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Saturday, December 15, 2018

गोदुग्ध को अमृत क्यों कहा जाता है ?



महाभारत में यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा : “अमृतं किंस्विद ? (अमृत क्या है ?)” तब युधिष्ठिर ने कहा : “सोमो गवामृतम् | (गौ का दूध अमृत हैं |)

आयुर्वेद में आता है कि देशी गाय का दूध मधुर रसयुक्त, स्निग्ध, शीतल, शरीर की वृद्धि करनेवाला तथा बल, वीर्य व बुद्धि वर्धक, मन को प्रसन्न करनेवाला, जीवनीय तथा खाँसी (कफजन्य खाँसी को छोडकर ) एवं थकान को मिटानेवाला है |

जिन्हें हमारे महाभारत जैसे धर्म-शास्त्रों एवं आयुर्वेद के स्वास्थ्य-शास्त्रों की सच्ची बात भी सीधे स्वीकार नहीं होती, वे आधुनिक वैज्ञानिकों की उद्घोषणा से ही जागृत हों | हार्वर्ड चिकित्सा-विद्यालय के प्रो. एम्. जे. रोसेनो ने गहन अध्ययन एवं अनुसंधान के बाद घोषणा की है कि ‘गाय का दूध ही एकमात्र ऐसा पदार्ध है जो सब पौष्टिक द्रव्यों से परिपूर्ण है, जिसे हम सम्पूर्ण भोजन कह सकते हैं |’

विभिन्न रोग-बीमारियों में पथ्य
देशी गोदुग्ध अमूल्य औषधि है | आयुर्वेद के अनुसार यह रक्तपित्तशामक एवं टूटी हुई हड्डियों को जोड़नेवाला है | यह सभीके लिए सात्म्य (अनुकूल), दोषशामक, प्यासशामक, जठराग्निवर्धक एवं दुर्बल और टी. बी. के रोगियों के लिए हितकारी है | योनिरोग, शुक्ररोग, कब्ज आदि रोगों में पथ्य व हितकर है | खून की कमी, अम्लपित्त, सुखा रोग, पेट के रोग, पुराना बुखार, जलन, सूजन आदि में विशेषरूप से पथ्य है | यह वात-पित्तजन्य रोगों में भी पथ्य है |

ओजवर्धक
चरक संहिता के अनुसार देशी गोदुग्ध में मधुर, शीतल, मृदु, स्निग्ध आदि जो १० गुण हैं, ओज के भी वे ही १० गुण हैं इसलिए दूध ओजवर्धक है | यह रसायन भी है | जीवनीय पदार्थो में दूध को अधिक श्रेष्ठ कहा गया है |

ओजवृद्धि से आयुष्य एवं आरोग्य उत्तम रहते हैं | ओज को ही प्रकृतिरक्षिणी शक्ति, आरोग्य-संरक्षिणी शक्ति कहा जाता है |

लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से

बुद्धि, मनोबल व शरीर-बल वर्धक – बादाम


बादाम शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक स्वास्थ्य को बढ़ाकर दीर्घायु बनाने में मदद करता है | आयुर्वेदानुसार बादाम मधुर, स्निग्ध, उष्ण, पचने में भारी, वजन बढ़ानेवाला, बलकारक, मांस व शुक्र वर्धक, हड्डियों को मजबूत बनानेवाला, स्नायु एवं तंत्रिकाओं को बल देनेवाला, वातनाशक तथा कफ-पित्तवर्धक है |

आधुनिक अनुसंधान के अनुसार बादाम में विटामिन ‘ई’ तथा कैल्शियम, ताम्र, लौह, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक, मैंगनीज आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पायें जातें हैं |

बादाम का सेवन ह्रदयविकार के खतरे को बढ़ानेवाले हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को घटाता है, साथ ही लाभदायी कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है, जिससे ह्रदय व रक्तवाहिनियों से संबंधित रोगों की सम्भावना कम हो जाती है | यह स्तन-कैंसर व बड़ी आँत के कैंसर के खतरे को भी कम करता है | इसमें मस्तिष्क की दुर्बलता को कम करने और उसे शक्ति देने का गुण है |

