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Thursday, August 16, 2018

उत्तम स्वास्थ्य हेतु कब व कितना पियें पानी ? (भाग-२)

दिखने में तो पानी वही–का-वही होता है पर अलग-अलग अवस्थाओं में, भिन्न –भिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने पर उसके गुण-धर्म बदल जाते हैं | इस बात का ध्यान रखें तो पानी से हम औषधि का काम ले सकते हैं |

शीतल जल : उलटी, थकान, चक्कर, प्यास, गर्मी, जलन, रक्तपित्त, मूर्च्छा, मदात्यय (अति मद्यपान से उत्पन्न शारीरिक विकार) तथा विष-विकार में मिट्टी के मटके के शीतल जल का सेवन हितकारी होता है | ग्रीष्म व शरद ऋतु में शीतल जल का सेवन करना लाभदायी है |

फ्रीज का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है | इससे दाँतों व मसूड़ों की कमजोरी, गले के विकार, टॉन्सिल्स की सूजन, सर्दी-जुकाम आदि का शिकार होने की सम्भावनाएँ बहुत बढ़ती हैं |

गर्म (गुनगुना) जल : बारिश व ठंड के मौसम में तथा हिचकी, पेट फूलना, वायु व कफ के कारण होनेवाली बीमारियाँ, नया बुखार, सर्दी, खाँसी, दमा, अजीर्ण, बगल का दर्द (पार्श्वशूल ) –इन अवस्थाओं में गर्म जल (पीते समय गुनगुना) हितकारी होता है | यह जठराग्नि को बढ़ाता है और अन्न के पाचन में मदद करता है | उबालकर ठंडा किया गया पानी पचने में हलका होता है, उससे कफ नही बढ़ता | ऐसा जल पित्त की अधिकता से होनेवाले विकारों में भी हितकारी होता है |

प्रात:काल रात का रखा हुआ ६ अंजलि (लगभग २५० मि.ली. ) पानी गुनगुना करके पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है | जिसे भूख-प्यास कम लगती हो या अन्य कोई विशेष बीमारी हो वह यह प्रयोग वैद्यकीय सलहानुसार करें |

सिद्ध उष्णोदक : अग्नि पर खूब औटाये गये जल को ‘सिद्ध उष्णोदक’ कहते हैं | इससे कफ, आमदोष ( कच्चा रस ), वायुविकार व मोटापा नष्ट होता है | खाँसी, दमा व बुखार में भी राहत मिलती है | सिद्ध उष्णोदक के पान से मूत्राशय की शुद्धि होती है व जठराग्नि प्रदीप्त रहती है |

दिन का औटाया हुआ जल रात्रि में तथा रात का औटाया हुआ जल प्रात: तक भारी हो जाता है | अत: दिन का औटाया जल रात में और रात का औटाया दिन में नहीं पीना चाहिए |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से 

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