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Thursday, January 31, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ



१३ फरवरी : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से दोपहर ३-४७ तक), विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : सूर्योदय से सुबह ८-५० तक ) (ध्यान, जप आदि का लाख गुना फल )

१६ फरवरी : जया एकादशी (व्रत से ब्रह्महत्यातुल्य पाप व पिशाचत्व नाश )

१७ फरवरी : रविपुष्यामृत योग (शाम ४-४६ से १८ फरवरी सूर्योदय तक), माघ शुक्ल त्रयोदशी इसी दिन से माघी पूर्णिमा (१९ फरवरी) तक स्नान, दान, व्रत आदि पुण्यकर्म करने से सम्पूर्ण माघ स्नान का फल

२ मार्च : विजया एकादशी (व्रत से इस लोक में विजयप्राप्ति और परलोक अक्षय बना रहता है )

४ मार्च : महाशिवरात्रि व्रत, रात्रि-जागरण, शिव-पूजन (निशीथकाल: रात्रि १२-२६ से १-१५ तक)

लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से   

Wednesday, January 30, 2019

फलों और सब्जी के छिलकों को व्यर्थ न समझें



प्राय: साग-सब्जियों और फलों का उपयोग करते समय उनके छिलकों को बेकार समझकर फेंक दिया जाता है लेकिन छिलकों में कई चमत्कारिक गुण छिपे होते हैं | इन्हें कई रोगों को दूर करने के साथ-साथ सौंदर्य को निखारने में व अन्य प्रकार से उपयोग में लिया जा सकता है |

१] नीबू के छिलके : इनमें मौजूद अम्ल त्वचा की सफाई करता है व चमक और कोमलता को बढ़ाने में मदद करता है | इन्हें दाँतों पर मलने से दाँत चमकदार होते हैं और मसूड़े मजबूत बनते हैं | नींबू छिलकेसहित खाने पर कैंसर नहीं होता |



२] संतरे के छिलके : इनको सुखाकर खूब महीन चूर्ण बना लें | इसे दाँतों पर घिसने से दाँत चमकदार बनते हैं | यह चूर्ण कच्चे दूध व हल्दी में मिलाकर चेहरे पर लगाने से मुँहासों व धब्बों का नाश होता है और त्वचा चमक उठती है | संतरे के छिलकों में रेशे होने के कारण ये कब्ज को दूर करने में मदद करते हैं |


३] अनार के छिलके : अनार के सूखे छिलके बारीक पीस के रख लें | अधिक मासिक स्राव ने एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लेने से रक्तस्त्राव कम होगा | इसमें दही मिला के गाढ़ा अवलेह (paste) बनाकर सिर पर मलने से बाल मुलायम होते हैं व रुसी से भी छुटकारा मिलता है | अनार का छिलका मुँह में डालकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है | इसका चूर्ण नागकेसर के साथ लेने से बवासीर का रक्तस्त्राव बंद होता है |

४] पपीते के छिलके : इन्हें छाया में सुखा के महीन चूर्ण बना लें | इसे ग्लिसरीन में मिला के चेहरे पर लगाने से त्वचा की रुक्षता दूर होती है |




५] खीरे के छिलके : इनमें पाये जानेवाले अघुलनशील रेशे पाचनतंत्र के लिए अच्छे होते हैं तथा कब्ज की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं | छिलकों को सुखाकर बनाये गये चूर्ण में नींबू की कुछ बूँदे मिला के अवलेह बना लें | इसे एलोवेरा जेल के साथ मिला के त्वचा पर लगायें | इससे त्वचा में निखार आता है | (एलोवेरा जेल सत्साहित्य सेवाकेन्द्रों एवं संत श्री आशारामजी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)

६] आलू के छिलके : जलने पर आलू का छिलका लगाने से शीघ्र राहत मिलती है | आँखों के नीचे का कालापन हटाने हेतु ककड़ी की फाँक और आलू के छिलकों को बारी-बारी से कालिमावाले स्थान पर रगड़ें |
- शरीर का कोई अंग जल जाय तो जले हुए स्थान पर तुरंत कच्चे आलू का रस लगाना व उसके पतले टुकड़े (कटे चिप्स) रखना पर्याप्त है | इससे न फोड़ा होगा, न मवाद बनेगा, न ही मलहम या अन्य औषधियों की आवश्यकता होगी |

७] चीकू के छिलके : चीकू को बिना छिलके उतारे खायें | इससे पाचनतंत्र को फायदा होगा |





