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Monday, December 30, 2019

उत्तम संतान चाहते हैं तो ....


महान आत्माएँ धरती पर आना चाहती हैं लेकिन उसके लिए संयमी पति-पत्नी की आवश्यकता होती है | अत: उत्तम संतान की इच्छावाले दम्पति गर्भाधान से पहले अधिक-से-अधिक ब्रह्मचर्य का पालन करें व गुरुमंत्र का जप करें | अनुष्ठान करके उत्तम संतान हेतु सद्गुरु या इष्टदेव से प्रार्थना करें, फिर गर्भाधान करें |

वर्तमान समय में २७ दिसम्बर २०१९ से १५ फरवरी २०२० तक का समय तो गर्भाधान के लिए अतिशय उत्तम है |

गर्भाधान के लिए अनुचित काल
पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, पर्व या त्यौहार की रात्रि ( जन्माष्टमी, श्रीराम नवमी, होली, दिवाली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि ), श्राद्ध के दिन, प्रदोषकाल ( सूर्यास्त का समय, सूर्यास्त से लेकर ढाई घंटे बाद तक का समय ), क्षयतिथि, एवं मासिक धर्म के प्रथम ५ दिन, माता-पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, संध्या के समय एवं दिन में समागम या गर्भाधान करना भयंकर हानिकारक है | दिन के गर्भाधान से उत्पन्न संतान दुराचारी और अधम होती है |

शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, नहीं तो आसुरी, कुसंस्कारी या विकलांग संतान पैदा होती है | संतान नहीं भी हुई तो भी दम्पति को कोई खतरनाक बिमारी हो जाती है |

गर्भाधान के पूर्व विशेष सावधानी
अपने शरीर व घर में धनात्मक ऊर्जा आये इसका तथा पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए | महिलाओं को मासिक धर्म में भोजन नहीं बनाना चाहिए तथा अपने हाथ का भोजन परिवारवालों को देकर उनका ओज, बल और बुद्धि क्षीण करने की गलती कदापि नही करनी चाहिए |

गर्भाधान घर के शयनकक्ष में ही हो, होटलों आदि ऐसी-वैसी जगहों पर न हो |

ध्यान दें :त्तम समय के अलावा के समय में भी यदि गर्भाधान हो गया हो तो गर्भपात न करायें बल्कि गर्भस्थ शिशु में आदरपूर्वक उत्तम संस्कारों का सिंचन करें | गर्भपात महापाप है |

विशेष : उत्तम संतानप्राप्ति हेतु महिला उत्थान मंडल के ‘दिव्य शिशु संस्कार केन्द्रों’ का भी लाभ ले सकते हैं | सम्पर्क : ९१५७३०६३१३ / (०७९) ६१२१०७३०.

लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१९ से

सुंगधित, स्वादिष्ट व स्वास्थ्यवर्धक कढ़ी पत्ता



कढ़ी पत्ता (मीठा नीम) सुगंधित, स्वादिष्ट, भूखवर्धक व पाचक है | इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस, लौह, विटामिन इ, बी एवं एंटी ऑक्सीडेंटस पायें जाते हैं, जिससे इसके सेवन से हड्डियाँ, दाँत व बालों की जड़ें मजबूत  होती हैं एवं नेत्रज्योति बढ़ती है | इसके नियमित सेवन से पाचन-संस्थान को बल मिलता है, जिससे पेचिश, दस्त, अजीर्ण, मंदाग्नि, गैस आदि समस्याओं में आराम मिलता है |

कढ़ी पत्ता ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि रोगों में उपयोगी है तथा इन रोगों से रक्षा करता है |
कढ़ी, दाल, सब्जी आदि में कढ़ी पत्ते से छौंक देने से वे स्वादिष्ट बनते हैं, साथ ही कढ़ी पत्ते के औषधीय गुणों का भी लाभ सहज में ही मिल जाता है | भोजन करते समय कढ़ी पत्तों को फेंके नहीं बल्कि चबा-चबाकर खायें |

कढ़ी पत्तों को छाँव में सुखा-पीसकर उनका चूर्ण बना लें | इस चूर्ण का सेवन अनेक प्रकार से लाभकारी है | हरी पत्तियाँ उपलब्ध न हों तब इस चूर्ण को खाद्य पदार्थों जैसे – सब्जी, दाल आदि में मिलाकर भी खा सकते हैं |

