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Tuesday, July 26, 2016

अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन मिटाने का मंत्र -

अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन साधक की शक्ति को निगल जाते हैं | इनको मिटाने के लिए एक सुंदर मंत्र योगी गोरखनाथजी ने बताया है | इसमें कोई विधि – विधान नहीं है | रात को सोते समय इस मंत्र का जप करो, संख्या का कोई आग्रह नहीं है | इस मंत्र से आपके चित्त की चिंता, तनाव, खिंचाव, दिक्कतें जल्दी शांत हो जायेगी और साधन – भजन में बरकत आयेगी | मंत्र उच्चारण में थोडा कठिन जैसा लगेगा लेकिन याद रह जाने पर आसान हो जायेगा | बाहर के रोग तो बाहर की औषधि से मिट सकते हैं लेकिन भीतर के रोग बाहर की औषधि से नहीं मिटेंगे और इस मंत्र से टिकेंगे नहीं | 

हमारी जो जीवनधारा है, जीवनीशक्ति है, चित्तशक्ति है उसीको उद्देश्य करके यह मंत्र है :

ॐ चित्तात्मिकां महाचित्तिं
चित्तस्वरूपिणीं आराधयामि
चित्तजान रोगान शमय शमय
ठं ठं ठं स्वाहा  ठं ठं ठं स्वाहा |

‘हे चित्तात्मिका, महाचित्ति, चित्तस्वरूपिणी ! मैं तेरी आराधना करता हूँ | जगत – शक्तिदात्री भगवती ! मेरे चित्त के रोगों का तू शमन कर |’

‘ठं’ बीजमंत्र है, यह बड़ा प्रभाव करता है | किसीमें लोभ, किसीमें मोह, किसीमें शराब पीने का, किसीमें अहंकार का, किसीमें शेखी बधारने का दोष होता है | चित्त में दोष भरे है इसलिए तो चिंता, भय, क्रोध, अशांति है और जन्म – मरण होता है |

इसके जप से आद्यशक्ति चेतना चित्त के दोषों को दूर कर देती है, चित्त को निर्मल कर देती है | सीधे लेट गये, यह जप किया | जब तक निद्रा न आये तब तक इसका प्रयोग करें | निद्रा आने पर अपने – आप ही छूट जायेगा | रात को जप करके सोने से सुबह तुम स्वस्थ, निर्भय, प्रसन्न होकर उठोगे |

भगवान के मंत्र हों और भगवान को अपना मानकर प्रीतिपूर्वक जप करें तो चित्त भगवदाकार होकर भगवदरस से पावन हो जाता है | भगवदरस के बिना नीरसता नहीं जाती |



-          स्रोत – ऋषि प्रसाद –जुलाई २०१६ से      

वायुनाशक श्रेष्ठ रसायन – हिंगादि हरड़ चूर्ण



गैस, अम्लपित्त, कब्जियत, अफरा, सिरदर्द, अपच, अरुचि, मंदाग्नि एवं पेट के अन्य छोटे – मोटे असंख्य रोगों के अलावा खाँसी, संधिवात, ह्रदयरोग, सर्दी, कफ तथा स्रियों के मासिक धर्म की पीड़ा में लाभप्रद  है |  



-          स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जुलाई – २०१६ से 

कफ एवं उदररोग नाशक - गोझरण वटी


कफ एवं वायु के रोग, यकृत व पेट के रोग, गैस, मंदाग्नि, घुटनों व बदन का दर्द, अजीर्ण, अफरा, संग्रहणी, पीलिया, बहुमुत्रता, जोड़ों का दर्द, गठिया, पेट के कृमि आदि में उपयोगी |



-          स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जुलाई – २०१६ से 

वायुनाशक, शूलशामक - रामबाण बूटी



यह बूटी पेट के विकार जैसे – अफरा, अजीर्ण, मंदाग्नि, पेटदर्द, कब्जियत आदि में अत्यंत लाभदायी है |



-          स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जुलाई – २०१६ से 

उत्तम स्वास्थ्य के लिए वरदान – हरड़ रसायन गोली

यह त्रिदोषशामक व शरीर को शुद्ध करनेवाला उत्तम रसायन योग है | इसको चूसकर खाने से भूख खुलती है | 

