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Tuesday, April 26, 2016

स्वास्थ्य के लिये - श्रेष्ठ रसायन

आँवला पाउडर - बल, आयु – आरोग्य व वीर्य वर्धक
इसके नियमित सेवन से शरीर की कार्यप्रणालीयाँ उत्तम ढंग से कार्य करती हैं, जिससे शरीर पुष्ट व बलवान बनता हैं | यह यौवन को स्थिर रखनेवाली, वीर्यवर्धक, नेत्रों के लिए हितकर, स्मृति-बुद्धिवर्धक, त्वचा के रंग में निखार लानेवाली, हड्डियों, दाँतों व बालों कों मजबूत बनानेवाली, रोगप्रतिकारक शक्ति बढानेवाली महत्त्वपूर्ण औषधि है |यह भूख न लगना, अरुचि, कब्ज, खून की कमी, स्वप्नदोष तथा वीर्य – संबंधी रोगों में लाभप्रद है |




शंखपुष्पी सिरप
यह सिरप चक्कर आना, थकावट अनुभव करना, मानसिक तनाव, सहनशक्ति का अभाव, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, मन की अशांति तथा उच्च रक्तचाप आदि रोगों में लाभप्रद है | यह स्मरणशक्ति बढाने हेतु एक दिव्य औषधि है |

स्मृतिवर्धक चूर्ण
इस चूर्ण को गाय के घी के साथ एक – एक चम्मच सुबह – शाम नियमित रूप से लेने से स्मरणशक्ति तथा धारणाशक्ति का अत्यधिक विकास होता है | यह मिर्गी, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, चक्कर आना, मानसिक तनाव व थकावट में लाभकारी है |

                                                         
सेब पेय
उत्तम सेवफलों का चयन करके आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए पोषण और स्वाद से भरपूर मिश्रण | कहा गया है : ‘प्रतिदिन एक सेवफल खाओ और डॉक्टर को दूर ही रखो |’ सेवफल का बना – बनाया यह पेय आपको उत्तम स्वास्थ्य- लाभ सहज में प्रदान करेगा |      

( सभी संत श्री आशारामजी आश्रम व समितियों के सेवाकेंद्र पर उपलब्ध )


  

स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – अप्रैल  २०१६ से


योग आसन

लाभ : १) धारणा, ध्यान आदि साधनाभ्यास में इस आसन में बैठने से तन्द्रा, निद्रा, आलस्य, जड़ता, प्रमाद आदि का अभाव रहता है |

२) इस आसन में दीर्घकाल तक बैठने से प्राणोंत्थान होने लगता है और कुंडलिनी जागरण की सम्भावना भी हो जाती है |

विधि : पहले पद्मासन लगाकर सीधे बैठ जायें | उसके बाद दोनों हाथों की हथेलियाँ दोनों पैरों के तलवों पर इस प्रकार रखें कि हाथों की उँगलियाँ  पेट की ओर रहें | फिर भौहों को थोडा ऊपर उठा के दृष्टि को भ्रूमध्य में या नाक के अग्र भाग पर स्थिर करें | श्वासोच्छ्वास की गति स्वाभाविक रखें |



स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – अप्रैल  २०१६ से 

गर्मी के प्रभाव से सुरक्षा हेतु – प्रकृति के उपहार

नारियल पानी :-  नारियल का पानी पित्तशामक, स्वादिष्ट, स्निग्ध और ताजगी प्रदान करनेवाला है | यह प्यास को शांत कर ग्रीष्म ऋतू की उष्णता से सुरक्षा करता है | अत: गर्मियों में नारियल पानी का सेवन विशेष लाभदायी हैं |

* लू  लगने पर नारियल पानी के साथ काला जीरा पीस के शरीर पर लेप करने से लाभ होता है |

* प्रतिदिन नारियल खाने व नारियल पानी पीने से शारीरिक शक्ति का विकास होता है, वीर्य की तेजी से वृद्धि होती है | ( अष्टमी को नारियल न खायें | )