कढ़ी पत्ते की चटनी


कढ़ी पत्तों में तिल अथवा मूँगफली व पुदीना, अदरक, नींबू, सेंधा नमक आदि मिलाकर चटनी बनायें तथा भोजन के साथ सेवन करें | यह चटनी बहुत स्वादिष्ट, उत्तम पाचक, पुष्टिदायी, भूख व भोजन में रूचि बढानेवाली तथा उदर वायु (गैस) की तकलीफ को दूर करनेवाली है |


कढ़ी पत्ता सिद्ध तेल
कढ़ी पत्ते के चूर्ण को ४ गुना पानी में रात को भिगोने रख दें | सुबह इसे इतना उबालें कि पानी आधा बचे | फिर इसमें चूर्ण से ८ गुना तिल अथवा नारियल का तेल मिलाकर धीमी आँच पर उबालें ( जैसे यदि ५० ग्राम चूर्ण लेते हैं तो ४०० ग्राम तेल लें ) | पानी वाष्पीभूत होकर सिर्फ तेल रह जाय तब छान के रख लें | इस ‘कढ़ी पत्ता सिद्ध तेल’ से सिर की मालिश करने से बालों की जड़ें मजबूत होकर बालों का झड़ना बंद हो जाता है |

रक्त व बल वर्धन हेतु
लाल रक्तकणों की वृद्धि व परिपक्वता के लिए प्रतिदिन फ़ॉलिक एसिड की आवश्यकता होती है | कढ़ी पत्ता फ़ॉलिक एसिड का समृद्ध स्त्रोत है, साथ ही इसमें लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में होने से यह उत्तम रक्तवर्धक है | प्रतिदिन १ से ५ खजूर और ३ से १५ कढ़ी पत्तों को खाली पेट चबाकर खाने से रक्त की वृद्धि होती है | सर्दियों में खजूर व कढ़ी पत्ते की चटनी बनाकर खाना भी रक्त व बल वर्धन हेतु उत्तम है |

विभिन्न स्वास्थ्य-समस्याओं में उपयोगी
१] ह्रदयरोगों में रक्षा हेतु एवं पेटदर्द व अफरे में : २०० मि.ली. पानी में ४०-५० कढ़ी पत्ते उबालें तथा इसमें नींबू का रस मिला के सुबह खाली पेट छानकर पीने से लाभ होता है |

२] मधुमेह : सूखे कढ़ी पत्तों का ३-४ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम नियमित लेने से यह मधुमेह के लिए औषधि का काम करता है |

३] उच्च रक्तचाप : ७-८ पत्ते नित्य सुबह खाली पेट खाने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है |

४] कील – मुँहासे व झॉइयाँ : कढ़ी पत्तों में तेल होता है जो त्वचा को स्वच्छ व सुंदर बनाता है | इन्हें पीसकर चेहरे पर लगाने से झॉइयाँ, कील-मुँहासे दूर हो जाते हैं | इनके चूर्ण को रात को पानी में भिगोकरे भी सुबह लगाया जा सकता है |

लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१९ से


सूर्योपासना का पावन पुण्यदायी पर्व – मकर संक्रांति – १५ जनवरी


संक्रांति का स्नान रोग, पाप और निर्धनता को हर लेता है | जो उत्तरायण पर्व के दिन स्नान नहीं कर पाता वह ७ जन्म तक रोगी और दरिद्र रहता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है | 

संक्रांति के दिन देवों को दिया गया हव्य (यज्ञ, हवन आदि में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य ) और पितरों को दिया गया कव्य (पिंडदान आदि में दिया जानेवाला द्रव्य ) सूर्यदेव की करुणा-कृपा के द्वारा भविष्य के जन्मों में कई गुना करके तुम्हें लौटाया जाता है | 

संक्रांति के दिन किये हुए शुभ कर्म करोड़ों गुना फलदायी होते हैं | सुर्यापासना और सूर्यकिरणों का सेवन, सूर्यदेव का ध्यान विशेष लाभकारी है |