बादाम का सेवन स्मरणशक्ति बढ़ाता है | आँखों की रोशनी बढ़ाने में लाभदायक है | इसे अंजीर के साथ खाने से कब्ज में लाभ होता है |

बादाम का दूध एवं मक्खन
बादाम के उपयोग का उत्तम तरीका इसका मक्खन बनाकर सेवन करना है | इन्हें रातभर पानी में भिगोकर रखें एवं सुबह छिलका निकाल के पीस लें, बस तैयार है बादाम का मक्खन ! इसमें पानी मिलाने से बादाम का दूध
बन जाता है जो बहुत ही स्वादिष्ट, सुपाच्य व पौष्टिक होता है | ये दूध तथा मक्खन शरीर द्वारा आसानी से ग्रहण कर लिये जाते हैं | जिनके आहार में प्रोटीन की कमी रहती है तथा जिन्हें ताजा, शुद्ध दूध उपलब्ध नहीं हो पाता हो अथवा दूध अनुकूल नहीं पड़ता हो उनके लिए बादाम का दूध व मक्खन बहुत ही लाभदायक है | सर्दियों में रात को २ – ३ बादाम के साथ २ काजू,  २ अखरोट की गिरी व ४ – ५ मूँगफली भिगो दें | सुबह पीसते समय इनके साथ थोड़ी-सी नारियल की गिरी डाल के इनका दूध बनाकर भी लिया जा सकता है |

बादाम का पेय
रात को ३ – ४ बादाम एक कप गर्म पानी में भिगोकर रखें | सुबह उन्हें पानी के साथ पीस लें एवं ३ – ४ मिनट पकायें | बादाम का पेय तैयार है | २० – ४० मि.ली. पेय प्रतिदिन सेवन करने से श्वसन एवं मूत्र-जननेन्द्रिय संस्थान के रोगों, मधुमेह तथा स्त्रियों के कमरदर्द एवं श्वेतप्रदर में लाभ होता है |

बादाम की सेवन-मात्रा : १ से ५ बादाम (पाचनशक्ति के अनुसार )

लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से

मयूरपद्मासन


इस आसन के अभ्यास से मयूरासन और पद्मासन – दोनों से होनेवाले लाभ मिलते हैं इसलिए इसे ‘मयूरपद्मासन’ या ‘पद्ममयूरासन’ कहते हैं |

लाभ : १] इसके अभ्यास से चेहरे का तेज बढ़ता है | ब्रह्मचर्य – पालन में सहायता मिलती है |
२] शरीर के जहरीले तत्त्व नष्ट हो जाते हैं |
३] फेफड़े, तिल्ली, यकृत, गुर्दे, अग्नाशय आदि सभी अंग सुचारुरूप से कार्य करते हैं |

विधि : पद्मासन लगाकर (बायें पैर को मोडकर दायी जंघा तथा दायें पैर को मोड़ के बायीं जंघा पर रखें ) जमीन पर घुटनों के बल खड़े हो जायें | दोनों हाथों के बीच चार अंगुल का अंतर रखते हुए हाथों को कोहनियों से मोडकर नाभि के आसपास पेट के कोमल भाग पर रखें तथा श्वास बाहर ही रोके रखते हुए यथासम्भव इस अवस्था में रहें | फिर धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पुन: मूल स्थिति में आयें | इस आसन को ३ से ५ बार करें |

सावधानियाँ :  
v यह आसन अल्सर, उच्च रक्तचाप (hypertension), आंत्र टी. बी., आंत्रवृद्धि (Hernia), यकृत व तिल्ली वृद्धि एवं ह्रदय के रोगी तथा गर्भवती महिलाएँ न करें |
v यह आसन करने के बाद सिर के बल किये जानेवाले किसी भी आसन का अभ्यास नही करना चाहिए क्योंकि इस आसन में शुद्धिकरण के परिणामस्वरूप रक्त से विषाक्त तत्त्व अधिक मात्रा में निकलते हैं जो मस्तिष्क में प्रवेश कर सकते हैं |

लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से

Tuesday, December 11, 2018

स्वास्थ्यबल, मनोबल व रोगप्रतिकारक बल बढ़ाने की कुंजी


प्रात:काल ३ से ५ बजे के बीच प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) फेफड़ों में होती है | यह समय प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति, मन:शक्ति, बुद्धिशक्ति विकसित करने हेतु बेजोड़ है | इस समय प्राणायाम करना बहुत जरूरी है | सुबह ५ बजे के पहले प्राणायाम अवश्य हो जाने चाहिए | इससे कई गुना फायदा होगा | ४ से ५ बजे का समय जागरण, ध्यान, प्राणायाम करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है अत: इसका लाभ लें |

इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है | प्राणायाम करने से प्राण तालबद्ध होते हैं | प्राण तालबद्ध होने से मन की दुष्टता और चंचलता नियंत्रित होती है |

प्रात: ४ से ५ के बीच ३ – ४ अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें – दायें नथुने से श्वास लिया, बायें से छोड़ा व बायें से लिया, दायें से छोड़ा | फिर आभ्यंतर-बहिर्कुम्भक प्राणायाम करें |

विधि : गहरा श्वास लेकर उसे १०० सेकंड तक भीतर रोकें | फिर श्वास धीरे-धीरे बाहर छोड़ दें और स्वाभाविक २ – ४ श्वास लें | फिर पूरा श्वास बाहर निकालकर ७०-८० सेकंड तक बाहर ही रोके रखें | बाह्य व आभ्यंतर कुम्भक मिलाकर यह १ प्राणायाम हुआ | ऐसे कम-से-कम ३ -५ प्राणायम अवश्य करने चाहिए | ( नये अभ्यासक इन कुम्भकों में समयाविधि धीरे-धीरे बढ़ाते हुए दिये गये समय तक पहुँचे |) बुद्धिशक्ति-मेधाशक्तिवर्धक प्राणायाम भी करें |

(विधि आश्रम के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘दिव्य-प्रेरणा –प्रकाश’ (पृष्ठ ३५ ) में | )
यह स्वास्थ्यबल , मनोबल, रोगप्रतिकारक बल बढ़ाने की कुंजी है |

-ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१८ से      

आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य, सम्पत्ति और कीर्ति बढने के लिए




ॐ ह्रीं घृणि: सूर्य आदित्य: क्लीं ॐ |
सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने एवं दुःख-दारिद्र्य को दूर करने के लिए तथा रोग व दोष के शमन के लिए इस प्रभावकारी मंत्र की साधना रविवार के दिन से करने चाहिए | रविवार को खुले आकाश के नीचे पूर्व की ओर मुख करके शुद्ध ऊन के आसन पर अथवा कुशासन पर बैठकर काले तिल, जौ, गूगल, कपूर और घी मिश्रित शाकल (हवन-सामग्री) तैयार करके आम की लकड़ियों से अग्नि को प्रदीप्त क्र उपरोक्त मंत्र से १०८ आहुतियाँ दें | तत्पश्च्यात सिद्धासन लगाकर इसी मंत्र का १०८ बार जप करें | जप करते समय दोनों भौहों के मध्य भाग में भगवान सूर्य का ध्यान करते रहें | इस तरह ११ दिन तक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है | इस साधना में रविवार का व्रत (बिना नमक का, तेलहीन भोजन सूर्यास्त से पहले दिन में एक ही बार करना अनिवार्य है |)

इसके बाद प्रतिदिन स्नान के बाद ताम्र-पात्र में जल भरकर उपरोक्त मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दें | जमीन पर जल न गिरे इसलिए नीचे दूसरा ताम्र-पात्र रखें | तत्पश्च्यात इस मंत्र का १०८ बार जप करें | मात्र इतना करने से आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य, सम्पत्ति और कीर्ति उत्तरोत्तर बढती हैं |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१८ से

पौष्टिक एवं बलवर्धक सूखे मेवे


सूखे मेवे पोषक तत्त्वों से भरपूर होते है, जिनके सेवन से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है | इनसे न केवल पोषण मिलता है बल्कि दीर्घकाल तक शक्ति को बनाये रखने में मदद मिलती है | तो आइये, जानते हैं २ सूखे मेवों के बारें में .....

