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Wednesday, August 29, 2018

विविध रोगों में लाभदायी आसान प्रयोग


१] अम्लपित्त (hyper-acidity) :
·       १-१ चम्मच गुलकंद सुबह-शाम भोजन के पहले सेवन करें |
·       १-१ चम्मच आँवला रस या चूर्ण सुबह-शाम भोजन के पहले लेना हितकारी है |

२] हाथ-पैरों व पेशाब की जलन :
·       सुबह खाली पेट १-१ चम्मच शतावरी चूर्ण दूध से लें |
·       भोजन के पहले आधा चम्मच आँवला चूर्ण अथवा १-१ चम्मच आँवला रस दिन में २ बार सेवन करें |

३] नींद नहीं आना :
रात को सोते समय ३-४ चम्मच शंखपुष्पी सिरप व सुबह – शाम १-१ चम्मच गुलकंद का सेवन करना लाभदायी है |

४] भूख की कमी :
२-२ चम्मच घृतकुमारी रस (Aloe vera juice) सुबह – शाम खाली पेट लेना लाभदायी है |

५] सिरदर्द : देशी गाय के शुद्ध घी की २-२ बूँदे सुबह – शाम नाक में डालने से लाभ होता है |

६] खुजली, लाल चकत्ते व फुंसियाँ :
४-४ चम्मच नीम अर्क आधा कप पानी में मिला के सुबह – शाम खाली पेट लें |


(उपरोक्त सभी औषधियाँ संत श्री आशारामजी आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |


लोककल्याण सेतु – अगस्त २०१८ से  


गर्मीनाशक व शीतलताप्रदायक – धनिया



भोज्य पदार्थो में हरा धनिया डालने से भोजन रुचिकर होने के साथ अनेक गुणों से युक्त हो जाता है | सूखे धनिये का उपयोग मसाले के रूप में भी किया जाता है |

धनिया पेशाब खुल के लानेवाला, भूखवर्धक, पाचक, मल बाँधकर लानेवाला, जलन कम करनेवाला एवं प्यास-शामक है |

धनिया में विटामिन ‘ए’ व ‘के’ तथा कैल्शियम, लौह तत्त्व, मैग्नेशियम, पोटैशियम, रेशे आदि की अच्छी मात्रा होती है | यह आँखों के रोग, उलटी आदि में लाभदायी है |

औषधीय प्रयोग
१] कोलेस्ट्रॉल : रक्त में  कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने पर खड़े धनिये का सेवन लाभकारी है | २ चम्मच खड़ा धनिया एक गिलास पानी में उबालकर छान के दिन में २ बार लेने से लाभ होता है |
२] पेशाब की जलन : १-१ चम्मच धनिया व मिश्री मिला के पानी के साथ दिन में दो बार लेना लाभदायी है |
३] अम्लपित्त (hyper-acidity) : प्रात:काल आधा से १ चम्मच धनिये के चूर्ण को पानी के साथ सेवन करने या १ चम्मच चूर्ण को मुख में डालकर धीरे-धीरे चूसते हुए रस को निगलने से लाभ होता है |

धनिये का पानक

हरे धनिये की पत्तियों को पीसकर रस निकाल के छान लें | इसमें आवश्कतानुसार मिश्री व पानी मिला के इसे मिट्टी के पात्र में आधा से पौना घंटा रखें | तत्पश्चात जरूरत के अनुसार सेवन करें | यह पानक पित्तप्रकोपजन्य बीमारियों में अत्यंत लाभदायी है |


   लोककल्याण सेतु – अगस्त २०१८ से

Thursday, August 16, 2018

पुण्यदायी तिथियाँ



२२ अगस्त : पुत्रदा एकादशी (व्रत से मनोवांछित फलप्राप्ति )

२६ अगस्त : रक्षाबंधन (इस दिन धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कायों का विनाशक है | इसे वर्ष में एक बार धारण करने से मनुष्य वर्षभर रक्षित हो जाता है | - भविष्य पुराण )



२ सितम्बर :  रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से रात्रि ८.४७ तक )


३ सितम्बर : जन्माष्टमी (भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी इसका व्रत करता है वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है |)



६ सितम्बर : अजा एकादशी ( समस्त पापनाशक व्रत, माहात्म्य पढ़ने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल ), गुरुपुष्पामृत योग (दोपहर ३-१४ से ७ सितम्बर सूर्योदय तक )  

१२ सितम्बर : चतुर्थी ( चन्द्र-दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त: रात्रि ८-५९ )


