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Monday, July 21, 2014

आँखों की समस्याओं और नेत्रज्योति-वृद्धी के उपाय

लगातार कम्प्यूटर स्क्रीन तथा टीवी देखने, प्रदूषित वातावरण, आहार में पोषक तत्त्वों की कमी तथा अन्य कारणों से आँखों में जलन, पानी गिरना, कम दिखाई देना, आँखों में जले, कम उम्र में ही चश्मा लग जाना आदि समस्याएँ बढती जा रही है | ये समस्याएँ आगे जाकर आँखों को गम्भीर नुकसान पहुँचा सकती है |

आँखों की समस्याओं से बचने के नुस्खे

१] रोज दिन में दो-तीन बार मुँह में पानी भरकर आँखों पर स्वच्छ, शीतल पानी के छींटे मारें | इससे आँखों की सारी गर्मी पानी के द्वारा बाहर निकल जाती है |

२] आँखों में जलन हो या धूप से आये हों तो बर्फ के पानी की पट्टियाँ आँखों के ऊपर रखें |

३] पैर के तलवों पर घी की मालिश करके सोयें |

नेत्रज्योति बढ़ाने के सरल प्रयोग

१] हाथों को कन्धों की ऊँचाई तक शरीर के अगल-बगल उठाये | अँगूठों को ऊपर की ओर रखें | सिर एवं चेहरे को बिना घुमाये आँखों को बायें हाथ के अँगूठे पर फिर दायें हाथ के अँगूठे पर केन्द्रित करें | हर तरफ १५ – १५ सेकंड तक दृष्टि केन्द्रित करें | इसे १५ से २० बार करें | इसके बाद २ मिनट तक आँखों को हलकी बंद कर उन्हें विश्राम दें |

२] दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में अच्छी तरह रगड़कर बंद आँखों पर रखें | इस क्रिया से अल्फ़ा तरंगे आँखों के अंदर प्रवेश कर आराम पहुँचाती है |

-ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१४ से

सरल प्रयोग

- भगवान धन्वंतरि सुश्रुतजी से कहते हैं : “मनुष्य को सदा ‘हिताशी’ (हितकारी पदार्थो को ही खानेवाला), ‘मिताशी’ (परिमित भोजन करनेवाला) तथा ‘जीर्णाशी’ होना चाहिए अर्थात पहले खाये हुए अन्न का परिपाक हो जाने पर ही पुन: भोजन करना चाहिए |’
- बेल के पत्ते, धनिया व सौंफ को समान मात्रा में लेकर कूट लें | १० से २० ग्राम यह चूर्ण शाम को १०० ग्राम पानी में भिगो दें और सुबह पानी को छानकर पी जायें | इसी प्रकार सुबह भिगोकर शाम को पियें | इससे स्वप्नदोष कुछ ही दिनों में ठीक हो जायेगा | यह प्रमेह एवं स्त्रियों के प्रदर में भी लाभदायक है |
- घी तथा दूध से शिवलिंग को स्नान कराने से मनुष्य रोगहीन हो जाता है |
- खांडयुक्त दूध पीनेवाला सौ वर्षो की आयु प्राप्त करता है |
- दीर्घजीवी होने की इच्छावाले को सुबह खाली पेट १० से १५ ग्राम त्रिफला घृत के साथ ५ से १० ग्राम शहद का सेवन करना चाहिए |

-ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१४ से

स्वास्थ्यवर्धक चोकरयुक्त आटा

प्राय: लोग खाना बनाते समय आटे को छानकर चोकर फेंक देते हैं लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि चोकर फेंककर उन्होंने आटे के सारे रेशे (फाईबर्स) फेंक दिये हैं | चोकर स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है | चोकर के संबंध में शोध कर रहे वैज्ञानिक ने पाया कि चोकर रक्त में इम्यूनो-ग्लोब्यूलीन्स की मात्रा बढाता हैं, जिससे शरीर की रोगप्रतिकारक क्षमता बढती है | इससे रोगप्रतिकारक शक्ति की कमी के कारण उत्पन्न होनेवाले कई कष्टदायक रोग जैसे क्षय (टी.बी.), दमा आदि भी दूर रहते हैं |

चोकरयुक्त आटा खाने के लाभ

१] गेंहूँ का चोकर कब्ज हटाने में रामबाण का काम करता है | इसके प्रयोग से आँतो में चिपका हुआ मल साफ़ होता है, गैस नहीं बनती, आँते सुरक्षित व पेट मुलायम रहता है |

