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Tuesday, September 28, 2010

बारिश की सर्दी मिटाने के लिए

बारिश की सर्दी लगने का अंदेशा हो तो एक लौंग मुंह में रख देना चाहिये और घर जाकर मत्था जल्दी पोंछ लेना चाहिये । बदन सूखा कर लेना चाहिये और बांये करवट थोड़ा लेट के दायाँ श्वास चालू रखना चाहिये । इससे बारिश में भीगने का असर नहीं होगा ।

Rohini-22nd Sep. 10

Monday, September 27, 2010

नौ महत्त्वपूर्ण बातें

निम्न बातें गोपनीय रखनी चाहिये -

  1. अपनी आयु किसी को नहीं बतानी चाहिये
  2. अपना धन गोपनीय रखना चाहिये ।
  3. घर का रहस्य गोपनीय रखना चाहिये ।
  4. गुरुमंत्र गोपनीय रखना चाहिये ।
  5. पति-पत्नी का संसार व्यवहार गोपनीय रखना चाहिये ।
  6. औषधि क्या खाते है, वो गोपनीय रखना चाहिये ।
  7. साधन-भजन गोपनीय रखना चाहिये ।
  8. दान गोपनीय रखना चाहिये ।
  9. अपना अपमान गोपनीय रखना चाहिये ।
निम्न बातें सबके सामने खुली रखनी चाहिये -

  1. ऋण लेने की बात - "मैं इस बैंक से ऋण लूँगा" आदि ।
  2. ऋण चुकाने की बात - "मुझे इस व्यक्ति का इतना ऋण चुकाना है ", इससे विश्वसनीयता बढ़ती है ।
  3. दान की वास्तु सबको बतानी चाहिये , नहीं तो चोरी मानी जाती है ।
  4. विक्रय की वास्तु - "मुझे ये वस्तु इतने मूल्य में बेचनी है", क्या पता कोई ज्यादा मूल्य देने वाला मिल जाए।
  5. कन्यादान - "मुझे अपनी कन्या का विवाह इस व्यक्ति से करना है" क्या पता अगर कन्या का अमंगल छुपा है तो प्रकट हो जायेगा ।
  6. अध्धयन - "मैं इतना पड़ा हूँ" । इससे लोगों का विश्वास और अपनी सरलता बनी रहेगी ।
  7. वृशोत्सर्ग
  8. एकांत में किया हुआ पाप ।
  9. अनिन्दनीय शुभ कर्म ।

निम्न व्यक्तियों का विरोध ना करें -

  1. रसोई बनाने वाला ।
  2. शस्त्रधारी से अकेले में विरोध ना करें । "ज्ञानी के हम गुरु है, मुरख के हम दासउसने दिखाई छड़ी तो हमने जोड़े हाथ ॥"
  3. आपके जीवन के गुप्त रहस्य जानने वाले ।
  4. अपने बड़े अधिकारी/स्वामी ।
  5. मुर्ख व्यक्ति ।
  6. सत्तावान
  7. धनवान
  8. वैद्य
  9. कवि/भाट
Karnal -18th Sep. 2010

भोजन-पात्र विवेक


· भोजन के समय खाने व पीने के पात्र अलग-अलग होने चाहिए।
· काँसे के पात्र बुद्धि वर्धक, स्वाद अर्थात् रूचि उत्पन्न करने वाले हैं। उष्ण प्रकृतिवाले व्यक्ति तथा अम्लपित्त, रक्तपित्त, त्वचाविकार, यकृत व हृदयविकार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काँसे के पात्र स्वास्थ्यप्रद हैं। इससे पित्त का शमन व रक्त की शुद्धि होती है।
· 'स्कन्द पुराण' के अनुसार चतुर्मास के दिनों में पलाश (ढाक) के पत्तों में या इनसे बनी पत्तलों में किया गया भोजन चान्द्रायण व्रत एवं एकादशी व्रत के समान पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। इतना ही नहीं, पलाश के पत्तों में किया गया एक-एक बार का भोजन त्रिरात्र व्रत के समान पुण्यदायक और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाला बताया गया है। चतुर्मास में बड़ के पत्तों या पत्तल पर किया गया भोजन भी बहुत पुण्यदायी माना गया है।
· केला, पलाश या बड़ के पत्ते रूचि उत्पन्न करने वाले, विषदोष का नाश करने वाले तथा अग्नि को प्रदीप्त करने वाले होते हैं। अतः इनका उपयोग हितावह है।
· लोहे की कड़ाही में सब्जी बनाना तथा लोहे के तवे पर रोटी सेंकना हितकारी है इससे रक्त की वृद्धि होती है। परंतु लोहे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए इससे बुद्धि का नाश होता है। स्टील के बर्तन में बुद्धिनाश का दोष नहीं माना जाता। पेय पदार्थ चाँदी के बर्तन में लेना हितकारी है लेकिन लस्सी आदि खट्टे पदार्थ न लें। पीतल के बर्तनों को कलई कराके ही उपयोग में लाना चाहिए।
· एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें। वैज्ञानिकों के अनुसार एल्यूमीनियम धातु वायुमंडल से क्रिया करके एल्यूमीनियम ऑक्साइड बनाती है, जिससे इसके बर्तनों पर इस ऑक्साइड की पर्त जम जाती है। यह पाचनतंत्र, दिमाग और हृदय पर दुष्प्रभाव डालती है। इन बर्तनों में भोजन करने से मुँह में छाले, पेट का अल्सर, एपेन्डीसाईटिस, रोग, पथरी, अंतःस्राव, ग्रन्थियों के रोग, हृदयरोग, दृष्टि की मंदता, माईग्रेन, जोड़ों का दर्द, सर्दी, बुखार, बुद्धि की मंदता, डिप्रेशन, सिरदर्द, दस्त, पक्षाघात आदि बीमारियाँ होने की पूरी संभावना रहती है। एल्यूमीनियम के कुकर का उपयोग करने वाले सावधान हो जायें।
· प्लास्टिक की थालियाँ (प्लेट्स) व चम्मच, पेपल प्लेट्स, थर्माकोल की प्लेट्स, सिल्वर फाइल, पालीथिन बैग्ज आदि का उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
· पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश' ग्रंथ में लिखा है कि पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक या काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। ताँबा तथा मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