शक्तिवर्धक काजू
आयुर्वेद के अनुसार काजू स्निग्ध, पौष्टिक, उष्ण, वीर्यवर्धक, वायुशामक, पाचनशक्ति बढानेवाला एवं जठराग्नि-प्रदीपक है |

आधुनिक अनुसंधानो के अनुसार काजू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है | इसके साथ इसमें विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस  , ताम्र, लौह, मैग्नेशियम, सोडियम, रेशे पाये जाते हैं |

काजू ह्रदयरोगों में लाभदायी है | यह मानसिक अवसाद और कमजोरी के लिए बढिया उपचार है | यह मनोदशा को सुधारने में मदद करता है | यह भूख बढ़ाने और तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है | शरीर को सक्रिय, ऊर्जावान तथा मन को प्रसन्न बनाये रखने में मदद करता है |

औषधीय प्रयोग
v ३ – ५ काजू पीस के दूध में मिलाकर पीने से शारीरिक शक्ति बढती है |
v सुबह ३ – ५ काजू शहद के साथ खाने से दिमाग की कमजोरी, विस्मृति मिटती है | स्मरणशक्ति बढती है | ऐसे ही सुबह-सुबह अंत:करण चतुष्टय का आधार जो साक्षीस्वरूप है उसकी स्मृति करने से अपना अज्ञान मिटने लगता है, आत्मविस्मृति मिटने लगती है, परमात्मस्मृति जगने लगती है | ज्ञान और ध्यान मिलाकर अंत:करण को सत्संग-सरिता में नहलाने से अंत:करण की कमजोरी भी मिटती है, परमात्म सुख व स्मृति की वृद्धि होती है |

मस्तिष्क – पोषक (brain food )अखरोट
आयुर्वेद के अनुसार अखरोट गुणों में बादाम के सदृश होता है | इसे फलस्नेह या ब्रेन फूड भी कहा जाता है | इसकी गिरी मधुर, स्निग्ध, बलदायक, पचने में भारी, पुष्टिदायी, वायुशामक एवं कफ व पित्तवर्धक होती है |

अखरोट में जिंक, फ़ॉलिक एसिड, विटामिन ‘ई’ व ‘बी-६’ तथा लौह, ताम्र, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम, मैंगनीज, पोटैशियम, सोडियम आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं |

आधुनिक खोज के अनुसार अखरोट स्वास्थ्यप्रद फैटी एसिड ‘ओमेगा-३’‘ओमेगा-६’ का सर्वोत्तम स्त्रोत है जो हानिकर कोलेस्ट्रॉल  की  मात्रा घटाते हैं, जिससे ह्रदय की रक्तवाहिनियों के अवरोध (coronary arteny disease) से रक्षा होती है | इसे खाने से स्मृति बढती है | यह मस्तिष्क के कार्य को सही ढंग से चलाने में मदद करता है | इसमें पॉलीफिनॉल्स  होते हैं जो स्तन, प्रोस्टेट, बड़ी आँत व गुदा के कैंसर के खतरे को कम करते हैं | अखरोट मधुमेह से रक्षा व इसे नियंत्रित रखने में तथा उच्च रक्तचाप को कम करने में लाभकारी है |
औषधीय प्रयोग
v  २० ग्राम अखरोट की गिरी पीसकर उसमें मिश्री, केसर मिला के दूध के साथ लेने से कुछ हफ्ते में वीर्यवृद्धि होकर शुक्राणुओं की संख्या बढती है |
v रात्री को बिस्तर में पेशाब करनेवाले बच्चों को १ अखरोट की गिरी और १५ किशमिश मिलाकर खिलाने से बहुत लाभ होता है |

ध्यान दें : सूखे मेवे सुबह के समय खाना विशेष लाभदायी है | जो शारीरिक श्रम नहीं करते हों अथवा ज्यादातर बैठ ही रहते हों उन्हें इनका सेवन अल्प मात्रा में करना चाहिए |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१८ से

कैसे पायें मधुमेह (diabetes) से छुटकारा ?