२] चोकर आमाशय के घावों को ठीक करता हैं |

३] रक्तवसा (कोलेस्ट्रोल) को संतुलित करके ह्रदयरोग से भी रक्षा करता है |

४] आंत्रपुच्छशोध (अपेंडिसाइटिस), अर्श (बवासीर) तथा भंगदर से बचाता है | बड़ी आँत एवं मलाशय कैंसर से भी रक्षा होती है |

५] मोटापा घटाने तथा मधुमेह निवारण में भी अचूक कार्य करता है |

अत: अति लाभकारी चोकरयुक्त आटे का ही प्रयोग करें, भूलकर भी इसे न फेंके |

-ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१४ से

घर में सुख-सम्पति लाने के लिए

गाय के दूध के दही में थोडा जौ और तिल मिला दें | फिर उससे रगड़-रगड़कर

“ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: |” जप करके स्नान करें |
- पूज्य बापूजी

-ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१४ से

For happiness and prosperity at home
Add little barley and sesame seeds in curd made off cow's milk. Then, rub it across your body and recite:

"AUM LAKSHMINARAYANAYA NAMAH", "AUM LAKSHMINARAYANAYA NAMAH"
Then, take bath after this recital.
- Pujya Bapuji
- Rishi Prasad - July 2014

मासानुसार गर्भिणी परिचर्या

हर महीने में गर्भ-शरीर के अवयव आकार लेते हैं, अत: विकासक्रम के अनुसार हर महीने गर्भिणी को कुछ विशेष आहार लेना चाहए |

पहला महिना : गर्भधारण का संदेह होते ही गर्भिणी सादा मिश्रीवाला सहज में ठंडा हुआ दूध पाचनशक्ति के अनुसार उचित मात्रा में तीन घंटे के अंतर से ले अथवा सुबह-शाम ले | साथ ही सुबह १ चम्मच ताजा मक्खन (खट्टा न हो) ३ - ४ बार पानी से धोकर रूचि अनुसार मिश्री व १- २ कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर ले तथा हरे नारियल की ४ चम्मच गिरी के साथ २ चम्मच सौंफ खूब देर तक चबाकर खाये | इससे बालक का शरीर पुष्ट, सुडौल व गौरवर्ण का होगा |

इस महीने के प्रारम्भ से ही माँ को बालक में इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्धापूर्वक सतत मनन-चिंतन करना चाहिए | ब्रम्हनिष्ठ महापुरुषों का सत्संग एवं उत्तम शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-चिंतन करना चाहिए |

दूसरा महीना :
इसमें शतावरी, विदारीकंद, जीवंती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों के चूर्ण को समभाग मिलाकर रख लें | इनका १ से २ ग्राम चूर्ण २०० मि.ली. दूध में २०० मि.ली. पानी डाल के मध्यम आँच पर उबालें, पानी जल जाने पर सेवन करें |

तीसरा महीना : इस महीने में दूध को ठंडा कर १ चम्मच शुद्ध घी व आधा चम्मच शहद )अर्थात घी व शहद विषम मात्रा में ) मिलाकर सुबह-शाम लें |

उलटियाँ हो रही हों तो अनार का रस पीने तथा ‘ॐ नमो नारायणाय’ का जप करने से वे दूर होती हैं |

चौथा महीना : इसमें प्रतिदिन १० से २५ ग्राम मक्खन अच्छे-से धोकर, छाछ का अंश निकाल के मिश्री के साथ या गुनगुने दूध में डालकर अपनी पाचनशक्ति के अनुसार सेवन करें |

इस मास में बालक सुनने-समझने लगता है | बालक की इच्छानुसार माता के मन में आहार-विहार संबंधी विविध इच्छाएँ उत्पन्न होने से उनकी पूर्ति युक्ति से (अर्थात अहितकर न हो इसका ध्यान रखते हुए) करनी चाहिए |

यदि गर्भाधान अचानक हो गया हो तो चौथे मास में गर्भ अपने संस्कारों को माँ के आहार-विहार की रूचि द्वारा व्यक्त करता है | आयुर्वेद के आचार्यों का कहना है कि यदि इस समय भी हम सावधान होकर आग्रहपूर्वक दृढ़ता से श्रेष्ठ विचार करने लगें और श्रेष्ठ सात्त्विक आहार ही लें तो आनेवाली आत्मा के खुद के संस्कारों का प्रभाव कम या ज्यादा हो जाता है अर्थात रजस, तमस प्रधान संस्कारों में बदला जा सकता हैं एवं यदि सात्त्विक संस्कारयुक्त है तो उस पर उत्कृष्ट सात्त्विक संस्कारों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है |