* मूत्र में जलन होने पर पिसा हरा धनिया तथा मिश्री नारियल पानी में मिला के पीने से जलन दूर होती है |

खीरा : -  खीरा शरीर को शीतलता प्रदान करता है | इसमें बड़ी मात्रा में पानी और खनिज तत्त्व पाये जाते हैं |


अत: इसके सेवन से शरीर में खनिज तत्त्वों का संतुलन बना रहता हैं | यह मूत्र की जलन शांत करता है एवं यकृत ( लीवर ) के लिए भी हितकारी है | खीरा भूख बढाने के साथ ही आँतों को सक्रिय करता हैं |

* खीरे के छोटे – छोटे टुकड़े करके संतकृपा चूर्ण मिलाकर खाने से अरुचि मिटती हैं, भूख खुल के लगती है और पाचन क्रिया तीव्र होती है |( संतकृपा चूर्ण सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध हैं | )

* अधिक पढने – लिखने, चित्रकला, संगणक व सिलाई का काम करने से आँखों में थकावट होने पर खीरे के दुकड़े काटकर आँखों पर रखें | इससे उनको आराम मिलता है तथा थकावट दूर होती है |

* नींबू  और खीरे का रस मिलाकर लगाने से धूप से झुलसी हुई त्वचा ठीक होती है |

तरबूज : ग्रीष्म ऋतू में प्यास की अधिकता से मुक्ति दिलाता है तरबूज | इसके सेवन से शरीर में लू का प्रकोप कम होता है और बेचैनी से रक्षा होती है |

  • तरबूज के रस में सेंधा नमक और नींबू का रस मिलाकर पीने से लू से सुरक्षा होती है |
  • गर्मी के प्रकोप से मूत्रावरोध होने पर तरबूज का रस पिलाने से मूत्र शीघ्र निष्कासित होता है |
  • तरबूज के छोटे – छोटे टुकड़ों पर थोडा – सा  जीरा चूर्ण और मिश्री डाल के सेवन करने से शरीर की उष्णता दूर होती है |

धनिया : - धनिया ग्रीष्म ऋतू में अधिक प्यास के प्रकोप को शांत करता है |

१० ग्राम सूखा धनिया व ५ ग्राम आँवला चूर्ण रात को मिटटी के पात्र में  १ गिलास पानी में भिगो दें | प्रात: मसलकर मिश्री मिला के छान के पियें | यह गर्मी के कारण होनेवाले सिरदर्द व मूँह के छालों में हितकर हैं | धनिया पीसकर सिर पर लेप करने से भी आशातीत लाभ होगा | इससे पेशाब की जलन, गर्मी के कारण चक्कर आना तथा उलटी होना आदि समस्याएँ दूर होती हैं |



 स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – अप्रैल  २०१६ से 

Wednesday, April 13, 2016

ग्रीष्म ऋतु में स्वास्थ्य – सुरक्षा

( ग्रीष्म ऋतु : १९ अप्रैल से १९ जून तक )
ग्रीष्म ऋतु में शरीर का जलीय व स्निग्ध अंश घटने लगता है | जठराग्नि व रोगप्रतिकारक क्षमता भी घटने लगती है | इससे उत्पन्न शारीरिक समस्याओं से सुरक्षा हेतु नीचे दी गयी बातों का ध्यान रखें –

१] ग्रीष्म ऋतु में जलन, गर्मी, चक्कर आना, अपच, दस्त, नेत्रविकार ( आँख आना / Conjunctivitis ) आदि समस्याएँ अधिक होती हैं | अत: गर्मियों में घर में बाहर निकलते समय  लू  से  बचने के लिए सिर पर कपड़ा बाँधे अथवा टोपी पहने तथा एक गिलास पानी पीकर निकलें | जिन्हें दुपहिया वाहन पर बहुत लम्बी मुसाफिरी करनी हो वे जेब में एक प्याज रख सकते हैं |