वर्तमान में वैश्विक समस्या बनी हुई बीमारियों में से एक है मधुमेह | हम यहाँ मधुमेह में हितकर आहार-विहार, परहेज एवं ऐसा लाभदायी उपाय बता रहे हैं जो बिल्कुल निरापद है एवं जिसे सभी कर सकते हैं |

कैसा हो आहार-विहार ?
  v हितकारी आहार : कडवे व कसैले रसयुक्त एवं पचने में हल्के पदार्थ हितकारी हैं | प्रोटीन्स का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें | विटामिन्स, खनिज तत्त्वों एवं रेशों से भरपूर सब्जियाँ व फल तथा देशी गाय के दूध का सेवन भी यथोचित मात्रा में करना आवश्यक है | एक वर्ष पुराने अनाज का सेवन उत्तम है | करेला, मेथी, सेम की फलियाँ, भिंडी, परवल, सहजन, बथुआ, लौकी, तोरई, जमीकंद (सूरन), कुम्हड़ा, पत्तागोभी, फूलगोभी, बैंगन आदि सब्जियों एवं चुकंदर, खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, अदरक, लहसुन आदि का सेवन हितकारी है | अनाजों में जौ, ज्वार, रागी, गेहूँ एवं दालों में मूँग, चना, मसूर आदि तथा सूखे मेवों में अखरोट व बादाम एवं फलों में जामुन, अंगूर, संतरा, मोसम्बी, स्ट्रॉबेरी, रसभरी हितकर हैं | देशी गाय का घी तथा हल्दी, मेथीदाना, अलसी, आँवला व नींबू का आहार में समावेश करें | काली मिर्च, राई, धनिया, जीरा, मिर्च, लौंग का यथायोग्य उपयोग कर सकते हैं |

  v हितकारी विहार : चरक संहिता के अनुसार विविध प्रकार के व्यायाम विशेषत: तेज गति से चलने का व्यायाम तथा योगासन, प्राणायाम एवं सूर्यनमस्कार करना हितकारी है | सुबह-शाम एक-एक घंटा तेजी से चलें | कृश व दुर्बल रोगी यथाशक्ति हलका व्यायाम करें |

किनसे करें परहेज ?
आचार्य चरक लिखते हैं :आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधीनि ग्राम्यौद्कानूपरसा: पयांसि |
                                 नवान्नपानं गुडवैकृतं च प्रमेहहेतु: कफकृच्च सर्वम ||

सतत सुखपूर्वक बैठे रहना, अति नींद लेना अर्थात शारीरिक परिश्रम का अभाव, दही व दूध का अधिक सेवन, नया अन्न (नया अनाज) व नया जल (वर्षा आदि का ), गुड, चीनी, मिश्री, मिठाइयाँ तथा कफ बढ़ानेवाले सभी पदार्थो (भात, खीर आदि) का अति सेवन प्रमेह के हेतु हैं | (प्रेमह रोग के २० प्रकारों में से मधुमेह एक है|) अत: इनका त्याग करना चाहिए | (चरक संहिता)

मधुमेह के लिए अनभूत रामबाण प्रयोग
आधा किलो करेले काटकर किसी चौड़े बर्तन में रख के खाली पेट १ घंटे तक कुचले | २ – ३ दिन में मुँह में कड़वापन महसूस होगा | ७ दिन खड़े-खड़े न कुचल सकें तो बीच में ५ – १० मिनट कुर्सी पर बैठकर भी चालू रखें | करेले पके, बासी, सस्तेवाले भी फायदा करेंगे ही |


इंसुलिन के इंजेक्शन लेनेवाले को भी इस ७ दिन के प्रयोग से सदा के लिए आराम हो गया व छूट गयी सारी दवाइयाँ ! मात्र कुछ दिन शाम को आश्रम में मिलनेवाली ‘मधुरक्षा टेबलेट’ नामक अचूक औषधि का प्रयोग करें |

 ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१८ से

Thursday, November 15, 2018

सहज शंख मुद्रा


लाभ: १] शरीर-शुद्धि करनेवाले संस्थानों एवं अवयवों के कार्य सुचारू रूप से होते हैं |
२] रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है |
३] बवासीर जैसे रोग ठीक होते हैं |
४] रक्ताभिसरण व्यवस्थित होता है |
५] ह्रदय की कार्यक्षमता बनी रहती है |
६] तुतलापन, अटक-अटककर बोलना, वाणी के दोष एवं रोग ठीक होते हैं |
७] इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से गायक अपनी आवाज को अधिक मधुर बना सकते हैं |

विधि : हाथों की ऊँगलियाँ एक-दूसरे में अटकाकर हथेलियों से एक-दूसरे पर दबाव डालें | हाथों के अँगूठे एक-दूसरे से स्पर्श किये हुए सीधे रहें |

यह मुद्रा वज्रासन या सुखासन में बैठकर ५ से २० मिनट करें | मुलबंधयुक्त प्राणायाम के साथ इसे करने से विशेष लाभ होता है |

लोककल्याणसेतु – नवम्बर २०१८ से

अंजीर – एक बहुपयोगी फल व सूखा मेवा


अंजीर एक पौष्टिक फल है, जिसका ताजे फल व सूखे मेवे के रूप में उपयोग किया जाता है | यह स्वाद में मधुर, शीतल, स्निग्ध, तृप्तिकर, वजन बढ़ाने में लाभदायी, पचने में भारी, वात-पित्तशामक, जलन कम करनेवाला तथा रक्तवर्धक है |

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार में रेशे, विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ व ‘के’ तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, मैग्नेशियम, लौह, मैंगनीज आदि खनिज होते हैं |

अंजीर जठर और आँतों को कार्यक्षम रखता है तथा सूखी खाँसी में विशेष लाभदायी है | यह यकृत (liver) एवं प्लीहा (spleen) की वृद्धि, लकवा ( paralysis), बवासीर, संधिवात, नकसीर, प्यास की अधिकता, बुखार के बाद आनेवाली कमजोरी और सीने के दर्द में लाभदायी होता है |    

क्षयरोग (tuberculosis) में अंजीर पथ्य माना जाता है | ताजे अंजीर का रस मूत्रल होता है | अंजीर रक्तशुद्धिकर है इसलिए इसके सेवन से रक्त-विकार के कारण उत्पन्न फोड़े-फुंसियों और दूसरे चर्मरोगों में लाभ होता है | यह थकान व कमजोरी को दूर करनेवाला तथा बलवर्धक है |

अंजीर बादाम एवं पिस्ता के साथ खाने से बुद्धिवर्धक व अखरोट के साथ खाने से वीर्यवर्धक होता है | बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अंजीर विशेषरूप से खाने चाहिए | इससे उन्हें पर्याप्त पोषण मिलता है |

औषधीय प्रयोग
रक्त की वृद्धि एवं शुद्धि हेतु : ३ – ४ अंजीर को २०० ग्राम दूध में उबालकर रोज पीने से रक्त की  वृद्धि व शुद्धि होती है तथा शक्ति बढ़ती है | यह प्रयोग कब्जियत में भी लाभ करता है |

शारीरिक कमजोरी (दुर्बलता) : २ पके अंजीरों को अथवा भिगोये हुए २ सूखे अंजीरों को १ चम्मच सौंफ के साथ चबा-चबाकर खायें | यह प्रयोग ४० दिन तक नियमित करने से शारीरिक दुर्बलता में लाभ होता है |

बवासीर : अंजीर, काली द्राक्ष (सूखी), हरड एवं मिश्री को समान मात्रा में ले के कूट के रख लें | ३ – ५ ग्राम मिश्रण को प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से बवासीर में लाभ होता है |

अधिक मासिक स्त्राव व प्रदररोग : प्रतिदिन २ अंजीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके रात को पानी में भिगो दें एवं सुबह २ चम्मच शहद के साथ चबा-चबाकर खाये | इससे अधिक मासिक स्त्राव व पानी पड़ने की बीमारी में लाभ होता है |