इसके सेवन से अजीर्ण, अम्लपित्त, संग्रहणी, पेटदर्द, अफरा, कब्ज आदि पेट के विकार दूर होते हैं | छाती व पेट में संचित कफ नष्ट होता है, अत: दमा, खाँसी व गले के विविध रोगों में भी लाभ होता है | 

इसके नियमित सेवन से बवासीर, आमवात, वातरक्त ( Gout ),  कमरदर्द, जीर्णज्वर, गुर्दे के रोग, पीलिया, रक्त की कमी व यकृत (लीवर ) के विकारों में लाभ होता है | यह ह्रदय के लिए बलदायक व श्रमहर है |




-            स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जुलाई – २०१६ से 

जायफल

जायफल रूचि उत्पन्न करनेवाला, जठराग्नि – प्रदीपक तथा कफ और वायु का शमन करनेवाला है | जायफल जितना वयस्कों के लिए हितकर है, उतना ही बालकों के लिए भी हितकर है | यह ह्रदयरोग, दस्त, खाँसी, उलटी, जुकाम आदि में लाभदायी है |

यूनानी मतानुसार जायफल पेशाब लानेवाले, दुग्धवर्धक, नींद लानेवाले, पाचक व पौष्टिक होते हैं | वजन में हलके, पोले और रूखे जायफल कनिष्ठ और बड़े, चिकने व भारी जायफल श्रेष्ठ माने जाते हैं |
औषधीय प्रयोग

वात – रोग : १ भाग जायफल चूर्ण तथा २ भाग अश्वगंधा चूर्ण को मिलाकर रख लें | ३ ग्राम मिश्रण प्रतिदिन दूध के साथ लेने से वात – रोगों में लाभ होता है एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |

बच्चों के दस्त : जायफल व सौंठ को गाय के दूध में घिस के बच्चों को चटाने से जुकाम से होनेवाले दस्त बंद होते है |

अनिद्रा : जायफल चूर्ण को पानी के साथ लेने से अच्छी नींद आती है |

मंदाग्नि : जायफल चूर्ण शहद के साथ लेने से मंदाग्नि दूर होती है व ह्रदय को बल मिलता है |

मूँह की दुर्गंध : जायफल के टुकड़े को चूसने से दुर्गंध दूर होती है |

मात्रा : आधा से २ ग्राम जायफल चूर्ण |

सावधानी : जायफल बार – बार अधिक मात्रा में लेने से वीर्य पतला हो जाता है, फलत: पौरुषहीनता आती है | जायफल का प्रयोग बुखार, दाह व उच्च रक्तचाप में न करें |


-          स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – जुलाई – २०१६ से 

Wednesday, July 13, 2016

चतुर्मास में बिल्वपत्र की महत्ता

चतुर्मास में शीत जलवायु के कारण वातदोष प्रकुपित हो जाता है । अम्लीय जल से पित्त भी धीरे - धीरे संचित होने लगता है । हवा की आर्द्रता (नमी) जठराग्नि को मंद कर देती है । सूर्यकिरणों की कमी से जलवायु दूषित हो जाते हैं । यह परिस्थिति अनेक व्याधियों को आमंत्रित करती है । इसलिए इन दिनों में व्रत उपवास व होम-हवनादि को हिन्दू संस्कृति ने विशेष महत्त्व दिया है । इन दिनों में भगवान शिवजी की पूजा में प्रयुक्त होने वाले बिल्वपत्र धार्मिक लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करते हैं ।

बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं । इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं । चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है ।

बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं । ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं । शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं । इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है । बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं । इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है ।

बिल्वपत्र के प्रयोगः

१.      बेल के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है ।

२.      पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से इन दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों में लाभ होता है ।

३.       बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है। बेल के पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है ।

४.      बरसात में आँख आने की बीमारी (Conjuctivitis) होने लगती है। बेल के पत्ते पीसकर आँखों पर लेप करने से एवं पत्तों का रस आँखों में डालने से आँखें ठीक हो जाती है ।

५.       कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना पर्याप्त है ।

६.      एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते हैं ।

७.      संधिवात में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है ।

८.      बेलपत्र पानी में डालकर स्नान करने से वायु का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है ।

९.      बेलपत्र का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है ।

१०. पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है ।

११. स्त्रियों के अधिक मासिक स्राव व श्वेतस्राव (Leucorrhoea) में बेलपत्र एवं जीरा पीसकर दूध में मिलाकर पीना खूब लाभदायी है। यह प्रयोग पुरुषों में होने वाले धातुस्राव को भी रोकता है ।

१२. तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में ताड़ासन व पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है। नाटे ठिंगने बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वादरूप है ।

१३. मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का चूर्ण खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है ।

बिल्वपत्र की रस की मात्राः 10 से 20 मि.ली.