२] उष्ण से ठंडे वातावरण में आने पर १० – १५ मिनट तक पानी न पियें | धुप में से आने पर तुंरत पुरे कपड़े ण निकालें, कूलर आदि के सामने भी न बैठें | रात को पंखे, एयर – कंडिशनर अथवा कूलर की हवा में सोने की अपेक्षा हो सके तो छत पर अथवा खुले आँगन में सोयें | यह सम्भव न हो तो पंखे, कूलर आदि की सीधी हवा ण लगे इसका ध्यान रखें |

३] इस मौसम में दिन में कम – से – कम ८ – १० गिलास पानी पियें | प्रात: पानी – प्रयोग  ( रात का रखा हुआ आधा से डेढ़ गिलास पानी सुबह सूर्योदय से पूर्व पीना ) भी अवश्य करें | पानी शरीर के जहरी पदार्थों को बाहर निकालकर त्वचा को ताजगी देने में मदद करता है |

४] मौसमी फल या उनका रस व ठंड़ाई, नींबू की शिकंजी, पुदीने का शरबत, गन्ने का रस, गुड का पानी आदि का सेवन लाभदायी है | गर्मियों में दही लेना मना है और दूध, मक्खन, खीर विशेष सेवनीय हैं |

५] आहार ताजा व सुपाच्य लें | भोजन में मिर्च, तेल, गर्म मसाले आदि का उपयोग कम करें | खमीरीकृत पदार्थ, बासी व्यंजन बिल्कुल  न लें | कपड़े सूती, सफेद या हलके रंग के तथा ढीले – ढाले हों | सोते समय मच्छरदानी आदि का प्रयोग अवश्य करें |

६] गर्मियों में फ्रीज का ठंडा पानी पीने से गले, दाँत, आमाशय व आँतो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | मटके या सुराही का पानी पीना निरापद है  ( किंतु बिनजरूरी या प्यास से अधिक ठंडा पानी पीने से जठराग्नि मंद होती है ) |

७] इस दिनों में छाछ का सेवन निषिद्ध है | अगर लेनी ही हो तो ताज़ी छाछ में मिश्री, जीरा, पुदीना, धनिया मिलाकर लें |

८] रात को देर तक जागना, सुबह देर तक सोना, अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम, अधिक उपवास तथा स्त्री – सहवास  - ये सभी इस ऋतु में वर्जित हैं |


  स्त्रोत – ऋषिप्रसाद अप्रैल २०१६ से


नेत्रज्योति की रक्षा हेतु

भोजन करने के बाद आँखों पर पानी छिडकें तो ठीक हैं, नहीं तो अपनी गीली हथेलियाँ आँखों पर रखें तो भी नेत्र के रोग मिटते हैं | 

दोनों हथेलियाँ रगडकर  ‘ॐ ॐ ॐ मेरी आरोग्यशक्ति जगे, नेत्रज्योति जगे .... ‘ ऐसा करके आँखों पर रखने से भी आँखों की ज्योति बरकरार रहती है और आँखों के रोग मिटते हैं |



 स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – एप्रिल २०१६ से 

घर के झगड़े मिटाने और सुख-शांति पाने के उपाय – पूज्य बापूजी

१] हम दीक्षा के समय आशीर्वाद मन्त्र भी देते हैं  |  उसकी रोज एक माला करने से ह्रदयाघात (हार्ट-अटैक ), निम्न वा उच्च रक्तचाप (Low or High BP) नहीं होता | ५० माला करने से पीलिया दूर हो जाता हैं | कुछ दिनों तक रोज १० माला करने से पति – पत्नी झगड़ें मिट जाते हैं | १०० माला जप करो तो शनि का ग्रह प्रसन्न होकर चला जायेगा  (शनिदेव का प्रकोप शांत हो जायेगा ) | मन्त्र में अदभुत शक्ति है !

