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Saturday, December 15, 2018

गोदुग्ध को अमृत क्यों कहा जाता है ?



महाभारत में यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा : “अमृतं किंस्विद ? (अमृत क्या है ?)” तब युधिष्ठिर ने कहा : “सोमो गवामृतम् | (गौ का दूध अमृत हैं |)

आयुर्वेद में आता है कि देशी गाय का दूध मधुर रसयुक्त, स्निग्ध, शीतल, शरीर की वृद्धि करनेवाला तथा बल, वीर्य व बुद्धि वर्धक, मन को प्रसन्न करनेवाला, जीवनीय तथा खाँसी (कफजन्य खाँसी को छोडकर ) एवं थकान को मिटानेवाला है |

जिन्हें हमारे महाभारत जैसे धर्म-शास्त्रों एवं आयुर्वेद के स्वास्थ्य-शास्त्रों की सच्ची बात भी सीधे स्वीकार नहीं होती, वे आधुनिक वैज्ञानिकों की उद्घोषणा से ही जागृत हों | हार्वर्ड चिकित्सा-विद्यालय के प्रो. एम्. जे. रोसेनो ने गहन अध्ययन एवं अनुसंधान के बाद घोषणा की है कि ‘गाय का दूध ही एकमात्र ऐसा पदार्ध है जो सब पौष्टिक द्रव्यों से परिपूर्ण है, जिसे हम सम्पूर्ण भोजन कह सकते हैं |’

विभिन्न रोग-बीमारियों में पथ्य
देशी गोदुग्ध अमूल्य औषधि है | आयुर्वेद के अनुसार यह रक्तपित्तशामक एवं टूटी हुई हड्डियों को जोड़नेवाला है | यह सभीके लिए सात्म्य (अनुकूल), दोषशामक, प्यासशामक, जठराग्निवर्धक एवं दुर्बल और टी. बी. के रोगियों के लिए हितकारी है | योनिरोग, शुक्ररोग, कब्ज आदि रोगों में पथ्य व हितकर है | खून की कमी, अम्लपित्त, सुखा रोग, पेट के रोग, पुराना बुखार, जलन, सूजन आदि में विशेषरूप से पथ्य है | यह वात-पित्तजन्य रोगों में भी पथ्य है |

ओजवर्धक
चरक संहिता के अनुसार देशी गोदुग्ध में मधुर, शीतल, मृदु, स्निग्ध आदि जो १० गुण हैं, ओज के भी वे ही १० गुण हैं इसलिए दूध ओजवर्धक है | यह रसायन भी है | जीवनीय पदार्थो में दूध को अधिक श्रेष्ठ कहा गया है |

ओजवृद्धि से आयुष्य एवं आरोग्य उत्तम रहते हैं | ओज को ही प्रकृतिरक्षिणी शक्ति, आरोग्य-संरक्षिणी शक्ति कहा जाता है |

लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से

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