पाँचवाँ महीना : इस महीने से गर्भ में मस्तिष्क का विकास विशेष रूप से होता हैं , अत: गर्भिणी पाचनशक्ति के अनुसार दूध में १५ से २० ग्राम घी ले या दिन में दाल-रोटी, चावल में १-२ चम्मच घी, जितना हजम हो जाय उतना ले | रात को १ से ५ बादाम (अपनी पाचनशक्ति के अनुसार) भिगो दे, सुबह छिलका निकाल के घोंटकर खाये व ऊपर से दूध पिये |

इस महीने के प्रारम्भ से ही माँ को बालक में इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्धापूर्वक सतत मनन-चिंतन करना चाहिए | ब्रम्हनिष्ठ महापुरुषों का सत्संग एवं उत्तम शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-चिंतन करना चाहिए | ‘हे प्रभु ! आनंददाता !!....’ प्रार्थना आत्मसात करे तो उत्तम है |

छठा व सातवाँ महीना : इन महीनों में दूसरे महीने की मधुर औषधियों (इसमें शतावरी, विदारीकंद, जीवंती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों के चूर्ण को समभाग मिलाकर रख लें | इनका १ से २ ग्राम चूर्ण २०० मि.ली. दूध में २०० मि.ली. पानी डाल के मध्यम आँच पर उबालें) में गोखरू चूर्ण का समावेश करे व दूध-घी से ले | आश्रम-निर्मित तुलसी-मूल की माला कमर में धारण करें |

इस महीने से प्रात: सूर्योदय के पश्चात सूर्यदेव को जल चढ़ाकर उनकी किरणें पेट पर पड़ें, ऐसे स्वस्थता से बैठ के ऊंगलियों में नारियल तले लगाकर पेट की हलके हाथों से मालिश (बाहर से नाभि की ओर) करते हुए गर्भस्थ शिशु को सम्बोधित करते हुए कहे : ‘जैसे सूर्यनारायण ऊर्जा, उष्णता, वर्षा देकर जगत का कल्याण करते हैं, वैसे तू भी ओजस्वी, तेजस्वी व परोपकारी बनना |’

माँ के स्पर्श से बच्चा आनंदित होता है | बाद में २ मिनट तक निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए मालिश चालू रखे |

ॐ भूर्भुवः स्व: | तत्सवितुर्वरेन्य भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात् || (यजुर्वेद :३६.३)

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रामेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं रामे चित्तलय: सदा भवतु में भो राम मामुद्धर || (श्री रामरक्षास्तोत्रम्)

रामरक्षास्तोत्र के उपर्युक्त श्लोक में ‘र’ का पुनरावर्तन होने से बच्चा तोतला नहीं होता | पिता भी अपने प्रेमभरे स्पर्श के साथ गर्भस्थ शिशु को प्रशिक्षित करे |

सातवें महीने में स्तन, छाती व पेट पर त्वचा के खिंचने से खुजली शुरू होने पर ऊँगली से न खुजलाकर देशी गाय के घी की मालिश करनी चाहिए |

आठवाँ व नौवाँ महीना : इन महीनों में चावल को ६ गुना दूध व ६ गुना पानी में पकाकर घी दाल के पाचनशक्ति के अनुसार सुबह-शाम खाये अथवा शाम के भोजन में दूध-दलियें में घी डालकर खाये | शाम का भोजन तरल रूप में लेना जरूरी है |

गर्भ का आकार बढ़ने पर पेट का आकार व भार बढ़ जाने से कब्ज व गैस की शिकायत हो सकती है | निवारणार्थ निम्न प्रयोग अपनी प्रकृति के अनुसार करे :

आठवें महीने के १५ दिन बीत जाने पर २ चम्मच एरंड तेल दूध से सुबह १ बार ले, फिर नौवें महीने की शुरआत में पुन: एक बार ऐसा करे अथवा त्रिफला चूर्ण या इसबगोल में से जो भी चूर्ण प्रकृति के अनुकूल हो उसका सेवन वैद्यकीय सलाह के अनुसार करे | पुराने मल की शुद्धि के लिए अनुभवी वैद्य द्वारा निरुह बस्ति व अनुवासन बस्ति ले |

