( ग्रीष्म
ऋतु : १९ अप्रैल से १९ जून तक )
ग्रीष्म
ऋतु में शरीर का जलीय व स्निग्ध अंश घटने लगता है | जठराग्नि व रोगप्रतिकारक
क्षमता भी घटने लगती है | इससे उत्पन्न शारीरिक समस्याओं से सुरक्षा हेतु नीचे दी
गयी बातों का ध्यान रखें –
१]
ग्रीष्म ऋतु में जलन, गर्मी, चक्कर आना, अपच, दस्त, नेत्रविकार ( आँख आना / Conjunctivitis
) आदि समस्याएँ अधिक होती हैं | अत: गर्मियों में घर में बाहर
निकलते समय लू से बचने
के लिए सिर पर कपड़ा बाँधे अथवा टोपी पहने तथा एक गिलास पानी पीकर निकलें | जिन्हें
दुपहिया वाहन पर बहुत लम्बी मुसाफिरी करनी हो वे जेब में एक प्याज रख सकते हैं |
२]
उष्ण से ठंडे वातावरण में आने पर १० – १५ मिनट तक पानी न पियें | धुप में से आने
पर तुंरत पुरे कपड़े ण निकालें, कूलर आदि के सामने भी न बैठें | रात को पंखे, एयर –
कंडिशनर अथवा कूलर की हवा में सोने की अपेक्षा हो सके तो छत पर अथवा खुले आँगन में
सोयें | यह सम्भव न हो तो पंखे, कूलर आदि की सीधी हवा ण लगे इसका ध्यान रखें |
३]
इस मौसम में दिन में कम – से – कम ८ – १० गिलास पानी पियें | प्रात: पानी – प्रयोग
( रात का रखा हुआ आधा से डेढ़ गिलास पानी
सुबह सूर्योदय से पूर्व पीना ) भी अवश्य करें | पानी शरीर के जहरी पदार्थों को
बाहर निकालकर त्वचा को ताजगी देने में मदद करता है |
४]
मौसमी फल या उनका रस व ठंड़ाई, नींबू की शिकंजी, पुदीने का शरबत, गन्ने का रस, गुड
का पानी आदि का सेवन लाभदायी है | गर्मियों में दही लेना मना है और दूध, मक्खन,
खीर विशेष सेवनीय हैं |
५]
आहार ताजा व सुपाच्य लें | भोजन में मिर्च, तेल, गर्म मसाले आदि का उपयोग कम करें |
खमीरीकृत पदार्थ, बासी व्यंजन बिल्कुल न
लें | कपड़े सूती, सफेद या हलके रंग के तथा ढीले – ढाले हों | सोते समय मच्छरदानी
आदि का प्रयोग अवश्य करें |
६]
गर्मियों में फ्रीज का ठंडा पानी पीने से गले, दाँत, आमाशय व आँतो पर प्रतिकूल
प्रभाव पड़ता है | मटके या सुराही का पानी पीना निरापद है ( किंतु बिनजरूरी या प्यास से अधिक ठंडा पानी
पीने से जठराग्नि मंद होती है ) |
७]
इस दिनों में छाछ का सेवन निषिद्ध है | अगर लेनी ही हो तो ताज़ी छाछ में मिश्री,
जीरा, पुदीना, धनिया मिलाकर लें |
८]
रात को देर तक जागना, सुबह देर तक सोना, अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम, अधिक उपवास
तथा स्त्री – सहवास - ये सभी इस ऋतु में
वर्जित हैं |
स्त्रोत
– ऋषिप्रसाद अप्रैल २०१६ से
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