८] सेब के छिलके : इन छिलकों व इनके ठीक नीचेवाले गूदे में विटामिन ‘सी’ प्रचुर होता है | छिलकेयुक्त सेब को चबा-चबाकर खानेवाले को मसूड़ों से खून निकलने की बीमारी कभी नहीं होती | सेब के छिलके में विटामिन ‘ए’ गूदे की अपेक्षा ५ गुना अधिक होता है | अत: सेब का पूरा – पूरा लाभ उठाने के लिए चाकू आदि से उसके छिलके पर की जानेवाली मोम की पर्त उतारकर उसे छिलकेसहित खूब चबा-चबा के खायें |


लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से         

शास्त्रीय, वैज्ञानिक भारतीय व्यवस्था का एक प्रमाण : गोबर-लेपन


देशी गाय का गोबर शुद्धिकारक, पवित्र व मंगलकारी है | यह दुर्गन्धनाशक एवं सात्त्विकता व कांति वर्धक है | भारत में अनादि काल से गौ-गोबर का लेपन यज्ञ-मंडप, मंदिर आदि धार्मिक स्थलों पर तथा घरों में भी किया जाता रहा है |

भगवन श्रीकृष्ण कहते हैं :
सभी प्रपा गृहाश्चापि देवतायतनानि च |
शुध्यन्ति शकृता यासां किं भूतमधिकं तत: ||

जिनके गोबर से लीपने पर सभा-भवन, पौसले (प्याउएँ), घर और देव-मंदिर भी शुद्ध हो जाते हैं, उन गौओं से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है ?’ (महाभारत, आश्वमेधिक पर्व)

मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाने का रहस्य !                                      
मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाये जाने की परम्परा हमारे भारतीय समाज में आपने-हमने देखी ही होगी | क्या आप जानते हैं कि इसका क्या कारण हैं ?

गरुड पुराण के अनुसार ‘गोबर से बिना लिपी हुई भूमि पर सुलाये गये मरणासन्न व्यक्ति में यक्ष, पिशाच एवं राक्षस कोटि के क्रूरकर्मी दुष्ट प्रविष्ट हो जाते हैं |’

वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों का निष्कर्ष भी इस भारतीय परम्परा को स्वीकार करता है | अनुसंधानो के अनुसार गोबर में फॉस्फोरस पाया जाता है, जो अनेक संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है | मृत शरीर में कई प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं | अत: उसके पास उपस्थित लोगों के स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना | अत: उसके पास उपस्थित लोगों के स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना गया है |

हानिकारक विकिरणों से रक्षा का उपाय
वर्तमान समय में वातावरण में हानिकारक विकिरण (radiations) फेंकनेवाले उपकरणों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है | इन विकिरणों तथा आणविक प्रकल्पों व कारखानों एवं परमाणु हथियारों के प्रयोग से निकलनेवाले विकिरणों से सुरक्षित रहने का सहज व सरल उपाय भारतीय ऋषि-परम्परा के अंतर्गत चलनेवाली सामाजिक व्यवस्था में हर किसीको देखने को मिल सकता है |

इस बात को स्पष्ट करते हुए डॉ. उत्तम माहेश्वरी कहते हैं : “घर की बाहरी दीवार पर गोबर की मोटी पर्त का लेपन किया जाय तो वह पर्त हानिकारक विकिरणों को सोख लेती है, जिससे लोगों का शरीरिक-मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रखने में मदद मिल सकती है |”

भारतीय सामजिक व्यवस्था संतो-महापुरुषों के सिद्धांतों के अनुसार स्थापित व प्रचलित होने से इसके हर एक क्रियाकलाप के पीछे सूक्ष्मातिसूक्ष्म रहस्य व उन महापुरुषों की व्यापक हित की भावना छुपी रहती है | विज्ञान तो उनकी सत्यता और महत्ता बाद में व धीमे-धीमे सिद्ध करता जायेगा और पूरी तो कभी जान ही नहीं पायेगा | इसलिए हमारे सूक्ष्मद्रष्टा, दिव्यदृष्टा महापुरुषों के वचनों पर, उनके रचित शास्त्रों-संहिताओं पर श्रद्धा करके स्वयं उनका अनुभव करना, लाभ उठाना ही हितकारी है |

लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से

सुप्तवज्रासन



लाभ: 
१] इस आसन का सबसे विशेष लाभ यह होता है कि अकेला यह आसन अँगूठे से सिरपर्यंत रक्त का संचार करके सम्पूर्ण शरीर को मजबूत बना देता है |
२] शरीर की थकान दूर होती है | मेरुदंड व कमर लचीले होते हैं तथा सीना चौड़ा होता है |
३] मस्तिष्क-नियन्त्रण में काफी मदद मिलती है |
४] शरीर के नाड़ी-जाल का केंद्र नाभि-स्थान ठीक रहता है |
५] सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग अत्यंत सरल होता है | कुंडलिनी शक्ति सरलता से ऊर्ध्वगमन करती है | इस आसन में ध्यान करने से मेरुदंड को सीधा रखने का श्रम नहीं करना पड़ता और उसे आराम मिलता है |
६] सभी अंत:स्त्रावी ग्रंथियों को पुष्टि मिलती है, जिससे शारीरिक व आध्यात्मिक विकास सहज हो जाता है |
७] जठराग्नि प्रदीप्त होकर कब्ज की समस्या में फायदा होता है | कमर, घुटनों आदि का दर्द, धातुक्षय, लकवा, टी.बी., पथरी, बहरापन, तोतलापन, आँखों व स्मरणशक्ति की दुर्बलता आदि में लाभ होता है |
८] श्वास-संबंधी बीमारियों में बहुत ही लाभ होता है |
९] टॉन्सिलाइटिस आदि गले के रोगों में भी लाभदायी है |
१०] बचपन से ही इसका अभ्यास किया जाय तो दमे की बिमारी नहीं हो सकती |
११] पेट, कमर, नितम्ब का मोटापा कम होता है और शरीर आकर्षक बनता है |

विधि : वज्रासन में बैठने (पैरों को घुटनों से मोड़कर दोनों एड़ियों पर ऐसी बैठना कि उनके तलवों पर नितम्ब हों तथा अँगूठे परस्पर जुड़ें हों ) के बाद चित होकर पीछे की ओर भूमि पर लेट जायें | दोनों जंघाएँ परस्पर मिली रहें | श्वास छोड़ते हुए बायें हाथ का खुला पंजा दाहिने कंधे के नीचे और दाहिने हाथ का खुला पंजा बायें कंधे के नीचे इस प्रकार रखें कि सर दोनों हाथों की ऑटी (क्रॉस ) के ऊपर आये | ध्यान विशुद्धाख्य चक्र (कंठस्थान) में रखें |

सावधानी : रीढ़ के निचले भाग के रोगी तथा हड्डी की टी.बी. से पीड़ित व्यक्तियों को बिना किसी जानकार से पूछे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए |

लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से

Saturday, January 19, 2019

साधना में अपनी उन्नति को स्वयं कैसे मापें ?


कितने ही साधक-भक्त ऐसे हैं जो लम्बे समय से साधना कर रहे हैं | साधना में प्रगति के लिए साधक के जीवन में स्वयं का मूल्यांकन आवश्यक है | साधक को खुद ही अपना आत्म-विश्लेषण करना चाहिए | जितना ठीक ढंग से हम स्वयं अपना निरिक्षण कर सकते हैं उतना अन्य नहीं कर सकता क्योंकि हम जितने अच्छे-से अपने गुण-दोषों, कमजोरियों से परिचित होते हैं, उतने अन्य व्यक्ति नहीं होते | जिज्ञासु साधकों को इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही खोजना चाहिए ताकि साधना में शीघ्र उन्नति हो :
१] साधना में रूचि दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है अथवा घट रही है या उदासीनता आ रही है ?

२] सत्संग सुनने के बाद उसे जीवन में उतारने की जिज्ञासा भी है या नहीं ?

३] ध्यान-भजन-सत्संग का लक्ष्य आपके लिए परमात्मा की प्राप्ति है या नश्वर संसार के क्षणभंगुर भोग ?

४] मंत्रदीक्षा के समय साधना की जो पद्धतियाँ बतायी गयी थीं, उनसे आप कितने लाभान्वित हुए हैं या वे याद ही नहीं हैं ?

५] संसार के प्रति आकर्षण कम हुआ है या ज्यों-का-त्यों बना हुआ है ?

६] शास्त्रवचन और संत-उपदेश में श्रद्धा है या नहीं ?

७] कही आप सेवा-साधना के बहाने प्रशंसा के रोग से तो ग्रस्त नहीं हो गये हैं ?

