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Saturday, October 17, 2020

इन तिथियों का लाभ अवश्य लें

 


२५ अक्टूबर : दशहरा, विजयादशमी ( पूरा दिन शुभ महूर्त ), संकल्प, शुभारम्भ, नूतन कार्य , सीमोल्लंघन के लिए विजय मुहूर्त ( दोपहर २:१८ से ३:०४ तक ), गुरु-पूजन, अस्त्र-शस्त्र- शमी वृक्ष – आयुध-वाहन पूजन

२७ अक्टूबर : पापांकुशा एकादशी ( इस दिन उपवास करने से कभी यमयातना नहीं प्राप्त होती | यह स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य, सुंदर स्त्री, धन व मित्र देनेवाली है | इसका व्रत माता, पिता व पत्नी के पक्ष की १०-१० पीढ़ियों का उद्धार करता है |)

३० अक्टूबर : शरद पूर्णिमा ( व्रत हेतु) एकादशी (२७ अक्टूबर से ३१ अक्टूबर तक ) रात्रि में चन्द्रमा को कुछ समय एकटक देखें व पूर्णिमा की रात में सुई में धागा पिरोयें, इससे नेत्रज्योति बढती है |

३१ अक्टूबर से ३० नवम्बर : कार्तिक मास व्रत व पुण्यस्नान ( इसमें आँवले की छाया में भोजन करने से पाप नष्ट हो जाता है व पुण्य कोटि गुना होता है |)

८ नवम्बर : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से सुबह ७: ३० तक), रविपुष्यामृत योग ( सूर्योदय से सुबह ८:४६ तक )

११ नवम्बर : रमा एकादशी ( चिन्तामणि व कामधेनु के सामान सर्व मनोरथपूर्तिकारक व्रत), ब्रह्मलीन मातुश्री श्री माँ महँगीबाजी का महानिर्वाण दिवस

१३ नवम्बर : धनतेरस, उम दीपदान, नरक चतुर्दशी  ( रात्रि में मंत्रजप से मन्त्रसिद्धि)

१४ नवम्बर : नरक चतुर्दशी (तैलाभ्यंग स्नान), दीपावली ( रात्रि में किया गया जप-तप, ध्यान-भजन अनंत गुना फलदायी )

१६ नवम्बर : नूतन वर्षारम्भ (गुजरात), कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा ( पूरा दिन शुभ मुहूर्त, सर्व कार्य सिद्ध करनेवाली तिथि), भाईदूज, विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : सुबह ६:५५ से दोपहर १:१७ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का लाख गुना फल )


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

 

सिंहगर्जनासन

 

बच्चों ! आपको जीभ बाहर निकालकर आवाज करने की शरारत सूझती है एवं ऐसा करने पर सभी आपको डाँटते  है न ? हम आपको एक ऐसी युक्ति बताते हैं जिसे अपनाने पर आपको डाँट भी नहीं पड़ेगी और खूब-खूब लाभ होंगे | इतना ही नहीं, हो सकता है आपके माता-पिता भी आपकी इस क्रिया का अनुकरण करने लग जायें |

लाभ : १] इस आसन से गला, नाक, कान, मुख, जबड़ा, जिव्हा व दाँतों के रोगों में तथा तुतलाकर या हकला के बोलनेवालों को भी बड़ा लाभ होता है |

२] बहुत जल्दी निर्भयता आती है | जो छोटी-छोटी बातों में घबरा जाते हैं उन्हें इस आसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए |

३] जिन्हें अपनी आवाज को स्पष्ट बनाना हो वे भी इसका अभ्यास करके इसके चमत्कारिक प्रभाव का अनुभव कर सकते हैं |