सावधानी : अंजीर पचने में भारी होते हैं अत: इनका उपयोग पाचनशक्ति के अनुसार करना चाहिए | प्रतिदिन २ से ४ अंजीर खाये जा सकते हैं | ज्यादा मात्रा में खाने पर सर्दी, कफ एवं मंदाग्नि हो सकती है | सूखे अंजीरों को सेवन से पूर्व १ – २ घंटे पानी में भिगो के रखना चाहिए |

लोककल्याणसेतु – नवम्बर २०१८ से

Tuesday, November 13, 2018

बल, स्मृति एवं रक्त वर्धक औषधियाँ


वजन एवं बल बढ़ाने हेतु
१] अश्वगंधा पाक : १क चम्मच ( ५ ग्राम ) दूध से लें |
२] च्यवनप्राश : १ चम्मच (१० ग्राम ) लें |
३] ब्राह्म रसायन : १ चम्मच लें |
४] शतावरी चूर्ण : आधा चम्मच चूर्ण दूध से लें |
५] अश्वगंधा चूर्ण : आधा चम्मच ( २ से ५ ग्राम ) चूर्ण दूध से लें |

(उपरोक्त औषधियों का सेवन सुबह खाली पेट करें | सेवन के बाद जब तक खुलकर भूख नहीं लगती तब तक भोजन नही करें |)

याददाश्त बढ़ाने हेतु
१] सुवर्णप्राश : १ से २ गोली सुबह खाली पेट दूध से लें |
२] शंखपुष्पी सिरप : १-१ चम्मच ( ५ - ५ मि.ली.) सुबह-शाम लें |

रक्त बढ़ाने हेतु
१] रजत मालती : १ गोली सुबह खाली पेट दूध से लें |
२] द्राक्षावलेह : १ – १ चम्मच ( १० – १० ग्राम ) सुबह-शाम लें |

(सुचना : उपरोक्त में से २ या ३ पोषक चीजों का एक साथ सेवन कर सकते हैं |)

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१८ से

लक्ष्मीप्राप्ति व घर में सुख-शांति हेतु


  •      ‘परमात्मा मेरे आत्मा हैं | ॐ आनंद, ॐ शांति, ॐ माधुर्य....|’ -  घर में अन्न की कमी हो तो ऐसा चिंतन करके जौ का ध्यान करें, अन्न की कमी सदा के लिए मिट जायेगी | - पूज्य बापूजी
  •          घर में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिए | ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या अनिष्ट होता है | (वराह पुराण :१८६.३७)


ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१८ से

उत्तम स्वास्थ्य हेतु निद्रा – संबंधी ध्यान देने योग्य जरूरी बातें


क्या करें
१] आयु –आरोग्य संवर्धन हेतु उचित समय पर, उचित मात्रा में नींद लेना जरूरी है |
२] रात को ढीले वस्त्र पहन के बायीं करवट सोयें |
३] अनिद्रा हो तो सिर पर आँवला-भृंगराज केश तेल व शरीर पर तिल की एवं पैरों के तलवों पर घी की मालिश करें |
४] सोने से पहले शास्त्राध्ययन या सत्संग श्रवण कर कुछ देर ॐकार का दीर्घ उच्चारण करें, फिर श्वासोच्छ्वास के साथ भगवन्नाम की गिनती करते हुए सोयें तो नींद भी उपासना हो जायेगी |

क्या न करें
१] हाथ-पैर सिकोड़कर, पैरों के पंजो की आँटी (क्रॉस) करके, सिर के पीछे या ऊपर हाथ रखकर तथा पेट के बल नहीं सोना चाहिए |
२] रात को पैर गीले रख के नही सोना चाहिए |
३] देर रात तक जागरण से शरीर में धातुओं का शोषण होता हैं व शरीर दुर्बल होता है |
४] दिन में शयन करने से शरीर में बल का क्षय हो जाता है | स्थूल, कफ प्रकृतिवाले व कफजन्य व्याधियों से पीड़ित व्यक्तियों को सभी ऋतुओं में दिन की निद्रा अत्यंत हानिकारक है |


आँवला – भृंगराज केश तेल संत श्री आशारामजी आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है |

ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१८ से