८] भोगों से मन उपराम हुआ है या अभी भी उनमें सुखबुद्धि बनी हुई हैं ?

९] त्रिकाल संध्या का नियम माह में कितनी बार पूर्ण करते हैं ? ध्यान-भजन और सेवा के लिए दिनभर में कितना समय देते हैं ?

१०] क्या कभी प्रभु के साथ एकाकार हो जाने की तड़प मन में उठती है ?

११] मंत्रजप करते-करते कहीं मनोराज में तो नहीं उलझ जाते हैं ?

१२] चित्त की चंचलता, मन की मनमुखता शांत होकर अंतर का आराम प्रकट हो रहा है या नहीं ?

१३] सुख में सुखी और दुःख में दु:खी होने की प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर आप अग्रेसर हो रहे हैं या नहीं ? सुख-दुःख में सम हो रहे हैं या नहीं ?

१४] सत्संग में जाने के बाद सत्संग का, मनुष्य-जीवन का महत्त्व समझ में आया है अथवा रोजी-रोटी के लिए ही जीवन पूरा हो रहा है ?

१५] जीवन में निर्भयता, निश्चिंतता, प्रसन्नता जैसे उन्नति के परम गुणों का प्रादुर्भाव (प्राकट्य) हो रहा है ?

१६] मौन, एकांत, अनुष्ठान के प्रति रूचि कितनी है ?

१७] उद्वेग के प्रसंग में आप कितना धैर्य और संयम रख पाते हैं ?

अपने जीवन में किसी प्रकार की कमियाँ दिखें तो सुबह १०-१२ प्राणायाम करके उन कमियों को निकालने के लिए सद्गुणों का विचार करने से आपके दुर्गुण धीरे-धीरे निवृत्त होते जायेंगे एवं ह्रदय सद्गुणों से भरता जायेगा | सद्गुणों के विकास से सर्वगुणसम्पन्न परमात्मा का दीदार (अनुभव) करना भी आसान होता जायेगा |

                   लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से         


Friday, January 18, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ


२१ जनवरी   रविपुष्यामृत योग (प्रात: ५ – २२ से सूर्योदय तक )

२७ जनवरी -   रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से दोपहर ३ - ०३ तक )

३१ जनवरी -   षटतिला एकादशी (स्नान, उबटन, जलपान, भोजन, दान व होम में तिल के उपयोग से पाप-नाश )

४ फरवरी – सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से रात्रि  २ -३४ )  (तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता –नाश )

१३ फरवरी – बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से दोपहर ३ – ४७ )  विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : सूर्योदय से सुबह ८ – ५० तक), (ध्यान, जप आदि का लाख गुना फल )

१४ फरवरी – मातृ-पितृ  पूजन दिवस

१६ फरवरी – जया एकादशी ( व्रत से ब्रह्महत्यातुल्य पाप व पिशाचत्व नाश )

१७ फरवरी – रविपुष्यामृत योग ( शाम ४ - ४६ से  १८ फरवरी सूर्योदय तक ), माघ शुक्ल त्रयोदशी [ इस दिन से माघी पूर्णिमा ( १६ फरवरी) तक स्नान, दान, व्रत आदि पुण्यकर्म करने से सम्पूर्ण माघ-स्नान का फल]

 ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से
   

शुद्ध शिलाजीत कैप्सूल (१००% शुद्ध )


शुद्ध शिलाजीत शरीर के सभी अंगो को बल व मजबूती प्रदान करती है | यह युवा व वृद्ध – दोनों अवस्थाओं में ऊर्जा देनेवाला तथा शक्ति, बुद्धि व स्मृति वर्धक एवं हड्डियों को मजबूत करनेवाला उत्तम रसायन है | शारीरिक कमजोरी, मूत्र –संबंधी रोग, खून की कमी, पथरी, जोड़ों का दर्द एवं ह्रदय की पीड़ा आदि रोगों में लाभदायी है |

बाजारू विज्ञापन देखकर अपनी जेब खाली न करें | यह कैप्सूल शुद्ध, सात्त्विक, सस्ता व विश्वसनिय है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