विधि : सूर्योदय के कुछ मिनटों के बाद (लालिमा समाप्त होने पर ) सूर्य की ओर मुख करके वज्रासन में बैठे अर्थात पैरों को घुटनों से मोडकर इस प्रकार बैठे कि एडियाँ नितम्ब को स्पर्श करें एवं पैरों के अँगूठे परस्पर जुड़े रहें |फिर घुटनों को लगभग यथासम्भव फैला लें | हथेलियाँ जमीन पर पैरों के बीच इस प्रकार रखें की उँगलियाँ आपकी ओर रहें | शरीर का वजन हाथ के पंजो पर डालें | पीठ पीछे की ओर ले जायें और धीरे से सिर को भी यथासम्भव पीछे की ओर इस तरह से ले जाए कि गर्दन में सहन हो सके ऐसा हल्का तनाव बने | शाम्भवी मुद्रा करें अर्थात आख्ने आधी खुली रखकर पुतलियाँ ऊपर चढ़ा दें तथा दृष्टि भौहों के मध्य में ले आयें |शरीर को ढीला छोड़ दें | मुँह बदन रखे | नाक से धीरे- धीरे खूब गहरा श्वास लें | फिर मुँह खोल के यथासम्भव जीभ बाहर निकालें ताकि जीभ, महूँ बंद करें और श्वास लें | यह एक बार हुआ | प्रय्तेक बार पूरी प्रक्रिया के अंत में आँख, और मुँह को सामान्य श्थिति में ला सकते है |

सामान्य स्वास्थ्य में इस प्रकार ५ बार तथा उपरोक्त बीमारियों में १० से २० बार तक अभ्यास कर सकते है |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

लक्ष्मीप्राप्ति हेतु साधना

दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में दीपक जलाकर एवं सम्भव हो तो गौ-गोबर और अन्य औषधियों से बनी धूपबत्ती जला के, पीले वस्त्र धारण करके पश्चिम की तरफ मुँह करके बैठे | ललाट पर तिलक ( हो सके तो केसर का ) कर स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रात:काल इस मन्त्र की दो मालाएँ जपें :

ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे |

अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि |

तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात |

तेल का दीपक व धूपबत्ती लक्ष्मीजी की बायीं ओर, घी का दीपक दायी ओर एवं नैवेद्य आगे रखा जाता है | लक्ष्मीजी को तुलसी तथा मदार (आक) या धतूरे का फूल नहीं चढाना चाहिए, नहीं तो हानि होती है | घर में लक्ष्मीजी के वास, दरिद्रता के विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह हेतु यह साधना करनेवाले पर लक्ष्मीजी प्रसन्न होती है |

                                                                   

                                                                                                             ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से 

आयुर्वेद में वर्णित सदवृत्त

 

आज कई लो शास्त्रों में वर्णित आहार, विहार, आचरण, व्यवहार संबंधी नियमो को महत्त्व नहीं देते | उनकी मान्यता रहती है कि ये तो धार्मिक लोगों के लिए हैं | वास्तविकता तो यह है कि ये न केवल आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक, सामजिक आदि दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि निरोग, सबल, समृद्ध व दीर्घ जीवन की आधारशिला भी हैं | अत: आयुर्वेद में इन नियमों के पालन पर बहुत जोर दिया गया हैं | आयुर्वेद ने इन्हें ‘सदवृत्त ‘ की संज्ञा दी गयी है |

चरक संहिता में आता है कि अपना कल्यान चाहनेवालों को सदा स्मरण रखकर सदवृत्त का मन, वचन और कर्म से पालन करना चाहिए | इनका पालन करने से आरोग्यता एवं इन्द्रिय – विजय दोनों कार्य एक साथ ही सिद्ध हो जाते हैं |

क्या करें

१] समय पर हितकर, थोड़ी और मधुर अर्थ से युक्त वाणी बोले |

२] सद्गुरु, देव, गौ, वृद्ध ( ज्ञानवृद्ध),सिद्ध ( ब्रह्मवेत्ता महापुरुष), इनकी पूजा – सेवा करनी चाहिए |

३] यदि आपके पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे पहले ही बोलना चाहिए |

४] जितेन्द्रिय और धर्मात्मा बने |

५] प्रतिदिन स्वच्छ एवं न फटे हुए वस्त्र धारण करें, सदा प्रसन्न – मन रहें |

६] दूसरे पर आपत्ति आने पर दया करें |

७] प्रात: सायं दोनों समय स्नान करना चाहिए |

८] मंगलकारी कार्यो में तत्पर रहें |

क्या न करें

१] सज्जनों या गुरुजनों की निंदा न करें |

२] पूज्य देवता, गुरु आदि एवं मांगलिक पदार्थों के दक्षिण ( दायें) भाग में होकर तथा अपूज्य और अमंगलकारी वस्तुओं के वाम (बायें) भाग में हो के न चलें |

