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Sunday, January 31, 2021

महाबंध

 


लाभ: ऋषि घेरंड कहते हैं कि “महाबंध सभी मुद्राओं में श्रेष्ठ है | यह जरा-मृत्यु को दूर करता है | इसके प्रभाव से सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं |” महाबंध महासिद्धियों का प्रदायक है |

इसके नियमित अभ्यास से –

१] प्राण ऊर्ध्वगामी होते हैं |

२] वीर्य की शुद्धि होती है |

३] इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का संगम होता है और बल की वृद्धि होती है |

४] प्रमेह मिधुमेह शुक्रमेह आदि २० प्रकार के मूत्र-संबंधी विकारें में लाभ होता है |

५] कुंडलिनी शक्ति शीघ्र जागृत होती है |

६] शरीर की हड्डियों का ढॉँचा सुदृढ़ होता है |

७] ह्रदय संतुष्ट हो जाता है |


विधि : बायें पैर की एडी को सिवनी (गुदा व जननेंद्रिय के बीच का स्थान) पर लगाये व दायें पैर को बायीं जंघा के ऊपर रखें | कमर सीधी करके बैठे | अब बायें नथुने से श्वास लेकर जालंधर बंध (ठोढ़ी से कंठकूप को दबाना ) लगायें और अपानवायु को ऊपर की और खींच के मुलबंध (गुदाद्वार का संकोचन) लगायें तथा यथाशक्ति श्वास भीतर रोके रखें | फिर दायें नथुने से धीरे-धीरे श्वास छोड़ दें | अब दायें पैर की एडी को सिवनी में स्थापित करके बायें पैर को दायें पैर की जंघा पर जमायें | दायें नथुने से श्वास लेकर उपरोक्त विधि से भीतर रोके रखें फिर बायें नथुने से धीरे-धीरे छोड़ें | दोनों नथुनों से समान संख्या में पूरक (श्वास लेना ) करें |

सावधानियाँ : १] इस बंध का उपयोग सावधानीपूर्वक दोनों पैरों से बारी-बारी से करना चाहिए |

२] सगर्भावस्था एवं मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए |


ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२१ से


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