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जुलाई-अगस्त २००९

Tuesday, July 5, 2016

इन तिथियों का लाभ लेना न भूलें

१० जुलाई : रविवारी सप्तमी ( दोपहर ३ – ०९ से ११ जुलाई सूर्योदय तक )

१५ जुलाई : चतुर्मास व्रतारम्भ

१९ जुलाई : गुरुपूर्णिमा, संन्यासी चतुर्मासारम्भ, ऋषिप्रसाद जयंती  

२७ जुलाई : बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से दोपहर ३ – ३३ तक )

३० जुलाई : कामिका एकादशी ( व्रत व रात्रि – जागरण करनेवाला मनुष्य न तो कभी भयंकर यमराज का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है | व्रत से सम्पूर्ण पृथ्वी के दान के समान फल मिलता है | यह एकादशी सब पातकों को हरनेवाली है तथा इसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है | )

१० अगस्त : बुधवारी अष्टमी ( सुबह १० – ३९ से ११ अगस्त सूर्योदय तक )

१४ अगस्त : पुत्रदा एकादशी ( व्रत से मनोवांछित फल प्राप्त होता है | इसका माहात्म्य सुनने से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्ग की गति को प्राप्त होता है | )

१६ अगस्त : विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : दोपहर १२ -१५ से शाम ६ – ४१ तक )  इस दिन किये गये जप-ध्यान व पुण्यकर्म का फल लाख गुना होता है | - पद्मपुराण

१८ अगस्त : नारियली पूर्णिमा, रक्षाबंधन ( श्रावणी पूर्णिमा पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है | इसे वर्ष में एक बार धारण करने से मनुष्य वर्षभर रक्षित हो जाता है | - भविष्य पुराण )


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

दुर्गति से रक्षा हेतु

मरणासन्न व्यक्ति के सिरहाने गीताजी रखें | दाह – संस्कार के समय ग्रन्थ को गंगाजी में बहा दें, जलायें नहीं | 

मृतक के अग्नि – संस्कार की शुरुआत तुलसी की लकड़ियों से करें अथवा उसके शरीर पर थोड़ी – सी तुलसी की लकडियाँ बिछा दें, इससे दुर्गति से रक्षा होती है |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

क्रोध आये तो –

क्रोध दूर करने का एक सरल प्रयोग भी है , जो पूज्य बापूजी सत्संग में बताते हैं : 

‘क्रोध आये तो मुट्ठियाँ बंद कर लो | दोनों हाथों की मुट्टियाँ ऐसे बंद करें कि नखों के दबाव से हथेलियाँ दबें | इससे क्रोध दूर होने में मदद मिलेगी |’




स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

निर्मलम ( Hand Wash )



इसका प्रतिदिन इस्तेमाल आपके हाथों की कीटाणुओं से सुरक्षा करता है और उन्हें स्वस्थ, स्वच्छ व तरोताजा रखने में मदद करता है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

संधिशूलहर ( जोड़ों के दर्द की दवा )


इससे जोड़ों व कमर का दर्द ठीक होता है | हड्डियाँ व नसें मजबूत बनती हैं | 

यह गठिया, मधुमेह, सायटिका व मोटापे में भी लाभदायी है |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

शरीर को पुन: यौवन देनेवाला : पुनर्नवा अर्क

पुनर्नवा शरीर के कोशों को नया जीवन प्रदान करनेवाली श्रेष्ठ रसायन – औषधि है | यह अर्क शरीर की शुद्धि करता है, जिससे गुर्दे ( किडनी ), यकृत ( लीवर ), ह्रदय आदि अंगो की कार्यशीलता बढ़ती है तथा युवावस्था दीर्घकाल तक बनी रहती है |

यह गुर्दे व यकृत के समस्त रोग, पेट के रोग, सूजन, रक्ताल्पता, पीलिया, आमवात, संधिवात, बवासीर, भगंदर, दमा, खाँसी, गुर्दे व पित्ताशय की पथरी, मधुमेह, स्त्रीरोग, त्वचा-विकार, ह्रदयरोग व नेत्र-विकारों में बहुत लाभदायी है |


