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Wednesday, January 30, 2019

सुप्तवज्रासन



लाभ: 
१] इस आसन का सबसे विशेष लाभ यह होता है कि अकेला यह आसन अँगूठे से सिरपर्यंत रक्त का संचार करके सम्पूर्ण शरीर को मजबूत बना देता है |
२] शरीर की थकान दूर होती है | मेरुदंड व कमर लचीले होते हैं तथा सीना चौड़ा होता है |
३] मस्तिष्क-नियन्त्रण में काफी मदद मिलती है |
४] शरीर के नाड़ी-जाल का केंद्र नाभि-स्थान ठीक रहता है |
५] सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग अत्यंत सरल होता है | कुंडलिनी शक्ति सरलता से ऊर्ध्वगमन करती है | इस आसन में ध्यान करने से मेरुदंड को सीधा रखने का श्रम नहीं करना पड़ता और उसे आराम मिलता है |
६] सभी अंत:स्त्रावी ग्रंथियों को पुष्टि मिलती है, जिससे शारीरिक व आध्यात्मिक विकास सहज हो जाता है |
७] जठराग्नि प्रदीप्त होकर कब्ज की समस्या में फायदा होता है | कमर, घुटनों आदि का दर्द, धातुक्षय, लकवा, टी.बी., पथरी, बहरापन, तोतलापन, आँखों व स्मरणशक्ति की दुर्बलता आदि में लाभ होता है |
८] श्वास-संबंधी बीमारियों में बहुत ही लाभ होता है |
९] टॉन्सिलाइटिस आदि गले के रोगों में भी लाभदायी है |
१०] बचपन से ही इसका अभ्यास किया जाय तो दमे की बिमारी नहीं हो सकती |
११] पेट, कमर, नितम्ब का मोटापा कम होता है और शरीर आकर्षक बनता है |

विधि : वज्रासन में बैठने (पैरों को घुटनों से मोड़कर दोनों एड़ियों पर ऐसी बैठना कि उनके तलवों पर नितम्ब हों तथा अँगूठे परस्पर जुड़ें हों ) के बाद चित होकर पीछे की ओर भूमि पर लेट जायें | दोनों जंघाएँ परस्पर मिली रहें | श्वास छोड़ते हुए बायें हाथ का खुला पंजा दाहिने कंधे के नीचे और दाहिने हाथ का खुला पंजा बायें कंधे के नीचे इस प्रकार रखें कि सर दोनों हाथों की ऑटी (क्रॉस ) के ऊपर आये | ध्यान विशुद्धाख्य चक्र (कंठस्थान) में रखें |

सावधानी : रीढ़ के निचले भाग के रोगी तथा हड्डी की टी.बी. से पीड़ित व्यक्तियों को बिना किसी जानकार से पूछे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए |

लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से

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