कठोर या चंचल स्वभाव बदलने की कुंजी


स्वभाव कठोर है तो कमल का ध्यान करें, स्वभाव कोमल हो जायेगा | चंचल स्वभाव है तो ऐसा चिंतन करें कि “मैं शांत आत्मा हूँ, चिद्घन आत्मा हूँ, चैतन्य आत्मा हूँ.... चंचलता मन में है, उसको जाननेवाला, चल मन को जाननेवाला अचल मेरा आत्मा-परमात्मा है | ॐ ॐ ॐ....”  थोड़े दिन में स्वभाव ठीक हो जायेगा |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से


घर सुरक्षित रहने के लिए


घर में संक्रांति ( जब सूर्य अगली राशि में प्रवेश करते हैं ) के समय (रविवार को छोडकर) देशी गाय का गोमूत्र अथवा गोमूत्र अर्क पानी में मिलाकर छिड़काव करने से घर हर प्रकार से सुरक्षित रहता है | घर में सभी सदस्यों में परम बना रहता है | 

( हर महीने में एक संक्रांति होती है | आश्रम के कैलेंडर, डायरी आदि में देखें |  गोमूत्र अर्क सत्साहित्य सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है |)

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

घर में शांति आने का अद्भुत चमत्कार


शुद्ध घी या तेल के तेल का दीपक जलाकर गहरा श्वास ले के रोकें फिर ‘ॐ तं नमामि हरिं परम् |’ मंत्र बोले | ऐसा १५ – २० मिनट नियत समय, नियत स्थान पर कुटुम्ब के सभी लोग करें | ३ – ४ दिन में अद्भुत चमत्कार होगा, घर में शांति होगी |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

शीत ऋतू के अपने आहार –विहार


क्या करें
१] हरड चूर्ण घी में भूनकर नियमितरुप से लेने तथा भोजन में घी का उपयोग करने से शरीर बलवान होकर दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है |
२] सर्दियों में प्रतिदिन सुबह खाली पेट १५ से २५ ग्राम काले तिल चबाकर खाने व ऊपर से पानी पीने से शरीर पुष्ट होता है व दाँत मृत्युपर्यन्त दृढ़ रहते हैनं |
३] सूर्यकिरणें सर्वरोगनाशक व स्वास्थ्यप्रदायक हैं | रोज सुबह सिर को ढककर ८ मिनट सूर्य की ओर मुख व १० मिनट पीठ करके बैठे |
४] शीतकाल में व्यायाम व योगासन विशेष जरूरी हैं | इन दिनों जठराग्नि बहुत प्रबल रहने से समय पर पाचन-क्षमता अनुरूप उचित मात्रा में आहार लें अन्यथा शरीर को हानि होगी |

क्या न करें
१] अति श्रम करनेवाले, दुर्बल, उष्ण प्रकृतिवाले एवं गर्भिणी को तथा रक्त व पित्त दोष में हरड का सेवन नहीं करना चाहिए |
२] तिल और दूध का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए और रात्रि को तिल व तिल के तेल से बनी वस्तुएँ खाना वर्जित है |
३] सूर्यकिरणों में अधिक समय तक सिर को ढके बिना रहना व तेज धुप में बैठना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
४] दिन में सोना, देर रात तक जागना, अति ठंड सहन करना, अति उपवास आदि शीत ऋतू में वर्जित है | बहुत ठंडे जल से स्नान नहीं करना चाहिए |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९६ से


कैसे रखे सर्दी को दूर ?



v कुछ लोगों को सर्दी सहन नही होती, थरथराते हैं, दाँत से दाँत बजते हैं, हाथ काँपते हैं | वे कड़ाही में थोडा-सा घी डाल दें और फिर उसमें गुड़ गला दें | जितना गुड डाले उतनी सोंठ डाल दें | समझो २५ ग्राम गुड़ है तो २४५ ग्राम सोंठ डाल दी | उसे घी में गला के सेंक दें | १ -१ चम्मच सुबह-शाम चाटने से सर्दी झेलने की ताकत आ जायेगी |
v राई पीस के शहद के साथ पैरों के तलवों में लगा दें तो भी सर्दी में ठिठुरना बंद हो जायेगा |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

सर्दियों में पुष्टि के विशेष प्रयोग


v सर्दियों में सुबह ४ से ५ खजूर को घी में सेंककर खा लें | ऊपर से इलायची, मिश्री व २ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण डालकर उबाला हाउ दूध पियें | इससे रक्त, मांस व शुक्र धातु की वृद्धि होती है |
v २ से ३ बादाम रात को पानी में भिगो दें | सुबह छिलके निकाल के बारीक पीस लें व दूध में मिला के उबालें | इससे मिश्री और  ५ – १० ग्राम घी मिला के लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है एवं मस्तिष्क की शक्ति बढती है |
v कृश एवं दुर्बल व्यक्ति बीज निकले ५ खजूर घी में सेंककर सुबह चावल के साथ खाये | इससे वजन एवं बल में वृद्धि होती है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

