दिखने में तो पानी वही–का-वही
होता है पर अलग-अलग अवस्थाओं में, भिन्न –भिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने पर उसके
गुण-धर्म बदल जाते हैं | इस बात का ध्यान रखें तो पानी से हम औषधि का काम ले सकते
हैं |
शीतल जल : उलटी, थकान,
चक्कर, प्यास, गर्मी, जलन, रक्तपित्त, मूर्च्छा, मदात्यय (अति मद्यपान से उत्पन्न
शारीरिक विकार) तथा विष-विकार में मिट्टी के मटके के शीतल जल का सेवन हितकारी होता
है | ग्रीष्म व शरद ऋतु में शीतल जल का सेवन करना लाभदायी है |
फ्रीज का पानी स्वास्थ्य
के लिए हानिकारक है | इससे दाँतों व मसूड़ों की कमजोरी, गले के विकार, टॉन्सिल्स की
सूजन, सर्दी-जुकाम आदि का शिकार होने की सम्भावनाएँ बहुत बढ़ती हैं |
गर्म (गुनगुना) जल :
बारिश व ठंड के मौसम में तथा हिचकी, पेट फूलना, वायु व कफ के कारण होनेवाली
बीमारियाँ, नया बुखार, सर्दी, खाँसी, दमा, अजीर्ण, बगल का दर्द (पार्श्वशूल ) –इन
अवस्थाओं में गर्म जल (पीते समय गुनगुना) हितकारी होता है | यह जठराग्नि को बढ़ाता
है और अन्न के पाचन में मदद करता है | उबालकर ठंडा किया गया पानी पचने में हलका
होता है, उससे कफ नही बढ़ता | ऐसा जल पित्त की अधिकता से होनेवाले विकारों में भी
हितकारी होता है |
प्रात:काल रात का रखा
हुआ ६ अंजलि (लगभग २५० मि.ली. ) पानी गुनगुना करके पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी
है | जिसे भूख-प्यास कम लगती हो या अन्य कोई विशेष बीमारी हो वह यह प्रयोग
वैद्यकीय सलहानुसार करें |
सिद्ध उष्णोदक : अग्नि
पर खूब औटाये गये जल को ‘सिद्ध उष्णोदक’ कहते हैं | इससे कफ, आमदोष ( कच्चा रस ),
वायुविकार व मोटापा नष्ट होता है | खाँसी, दमा व बुखार में भी राहत मिलती है |
सिद्ध उष्णोदक के पान से मूत्राशय की शुद्धि होती है व जठराग्नि प्रदीप्त रहती है
|
दिन का औटाया हुआ जल
रात्रि में तथा रात का औटाया हुआ जल प्रात: तक भारी हो जाता है | अत: दिन का औटाया
जल रात में और रात का औटाया दिन में नहीं पीना चाहिए |
ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से
No comments:
Post a Comment