१३ सितम्बर :  गणेश-कलंक चतुर्थी ( चन्द्र-दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त : रात्रि ९-४२ तक ) (‘ॐ गं गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दुर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है |)



१६ सितम्बर : रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से ३-५५ तक )

१७ सितम्बर : षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल : सुबह ६-४८ से दोपहर १-१२ तक )

२० सितम्बर :  पद्मा एकादशी ( व्रत करने व माहात्म्य पढ़ने-सुनने से सब पापों से मुक्ति ) 

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

पाचनशक्ति बढ़ाने की सरल कुंजी


एक गिलास पानी में थोड़ी – सी सोंठ डाल के उबालें | पानी आधा हो जाय फिर वह पियेंगे तो पाचनशक्ति व रोगप्रतिकारक शक्ति ठीक रहेगी | शुद्ध च्यवनप्राश मिले तो उसका एक चम्मच सेवन करने से भी पाचनशक्ति की मजबूती और बढ़ोत्तरी में फायदा होगा |

(च्यवनप्राश व आँवला चूर्ण आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपबल्ध हैं | )

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

सौ गुना फलदायी “शिवा चतुर्थी”- (१३ सितम्बर )


भविष्य पुराण के अनुसार ‘भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का नाम ‘शिवा’ है | इस दिन किये गये स्नान, दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म सौ गुना हो जाते हैं |

इस दिन जो स्री अपने सास-ससुर को गुड़ के तथा नमकीन पूए खिलाती है वह सौभाग्यवती होती है | पति की कामना करनेवाली कन्या को विशेषरूप से यह व्रत करना चाहिए |’

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

उत्तम स्वास्थ्य हेतु कब व कितना पियें पानी ? (भाग-२)

दिखने में तो पानी वही–का-वही होता है पर अलग-अलग अवस्थाओं में, भिन्न –भिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने पर उसके गुण-धर्म बदल जाते हैं | इस बात का ध्यान रखें तो पानी से हम औषधि का काम ले सकते हैं |

शीतल जल : उलटी, थकान, चक्कर, प्यास, गर्मी, जलन, रक्तपित्त, मूर्च्छा, मदात्यय (अति मद्यपान से उत्पन्न शारीरिक विकार) तथा विष-विकार में मिट्टी के मटके के शीतल जल का सेवन हितकारी होता है | ग्रीष्म व शरद ऋतु में शीतल जल का सेवन करना लाभदायी है |

फ्रीज का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है | इससे दाँतों व मसूड़ों की कमजोरी, गले के विकार, टॉन्सिल्स की सूजन, सर्दी-जुकाम आदि का शिकार होने की सम्भावनाएँ बहुत बढ़ती हैं |

गर्म (गुनगुना) जल : बारिश व ठंड के मौसम में तथा हिचकी, पेट फूलना, वायु व कफ के कारण होनेवाली बीमारियाँ, नया बुखार, सर्दी, खाँसी, दमा, अजीर्ण, बगल का दर्द (पार्श्वशूल ) –इन अवस्थाओं में गर्म जल (पीते समय गुनगुना) हितकारी होता है | यह जठराग्नि को बढ़ाता है और अन्न के पाचन में मदद करता है | उबालकर ठंडा किया गया पानी पचने में हलका होता है, उससे कफ नही बढ़ता | ऐसा जल पित्त की अधिकता से होनेवाले विकारों में भी हितकारी होता है |

प्रात:काल रात का रखा हुआ ६ अंजलि (लगभग २५० मि.ली. ) पानी गुनगुना करके पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है | जिसे भूख-प्यास कम लगती हो या अन्य कोई विशेष बीमारी हो वह यह प्रयोग वैद्यकीय सलहानुसार करें |

सिद्ध उष्णोदक : अग्नि पर खूब औटाये गये जल को ‘सिद्ध उष्णोदक’ कहते हैं | इससे कफ, आमदोष ( कच्चा रस ), वायुविकार व मोटापा नष्ट होता है | खाँसी, दमा व बुखार में भी राहत मिलती है | सिद्ध उष्णोदक के पान से मूत्राशय की शुद्धि होती है व जठराग्नि प्रदीप्त रहती है |

दिन का औटाया हुआ जल रात्रि में तथा रात का औटाया हुआ जल प्रात: तक भारी हो जाता है | अत: दिन का औटाया जल रात में और रात का औटाया दिन में नहीं पीना चाहिए |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से 