इस दिन तो सूर्यदेव के मूलमंत्र का जप करना बहुत हितकारी रहेगा, और दिन भी करें तो अच्छा है | आप जीभ तालू में लगाकर इसे पक्का करिये | अश्रद्धालु, नास्तिक व विधर्मी को यह मंत्र नहीं फलता | यह तो भारतीय संस्कृति के सपूतों के लिए है | बच्चों की बुद्धि बढ़ानी हो तो पहले इस मंत्र की महत्ता बताओ, उनकी ललक जगाओ, बाद में उनको मंत्र बताओ | मंत्र है :

ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: |
(पद्म पुराण)

यह सूर्यदेव का मूलमंत्र है | इससे तुम्हारा सुर्यकेन्द्र सक्रिय होगा | और यदि भगवान् सूर्य का भ्रूमध्य में ध्यान करोगे तो तुम्हारी बुद्धि के अधिष्ठाता देव की कृपा विशेष आयेगी | बुद्धि में ब्रह्मसुख, ब्रह्मज्ञान का सामर्थ्य आयेगा | अगर नाभि में सूर्यदेव का ध्यान करोगे तो आरोग्य-केंद्र सक्षम रहेगा, आप बिना दवाइयों के निरोग रहोगे |

लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१९ से

पुण्यदायी तिथियाँ



६ जनवरी : पुत्रदा एकादशी ( पुत्र की इच्छा से इसका व्रत करनेवाला पुत्र पाकर स्वर्ग का अधिकारी भी हो जाता है |)

९ जनवरी : चतुर्दशी-आर्द्रा नक्षत्र योग (दोपहर ३:३८ से रात्रि २:३५ तक) (ॐकार का जप अक्षय फलदायी )

१० जनवरी : माघ स्नानारम्भ

१२ जनवरी : रविपुष्यामृत योग (सूर्योदय से दोपहर ११:५० तक)

१४ जनवरी : मंगलवारी चतुर्थी (सूर्योदय से दोपहर २:५० तक )

१५ जनवरी : मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

२० जनवरी : षट्तिला एकादशी (स्नान, उबटन, जलपान, भोजन, दान व होम में तिल के उपयोग से पाप-नाश )

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से
  


लक्ष्मी कहा विराजती है


जहाँ भगवान व उनके भक्तों का यश गाया जाता है वहीँ भगवान की प्राणप्रिया भगवती लक्ष्मी सदा विराजती है |   (श्रीमद् देवी भागवत )
ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से

शास्त्रों का प्रसाद



v  मल-मूत्र से अशुद्ध हो जानेवाले मिट्टी, ताँबा और सुवर्ण के पात्र पुन: आग में पकाने से शुद्ध होते हैं |
v उपरोक्त से अन्य किसी प्रकार से अशुद्ध हो जानेवाले ताँबे के पात्र अम्ल (खट्टे पदार्थ ) मिश्रित जल से शुद्ध होते हैं |
v  काँसे और लोहे के बर्तन क्षार (राख आदि) से मलने पर पवित्र होते हैं |
v मोती आदि की शुद्धि केवल जल से धोने पर ही हो जाती है | जल से उत्पन्न शंख आदि के बने बर्तनों, सब प्रकार के पत्थर के बने हुए पात्रों तथा साग, रस्सी, फल, मूल और दालों की शुद्धि भी इसी प्रकार जल से धोनेमात्र से हो जाती है |[वर्तमान में फलों को पकाने, अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने आदि हेतु रसायनों (केमिकल्स) का उपयोग किया जाता है, अत: उन्हें उपयोग से पूर्व अच्छी तरह धोना चाहिए | सेव आदि फलों पर मोम, केमिकल की पर्त चढ़ी रहती है, जिसे चाक़ू से खुरच के निकलना चाहिए |]

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से

दही-सेवन स्वास्थ्य-हितकर कैसे हो ?


क्या करें
१] धीमी आँच पर उबाले हुए दूध से बना दही गुणवाला अर्थात वात-पित्तशामक, रुचिकर, धातु ( रस, रक्त, मांस आदि ) वर्धक, भूख व बल वर्धक होने से इसका सेवन हितकारी है | (सुश्रुत संहिता)
२[ हेमंत व शिशिर ऋतू (२३ अक्टूबर २०१९ से १८ फरवरी २०२०) में दही खाना उत्तम है | (सुश्रुत संहिता)
३] दही को मूँग की दाल के साथ लेना उपयुक्त है | दुर्बल व वात प्रकृति के लोगों को देशी गाय के घी के साथ तथा कफ प्रकृतिवालों को शहद के साथ एवं पित्त प्रकुतिवालों को मिश्री व आँवले के साथ दही का सेवन करना चाहिए |
४] दही के साथ पुराने गुड़ का सेवन वातशामक, वीर्य एंव रस, रक्त आदि वर्धक तथा तृप्तिदायक होता है | (भावप्रकाश)
५] दस्त, अरुचि, दुर्बलता व शरीर के कृष होने पर तथा दिन में दही खाना हितकर है |