चंदनबला लाक्षादि तेल से अथवा तिल के तेल से पीठ, कटि से जंघाओं तक मालिश करे और इसी तेल में कपडे का फाहा भिगोकर रोजाना रात को सोते समय योनि के अंदर गहराई में रख लिया करे | इससे योनिमार्ग मृदु बनता है और प्रसूति सुलभ हो जाती है |

पंचामृत : ९ महीने नियमित रूप से प्रकृति व पाचनशक्ति के अनुसार पंचामृत ले |

पंचामृत बनाने की विधि : १ चम्मच ताजा दही, ७ चम्मच दूध, २ चम्मच शहद, १ चम्मच घी व १ चम्मच मिश्री को मिला लें | इसमें १ चुटकी केसर भी मिलाना हितावह है |

गुण : यह शारीरिक शक्ति, स्फूर्ति, स्मरणशक्ति व कांति को बढ़ाता है तथा ह्रदय, मस्तिष्क आदि अवयवों को पोषण देता है | यह तीनों दोषों को संतुलित करता है व गर्भिणी अवस्था में होनेवाली उलटी को कम करता है |

उपवास में सिंघाड़े व राजगिरे की खीर का सेवन करें | इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती स्त्री को नियमित रूप से उचित आहार-विहार का सेवन करते हुए नवमास चिकित्सा विधिवत् लेनी चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी इसका शरीर सशक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल व सुंदर और ह्रष्ट-पुष्ट शिशु को जन्म दे सके | इस चिकित्सा के साथ महापुरुषों के सत्संग-कीर्तन व शास्त्र के श्रवण-पठन का लाभ अवश्य लें |

-ऋषिप्रसाद – जून-जुलाई २०१४ से

Monday, July 14, 2014

कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में ?

· बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें |

· नीम, अशोक या आम की पत्तियोंसहित छोटी-छोटी टहनियाँ मुख्य दरवाजे पर लटकायें |

· सप्ताह में एक दिन घर की साफ़-सफाई करने के बाद एक लोटा पानी में थोड़ी शक्कर और दूध डालकर कुश से उसका छिडकाव पुरे घर में करें | अंत में बचे हुए पानी को दरवाजे की दोनों तरफ थोडा-थोडा डाल दें |

ये प्रयोग आम आदमी के लिए हैं | गुरुभक्त तो गुरु के ज्ञान और मंत्र से ही मौज और मस्ती में रहता है |

-लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से

How to convert ill fortune to great fortune?
- Apply turmeric on a leaf of Banyan tree and keep it in your home on the eve of GuruPushya or RaviPushya yog.
- Hang leaves of Neem, Ashok or Mango along with their twigs at the front door of your home.
- Once a week, after cleaning your home, take a bowl of water and add sugar and milk to it. Take some green grass and sprinkle some of it around the home. At the end, run down the leftover water slowly on both sides of your front doorstep.
These are techniques for common man. A Guru's disciple lives in joy and peace simply by virtue of Guru-mantra and self knowledge.

- Lok Kalyan Setu - June 2014

सुख-शांति व बरकत के उपाय


· तुलसी को रोज जल चढायें तथा गाय के घी का दीपक जलायें |

· सुबह बिल्वपत्र पर सफेद चंदन का तिलक लगाकर संकल्प करके शिवलिंग पर अर्पित करें तथा ह्र्द्यपुर्वक प्रार्थना करें |


-लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से

For happiness and prosperity
- Offer water to Tulsi everyday and light lamp made of cow's clarified butter.
- In the morning, apply white sandalwood paste to Bel leaves and offer it to Shivlinga and pray ardently.
- Lok Kalyan Setu - June 2014



सरल प्रयोग

 वर्षाऋतूजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है | सूर्योदय से पूर्व ४० से ५० मि.ली. ताजा गोमूत्र कपडे से ७ बार छानकर पीने से अथवा २५ से ३० मि.ली. गोझरण अर्क पानी में मिलाकर पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धी होती है |

· दूध में सोंठ चूर्ण मिलाकर सेवन करने से ह्रदयगत पीड़ा का नाश होता है |

· त्रिमधुर (शर्करा, गुड़ व शहद ) में डुबोई हुई दूर्वा का गायत्री मंत्र से हवन करने पर मनुष्य सब रोगों से छुट जाता है | (अग्नि पुराण: २८०.५ )