३] शत्रुता में रूचि न लें, पापाचार न करें |

४] चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण होने पर, स्न्ध्याकालों में, अधिक मात्रा में , रक्ष व विकृत स्वर से , पदों की व्यव्य्स्था के बिना (विराम आदि चिन्हों का ध्यान न रखकर), अतिशीघ्र या अति विलम्ब से उच्चारण करते हुए एवं आलस्यपूर्वक, अधिक ऊँचे तथा अधिक नीचे स्वर से अध्ययन न करें |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

पुष्टि व स्वास्थ्य प्रदायक गाजर का हलवा

 

अब सर्दियों के मौसम के लिए गाजर का हलवा है | यह वायुशामक, बलप्रदायक, रक्त व नेत्रज्योति वर्धक हैं | गाजर में लौह तत्त्व और विटामिन ‘ए तो है लेकिन जो वायु ८० प्रकार के रोग पैदा करती है उसको भी गाजर का हलवा मार भगाता है |गैस की तकलीफ से रात को दो – ढाई बजे नींद खुल जाती है | गाजर का हलवा उस तकलीफ को भगाता है तो पाचन भी अच्छा होता है, नींद भी अच्छी आती है |

विधि : गाजर में से बीच का पिला हिस्सा और ऊपर से थोड़े हलके – फुलके छिलके निकाल दो | बचे भाग को कद्दूकश कर घी में सेंक लो | इसमें गाजर की आधा मात्रा में मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकाओ | पकने पर इलायची व थोड़ी-सी खसखस डाल दें | (हलवा बनाने में दूध का उपयोग न करें |)


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

कैसा भी कमजोर व्यक्ति हो , ह्रष्ट-पुष्ट हो जायेगा

 

गरीब - से - गरीब व्यक्ति भी अपने शरीर को मजबूत बना सके ऐसा उपाय बताता हूँ | ५० ग्राम चने शाम को भिगो दें और सुबह उनमें थोडा पालक, मुली और दूसरी कोई हरी सब्जी डाल के उसको थोडा छौंक लगाना हो तो लगा लें, नहीं तो ऐसे ही खूब चबा-चबा के खायें | डेढ़- दो महीने खायें | पाचन के अनुसार ३० से ६० ग्राम तक खा सकते हैं | कैसा भी कमजोर व्यक्ति हो , ह्रष्ट- पुष्ट हो जायेगा बदन |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

बुद्धि विकिसित करने का एक ख़ास तोहफा

 

एक ख़ास तोहफा ! बुद्धि के विलक्षण लक्षण विकसित हो जायें ऐसी बढिया बात है | अपने घर के इर्द- गिर्द तुलसी के कई पौधे लगा दें | तुलसी के पौधे में विद्युत् तत्त्व का बाहुल्य होता है , जिससे हवामान तो बढिया रहेगा, साथ ही उसके औषधीय लाभ भी मिलेंगे | तुलसी के इतने पत्ते तोड़ें जिससे १०-२० ग्राम रस बन जाय | फिर उन्हें घोंट के थोडा पानी डालकर मिक्सी में घुमाये और थोडा फल का रस भी हो इसलिए साथ में पपीते का टुकड़ा या सेव डाल दें अथवा तो थोडा चम्मच भर के च्यवनप्राश डाल दें | बाजारू च्यवनप्राश नहीं, जो आश्रम में और समितियों के सेवाकेन्द्रों पर मिलता है वह सात्तिव्क च्यवनप्राश हो | 

तुलसी का रस फल के या च्यवनप्राश के रस फल के साथ ४० दिन लें, बुद्धि गजब की सात्त्विक और विकसित होगी और शरीर के रोग भाग जायेंगे | बच्चों के लिए तो यह बड़ा कल्याणकारी वरदान है | जिन बच्चों ने सारस्वत्य मन्त्र या गुरुमंत्र लिया है वे उसका जप करें अथवा जिन साधकों ने मन्त्र लिया है वे उसका जप करके पीनेवाले को देवें और इसमें भी पीनेवाले भगवान सूर्य का थोडा मानसिक ध्यान कर ले फिर उसमें दृष्टि डालें और ‘हे बुद्धि के अधिष्ठाता देव ! मैं यह मिश्रण पीता हूँ, मेरी बुद्धि में ज्ञान का अद्भुत प्रकाश हो |’ ऐसा संकल्प करके पियें तो बहुत लाभ होगा |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

बुद्धि बढाने के ढेर सारे उपाय

 

