमन होता है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

महिलाओं की समस्याओं में चमत्कारी बीजमंत्र


‘थं’ बीजमंत्र मासिक धर्म को सुनियंत्रित करता है | इससे अनियमित तथा अधिक मासिक स्त्राव में राहत मिलती है | महिलाएँ मासिक स्त्राव की तकलीफों से छुटकारा पाने के लिए हार्मोन्स की जो गोलियाँ लेती हैं, वे होनेवाली सन्तान में विकृति तथा गर्भाशय के अनेक विकार उत्पन्न करती हैं | 

उनके लिए भगवान एक प्रसाद है यह ‘थं’ बीजमंत्र | मासिक धर्म के अत्यधिक रक्तस्त्राव में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

स्वास्थ्य प्रसाद – पूज्य बापूजी


१] कइयों को सिर में दर्द रहता है तो क्या करें ? - देशी गाय के घी में कपूर घिस के माथे पर थोडा लगा लें व जरा सूँघे तो पित्तजन्य सिरदर्द छू !

२] जिन बच्चों को सर्दी हो जाती है, नाक बहती रहती है – उन्हें सुबह खाली पेट थोडा गुनगुना पानी पिलाओ दो–पाँच–दस दिन | नाक बहने की तकलीफ, सर्दी, खाँसी भाग जायेगी |  
दूसरा भी उपाय है – १० ग्राम लहसुन कूट के उसकी चटनी बना लों और उसमें ५० ग्राम शहद मिला दो | इसे सर्दियों में या ऋतू-परिवर्तन के दिनों में जब खाँसी आये या नाक बहे, बच्चों की भूख कम हो जाय तो बालक की उम्र के हिसाब से एक-दो ग्राम से लेकर पाँच – सात – दस ग्राम तक चटायें | इससे भूख खुलकर लगेगी, सर्दी भाग जायेगी, नाक बहना भी ठीक हो जायेगा |

ऋषिप्रसाद –फरवरी २०१९ से

त्वचा के उत्तम स्वास्थ्य के लिए ....


क्या करें
१] त्वचा स्वस्थ रखने हेतु शुद्ध वायु व प्रकाश का सेवन, पर्याप्त जल पीना और गहरे श्वास लेने चाहिए तथा मानसिक तनाव व चिंता से बचना चाहिए |
२] नियमित शरीर की मालिश करने से शरीर में रक्त व प्राण का संचार ठीक होने से त्वचा के दोष दूर होते हैं |
३] त्वचा-रोग का एक कारण कब्ज भी है | इसके निवारण हेतु रात को त्रिफला, हरड या हिंगादि हरड चूर्ण पानी के साथ लें |
४] स्नान के लिए सप्तधान्य उबटन, मुलतानी मिटटी अथवा देशी गाय के गोबर व गोमूत्र या गोमूत्र अर्क के मिश्रण का उपयोग करें |

क्या न करें
१] अधिक मीठे, खट्टे, तीखे, मिर्च-मसालेदार, तले हुए, अधिक नमक व विरुद्ध आहार के सेवन से बचें | चाय-कॉफ़ी तथा नशीली वस्तुओं से दूर रहें |
२] ज्यादा धूप से बचें | गीले, अधिक तंग व नायलॉन के कपड़े तथा प्लास्टिक के जूतों का उपयोग न करें |
३] चर्मरोगी के कपड़े एवं उसकी उपयोग की गयी चीजों का उपयोग न करें |
४] क्रोध, घृणा, ईर्ष्या आदि से रक्त-विकार होने से भी त्वचा-रोग होते हैं | इनसे बचने हेतु सत्संग-श्रवण, जप, आत्मविचार, सदाचार का अवलम्बन लें |

सप्तधान्य उबटन, मुलतानी मिटटी, त्रिफला, हरड व हिंगादि हरड चूर्ण एवं गोमूत्र अर्क समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

वसंत ऋतू की बीमारियों में फायदेमंद औषधियाँ (वसंत ऋतू : १८ फरवरी से १९ अप्रैल तक )



सर्दी-जुकाम के लिए :
१] तुलसी अर्क : ३ – ३ चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी से लें |
२] योगी आयु तेल : २ – २ बूँद सुबह-शाम नाक में डालें |
३] अमृत द्रव : २ -३ बूँद १ कप गुनगुने पानी से सेवन करें |

खाँसी के लिए :
१] सितोपलादि चूर्ण : १ – १ चम्मच सुबह-शाम शहद के साथ लें |
२] कफ सिरप : ३ – ३ चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी से लें |

