इस आसन के अभ्यास से मयूरासन और
पद्मासन – दोनों से होनेवाले लाभ मिलते हैं इसलिए इसे ‘मयूरपद्मासन’ या
‘पद्ममयूरासन’ कहते हैं |
लाभ : १] इसके अभ्यास से चेहरे का
तेज बढ़ता है | ब्रह्मचर्य – पालन में सहायता मिलती है |
२] शरीर के जहरीले तत्त्व नष्ट हो
जाते हैं |
३] फेफड़े, तिल्ली, यकृत, गुर्दे,
अग्नाशय आदि सभी अंग सुचारुरूप से कार्य करते हैं |
विधि : पद्मासन लगाकर (बायें पैर को
मोडकर दायी जंघा तथा दायें पैर को मोड़ के बायीं जंघा पर रखें ) जमीन पर घुटनों के
बल खड़े हो जायें | दोनों हाथों के बीच चार अंगुल का अंतर रखते हुए हाथों को
कोहनियों से मोडकर नाभि के आसपास पेट के कोमल भाग पर रखें तथा श्वास बाहर ही रोके
रखते हुए यथासम्भव इस अवस्था में रहें | फिर धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पुन: मूल
स्थिति में आयें | इस आसन को ३ से ५ बार करें |
सावधानियाँ :
v यह आसन अल्सर, उच्च रक्तचाप (hypertension), आंत्र टी. बी., आंत्रवृद्धि (Hernia), यकृत व तिल्ली वृद्धि एवं ह्रदय के रोगी तथा गर्भवती महिलाएँ न करें |
v यह आसन करने के बाद सिर के बल किये जानेवाले किसी भी आसन का
अभ्यास नही करना चाहिए क्योंकि इस आसन में शुद्धिकरण के परिणामस्वरूप रक्त से
विषाक्त तत्त्व अधिक मात्रा में निकलते हैं जो मस्तिष्क में प्रवेश कर सकते हैं |
लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से
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