(शरद ऋतु : २३ अगस्त से २२ अक्टूबर तक )
शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें :
१] रोगाणां शारदी माता | रोगों की माता है यह शरद ऋतु | वर्षा ऋतु में
संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है | इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी में उस
पित्त का शमन किया जाता हैं |
इस मौसम में खीर खानी चाहिए | खीर को भोजनों में ‘रसराज’ कहा गया है | सीता
माता जब अशोक वाटिका में नजरकैद थीं तो रावण का भेजा हुआ भोजन तो क्या खायेंगी, तब
इंद्र देवता खीर भेजते थे और सीताजी वह खाती थी |
२] इस ऋतु में दूध, घी, चावल, लौकी, पेठा, अंगूर, किशमिश, काली द्राक्ष तथा
मौसम के अनुसार फल आदि स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं | गुलकंद खाने से भी पित्तशामक
शक्ति पैदा होती हैं | रात को (सोने से कम-से-कम घंटाभर पहले ) मीठा दूध घूँट –
घूँट मुँह में बार-बार घूमाते हुए पियें | दिन में ७ – ८ गिलास पानी शरीर में जाय,
यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है |
३] खट्टे, खारे, तीखे पदार्थ व भारी खुराक का त्याग करना बुद्धिमत्ता है | तली
हुई चीजें, अचारवाली खुराक, रात को देरी से खाना अथवा बासी खुराक खाना और देरी से
सोना स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि शरद ऋतु रोगों की माता है | कोई भी
छोटा-मोटा रोग होगा तो इस ऋतु में भडकेगा इसलिए उसको बिठा दो |
४] शरद ऋतु में कड़वा रस बहुत उपयोगी है | कभी करेला चबा करेला चबा लिया, कभी
नीम के १०-१२ पत्ते चबा लिये | यह कड़वा रस खाने में तो अच्छा नहीं लगता लेकिन भूख
लगाता है और भोजन को पचा देता है |
५] पाचन ठीक करने का एक मंत्र भी है :
अगस्त्यं कुम्भकर्ण च शनिं च वडवानलम् |
आहारपरिपाकार्थ स्मरेद् भीमं च पंचमम्
||
यह मंत्र पढ़ के पेट पर हाथ घुमाने से भी पाचनतंत्र ठीक रहता हैं |
६] बार-बार मुँह चलाना (खाना) ठीक नहीं, दिन में दो बार भोजन करें | और वह
सात्त्विक व सुपाच्य हो | भोजन शांत व प्रसन्न होकर करें | भगवन्नाम से आप्लावित (
तर, नम ) निगाह डालकर भोजन को प्रसाद बना के खायें |
७] ५० साल के बाद स्वास्थ्य जरा नपा-तला रहता है, रोगप्रतिकारक शक्तिदबी रहती
है | इस समय नमक, शक्कर और घी-तेल पाचन की स्थिति पर ध्यान देते हुए नपा-तुला
खायें, थोडा भी ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
८] कइयों की आँखें जलती होंगी, लाल हो जाती होंगी | कइयों को सिरदर्द होता
होगा | तो एक –एक घूँट पानी मुँह में लेकर अंदर गरारा (कुल्ला) करता रहे और चाँदी
का बर्तन मिले अथवा जो भी मिल जाय, उसमें पानी भर के आँख डुबा के पटपटाता जाय |
मुँह में दुबारा पानी भर के फिर दूसरी आँख डूबा के ऐसा करे | फिर इसे कुछ बार दोहराये
| इससे आँखों व सिर की गर्मी निकलेगी | सिरदर्द और आँखों की जलन में आराम होगा व
नेत्रज्योति में वृद्धि होगी |
९] अगर स्वस्थ रहना है और सात्त्विक सुख लेना है तो सूर्योदय के पहले उठना न
भूलें | आरोग्य और प्रसन्नता की कुंजी है सुबह-सुबह वायु-सेवन करना | सूरज की
किरणें नही निकली हों और चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों उस समय वातावरण में
सात्तिवकता का प्रभाव होता है | वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इस समय ओजोन वायु खूब
मात्रा में होती है और वातावरण में ऋणायनों का प्रमाण अधिक होता है | वह
स्वास्थ्यप्रद होती है | सुबह के समय की जो हवा है वह मरीज को भी थोड़ी सांत्वना
देती है |
ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१८ से
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