दुग्ध – सेवन संबंधी महत्त्वपूर्ण बातें


क्या करें
१)    रात्रि को दूध पीना पथ्य (हितकर), अनेक दोषों का शामक एवं नेत्रहितकर होता है |
२)    पीपरामूल, काली मिर्च, सोंठ – इनमें से एक या अधिक द्रव्य दूध के साथ लेने से वह सुपाच्य हो जाता है तथा इन द्रव्यों के औषधीय गुणों का भी लाभ प्राप्त होता है |
३)    उबले हुए गर्म दूध का सेवन वात-कफनाशक तथा औटाकर शीतल किया हुआ दूध पित्तशामक होता है |
४)    देशी गाय के दूध में देशी घी मिला के पीने से मेधाशक्ति बढ़ती है |

क्या न करें
१)    फल, तुलसी, अदरक, लहसुन, खट्टे एवं नमकयुक्त पदार्थों के साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए |
२)    नया बुखार, मंदाग्नि, कृमिरोग, त्वचारोग, दस्त, कफ के रोग आदि में दूध का सेवन न करें |
३)    दूध को ज्यादा उबालने से वह पचने में भारी हो जाता है |
४)    बासी, खट्टा, खराब स्वादवाला, फटा हुआ एवं खटाई पड़ा हुआ दूध भूल के भी नहीं पीना चाहिए |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

शरद ऋतु में कैसे करें स्वास्थ्य की रक्षा ?


(शरद ऋतु : २३ अगस्त से २२ अक्टूबर तक )

शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें :

१] रोगाणां शारदी माता | रोगों की माता है यह शरद ऋतु | वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है | इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी में उस पित्त का शमन किया जाता हैं |
इस मौसम में खीर खानी चाहिए | खीर को भोजनों में ‘रसराज’ कहा गया है | सीता माता जब अशोक वाटिका में नजरकैद थीं तो रावण का भेजा हुआ भोजन तो क्या खायेंगी, तब इंद्र देवता खीर भेजते थे और सीताजी वह खाती थी |

२] इस ऋतु में दूध, घी, चावल, लौकी, पेठा, अंगूर, किशमिश, काली द्राक्ष तथा मौसम के अनुसार फल आदि स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं | गुलकंद खाने से भी पित्तशामक शक्ति पैदा होती हैं | रात को (सोने से कम-से-कम घंटाभर पहले ) मीठा दूध घूँट – घूँट मुँह में बार-बार घूमाते हुए पियें | दिन में ७ – ८ गिलास पानी शरीर में जाय, यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है |

३] खट्टे, खारे, तीखे पदार्थ व भारी खुराक का त्याग करना बुद्धिमत्ता है | तली हुई चीजें, अचारवाली खुराक, रात को देरी से खाना अथवा बासी खुराक खाना और देरी से सोना स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि शरद ऋतु रोगों की माता है | कोई भी छोटा-मोटा रोग होगा तो इस ऋतु में भडकेगा इसलिए उसको बिठा दो |

४] शरद ऋतु में कड़वा रस बहुत उपयोगी है | कभी करेला चबा करेला चबा लिया, कभी नीम के १०-१२ पत्ते चबा लिये | यह कड़वा रस खाने में तो अच्छा नहीं लगता लेकिन भूख लगाता है और भोजन को पचा देता है |

५] पाचन ठीक करने का एक मंत्र भी है :

अगस्त्यं कुम्भकर्ण च शनिं च वडवानलम् |
आहारपरिपाकार्थ स्मरेद् भीमं च पंचमम्  ||

यह मंत्र पढ़ के पेट पर हाथ घुमाने से भी पाचनतंत्र ठीक रहता हैं |

६] बार-बार मुँह चलाना (खाना) ठीक नहीं, दिन में दो बार भोजन करें | और वह सात्त्विक व सुपाच्य हो | भोजन शांत व प्रसन्न होकर करें | भगवन्नाम से आप्लावित ( तर, नम ) निगाह डालकर भोजन को प्रसाद बना के खायें |

७] ५० साल के बाद स्वास्थ्य जरा नपा-तला रहता है, रोगप्रतिकारक शक्तिदबी रहती है | इस समय नमक, शक्कर और घी-तेल पाचन की स्थिति पर ध्यान देते हुए नपा-तुला खायें, थोडा भी ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |

८] कइयों की आँखें जलती होंगी, लाल हो जाती होंगी | कइयों को सिरदर्द होता होगा | तो एक –एक घूँट पानी मुँह में लेकर अंदर गरारा (कुल्ला) करता रहे और चाँदी का बर्तन मिले अथवा जो भी मिल जाय, उसमें पानी भर के आँख डुबा के पटपटाता जाय | मुँह में दुबारा पानी भर के फिर दूसरी आँख डूबा के ऐसा करे | फिर इसे कुछ बार दोहराये | इससे आँखों व सिर की गर्मी निकलेगी | सिरदर्द और आँखों की जलन में आराम होगा व नेत्रज्योति में वृद्धि होगी |

९] अगर स्वस्थ रहना है और सात्त्विक सुख लेना है तो सूर्योदय के पहले उठना न भूलें | आरोग्य और प्रसन्नता की कुंजी है सुबह-सुबह वायु-सेवन करना | सूरज की किरणें नही निकली हों और चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों उस समय वातावरण में सात्तिवकता का प्रभाव होता है | वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इस समय ओजोन वायु खूब मात्रा में होती है और वातावरण में ऋणायनों का प्रमाण अधिक होता है | वह स्वास्थ्यप्रद होती है | सुबह के समय की जो हवा है वह मरीज को भी थोड़ी सांत्वना देती है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

पौष्टिक व खनिज पदार्थों से भरपूर गोदुग्ध


हमारे भोजन को २ श्रेणियों में बाँटा जा सकता है :
    १)    वह जो शक्ति उत्पन्न करता है |
   २)    वह जो पोषक या आरोग्य का रक्षक है |

इन दोनों श्रेणियों के पदार्थों की सूचि में देशी गाय का दूध और इससे बनी चीजें सबसे पहले आती हैं | दूध में १०१ से अधिक तत्त्व पाये जाते हैं पर उन सभीको लेकर कृतिमरूप से दूध का निर्माण नही किया जा सकता | इसी कारण प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अन्य कोई वस्तु दूध का स्थान नहीं ले सकती |

निम्न सभी पोषक तत्त्व देशी गाय के मात्र १ गिलास (लगभग २५० मि.ली.) दूध से मिलते हैं :
१] मध्यम आकार के डेढ़ अंडों जितना प्रोटीन
२] ३०० ग्राम कच्चे पालक जितना कैल्शियम
३] १ छोटे केले से मिले उतना पोटैशियम
४] ४५ ग्राम बादाम जितना विटामिन बी -२
५] १२० ग्राम पत्तागोभी के समान विटामिन ए
६] १२० ग्राम मांस के समान विटामिन बी-१२

गोदुग्ध में विद्यमान तत्त्वों की विशेषताएँ
·    दूध के प्रोटीन बहुत ऊँचे दर्जे के होते हैं तथा ये अत्यंत सुगमता से पच जाते हैं | इसके पूर्ण प्रोटीन मांसपेशियों का निर्माण करते हैं, सामर्थ्य को बनाये रखते हैं और खोयी हुई शक्ति को पुन: प्राप्त करने में सहायक होते हैं | अत: ये युवाओं के शारीरिक, बौद्धिक विकास व सभी उम्र के लोगों के स्वास्थ्य को बनाये रखने में सहायक हैं |
·    इसमें पाया जानेवाला स्ट्रॉन्शियम रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है व हानिकारक विकिरणों से रक्षा करता है | सेरिब्रोसाइड्स मस्तिष्क एवं ज्ञानतंतुओं को पोषित करते हैं | ओमेगा -३ नाड़ियों में जमे कोलेस्ट्रॉल की सफाई करता है |
·    इसका वसा अत्यंत पाचक और ग्राह्य होता है |
·  इसके क्षार हड्डियों और दाँतों का निर्माण करते हैं व उन्हें मजबूत बनाये रखते हैं | ये अम्लपित्त निवारक व मूत्रकारक होते हैं | इसमें पाये जानेवाले चूने के क्षार विशेष सुगम शोषणीय हैं |
·    इसमें पाये जानेवाले एन्जाइम्स विषों, रोगोत्पादक विषों तथा सडन से उत्पन्न विषों का प्रतिरोध करते हैं | ये शरीर के ग्रंथिमंडलों (जिनके ऊपर मनुष्य की शक्ति, उत्साह और वर्ण अवलम्बित होते हैं ) के लिए सहायक हैं |

ब्रिटिश मेडिकल रिसर्च काउंसिल ने घोषित किया है कि ‘गाय का शुद्ध और ताजा दूध अन्य सभी आहारों की अपेक्षा हितकर और विश्वस्त पोषक तत्त्वों से भरा होता है और इसमें लाभदायक जीवाणु तथा स्वास्थ्यप्रद तत्त्व होते हैं |’

