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Sunday, January 31, 2021

आयु, आरोग्य, पुष्टिदायक व आत्मस्थिति में सहायक मास

 

माघ मास व्रत : २८ जनवरी से २७ फरवरी

माघ मास में सभी जल गंगाजल और सभी दिन पर्व के माने गये है | इस मास में सूर्योदय से पहले स्नान कर लें तो पित्त व ह्रदय संबंधी बीमारियों को विदाई मिल सकती है, आध्यात्मिक लाभ और लौकिक लाभ भी हो सकते है |

ब्रह्मर्षि भृगुजी ने कहा है :

कृते तप: परं ज्ञानं त्रेतायां यजनं तथा |

द्वापरे च कलौ दानं माघ: सर्वयुगेषु च ||

‘सतयुग में तपस्या को, त्रेता में ज्ञान को, द्वापर में भगवान के पूजन को और कलियुग में दान को उत्तम माना गया है परंतु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ समझा गया है |’ (पद्म पुराण, उत्तरखंड २२१.८०)

पद्म पुराण में महर्षि वसिष्ठजी ने कहा है : ‘वैशाख में जलदान, अन्नदान उत्तम है, कार्तिक मास में तपस्या, पूजा उत्तम है  लेकिन माघ में जप, होम, दान, स्नान अति उत्तम हैं |’

माघ मास के स्नान का फायदा लेना चाहिए | और हो सके तो दान आदि करें, नहीं तो उबटन लगा के प्रात:स्नान करें, तर्पण व हवन करें | भोजन में ऐसी चीजों का उपयोग करें जिनसे पुण्यलाभ हो | मांस-मदिरा अथवा लहसुन-प्याज का त्याग करें |पृथ्वी पर (चटाई, कम्बल आदि बिछाकर) शयन करें |

यत्नपूर्वक प्रात: (सूर्योदय से पूर्व) स्नान करने से विद्या, निर्मलता, कीर्ति, आयु, आरोग्य, पुष्टि, अक्षय धन की प्राप्ति होती है |कांति बढती है | किये हुए दोषों व समस्त पापों से मुक्ति मिलती है | माघ-स्नान से नरक का डर दूर हो जाता है,   दरिद्रता पास में फटक नहीं सकती है | पाप और दुर्भाग्य का सदा के लिए नाश हो जाता है और मनुष्य यशस्वी हो जाता है | जैसे उद्योगी, उपयोगी, सहयोगी व्यक्ति सबको हितकारी लगता है, ऐसे ही माघ मास सब प्रकार से हमारा हित करता है |

माघ मास में स्नान करते समय अगर सकाम भाव से स्नान करते हो तो वह मनोकामना पूरी होगी और निष्काम भाव से, ईश्वरप्रीति के लिए स्नान करते ही...’मै कौन हूँ?’ इस जिज्ञासा से अपने-आपको जानने के लिए प्रातः स्नान करते हो तो आपको अपने दृष्टा-स्वभाव का, साक्षी-स्वभाव का, ब्रह्म-स्वभाव का प्रसाद भी मिल सकता है |

बच्चों के लिए है बहुत जरूरी

जो बच्चे सदाचरण के मार्ग से हट गये हैं उनको भी पुचकार के, ईनाम देकर भी प्रात:स्नान कराओ तो उन्हें समझाने से मारने-पीटाने से या और कुछ करने से वे उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास में सुबह का स्नान करने से वे सुधरेंगे |

पुरे माघ मास का फल

पूरा मास जल्दी स्नान कर सकें तो ठीक है, नहीं तो एक सप्ताह तो अवश्य करें | माघ मास की शुक्ल त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक अंतिम ३ दिन प्रात:स्नान करने से भी महीनेभर के स्नान का प्रभाव, पुण्य प्राप्त होता है | जो वृद्ध या बीमार है, जिन्हें सर्दी-जुकाम आदि है वे सूर्यंनाड़ी अर्थात दायें नथुने से श्वास चलाकर स्नान करें तो सर्दी-जुकाम से रक्षा हो जायेगी |

ऋषिप्रसाद – जनवरी  २०२१से

पोषक तत्त्वों से भरपूर मौसमी फल : अमरुद

 


अमरुद शीत ऋतू का स्वादिष्ट, पुष्टिकर मौसमी फल है |

अमरुद के लाभ :

१] अमरुद शक्तिदायक, कफ –वीर्यवर्धक तथा वायु व पित्त शामक है |

२] यह सत्त्वगुण व बुद्धि वर्धक है | अत: बौद्धिक सोच – विचार व कम याददाश्त वालों हेतु विशेष हितकारी है |