पुनर्नवा मूल ( टेबलेट )

पुनर्नवा मूल गोली सुजन को नष्ट करती है | 

यह ह्रदयरोग व गुर्दे के विकारों – पथरी, किडनी फेल्यर ( Chronic renal failure), सूजन आदि में विशेष लाभदायी है | पुनर्नवा यकृत ( लीवर ) का कार्य सुधारकर रक्त की वृद्धि करती है |





स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

विविध रोगनाशक रसायन – पुनर्नवा

पुनर्नवा श्रेष्ठ गुणकारी, बलप्रद ( टॉनिक ), धातु – पोषक एवं रोगनाशक औषधि है | यह हिंदी में लाल पुनर्नवा, सांठ, गुजराती में साटोडी, मराठी में घेटुली तथा अंग्रेजी में केसुशशव और Horse – purslane नाम से जानी जाती हैं |

पुनर्नवा यकृत ( लीवर ) का कार्य सुधारकर रक्त की वृद्धि व शुद्धि करती है | शरीर की सूजन उतारती है, भूख बढ़ाती है | यह आँखों के लिए भी बहुत हितकारी है | गुर्दे ( किडनी ) की खराबी तथा मूत्रगत तकलीफों में पुनर्नवा विशेष असरकारक है |

मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मुत्र्रोगों ( विशेषकर मुत्राल्पता ). ह्रदयरोगों, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है |

पुनर्नवा का रसायन – कार्य : पुनर्नवा शरीर में संचित मलों को मल – मूत्र आदि द्वारा बाहर निकाल के शरीर के पोषण का मार्ग खुला कर देती है |

रसायन – प्रयोग : 
१) पुनर्नवा के ताजे पत्तों के १५ – २० मि. ली. रस में एक चुटकी काली मिर्च व थोडा-सा शहद मिलाकर  लें  |

२)     ताज़ी पुनर्नवा की २० ग्राम जड़ पीस के दूध के साथ एक वर्ष तक लेने से जीर्ण शरीर भी नया हो जाता है | ताज़ी पुनर्नवा उपलब्ध न होने पर ५ ग्राम पुनर्नवा चूर्ण का उपयोग कर सकते हैं |

विविध रोगनाशक प्रयोग : पुनर्नवा के पंचांग या मूल का ३ ग्राम चूर्ण शहद या गुनगुने पानी से सुबह – शाम लें | यह सूजन, मुत्राल्पता, ह्रदय – विकार आदि विविध रोगों में अत्यंत लाभकारी है |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

घुटने के दर्द का इलाज



१)     १०० ग्राम तिल को मिक्सी में पीस लो और उसमें १० ग्राम सोंठ डालो | ५ – ७ ग्राम रोज फाँको |

२)     अरंडी के तेल में लहसुन ( ३ -४ कलियाँ ) टुकड़ा करके डाल के गर्म करो | लहसुन तल जाय तो उतारकर छान के रखो | घुटनों के दर्द में इस तेल से मालिश करो |
     
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

वर्षा ऋतू में सेहत की देखभाल

वर्षा ऋतू में रोग, मंदाग्नि, वायुप्रकोप, पित्तप्रकोप का बाहुल्य होता है | ८० प्रकार के वायुसंबंधी व ३२ प्रकार के पित्तसंबंधी रोग होते हैं | वात और पित्त जुड़ता है तो ह्रदयाघात ( हार्ट – अटैक ) होता है और दूसरी कई बीमारियाँ बनती हैं | इनका नियंत्रण करने के लिए बहुत सारी दवाइयों की जरूरत नहीं है  | 

समान  मात्रा में हरड व आँवला, थोड़ी – सी सोंठ एवं मिश्री का मिश्रण बनाकर घर में रख लो | 

आश्रम के आँवला चूर्ण में मिश्री तो है ही | आँवला, मिश्री दोनों पित्तशामक हैं | सोंठ वायुशामक है और हरड पाचन बढ़ानेवाली है | 

अगर वायु और पित्त है तो यह मिश्रण लो और अकेला वायुप्रकोप है तो हरड में थोडा सेंधा नमक मिलाकर लो अथवा हरड घी में भूनकर लो |