भावप्रकाश निघंटु के अनुसार बाल्यावस्था में दुग्धपान शरीर की वृद्धि करनेवाला, क्षीणता की अवस्था में क्षीणता का निवारण करनेवाला तथा वृद्धावस्था में शुक्र की रक्षा करनेवाला होता है |

दूध की उपयोगिता के बारे में जो कुछ कहा जाय वह कम ही होगा | कोई भी विज्ञान, कोई भी राष्ट्र अब तक ऐसा दूसरा नया आहार-तत्व नहीं तैयार कर पाया जो गोदुग्ध का स्थान ले सके | उत्तम स्वास्थ्य के इच्छुक हर व्यक्ति को देशी गाय के दूध का सेवन अवश्य करना चाहिए तथा गौ रक्षण-संवर्धन हेतु अपना कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए |

ध्यान दें : होल्सटीन, जर्सी आदि विदेशी पशुओं के दूध को गोदुग्ध मान के भूलकर भी न पियें | भैंस का दूध हानि नहीं करता पर यह हानि भी करता है |          

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से

मिथ्या कलंक से बचें


( गणेश / कलंक चतुर्थी पर विशेष )

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन निषिद्ध माना गया है | इसी दिन चन्द्र-दर्शन से भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का मिथ्या कलंक लगा था |

पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि एक दिन चन्द्रमा को अपने सौंदर्य का अभिमान हो गया और उनहोंने गजवदन गणेशजी का उपहास कर दिया | अपने तिरस्कार को ताड़कर गणेशजी ने शाप दिया कि “आज से तुम काले-कलंक से युक्त हो हो जाओ तथा जो भी आज के दिन तुम्हारा मुख देखेगा वह भी कलंक का पात्र होगा |” उस दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी थी |

चन्द्रमा के क्षमा-याचना करने पर गणपतिजी ने कहा: “आगे से तुम सूर्य से प्रकाश पाकर महीने में एक दिन पूर्णता को प्राप्त करोगे | मेरा शाप केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को विशेष रहेगा, बाकी चतुर्थियों पर इतना प्रभावी नहीं होगा | इस दिन जो मेरा पूजन करेगा उसका मिथ्या कलंक मिट जायेगा |”

चतुर्थी तिथि के स्वामी गणपति हैं | उपरोक्त प्रसंग से लेकर आज तक अनेक लोगों ने गणपतिजी के उस शाप के प्रभाव का अनुभव किया तथा निरंतर अनुसंधानगत प्रमाणों के कारण आम जनमानस ने भी इसे स्वीकार किया |

चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन के निषेध का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी एक ऐसी त्रिभुज कक्षा में रहते हैं जिससे प्राणशक्ति की विषमता रहती है अपितु उसमें मारक किरणों की भी सत्ता है | पृथ्वी की ओर सूर्य का एक बाजू ही सदैव नहीं रहता, पृथ्वी के भ्रमण के कारण वह प्रतिक्षण बदलता रहता है | यह दशा चन्द्र पिंड की भी है | प्राय: सब चतुर्थीयों को और खासकर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अपनी चौथी कला दर्शानेवाला चन्द्रमा सूर्य की मृत्यु-किरणवाले भाग से प्रकाशित होता है | हमारा मन चन्द्र से अनुप्राणित (प्रेरित) है | भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने से हमारा मन भी चन्द्रमा की विकृत तरंगों से तरंगित होगा व अशुभ फलप्राप्ति का निमित्त बनेगा | अत: इस दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है |

इस वर्ष  १२ सितम्बर (चन्द्रास्त : रात्रि ८.५९ बजे ) व १३ सितम्बर (चन्द्रास्त :रात्रि ९.४२ बजे )- दो दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है |

अनिच्छा से चन्द्र-दर्शन हो जाय तो ....

यदि भूल से भी चौथ का चन्द्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमदभागवत’ के १०वे स्कंध के ५६-५७ वे अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए |

निम्नलिखित मंत्र का २१,५४ या १०८ बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक कम होता है |

सिंह: प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हत: |
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक: ||

‘सुंदर, सुलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है अत: तुम रोओ मत | अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है |’ (ब्रह्मवैवर्त पुराण :७८.६२-६३ )

चौथ के चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है | दर्शन हो जाय तो उपरोक्त मंत्र-प्रयोग अथवा तृतीया (११ सितम्बर ) या पंचमी (१४ सितम्बर ) के चन्द्रमा का दर्शन कर लो और ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा वाचन या श्रवण करो | इससे अच्छी तरह कुप्रभाव मिटता है |      

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से