खुजली आदि चर्मरोगों के लिए :
१] नीम अर्क : ३ – ३ चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी से लें |
] घृतकुमारी रस (अलोवेरा ज्यूस)  : ३ – ३ चम्मच सुबह-शाम लें |  
३] लीवर टॉनिक टेबलेट : २ – २ गोली सुबह-शाम गुनगुने पानी से लें |
४] अच्युताय मलहम : त्वचा के प्रभावित अंग पर लगायें |

उपरोक्त औषधियों हेतु प्राप्ति-स्थान : सत्साहित्य सेवाकेन्द्र व आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्र |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

अनेक रोगों में लाभदायी बिना खर्च का प्रयोग : जलनेति


लाभ : नियमपूर्वक जलनेति करने से –
१] आँखों की रोशनी बढती है | चश्मे की जरूरत नहीं पडती | चश्मा हो भी तो धीरे-धीरे नम्बर कम होकर छूट भी जाता है |
२] श्वासोच्छ्वास का मार्ग साफ़ होता है |
३] मस्तिष्क में ताजगी रहती है |
४] चित्त में प्रसन्नता बनी रहती है |
५] दमा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आदि छोटी-मोटी असंख्य बीमारियों में लाभ होता है | सर्दी-जुकाम होने के अवसर कम होते हैं |

विधि : एक लीटर पानी को गुनगुना कर उसमें करीब १० ग्राम शुद्ध नमक घोल दें | सेंधा नमक मिले तो अच्छा है | सुबह स्नान के बाद यह पानी चौड़े मुँहवाले पात्र या कटोरे में लेकर पंजो के बल बैठें | पात्र को दोनों हाथों से पकड़कर नथुने पानी में डुबा दें | अब धीरे-धीरे नाक के द्वारा पानी को भीतर खींचे और मुँह से बाहर निकालते जायें | नाक को पानी में इस प्रकार डुबोये रखें कि भीतर जानेवाले पानी के साथ हवा प्रवेश न करे अन्यथा खाँसी आयेगी | इस प्रकार पात्र का सब पानी नाक द्वारा लेकर मुख द्वारा बाहर निकाल दें | अब दोनों पैर थोड़े खुले रख के खड़े हो जायें | दोनों हाथ कमर पर रख के भस्त्रिका करते हुए अर्थात श्वास को जोर से बाहर निकालते हुए आगे की ओर जितना हो सके उतना झुकें | यह क्रिया बार-बार करें, इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर निकल जायेगा | थोडा-बहुत रह भी जाय और दिन में कभी भी नाक से बाहर निकल आये तो कुछ चिंताजनक नहीं है |

नाक से पानी भीतर खींचने की यह क्रिया प्रारम्भ में उलझन जैसी लगेगी लेकिन अभ्यास हो जाने पर बिल्कुल सरल बन जायेगी |

ऋषिप्रसाद –फरवरी २०१९ से

प्राकृतिक शुद्धिकारक व स्वास्थ्यवर्धक मूली


आयुर्वेद के अनुसार ताज़ी, कोमल, छोटी मूली रुचिकारक, भूखवर्धक, त्रिदोषशामक, पचने में हलकी, तीखी, ह्रदय के लिए हितकर तथा गले के रोगों में लाभदायी है | यह उत्तम पाचक, मल-मूत्र की रुकावट को दूर करनेवाली व कंठशुद्धिकर है | बड़ी, पुरानी मूली पचने में भारी, उष्ण, रुक्ष और त्रिदोषकारक होती है | मूली के पत्ते व बीज भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं |

आधुनिक अनुसंधानानुसार मूली में कैल्शियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम, मैंगनीज, लौह आदि खनिज पर्याप्त मात्रा में होने के साथ रेशे(fibres), विटामिन ‘सी’ तथा अन्य पोषक तत्त्व पाये जाते हैं |

मूली मधुमेह (diabetes) के रोगियों के लिए लाभदायी है | यह गुर्दों (kidneys) के स्वास्थ्य के लिए अच्छी रहती है और शरीर से विषैले तत्त्वों को निकालने में भी कारगर है | इसे कच्ची हल्दी के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है | इसका ताजा रस पीने से पथरी एवं मूत्रसंबंधी रोगों में राहत मिलती है |अफरा में मूली के पत्तों का रस विशेषरूप से उपयोगी होता है | इसके नियमित सेवनसे पुराना कब्ज दूर होता है |

