लाभ: ऋषि घेरंड
कहते हैं कि “महाबंध सभी मुद्राओं में श्रेष्ठ है | यह जरा-मृत्यु को दूर करता है
| इसके प्रभाव से सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं |” महाबंध महासिद्धियों का प्रदायक
है |
इसके नियमित
अभ्यास से –
१] प्राण
ऊर्ध्वगामी होते हैं |
२] वीर्य की
शुद्धि होती है |
३] इड़ा, पिंगला और
सुषुम्ना नाड़ियों का संगम होता है और बल की वृद्धि होती है |
४] प्रमेह मिधुमेह
शुक्रमेह आदि २० प्रकार के मूत्र-संबंधी विकारें में लाभ होता है |
५] कुंडलिनी शक्ति
शीघ्र जागृत होती है |
६] शरीर की
हड्डियों का ढॉँचा सुदृढ़ होता है |
७] ह्रदय संतुष्ट
हो जाता है |
विधि : बायें पैर
की एडी को सिवनी (गुदा व जननेंद्रिय के बीच का स्थान) पर लगाये व दायें पैर को
बायीं जंघा के ऊपर रखें | कमर सीधी करके बैठे | अब बायें नथुने से श्वास लेकर
जालंधर बंध (ठोढ़ी से कंठकूप को दबाना ) लगायें और अपानवायु को ऊपर की और खींच के
मुलबंध (गुदाद्वार का संकोचन) लगायें तथा यथाशक्ति श्वास भीतर रोके रखें | फिर
दायें नथुने से धीरे-धीरे श्वास छोड़ दें | अब दायें पैर की एडी को सिवनी में
स्थापित करके बायें पैर को दायें पैर की जंघा पर जमायें | दायें नथुने से श्वास
लेकर उपरोक्त विधि से भीतर रोके रखें फिर बायें नथुने से धीरे-धीरे छोड़ें | दोनों
नथुनों से समान संख्या में पूरक (श्वास लेना ) करें |
सावधानियाँ : १]
इस बंध का उपयोग सावधानीपूर्वक दोनों पैरों से बारी-बारी से करना चाहिए |
२] सगर्भावस्था
एवं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए |
ऋषिप्रसाद
– जनवरी २०२१ से
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