कब्ज से राहत देनेवाली अनमोल कुंजियाँ


v प्रात: पेट साफ़ नहीं होता हो तो गुनगुना पानी पी के खड़े हो जायें और ठुड्डी को गले के बीचवाले खड्डे में दबायें व हाथ ऊपर करके शरीर को खींचे | पंजों के बल कूदें | फिर सीधे लेट जायें, श्वास बाहर छोड़ दें व रोके रखें और गुदाद्वार को  ३० – ३२ बार अंदर खींचे, ढीला छोड़े, फिर श्वास लें | इसको स्थलबस्ती बोलते हैं | ऐसा तीन बार करोगे तो लगभग सौ बार गुदा का संकुचन-प्रसरण हो जायेगा | इससे अपने-आप पेट साफ़ होगा | और कब्ज के कारण होनेवाली असंख्य बीमारियों में से कोई भी बीमारी छुपी होगी तो वह बाहर हो जायेगी |
v सैकड़ों पाचन-संबंधी रोगों को मिटाना हो तो सुबह ५ से ७ बजे के बीच सूर्योदय से पहले-पहले पेट साफ़ हो जाय.... नहीं तो सूर्य की पहली किरणें शरीर पर लगें; सूर्यस्नान करने से भी पेट साफ़ होने में मदद मिलती है |
v कई लोग जैसे कुर्सी पर बैठा जाता है, ऐसे ही कमोड ( पाश्च्यात्य पद्धति का शौचालय ) पर बैठकर पेट साफ़ करते हैं | उनका पेट साफ़ नहीं होता, इससे नुक्सान होता है | शौचालय सादा अर्थात जमीन पर पायदानवाला होना चाहिए | शौच के समय आँतों पर दबाव पड़ना चाहिए, तभी पेट अच्छी तरह से साफ़ होगा | पहले शरीर का वजन बायें पैर पर पड़े फिर दायें पैर पर पड़े | इस प्रकार दोनों पैरों पर दबाव पड़ने से उसका छोटी व बड़ी – दोनों आँतों पर प्रभाव होता है, जिससे पेट साफ़ होने में मदद मिलती है | तो पैरों पर वजन हो इसी ढंग से शौचालय में बैठे |दाया स्वर चलते समय मल-त्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्र-त्याग करने से स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से

तलवों में मालिश के चमत्कारी लाभ


दायें पैर के तलवे की बायीं हथेली से और बायें पैर के तलवे की दाहिनी हथेली से रोज (प्रत्येक तलवे की ) २ - ४ मिनट सरसों के तेल या घी से मालिश करें | यह प्रयोग न केवल कई रोगों से बचा सकेगा बल्कि अनेक साध्य-असाध्य रोगों में भी लाभ करेगा |

हथेलियो व तलवों में शरीर के विभिन्न अंगों से संबंधित प्रतिबिम्ब केंद्र पाये जाते हैं | अपनी ही हथेली से आपने तलवों की मालिश करने से इन पर दबाव पड़ता है, जिससे शरीर के सभी अवयवों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है |

कब करें : प्रात: खाली पेट व्यायाम के बाद, शाम के भोजन से पूर्व या दो घंटे बाद, सोने से पहले- अनुकूलता-अनुसार दिन में एक बार करें |

लाभ : इस क्रिया के निरंतर अभ्यास से –
१] शरीर के विभिन्न अवयवों की कार्यक्षमता बढती है तथा हानिकारक द्रव्यों का ठीक से निष्कासन होने लगता है |
२] रक्त-संचालन की गडबडीयॉ दूर होती हैं |
३] अंत:स्रावी ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली में सुधार होने से कई रोगों का शमन होता है |
४] स्नायुतंत्र के विकार दूर होते हैं |
५] नेत्रज्योति बढती है |
६] तलवों का खुरदरापन, रूखापन, सूजन आदि दूर होकर उनमें कोमलता व बल आता है |

यदि स्वस्थ व्यक्ति भी यह क्रिया सप्ताह में २ – ३ बार रात्रि में सोते समय करें तो उसका स्वास्थ्य बना रहेगा |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१९ से