जो वर्षा ऋतू में रात को देर से सोयेंगे उनको पित्तदोष पकड़ेगा | इन दिनों में रात्रि जल्दी सोना चाहिए, भोजन सुपाच्य लेना चाहिए और बादाम, काजू, पिस्ता, रसगुल्ले, मावा, रबड़ी दुश्मन को भी नहीं खिलाना, बीमारी लायेंगे |

पाचन कमजोर है, पेट के खराबियाँ हैं तो ३० ग्राम तुलसी- बीज जरा कूट दो, फिर उसमें १० - १०  ग्राम शहद व अदरक का रस मिला दो | आधा – आधा ग्राम की गोलियाँ बना लो | ये दो गोली सुबह ले लो तो कैसा भी कमजोर व्यक्ति हो, भूख नहीं लगती हो, पेट में कृमि की शिकायत हो, अम्लपित्त ( एसिडिटी ) हो, सब गायब ! 
बुढ़ापे को रोकने में और स्वास्थ्य की रक्षा करने में तुलसी के बीज की बराबरी की दूसरी चीज हमने नहीं देखी |
रविवार को मत लेना बस |

जिसको पेशाब रुकने की तकलीफ है वह जौ के आटे की रोटी अथवा मूली खाये, अपने – आप तकलीफ दूर हो जायेगी | 

स्वस्थ रहने के लिए सूर्य की कोमल किरणों में स्नान सभी ऋतूओं में हितकारी है | 

अश्विनी मुद्रा वर्षा ऋतू की बीमारियों को भगाने के लिए एक सुंदर युक्ति है | 

( विधि : सुबह खाली पेट शवासन में लेट जायें | पूरा श्वास बाहर फेंक दें और ३० – ४० बार गुदाद्वार का आकुंचन – प्रसरण करें, जैसे घोड़ा लीद छोड़ते समय करता है | इस प्रक्रिया को ४ – ५ बार दुहरायें | )

बड़ी उम्र में, बुढ़ापे में आम स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं लेकिन जो कलमी आम हैं वे देर से पचते हैं और थोडा वायु करते हैं | लेकिन गुठली से जो पेड़ पैदा होता है उसके आम ( रेशेवाले ) वायु – नाश करते हैं, जल्दी पचते हैं और बड़ी उम्रवालों के लिए अमृत का काम करते हैं | कलमी आम की अपेक्षा गुठली से पैदा हुए पेड़ के आम मिलें तो दुगने भाव में लेना भी अच्छा है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से 

बच्चे – बच्चियों को नींद से उठाने की मधुमय युक्ति

बच्चों को यंत्र के बल से मत जगाओ | अलार्म की ध्वनि अथवा ‘ऐ उठो, उठो, ६ बज गये, ५ बज गये, ७ बज गये ....’ खटखट करके उठाने से ये बच्चे आपके लिए दुःखदायी हो जायेंगे | सुबह बच्चों को उठाओ तो कैसे उठाओ ? पहले आप शांत हो जाओ, आप प्रकाश में आ जाओ, अमृतमय ईश्वर में आ जाओ | बच्चों की गहराई में जो परमेश्वर है वह मोहन है, गोविंद है, गोपाल है, राधारमण है | ‘राधा’, उलटा दो तो ‘धारा’, वृत्ति की धारा उलटा दो | धारा के द्वारा वह चैतन्य ही तो उल्लसित हो रहा है | बच्चों में भी गहराई में परमात्मा की भावना करो, फिर बोलो :

जागो मोहन प्यारे, जागो नंददुलारे |
जागो गोविंद प्यारे, जागो हरि के दुलारे ||
जागो लाला प्यारे, लाली दुलारी ......

बच्चे – बच्चियाँ उस परमात्मा की स्मृति से मधुमय हो जायेंगे तो तुम्हारे लिए भी सुखद होंगे और समाज के लिए भी |

सामूहिक रूप से लोगों को जगाना हो तो कहें :

जागो लोगो ! मत सुओ, न करो नींद से प्यार |
जैसा सपना रैन का, वैसा ये संसार ||
श्रीराम जय राम जय जय राम |
गोविन्द हरे गोपाल हरे, जय जय प्रभु दीनदयाल हरे |
सुखधाम हरे आत्माराम हरे, जय जय प्रभु दीनदयाल हरे ||




स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१६ से