Utensil recommendations

- During meals, the utensils for eating and drinking must be separate from one another.
- Bronze utensils help improve intellect, taste and enhance appetite. People characteristic of high body heat and suffering from blood, skin liver and heart disorders will stand to gain health by having meals in bronze utensils. It regulates bile and purifies blood.
- It has been mentioned in "Skanda Purana" that taking meals on Palash leaves or utensils made from the same during Chaturmaas offers virtues equivalent to maintaining vows of Chandraayan and Ekadashi. Further to this, every meal taken on Palash leaves are virtuous equivalent to the Triratra vow and is known to indemnify even the gravest sins.  Meals taken on Banyan leaves is also considered quite virtuous.
- Banana, Palash or Banyan leaves are considered to generate appetite, alleviates poisonous elements in body and enhances digestive power. Hence, use of them are considered very beneficial.
- Preparing vegetables in iron utensils or making chapati on iron pans is very beneficial as it enhances blood growth n body by enhancing iron content. But, one must never take meals in iron cutlery as it destroys intellect. However, steel utensils are not to be treated as detrimental in this respect. Drinking from silverware is considered healthy but avoid taking sour drinks like buttermilk, etc. Brass utensils must be coated with tin before usage.
- Never use aluminium utensils. As per scientific research, aluminium reacts with outside air to form aluminium oxide, which end up forming an oxide layer on top of it. This can cause severe damage to digestive system, brain and heart. It can even lead to mouth ulcers, stomach ulcers, appendicitis, kidney stones, heart ailments, weak vision, migraine, joint aches, cold, fever, weakness in decision making, depression, headaches,  diarrhoea, etc. Those who utilise aluminium cookers are warned of its grave consequences.
- Use of plastic plates and spoons, paper plates, thermocol plates, silver foils, polythene bags, etc. are highly detrimental to health.
- Utensils for drinking water have been elaborated in "Bhavprakash" scriptures that one should use copper, alum or glass-ware. Copper and earthen pots are considered pure and known to have cooling effect. One must never drink from broken pots or by using your palms.


ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010

मोबाइल फ़ोन कैसे उपयोग करें

मोबाइल फोन भी कान से ढाई से.मी. की दूरी पर रखा जाय।

ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010

Saturday, September 25, 2010

घर के झगड़े

घर के सभी लोग रसोईघर में हाथ-पैर धोकर ज़मीन पर बैठकर साथ मिलकर भोजन करें तो घर के झगड़े शांत होंगे और सुख समृद्धि बढ़ेगी ।

kaithal -17th Sep 10

दिवाली के दिनों में

दिवाली (13th Nov' 2012)के दिनों में घर के पहले द्वार पर चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण करके स्वस्तिक अथवा ॐ लगा देना, ताकि गृह दोष दूर हों और लक्ष्मी की स्थिति हो ।

Baraut -20th Sep. 2010

Tuesday, September 21, 2010

दिमागी कमजोरी, यादशक्ति, सिरदर्द के लिए

थोड़ी सी जीभ दांतों के बाहर निकालो जैसे १/२ cm और पहली उंगली अंगूठे के साथ मिला दो (जीरो बना दिया) । इससे दिमागी कमजोरी, यादशक्ति, सिरदर्द आदि दूर होते हैं । सिरदर्द वाले रोगी देसी गाय के घी का नस्य लें । यादशक्ति के लिए तालू में जीभ लगायें ।

Jalandhar-15.09.10

Thursday, September 16, 2010

दुकान में उन्नति

सुबह दुकान  खोलने पर थोड़ी कपूर जला कर आरती कर लें और जहाँ दुकान के मालिक बैठते हों वहां, जिधर से ग्राहक आते हों उधर  भी आरती कर लें| इससे दुकान में उन्नति होगी|


                                                                                 १६ सितम्बर अम्बाला  श्री सुरेशानंदजी

Wednesday, September 15, 2010

लक्ष्मी प्रप्ति व्रत !

भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से आश्विन कृष्ण अष्टमी तक घर में अगर कोई महालक्ष्मी माता का पूजन करे और रात को चन्द्रमा को अर्घ्य दे तो उस के घर में लक्ष्मी बढती जाती है
इस वर्ष ये योग 23 सितम्बर 2012 से 8 अक्टूबर 2012 तक है

1) महालक्ष्मी का पूजन करे.
2)रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देना कच्चे दूध(थोडासा) से फिर पानी से.. .
3)महालक्ष्मी का मन्त्र जप करना.
श्रीं नमः
विष्णु प्रियाय नमः
महा लक्ष्मै नमः
इन में से कोई भी एक जप करे..



- श्री सुरेशानन्दजी १२ सितम्बर २०१० चंबा

Sunday, September 12, 2010

संतान के सुख के लिए |

आश्विन कृष्ण अष्टमी (इस वर्ष १ अक्टूबर) के दिन अभिमन्यु कि पत्नी उत्तरा ने
भगवन श्री कृष्ण से अपने बेटे के लिए जीवन दान माँगा था|
१ अक्टूबर को माताएं बिना नमक  मिर्च का भोजन करें और भगवान और गुरु से
प्रार्थना करें कि मेरा बेटा-मेरी बेटीको "तू सफलता देना, सिद्धि देना| वे दीर्घायु
हो , मेरी बेटी को अच्छा घर और वर देना|" |
इस प्रकार माता प्रार्थना करें और
चन्द्रमा को अर्घ्य दें तो बच्चे को सफलता कदम कदम पर मिलेगी
अगर किसी को संतान नहीं हो तो उन्हें संतान की प्राप्ति होगी|

२७ अगस्त भिवाड़ी, श्री सुरेशानंदजी |

Wednesday, September 8, 2010

भिन्न-भिन्न दिशाओं से आने वाली हवा का स्वास्थ्य पर प्रभाव

पूर्व दिशा की हवाः भारी, गर्म, स्निग्ध, दाहकारक, रक्त तथा पित्त को दूषित करने वाली होती है। परिश्रमी, कफ के रोगों से पीड़ित तथा कृश व दुर्बल लोगों के लिए हितकर है। यह हवा चर्मरोग, बवासीर, कृमिरोग, मधुमेह, आमवात, संधिवात इत्यादि को बढ़ाती है।

दक्षिण दिशा की हवाः खाद्य पदार्थों में मधुरता बढ़ाती है। पित्त व रक्त के विकारों में लाभप्रद है। वीर्यवान, बलप्रद व आँखों के लिए हितकर है।

पश्चिम दिशा की हवाः तीक्ष्ण, शोषक व हलकी होती है। यह कफ, पित्त, चर्बी एवं बल को घटाती है व वायु की वृद्धि करती है।

उत्तर दिशा की हवाः शीत, स्निग्ध, दोषों को अत्यन्त कुपित करने वाली, स्निग्धकारक व शरीर में लचीलापन लाने वाली है। स्वस्थ मनुष्य के लिए लाभप्रद व मधुर है।

अग्नि कोण की हवा दाहकारक एवं रूक्ष है। नैऋत्य कोण की हवा रूक्ष है परंतु जलन पैदा नहीं करती। वायव्य कोण की हवा कटु और ईशान कोण की हवा तिक्त है।

ब्राह्म मुहूर्त (सूर्योदय से सवा दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्योदय तक का समय) में सभी दिशाओं की हवा सब प्रकार के दोषों से रहित होती है। अतः इस वेला में वायुसेवन बहुत ही हितकर होता है।

खस, मोर के पंखों तथा बेंत के पंखों की हवा स्निग्ध एवं हृदय को आनन्द देने वाली होती है।

जो लोग अन्य किसी भी प्रकार की कोई कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने की कसरत बहुत जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की करीब 200 मांसपेशियों की स्वाभाविक ही हलकी-हलकी कसरत हो जाती है। टहलते समय हृदय की धड़कन की गति 1 मिनट में 72 बार से बढ़कर 82 बार हो जाती है और श्वास भी तेजी से चलने लगता है, जिससे अधिक आक्सीजन रक्त में पहुँचकर उसे साफ करता है।


ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010