क्या न करें
१] दही प्रतिदिन न खायें | खट्टे तथा अच्छे-से न जमे हुए दही का सेवन न करें | (अष्टांगह्रदय)
२] शरद, ग्रीष्म और वसंत ऋतू में दही खाना निषिद्ध है | शास्त्रों में वर्षा ऋतू में दही-सेवन निषिद्ध नही हैं लेकिन वर्तमान परिवेश को देखते हुए जानकार वैद्य इस ऋतू में दही-सेवन अहितकर मानते हैं |
३] दही शरीर के स्रोतों (विभिन्न प्रवाह-तंत्रों) में अवरोध उत्पन्न करता है अत: अकेले दही का सेवन न करें |
४] दही को गर्म करके खाना, व्यंजन बनाते समय उनमें दही मिलाना, दही के साथ खोये की मिठाई तथा केला आदि फल खाना, दही की लस्सी में बर्फ मिलाना- इनसे स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है |
५] सूर्यास्त के बाद दही नहीं खाना चाहिए |
६] बासी दही तथा दही को फ्रिज में रखकर सेवन करना हानिकारक है |

 ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से

दही को जमाने, खाने व लाभ पाने की सही विधि


दही का सेवन बहुत लोग करते हैं तथा शास्त्रों में भी इसके लाभ वर्णित हैं परन्तु इसका शास्त्रीय तरीके से, सावधानीपूर्वक, ऋतू-अनुकूल सेवन करने का ढंग जानना व उसके अनुसार सेवन करना आवश्यक है, अन्यथा यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है |

देशी गाय के गव्यों में दही का अपना विशेष महत्त्व है | पद्म पुराण में आता है कि दही सेवन करने के बाद २० रात्रि तक शरीर में अपना प्रभाव रखता है | आयुर्वेद के अनुसार सभी प्रकार के दहीयों में देशी गाय के दूध का दही अधिक गुणवाला है | यह विशेषरूप से मधुर तथा अम्ल रसयुक्त, उष्ण, रुचिकारक, पवित्र, प्रसन्नता व पुष्टि कारक, भूखवर्धक, ह्रदय-हितकर तथा वातशामक एवं कफ-पित्तवर्धक होता है | यह बल-वीर्य व मेद-मांस धातुओं को बढ़ाता है | दही की मलाई शुक्रवर्धक होती है |

उपरोक्त गुण देशी गाय के दूध से विधिवत बने दही का विधि-निषेध का विचार कर सेवन करने से प्राप्त होते हैं, जर्सी,होल्स्टिन आदि तथाकथित गायोंम भैंस तथा पैकेट आदि के दूध से बने दही से नहीं |
सुश्रुत संहिता के अनुसार मीठा दही कफ और मेड को बढ़ाता है, खट्टा दही कफ और पित्त को बढ़ाता है तथा अति खट्टा दही रक्त को दूषित करता है | ठीक से न जमा हुआ दही त्रिदोषप्रकोपक होता है |

v दस्त से पीड़ित बच्चों को दही के ऊपर का पानी मिलाने से शीघ्र आराम मिलता है |
v कैंसर जैसे कष्टप्रद रोग में १० मि.ली. तुलसी के रस में २०-३० ग्राम ताजा दही मिलाकर देने से बहुत लाभ होता है | इस अनुभूत प्रयोग से कई रुग्ण इस बीमारी से रोगमुक्त हो गये हैं |
पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “दही खाना हो तो शीधे न खायें | पहले उसे अच्छी तरह मथकर मक्खन निकाल लें और बचे हुए भाग को लस्सी या छाछ बना के सेवन करें | ध्यान रहे, दही खट्टा न हो |”