· गिलोय अत्यंत वीर्यप्रद है | इसका क्वाथ (काढ़ा) पीने से अत्यंत असाध्य वातरोग भी दूर होता है | इसके स्वरस, कल्क, चूर्ण या क्वाथ का दीर्घकाल तक सेवन करने से रोगी वातरक्त रोग से छुटकारा पा जाता है |

· गिलोय के क्वाथ और कल्क से सिद्ध घृत जीर्णज्वर का विनाशक है |

-लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से

बथुआ खायें रोग भगायें

बथुआ (चाकवत) रुचिकर, पाचक, रक्तशोधक, दर्दनाशक, त्रिदोषशामक, शीतवीर्य तथा बल एवं शुक्राणु वर्धक है | वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार बथुए में लौह, सोना, क्षार, पारा, कैरोटिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, प्रोटीन, वसा तथा विटामिन ‘सी’ व ‘बी - २’ पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं | बथुआ नेत्र, मूत्र व पेट संबंधी विकारों में विशेष लाभदायी है | बथुए की सब्जी, रस या उसका उबाला हुआ पानी पीने से पेट, यकृत, तिल्ली व गुर्दे (किडनी) से संबधित अनेक प्रकार के रोग, बवासीर व पथरी के रोग में लाभ होता है |

बथुए का साग

बथुए का साग बनाते समय कम-से-कम मसाले व घी – तेल का प्रयोग करना चाहिए | गाय के घी व जीरे का छौंक लगाकर सेंधा नमक डाल के बनाया गया बथुए का साग खाने से नेत्रज्योति बढती है | आँखों की लाली व सूजन उतर जाती है |

यह अमाशय को ताकत देता है | इससे कब्ज दूर होता है और वायुगोला व सिरदर्द भी मिट जाता है | शरीर में शक्ति आती है व स्फूर्ति बनी रहती है |

कच्चे रस के प्रयोग

१] बथुए के १०० मि.ली. रस में स्वादानुसार नमक मिला के रोज दो बार १० दिन तक पीने से पेट के कृमि मर जाते है |

२] एक गिलास रस में शहद मिलाकर रोज पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है | इससे यकृत की क्रियाशीलता भी बढती है |

३] मूत्राशय, गुर्दे (किडनी) और पेशाब से संबंधित रोगों में बथुए का रस पीने से लाभ होता है |

बथुए के उबाले पानी का प्रयोग

१] ५० ग्राम बथुआ १ गिलास पानी में उबालकर छान के पीने से स्रियों को मासिक धर्म खुलकर आता है |

२] बथुए के पानी से दर्द्वाले घुटने का सेंक करें और बथुए की सब्जी खायें | इससे कुछ सप्ताह में ही घुटनों का दर्द ठीक हो जाता है |

                                                                                                         -लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से

जल है औषध समान

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम |
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम ||


‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषधवत हैं | भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है | भोजन के मध्य में पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है |’ (चाणक्य नीति :८.७)

विविध व्याधियों में जल-पान

१) अल्प जल-पान : उबला हुआ पानी ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि, सुजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है |

२) उष्ण जल-पान : सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिनभर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरुचि, वात व कफ जन्य रोग, अफरा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है |

३) प्रात: उषापान : सूर्योदय से २ घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ पाव से आधा लीटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करनेवाला है | शौच के बाद पानी न पियें |

औषधिसिद्ध जल

१) सोंठ-जल : दो लीटर पानी में २ ग्राम सोंठ का चूर्ण या १ साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें | ठंडा करके छान लें | यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमुत्रता तथा कफजन्य रोगों में खूब लाभदायी है |

२) अजवायन-जल : एक लीटर पानी में एक चम्मच (करीब ८.५ ग्राम) अजवायन डालकर उबालें | पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें | उष्ण प्रकृति का यह जल ह्दय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरुचि, मंदाग्नि,पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमुत्रता में लाभदायी है |

३) जीरा-जल : एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें | पौना लीटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें | शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्त्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होनेवाला गर्भपात व अल्पमुत्रता में आशातीत लाभदायी है |

ध्यान दें :

१)भूखे पेट, भोजन की शुरुवात व अंत में, धुप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है |

२) अत्यम्बूपानान्न विपच्यतेन्नम अर्थात बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है | इसलिए मुहुर्मुहर्वारी पिबेदभूरी | बार-बार थोडा-थोडा पानी पीना चाहिए | (भावप्रकाश, पूर्व खंड: ५.१५७)

३) लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है | बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए |

४) प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है |

५) सामान्यत: १ व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से दो लीटर पानी पर्याप्त है | देश-ऋतू-प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है |

-ऋषिप्रसाद – जून २०१४

सरल एवं लाभदायक - व्यान मुद्रा


विधि : अँगूठा, तर्जनी (अँगूठे के पासवाली ऊँगली) व मध्यमा (सबसे बडी ऊँगली)- इन तीनों के अग्रभाग एक-दुसरे से मीलायें | अनामिका व कनिष्ठिका ऊंगलियाँ सीधी रखें |

लाभ : (१) रक्त- परिसंचरण नियमित होता हैं तथा ह्रदयरोगों में लाभदायी है |

(२) इस मुद्रा का नियमित अभ्यास उच्च रक्तचाप का रामबाण उपाय है | उच्च रक्तचाप एवं निम्न रक्तचाप पर नियंत्रण हेतु इस मुद्रा के अभ्यास के साथ एक अन्य प्रयोग करें :

जिव्हाबंध : जिव्हा का अग्रभाग तालू में लगायें और दोनों आँखों की पुतलियाँ भौहों की ओर ले जायें | इसके बाद सिंह मुद्रा अर्थात जिव्हा को मुँह से अधिक-से-अधिक बाहर निकालें और आँखों की पुतलियाँ भौंहों की और ले जायें | उपरोक्त दोनों क्रियाएँ अदल-बदलकर ५ – ५ बार करें | उच्च रक्तचापवालों के लिए तो यह आशीर्वादरूप है |

(३) गर्भिणींयों के लिए भी यह वरदानरूप है |

विशेष: इस सुंदर मुद्रा-विज्ञान का आधार हैं हमारे दोनों हाथ, जिनमे भगवत्शक्ति का निवास है | अत: ऊंगलियों की निरर्थक खींचातानी व उन पर आघात नही करने चाहिए | इनसे शरीर, मन या मस्तिष्क को हानि पहुँच सकती है | कभी कभी स्मरणशक्ति को भी आघात पहुँच सकता है | हमारे ऋषियों ने हमारा कितना खयाल रखा है कि प्रतिदिन सुबह करदर्शन करने का नियम हमारे लिए बना दिया :

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती |
करमूले तु गोविंद: प्रभाते करदर्शनम् ||


                                                                                                               -ऋषिप्रसाद – जून २०१४

Simple and effective - Vyaan Mudra
Procedure: Point the tips of Thumb, Index finger and Middle finger together. Leave the Ring finger and Little finger straight
Benefits:
1. It normalizes blood pressure and is effective against heart ailments.
2. This is a highly effective technique against high blood pressure. If suffering from very high/low blood pressure, do the following as well:
JIHWABANDH: Connect the tip of your tongue to the upper palate and set your eyesight towards the eyebrows. After this, like a lion, set out your tongue as much as feasible and leave your eyesight focused towards the eyebrows. Above two techniques are to be alternately repeated 5 times each. This technique is like a blessing for those suffering from high blood pressure.
3. This mudra is also beneficial for pregnant ladies.
Special note: These wonderful mudras are based on the fact that heavenly powers reside in both our hands. So, fingers must not be pulled or injured casually. This can have adverse impact on physical and mental well being. Sometimes it can also affect the memory. Our Rishis have taken so much care of us that they have blessed us with the divine rule of KAR-DARSHAN (viewing the palm) which we should make it a practice everyday.
KARAGRE VASATE LAKSHMI KARAMADHYE SARASWATI |
KARAMULE TU GOVINDAM PRABHAATE KARADARSHANAM ||
- Rishi Prasad - June 2014

कालसर्पयोग से मुक्ति का सरल उपाय


किसी पर कालसर्पयोग होता है तो बेचारा मुसीबतों में आ जाता है लेकिन जो मेरे शिष्य हैं उन्हें कालसर्पयोग की विदाई करने के लिए कोई पूजा-पाठ या लम्बा-चौड़ा विधि-विधान नहीं कराना है केवल ‘कालसर्पयोग निवृति अर्थे जपे विनियोग: |’ ऐसा विनियोग करके अपने गुरुमंत्र की माला जपो और गुरूजी को देखो | ७ दिन रोज ११-११ माला जप करो | कालसर्पयोग कट जाता है |