३] यह थकान को दूर करता है |

४] प्यास व जलन को शांत करता है |

५] अमरुद में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, रेशे, विटामिन ‘ए’, ‘ई’, ‘के’, ‘बी-६’, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नायसिन, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, लौह, जस्ता, ताँबा आदि पोषक तत्त्वों के साथ विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिससे इसके सेवन से अनेक बीमारियाँ दूर होती हैं |

६] यह पेट की बीमारियों में विशेष लाभकारी है |


अमरुद की स्वादिष्ट चटनी

पके अमरूदों को अच्छी तरह धोकर, डंठल से जुड़ा हिस्सा थोडा-सा काट के पीस लें | इसमें स्वादानुसार काला नमक एवं थोड़ी-सी हल्दी मिलायें, चटनी तैयार है | इसमें काली मिर्च, कढ़ी पत्ता आदि भी मिला सकते हैं | इसे भोजन से पहले या भोजन के साथ सेवन करें | इससे भूख बढती है, पाचनक्रिया अच्छी होती है, साथ ही अमरुद-सेवन के अन्य लाभ भी प्राप्त होते है |

अमरुद के गुणों का ठीक से लाभ लेने के लिए पाचनशक्ति के अनुसार एवं पके हुए अमरुद खायें | रात में अमरुद न खाये |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से

रात को पानी पीना हो तो ....

 

ठंडा पानी रात को नहीं पीना चाहिए | सूर्यास्त के बाद पानी न पियें तो अच्छा है, पियें तो भी गुनगुना | और सूर्योदय के पहले भी पानी गुनगुना ही पीना चाहिए, नहीं तो मंदाग्नि होगी |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से

रोटी पकाते समय....

 

रोटी पकाते समय ध्यान देना चाहिए | रोटी तवे पर डाल दी, काले दाग पड़ें उसके बाद रोटी पलटना ठीक नहीं | पलटो नहीं, केवल घुमाते रहो तो रोटी को काले दाग नहीं पड़ेंगे | खानेवालों का जठर ठीक रहेगा, वायु नहीं करेगी |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से

घी के लिए कौन-सा पात्र कितना उपयुक्त ?

 


प्राय: लोग अच्छे-से-अच्छा घी मिले इसके लिए अधिक दाम देने में भी पीछे नहीं हटते लेकिन यदि यह जानकारी नहीं है कि घी रखने के लिए कौन-स बर्तन उपयुक्त है और कौन-से बर्तनों में रखा घी खराब हो जाता है तो अधिक दाम देकर भी खराब घी खायेंगे या तो घी के उत्तम गुणों का पूरा लाभ नहीं ले पायेंगे |

अनुपयुक्त बर्तन

सुश्रुत संहिता के अनुसार ‘काँसे के बर्तन में १० रात तक रखा हुआ घी नहीं खाना चाहिए |’

ब्रह्मवैवर्त पुराण में आता है कि ‘लोहे के बर्तन में रखा हुआ घी अभक्ष्य हो जाता है |’

अमेरिका के फ़ूड एड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार ‘सभी तरह का प्लास्टिक कुछ समय के बाद केमिकल छोड़ने लगता है |’ प्लास्टिक से बने बर्तनों, डिब्बों, थैलियों, दूध व पानी की बोतलों ई में खाद्य पदार्थ कुछ समय तक रखें रहने पर रासायनिक क्रियाएँ होने से विषाक्त होने लगते हैं और भविष्य में कैंसर आदि घातक बीमारियों का कारण बनते हैं | अत: घी को प्लास्टिक के डिब्बों में रखना सुरक्षित नहीं हैं |

काँच खाद्य पदार्थों में पायें जानेवाले अम्ल, क्षार व लवण आदि से अभिक्रिया नहीं करता | इससे काँच के पात्रों में रखे गये पदार्थ लम्बे समय तक ताजे और स्वादयुक्त रहते हैं , खराब नहीं होते | अत: घी की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए उसे काँच के बर्तन में रखना श्रेष्ठ है |

विशेष : आयुर्वेद के अनुसार एक वर्ष से अधिक पुराने घी को ‘पुराण घृत’ कहते हैं | इसकी गंध व स्वाद बिगड़ने लगते हैं पर यह अधिक गुणकारी होता है | अत: इसका प्रयोग विशेषरूप से औषधि  के रूप में किया जाता है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से

महाबंध

 