दही कैसे जमायें ?
दही का मीठा या खट्टा होना उसके जमाने की विधि पर निर्भर करता है |
१] अच्छा दही जमाने के लिए दूध का शुद्ध होना जरूरी है |
२] दूध को सामान्य मिट्टी के पात्र या स्टेनलेस स्टील के बर्तन में डालकर धीमी आँच पर उबालें | १-२ उबाल तक ही उबालें, जिससे दूध के पोषक तत्त्व नष्ट न हों | मिट्टी के कुल्हड़ में जमाया हुआ दही गाढ़ा व मीठा होता है |
३] अधिक गर्म दूध जमाने से दही पानी छोड़ देता है और खट्टा भी हो जाता है तथा दूध ठंडा होने से दही जमता नहीं | गाय के थनों से निकला दूध जितना गर्म होता है उतने तापमान पर यदि दही जमाया जाय तो वह अत्यंत मीठा होता है |
४] जामन ( थोडा-सा दही ) को ५०-६० ग्राम दूध में खूब मिलाएं | फिर पुरे दूध में डाल में ढककर रख दें | एक दिन से ज्यादा पुराना जामन प्रयोग करने से दही खट्टा हो जाता है | फिटकरी, नींबू के रस या खटाई से बनाया दही हानिकारक होता है |
५] ठंड के दिनों में दही जमने में ज्यादा समय लग सकता है अत: दूध में जालन डालने के बाद बर्तन को ढककर उसे कम्बल से ढक के रखें |

ध्यान दें : अ] जो लोग विधि के विरुद्ध दही खाते हैं उनमें बुखार, रक्तपित्त, विसर्प, चर्मरोग, खून की कमी, चक्कर आना एवं प्रचंड रूप से पीलिया रोग, मोटापा, प्रमेह, मधुमेह आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं |
ब] जलन, शरीर के विभिन्न अंगों से होनेवाला रक्तस्त्राव आदि पित्तजन्य रोग, सर्दी-जुकाम, खाँसी, दमा आदि कफजन्य रोग तथा बुखार, जोड़ों का दर्द एवं रक्त दूषित होने से उत्पन्न चर्मरोग, मन्दाग्नि आदि में दही का सेवन हानिकारक है |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से


Sunday, December 29, 2019

यज्ञ के समय ध्यान रखने योग्य बातें


यज्ञ करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :

१] याजक को यज्ञ करते समय सिले हुए चुस्त कपड़े नहीं पहनने चाहिए, खुले कपड़े पहनने चाहिए ताकि यज्ञ का जो वातावरण या सात्त्विक धुआँ है वह रोमकूपों पर सीधा असर करे |

२] अग्नि की ज्वाला सीधी आकाश की तरफ जाती है अत: यज्ञमंडप के ऊपर छप्पर होना चाहिए ताकि यज्ञ की सामग्री का जो प्रभाव है वह सीधा ऊपर न जाय, आसपास में फैले |

३] यज्ञ में जो वस्तुएँ डाली जाती हैं उनके लाभकारी रासायनिक प्रभाव को उत्पन्न करने में जो लकड़ी मदद करती है वैसी ही लकड़ी होनी चाहिए | इसलिए कहा गया है : ‘अमुक यज्ञ में पीपल की लकड़ी हो.... अमुक यज्ञ में आम की लकड़ी हो....’ ताकि लकड़ियों का एवं यज्ञ की वस्तुओं का रासायनिक प्रभाव वातावरण पर पड़े |... किंतु आज ऐसे यज्ञ आप कहाँ ढूँढटे फिरेंगे ? मैं एक सरल युक्ति बताता हूँ |”

लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१९ से

Monday, November 18, 2019

सर्दियों में सेहत का खजाना : राजमा


प्रोटीन्स व खनिजों से भरपूर राजमा स्वादिष्ट, अत्यंत बलकारक तथा पुष्टिदायी दलहन है | यह रुक्ष, वातकारक व पचने में भारी होता है | इनमें कैल्शियम, मैंगनीज, फ़ॉस्फोरस. लौह, केरोटिन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नायसिन, विटामिन ‘के’, ‘बी’, ‘सी’ आदि पोषक तत्त्व पाये जाते हैं | इसमें रेशे प्रचुर मात्रा में होते हैं | इसका उपयोग राजमा करी (सब्जी), राजमा सूप आदि के रूप में किया जाता है |

राजमा रंग के आधार पर ३ प्रकार का होता है : सफेद, लाल तथा काला | यह अलग-अलग आकार का होता है |