२] शनिदेव स्वयं कहते हैं कि  ‘जो शनिवार को पीपल को स्पर्श करता है, उसको जल चढाता है, उसके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उसको कोई पीड़ा नहीं होगी |’ ग्रहदोष और ग्रहबाधा जिनको भी लगी हो, वे अपने घर में ९ अंगुल चौड़ा और ९ अंगुल लम्बा कुमकुम का स्वस्तिक बना दें तो ग्रहबाधा की जो भी समस्याएँ हैं, दूर हो जायेंगी |

३] स्नान के बाद पानी में देखते हुए ‘हरि ॐ शांति’ इस पावन मन्त्र की एक माला करके वह पानी घर या जहाँ भी अशांति आदि हो, छिड़क दे और थोडा बचाकर पी ले, फिर देख लो तुम्हारा जीवन कितना परिवर्तित होता है !  



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – एप्रिल २०१६ से

श्रेष्ठ रोगहारी अमृत संजीवनी - ग्वारपाठा

ग्वारपाठा या घृतकुमारी स्वास्थ्यरक्षक, सौंदर्यवर्धक तथा रोगनिवारक गुणों से भरपूर हैं | यह शरीर को शुद्ध और सप्तधातुओं को पुष्ट कर रसायन का कार्य करता है | यह रोगप्रतिकारक प्रणाली को मजबूत करने में अति उपयोगी एवं त्रिदोषशामक, जठराग्निवर्धक, बल, पुष्टि व वीर्य वर्धक तथा नेत्रों के लिए हितकारी है | यह यकृत के लिए वरदानस्वरूप है |

पीलिया, रक्ताल्पता, जीर्णज्वर ( हड्डी का बुखार ) , तिल्ली ( Spleen ) की वृद्धि, नेत्ररोग, स्त्रीरोग, हर्पीज ( Herpes ), वातरक्त  ( Gout ), जलोदर  ( Ascites ), घुटनों व अन्य जोड़ों का दर्द, जलन, बालों का झड़ना, सिरदर्द, अफरा और कब्जियत आदि में यह उपयोगी हैं | पेट के पुराने रोग, चर्मरोग, गठिया व मधुमेह ( Diabetes ) तथा बवासीर के रोगी को आमयुक्त ( चिकने ) रक्तस्त्राव में ग्वारपाठा बहुत लाभदायी है |

ग्वारपाठे पर नवीन शोधों के परिणाम

१)     यह बिना किसी दुष्प्रभाव के सूजन एवं दर्द को मिटाता है तथा एलर्जी से उत्पन्न रोगों को दूर करता है |

२)  यह रोगों से लड़ने में प्रतिजैविक ( एंटीबायोटिक ) के रूप में काम करता है | यह सूक्ष्म कीटाणु, बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस के कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता रखता है |

३)     त्वचा की मृत एवं खराब कोशिकाओं को पुन: जीवित कर त्वचा को सुदृढ़ बनाता है | रक्त में बने थक्कों को साफ़ करते हुए खून के प्रवाह को सुचारू करता है |

४)     यह कोलेस्ट्राँल को घटाता है | ह्रदय की कार्यक्षमता बढाकर उसे मजबूती प्रदान करता है |

५)     शरीर में ताकत एवं स्फूर्ति लाता है |

६)    यकृत एवं गुर्दों को सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करता है एवं शरीर के जहरी पदार्थों को निकालने में सहायता करता है |

७)     इसमें युरोनिक एसिड होता है, जो आँतो के अंदर की दीवाल को सुदृढ़ बनाता है |

औषधीय प्रयोग

बवासीर : ग्वारपाठे के गुदे में २ – ३ ग्राम हल्दी व २० ग्राम मिश्री मिला के सुबह – शाम सेवन करें | इससे बवासीर व बवासीर के कारण आयी दुर्बलता दूर होती है |

मोटापा : आधा गिलास गर्म पानी में ग्वारपाठे का गूदा व नींबू मिला के खाली पेट सेवन करें |

पेट के रोग : इसके रस या गूदे में ५ – ५ ग्राम शहद व नीबू का रस मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से  पेट के सभी विकारों में लाभ होता है |

उच्च रक्तचाप : तरबूज के ताजे रस में ग्वारपाठे का रस मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है, उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है |