लाभ: ऋषि घेरंड कहते हैं कि “महाबंध सभी मुद्राओं में श्रेष्ठ है | यह जरा-मृत्यु को दूर करता है | इसके प्रभाव से सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं |” महाबंध महासिद्धियों का प्रदायक है |

इसके नियमित अभ्यास से –

१] प्राण ऊर्ध्वगामी होते हैं |

२] वीर्य की शुद्धि होती है |

३] इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का संगम होता है और बल की वृद्धि होती है |

४] प्रमेह मिधुमेह शुक्रमेह आदि २० प्रकार के मूत्र-संबंधी विकारें में लाभ होता है |

५] कुंडलिनी शक्ति शीघ्र जागृत होती है |

६] शरीर की हड्डियों का ढॉँचा सुदृढ़ होता है |

७] ह्रदय संतुष्ट हो जाता है |


विधि : बायें पैर की एडी को सिवनी (गुदा व जननेंद्रिय के बीच का स्थान) पर लगाये व दायें पैर को बायीं जंघा के ऊपर रखें | कमर सीधी करके बैठे | अब बायें नथुने से श्वास लेकर जालंधर बंध (ठोढ़ी से कंठकूप को दबाना ) लगायें और अपानवायु को ऊपर की और खींच के मुलबंध (गुदाद्वार का संकोचन) लगायें तथा यथाशक्ति श्वास भीतर रोके रखें | फिर दायें नथुने से धीरे-धीरे श्वास छोड़ दें | अब दायें पैर की एडी को सिवनी में स्थापित करके बायें पैर को दायें पैर की जंघा पर जमायें | दायें नथुने से श्वास लेकर उपरोक्त विधि से भीतर रोके रखें फिर बायें नथुने से धीरे-धीरे छोड़ें | दोनों नथुनों से समान संख्या में पूरक (श्वास लेना ) करें |

सावधानियाँ : १] इस बंध का उपयोग सावधानीपूर्वक दोनों पैरों से बारी-बारी से करना चाहिए |

२] सगर्भावस्था एवं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए |


ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से


पारिवारिक कलहनाशक प्रयोग

 

पति-पत्नी में झगड़ा हो गया हो और उसका शमन करना हो तो पति-पत्नी दोनों पार्वतीजी को तिलक करके उनकी ओर एकटक देखें तथा प्रार्थना करें | अगर पति पत्नी को निकाल देना चाहता है तो पत्नी यह प्रयोग करें | इससे झगड़ा शांत हो जायेगा |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से    

केवल १ मिनट के प्रयोग से छा जायेगी बुद्धि में भगवत्कृपा

 

तुम्हारा शरीर स्वस्थ रहे, मन प्रसन्न रहे, बुद्धि में भगवान की कृपा छा जाय ऐसा चाहते हो तो मैं एक युक्ति बताऊँ, आप करोगे ? आसान हैं, १ मिनट लगेगा रोज, करोगे ?

आप स्नान तो करते ही हैं | आप अगर गंगाजी में या कहीं तीर्थ में स्नान करते हैं तो वही अंजलि भर ले  और घर में स्नान करते हैं तो कटोरी में पानी ले लें और लम्बा श्वास लें, गर्दन को कंठकूप पर दबाव पड़े इस प्रकार दबा के ‘हरि ॐ ॐ ॐ ॐ....’ – ऐसा होंठों से बोलते जायें और पानी को देखते जायें | फिर से स्वास लें, 'हरि ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ....’ जपें, तनिक चुप हो जायें |

‘हरि ॐ ॐ ॐ ॐ.....सूर्याय नम:, बुद्धिप्रदायकाय नम:, गणपतये नम:, परमात्मने नम:’ – ऐसा जप करते हुए पानी में देखे फिर वह पानी पी लें | शुरू कर दो आज से ही, स्वस्थ, सुखी और सम्मानित रहना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से

कार्यों में सफलता-प्राप्ति हेतु

 

जो व्यक्ति बार-बार प्रयत्नों के बावजूद सफलता प्राप्त न कर पा रहा हो अथवा सफलता-प्राप्ति के प्रति पूर्णतया निराश हो चुका हो, उसे प्रत्येक सोमवार को पीपल वृक्ष के नीचे सायंकाल के समय एक दीपक जला के उस वृक्ष की ५ परिक्रमा करनी चाहिए | इस प्रयोग को कुछ ही दिनों तक सम्पन्न करनेवाले को उसके कार्यों में धीरे-धीरे सफलता प्राप्त होने लगती है |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से