                                                                                                                           -ऋषिप्रसाद – जून २०१४

Freedom from KaalSarp Yog
One under the influence of KaalSarp Yog suffers hugely but those who are my disciples need not perform ant rituals or long drawn practices. You only need to pray "KAALSARP NIVRITTI ARTHE JAPE VINIYOGAH". Make this humble request at the beginning of recital of your rosary and stare at your Guru. For seven day continuously, recite 11-11 malas daily. Any bad influence of KaalSarp Yog will vanish.
- Rishi Prasad - June 2014

स्वास्थ्य व दीर्घायु हेतु सरल उपाय

सूर्योदय के समय जठराग्नि तथा पाचक ग्रंथियों सक्रिय होती हैं और सूर्यास्त के समय मंद पड जाती हैं | सूर्यास्त के पूर्व भोजन करने से श्वास व ह्रदय संबंधी रोग, वायुविकार, अजीर्ण तथा अनिद्रा आदि रोग नहीं होते | रात्रि के समय भोजन करने से अनेक रोग हो जाते हैं | यदि प्राणी पहले ही रोगी है और रात का भोजन देर से करता है तो रोग की उग्रता बढ़ जाती है | अत: रोगी-निरोगी सभीके लिए देर रात्रि का भोजन त्याज्य है |

-ऋषिप्रसाद – जून २०१४

Simple technique for good health and long life
During sunrise, digestive system and digestion power gets activated and wanes away during sunset. By taking dinner before sunset, one can completely avoid breath and heart related ailments, wind ailments,indigestion and insomnia. Many illness spawn simply from taking late dinner at night. 
If someone is already quite ill and then if he consumes dinner late at night, his illness assumes magnified proportions. So, for both the ill and healthy people alike, it is absolutely essential to abstain from late night eating habits.
- RishiPrasad - June 2014

घर में सुख-सम्पदा व बरकत का अचूक उपाय

सुबह जब घर में भोजन बने तो सबसे पहलेवाली रोटी अन्य रोटियों से थोड़ी बड़ी बनायें और इसे अलग निकाल लें | इस रोटी के चार बराबर टुकड़े कर लें और इन चारों पर कुछ मीठा जैसे – खीर, गुड़ या शक्कर रख दें |

सबसे पहले एक टुकड़ा गाय को खिला दें और भगवान से प्रार्थना करें | धर्मग्रंथों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का निवास होता है इसलिए सबसे पहले रोटी गाय को ही दी जाती हैं |

फिर दूसरा टुकड़ा कुत्ते को खिला दें |’शिवपुराण’ के अनुसार ‘कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि ‘यमराज के मार्ग का अनुसरण करनेवाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूँ | वे इस भोजन को ग्रहण करें |’ इस श्वानबलि कहते हैं |’ रोटी के तीसरे भाग को कौओं को खिला दें और बोलें : ‘पश्चिम, वायव्य, दक्षिण और नैऋत्य दिशा में रहनेवाले जो पुन्यकर्मा कौए हैं, वे मेरे इस दिये हुए भोजन को ग्रहण करें |’ इसे काकबलि कहते हैं | अब रोटी का अंतिम टुकड़ा एवं कुछ अन्न घर पर आये किसी भिक्षु को दे दें |

यह छोटा-सा उपाय रोज करने से आपको औदार्य सुख (उदारता का सुख) मिलेगा और आपकी किस्मत कुछ ही दिनों में बदल जायेगी |

-ऋषिप्रसाद – जून २०१४

Infallible technique for prosperity at home

When you prepare roti bread at home in the morning, make the first one larger than the rest and keep it separate. Make four slices out of it and apply something sweet on each of these four pieces - example, jaggery, sugar or milk porridge.
Feed the first piece to a cow and pray to cow. As per all our religious scriptures, all Gods reside in the body of cow. So, the first piece must be fed to a cow.
Feed the second piece to a dog. As per "ShivPuran", one must say while feeding dogs that "I offer this piece to the two dogs, Shyam and Shabal who follow the path of Yamraaj. May thee accept this offering." This is also called as Shwanbali.
Feed the third piece to crows and say, "May all holy crows residing in west, south west, south, north west corners accept this offering." This is also called as Kakbali.
Feed the last piece along with some grains to an ascetic who appears at your door step.
By this simple exercise, you shall receive peace of mind due to growing compassion and your fortunes will begin to grow soon.
- RishiPrasad June 2014