राजमा खाने के इतने लाभ !
१] यह शरीर की रक्त-शर्करा को संतुलित बनाये रखता है अत: मधुमेह में लाभदायी है |
२] यह चरबी को बढने नहीं देता, इससे मोटापे में भी लाभदायी है |
३] यह हड्डियों को मजबूत बनाता है |
४] यह आँखों, बाल व मांसपेशियों के लिए हितकारी है |
५] स्तनपान करानेवाली माताओं के दूध की पौष्टिकता को बढ़ाता है |
६] इसका सेवन करनेवाली गर्भवती महिलाओं में फ़ॉलिक एसिड (विटामिन ‘बी-९’) की कमी नहीं होती, जिससे गर्भस्थ शिशु का विकास ठीक से होता है |
७] यह कोलेस्ट्रॉल व उच्च रक्तचाप को संतुलित रखने में मदद करता है |

राजमें का पूरा लाभ पाने हेतु
लोग राजमे को स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें अधिक मात्रा में तेल, गरम मसाला, प्याज आदि की ग्रेवी बना के डालते हैं | इसमें राजमें के गुणों में कमी आ जाती है और स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है | पूरा लाभ लेने के लिए रात्रि में राजमें को गर्म पानी में भिगो दें | सुबह नरम होने तक उबालें और अदरक, काली मिर्च, दालचीनी, हींग, हल्दी, मिर्च, धनिया आदि डालकर रसेदार सब्जी बनायें ताकि पचने में सुलभ हो |

सावधानियाँ : १] राजमा अधिक मात्रा में खाने से पेट में गैस, दर्द, कब्ज, उलटी तथा मासपेशियों से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं |
२] यह पचने में भारी होता है अत: इसका सेवन लगातार न करें | इसे सुबह के भोजन में खायें, रात के भोजन में नहीं खायें |
३] जिनकी जठराग्नि मंद है वे लोग तथा किसी भी बिमारी में विशेषत: जोड़ों के दर्द तथा वातरक्त व्याधि में एवं वर्षा ऋतू में इसका सेवन न करें |

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से


पूज्य बापूजी का स्वास्थ्य – अमृत


१] दमे की तकलीफ : छुहारों को धो के धुप में सुखा दें, फिर कूट के चूर्ण बना के रख लें | १ ग्राम चूर्ण में थोड़ी सोंठ मिलाकर चाट लें या तो सोंठ के साथ पानी से फाँक लें | दिन में ३ बार यह प्रयोग करने से दमे में आराम मिलता है |

२] उच्च रक्तचाप (hypertension): थोड़ी अरवी ( कचालू) भोजन में खाना शुरू करो और ‘ॐ शांति .... शांति’ जपो | इससे उच्च रक्तचाप में कइयों को आराम हुआ है |

३] निम्न रक्तचाप (low B.P.) : गाजर का १३० मि.ली. रस और पालक का १२५ मि.ली. रस मिलाकर पीने से और आरोग्यप्रद, पुण्यदायी ॐकार का जप करने से फायदा होता है |

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से

ज्वरनाश का उपाय


जिसको शरीर में ज्वर हो, जलन होती हो तो (ज्वररहित होने के लिए निम्नलिखित स्तुति करें | उपरोक्त पराक्रम के विस्तृत पाठ हेतु देखें हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, अध्याय १२२-१२३ )

ज्वरनाशक स्तुति

त्रिपाद भस्मप्रहरणस्त्रिशिरा नवलोचन: |
स में प्रीत: सुखं दधात् सर्वामयपतिर्ज्वर: ||
आद्यन्तवन्त: कवय: पुराणा: सूक्ष्मा बृहन्तोऽप्यनुशासितार: |
सर्वात्र्ज्वरान् घ्नन्तु ममानिरुद्ध-प्रद्यम्नसंकर्षवासुदेवा: ||

“जिसके तीन पैर हैं, भस्म ही आयुध है, तीन सिर हैं और नौ नेत्र हैं, वह समस्त रोगों का अधिपति ज्वर प्रसन्न होकर मुझे सुख प्रदान करे | जगत के आदि और अंत जिनके हाथों में हैं, जो ज्ञानी पुराणपुरुष, सूक्ष्मस्वरूप, परम महान और सबके अनुशासक हैं, वे अनिरुद्ध, प्रद्युम्न, संकर्षण और भगवान वासुदेव सम्पूर्ण ज्वरों का नाश करें ( इस प्रकार प्रार्थना करनेवालों का ज्वर दूर हो जाय )|”

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से


चार बातों को याद रखो.....


१] ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों  व ज्ञानवृद्ध बड़े-बुजुर्गों का आदर करना |
२] छोटों की रक्षा करना और उन पर स्नेह करना |
३] सत्संगी बुद्धिमानों से सलाह लेना और
४] मूर्खों के साथ नहीं उलझना |

नम्रता के तीन लक्षण :
१] कडवी बात का मीठा जवाब देना |
२] क्रोध के अवसर पर भी चुप्पी साधना और  
३] किसीको दंड देना ही पड़े तो उस समय चित्त को कोमल रखना |

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से

दीया जलायें, अश्वमेध यज्ञफल पायें

मार्गशीर्ष मास में कपूर का दीपक जला के भगवान को अर्पण करनेवाला अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है और कुल का उद्धार कर देता है | (स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष मास माहात्म्य : ८.३८)

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से 

विघ्न- बाधाओं से मुक्ति हेतु


‘श्री’ माने सौंदर्य, ‘श्री’ माने लक्ष्मी, ‘श्री’ माने ऐश्वर्य, ‘श्री’ माने सफलता | ईश्वर के रास्ते चलने पर किसीके जीवन में विघ्न-बाधाएँ हों तो ‘श्री ॐ स्वाहा |’ इस मंत्र की एक माला रोज करने से विघ्न-बाधाएँ नष्ट होती हैं |

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से


जोड़ों में दर्द है तो .....

क्या करें
१] जिन जोड़ों में दर्द है, सुबह उन पर धूप लगे इस प्रकार धूप सेंकें |
२] १०० ग्राम अरंडी के तेल में ७०-८० ग्राम लहसुन की कलियाँ कूट के डाल दें और तेल को गरम करें | कलियाँ जल जायें तो वह तेल उतारकर रख लें | उससे जोड़ों की मालिश करें |
३] गर्म कपड़े पहनें | हल्के गर्म पानी की थैली से सिंकाई करें | सुबह टहलना, व्यायाम करना नियमितरूप से करें |
४] ८० प्रकार के वायुदोष नाशक स्थलबस्ती सुबह खाली पेट नियमित करें |
५] जोड़ों के दर्द में संधिशूलहर औषधि का प्रयोग बहुत लाभदायी है | यह गठिया, मधुमेह, सायटिका व मोटापे में भी लाभकारी है |
६] २ से ४ चुटकी रामबाण बूटी सुबह-शाम खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लें |
७] मालिश तेल को हलका गुनगुना करके उससे दर्द की जगह पर हलके हाथ से मालिश करें |
८] २५० ग्राम मेथीदाना दरदरा (मोटे दानेदार) कूट के रख लें | रात को १ चम्मच भिगो के सुबह ले लें | बड़ी उम्र में कैल्शियम और लौह तत्त्व कम बन पाते हैं | मेथी में दोनों तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं | यह सटीक इलाज है |

क्या न करें
१] वजन अनियंत्रित न होने दें | वजन बढने से जोड़ों पर दबाव पड़ता है और दर्द बढ़ता है |
२] मैदे से बने पदार्थ, फास्ट फ़ूड तथा दही, टमाटर आदि खट्टे पदार्थ, आलू, राजमा, उड़द, मटर, चावल, चीनी, तले हुए व पचने में भारी पदार्थ न खायें | ठंडी चीजों का सेवन न करें |
३] दिन में सोना, रात्रि जागरण और अत्यधिक व्यायाम न करें |
४] ठंडे पानी से स्नान न करें | पंखे और ए.सी. की हवा सीधे शरीर में न लगने दें |
५] लगातार एक अवस्था में न बैठें, ज्यादा देर तक आगे की ओर झुककर कार्य न करें | ऐसे खेल, कार्य आदि से बचें जिनमें जोड़ों पर बार-बार और ज्यादा दबाव पड़ता हो |
६] धूम्रपान, मद्यपान न करें | सिगरेट आदि में मौजूद हानिकारक तत्त्व जोड़ो के आसपास के ऊतको को नुक्सान  पहुँचाते हैं |
     
ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१९ से