पेट के लिए उत्तम
मूली पेट व यकृत के रोगों में बहुत लाभकारी है अत: इसे पेट व यकृत हेतु सबसे अच्छा ‘प्राकृतिक शुद्धिकारक’ माना गया है | अधिक मात्रा में रेशे होने से यह मल को मुलायम करने और पाचनक्रिया को बढ़िया रखने में मदद करती है |
  • मूली व उसके पत्ते, खीरा या ककड़ी व टमाटर काट लें | इसमें नमक, काली मिर्च का चूर्ण व नींबू मिला के खायें | इससे पाचन-संबंधी अनेक समस्याओं तथा कब्ज में लाभ होता है |

औषधीय प्रयोग
१] पेशाब व शौच की समस्या : मूली के पत्तों का २०-४० मि.ली. रस सुबह-शाम सेवन करने से शौच साफ़ आता है और पेशाब खुलकर आता है, इससे वजन घटाने में मदद मिलती है |

२] पेट के रोग : मूली के ५० मि.ली. रस में अदरक का आधा चम्मच व नींबू का २ चम्मच रस मिलाकर नियमित पीने से भूख बढ़ती है | पेट में भारीपन महसूस हो रहा हो तो  मूली के १५-२० मि.ली. रस में नमक मिला के पीने से लाभ होता है |

३] पथरी : बार-बार पथरी होने की समस्या में मूली के पत्तों के ५० मि.ली. रस में १ चम्मच धनिया-चूर्ण मिला के लगातार ३ महीने लेने से पथरी होने की सम्भावना नहीं रहती है | साथ में पथ्य-पालन आवश्यक है |

४] सूजन : मूली के १-२ ग्राम बीज का ५ ग्राम तिल के साथ दिन में २ बार सेवन करने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है |

सावधानी : छोटी, पतली व कोमल मूली का ही सेवन करना चाहिए | मोटी, पकी हुई मूली नहीं खानी चाहिए | इसे रात में व दूध के साथ नहीं खाना चाहिए | माघ मॉस में ( २१ जनवरी से १९ फरवरी २०१९ तक ) मूली खाना वर्जित है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से

शिवरात्रि का व्रत की ३ महत्त्वपूर्ण बातें

महाशिवरात्रि वस्त्र-अलंकार से इस देह को सजाने का, मेवा-मिठाई खाकर जीभ को मजा दिलाने का पर्व नहीं है | यह देह से परे देहातीत आत्मा में आत्मविश्रांति पाने का पर्व है, संयम और तप बढ़ाने का पर्व है | महाशिवरात्रि का व्रत ठीक से किया जाय तो अश्वमेध यज्ञ का फल होता है | इस व्रत में ३ बातें होती है :

१] उपवास :उप’ माने समीप | आप शिव के समीप, कल्याणस्वरूप अन्तर्यामी परमात्मा के समीप आने की कोशिश कीजिये, ध्यान कीजिये | महाशिवरात्रि के दिन अन्न-जल या अन्न नहीं लेते हैं | इससे अन्न पचाने में जो जीवनशक्ति खर्च होती है वह बच जाती है | उसको ध्यान में लगा दें | इससे शरीर भी तंदुरुस्त रहेगा |

२] पूजन : आपका जो व्यवहार है वह भगवान के लिए करिये, अपने अहं या विकार को पोसने के लिए नहीं | शरीर को तंदुरुस्त रखने हेतु खाइये और उसकी करने की शक्ति का सदुपयोग करने के लिए व्यवहार कीजिये, भोग भोगने के लिए नहीं | योगेश्वर से मिलने के लिए आप व्यवहार करेंगे तो आपका व्यवहार पूजन हो जायेगा |
महाशिवरात्रि हमें सावधान करती हैं कि आप जो भी कार्य करें वह भगवत हेतु करेंगे तो भगवान की पूजा हो जायेगी |
३] जागरण : आप जागते रहें | जब ‘मैं’ और ‘मेरे’ का भाव आये तो सोच लेना कि ‘यह मन का खेल है |’ मन के विचारों को देखना | क्रोध आये तो जागना कि ‘क्रोध आया है |’ तो क्रोध आपका खून या खाना खराब नहीं करेगा | काम आया और जग गये कि ‘यह कामविकार आया है |’ तुरंत आपने हाथ-पैर धो लिये, रामजी का चिन्तन किया, कभी नाभि तक पानी में बैठ गये तो कामविकार में इतना सत्यानाश नहीं होगा |

आप जगेंगे तो उसका भी भला होगा, आपका भी भला होगा | तो जीवन में जागृति की जरूरत है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से