ह्रदयरोग : ३ ग्राम अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण में ग्वारपाठे का रस मिलाकर सुबह – शाम सेवन करने से ह्रदयरोगों से सुरक्षा होती है |

कब्ज : इसका गूदा पीसकर उसमें थोडा काला नमक मिला के सेवन करने से लाभ होता है |

रस या गुदे की मात्रा : बच्चे ५ से १५ ग्राम तथा बड़े १५  से २५ ग्राम सुबह खाली पेट लें |

सावधानी : जिनकी आँतो में सूजन हो, पेचिश हो, पुरानी बवासीर जिसमें मस्से अधिक फूले हुए हों, गुदाम्रार्ग से रक्तस्त्राव होता हो, अतिसार हो, शरीर अत्यंत दुर्बल हो, जिन स्त्रियों को मासिक स्त्राव अधिक होता हो, गर्भवती या बच्चे को दूध पिलाती हो, वे ग्वारपाठे का अधिक समय तक प्रयोग न करें |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – एप्रिल २०१६ से

चंचलता मिटाने का उपाय

चंचलता – निवारण करने का अपना विचार होता है तो आदमी बहुत ऊँचा उठ जाता है | चंचलता ध्यान के द्वारा कम होती है | लम्बा श्वास लेकर दीर्घ प्रणव ( ॐकार ) का जप करो | जितना समय उच्चारण में लगे उतनी देर शांत हो जाओ | आप अपने शुद्ध ज्ञान में स्थित होंगे तो चारों प्रकार की चंचलता आसानी से मिट जायेगी, उससे होनेवाली शक्तियों का ह्रास रुक जायेगा |

१० से १२ मिनट तक ॐकार गुंजन करने तथा ॐकार मंत्र का अर्थसहित ध्यान करने से हारे को हिम्मत, थके को विश्रांति मिलती है, भूले को अंतरात्मा मार्गदर्शन करता है | विद्युत् का कुचालक आसन बिछा दे,  १० – १५ मिनट तक ध्यान करे और एकटक भगवान या गुरु की प्रतिमा अथवा ॐकार को देखता जाय तो साधारण – से – साधारण व्यक्ति भी इन चंचलताओं से ऊपर उठ जायेगा | बात को खींच - खींचकर लम्बी करने की गंदी आदत छूट जायेगी | मधुर वाणी, सत्य वाणी, हितकर वाणी जैसे सदगुण स्वाभाविक उत्पन्न होने लगेंगे |

यह प्रयोग करने से चारों प्रकार की चंचलताएँ छुट जायेंगी, व्यसन छोड़ने नही पड़ेंगे, अपने – आप भाग जायेंगे | चिंता भगाने के लिए कोई दूसरे नये उपाय नहीं करने पड़ेंगे | बुद्धिदाता की कृपा हो तो अल्प बुद्धिवाला भी अच्छी बुद्धि का धनी हो जायेगा |




स्त्रोत – ऋषिप्रसाद  एप्रिल २०१६ से 

अपान आसन

लाभ : १) बढ़ा हुआ वात, कफ ठीक होता है, तिल्ली व यकृत वृद्धि में भी लाभदायक है |

२) पाचनशक्ति बढने के साथ पेट के अन्य विकार भी दूर होते है |

३) मणिपुर चक्र को सक्रिय करने में मदद करता है |

४) वजन कम करने में लाभदायी है |

विधि : पद्मासन में बैठ जायें, फिर दोनों नथुनों से श्वास को पूरी तरह बाहर निकाल दें | अब उड्डीयान बंध लगायें अर्थात पेट को अंदर की ओर खींचे तथा दोनों हाथों से पसलियों के निचले भाग में पेट के दोनों पार्श्वो   ( बाजूवाले भागों ) को पकड़कर बलपूर्वक दबा लें | यथाशक्ति इसी स्थिति में रहें, फिर सामान्य स्थिति में आ जायें और धीरे – धीरे श्वास ले लें | पाँच – सात बार इसे दोहरायें |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद अप्रैल २०१६ से