१] दिव्य प्रेरणा-प्रकाश पुस्तक में (पृष्ठ २ पर ) एक मंत्र लिखा है , उसको पढ़कर दूध में देखोगे और वह दूध पियोगे तो बुद्धि बढ़ेगी, बल बढ़ेगा |

२] मंत्रजप और अनुष्ठान से बुद्धि विकसित होती है |

३] भगवच्चिंतन करके ॐकार का गुंजन करके शांत होओगे तो बुद्धि बढ़ेगी |

४] श्वासोच्छवास में भगवान् सूर्यनारायण का ध्यान करने से भी फायदा होगा |

५] श्रद्धा, भक्ति और गुरुजनों के सत्संग से भी बुद्धि उन्नत होती है |

७] भगवद-ध्यान से तो बुद्धि को बढना ही है |  

८] स्मृतिशक्ति बढानी है तो कानों में अँगूठे के पासवाली पहली उँगलियाँ डालकर लम्बा श्वास लो फिर होंठ बंद रख के कंठ से ‘ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ....’ ऐसा उच्चारण करो | इस प्रकार १० बार करो | इस भ्रामरी प्राणायाम से स्मृति बढ़ेगी, बुद्धू विद्यार्थी भी अच्छे अंक लायेंगे |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

इससे पुस्तक का निरादर होता है

 

पुस्तक उलटी नहीं रखनी चाहिए | इससे उसका निरादर होता है | वास्तव में सभी वस्तुएँ भगवत्स्वरूप होने से चिन्मय है | अत: किसी भी वस्तु को जड समझकर उसका निरादर नहीं करना चाहिए |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

उन्नत एवं सफल जीवन के ११ सूत्र

 

१] भगवान से प्रार्थना करना |

२] ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग -श्रवण करना |

३] कुसंग से सर्वथा दूर रहना |

४] आलस्य और प्रमाद न करना |

५] नाच-गान, तमाशा , नाटक, सिनेमा आदि न देखना |

६] बुरी किताबें न पढना |

७] मन और इन्द्रियों को बुरे विषयों की ओर बुरे विषयों की ओर जाने से रोकते रहना |

८] एकांत में मन और इन्द्रियों की विशेष रखवाली करना |

९] ब्रह्मवेत्ता महात्माओं के वचनों और सत्शास्त्रो की शिक्षाओं को याद रखना |

१०] अपनी स्थिति को सर्वथा देखते रहना | (सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए | रात्रि को सोने से पूर्व अपने दिनभर के कार्यों को विचारकर देखना चाहिए कि ‘हमारा जीवन अवनति अर्थात पतन की ओर तो नहीं जा रहा ?’ इस प्रकार अपने जीवन का अध्ययन करते हुए दुर्गुण, दुष्ट विचार, विकृत स्वभाव को त्याग के श्रेष्ठ गुण, श्रेष्ठ स्वभाव और सदाचार को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करना चाहिए |)

११] मृत्यु, नरकों की यातना और हल्की योनियों इ कष्ट की बातों को याद करते रहना |

शरीर अनित्य, नाशवान और क्षणभंगुर है, किसी भी समय मृत्यु को प्राप्त हो सकता है | जो मनुष्य-जन्म में किये गये गलत कार्यों के फलस्वरूप मिलनेवाली दुःखद यातनाओ, नीच योनियों के कष्टों एवं मृत्यु को हमेशा स्मरण में रखता है , वह बुराइयों से, निदनीय कृत्यों से स्वयं को बचाकर उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है और जीवन में महान-से-महान ईश्वरप्राप्ति के लक्ष्य तक पहुँचने में भी सफल हो जाता है |

कहा भी गया है :

दो बातन को भूल मत जो चाहे कल्यान |

नारायण इक मौत को दूजे श्रीभगवान ||


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

पर्वों की सुंदर माला : दीपावली

 

दीपावली पर्व : १३ से १६ नवम्बर

धनत्रयोदशी से लेकर भाईदूज तक सुंदर पर्वों की शृंखला का नाम है दीपावली |

धनतेरस :

धन्वंतरिजी  के आरोग्य-सिद्धांतो और आत्मविश्वासरूपी अमृत को अपने चित्त में सिंचन करने का संकेत देता है धनत्रयोदशी का पर्व | धन्वंतरि महाराज खारे समुद्र से अमृत लेकर आये थे | उस अमृत को औषधिरूप में आपके जीवन में उँडेलने की स्मृति करानेवाली  है धनत्रयोदशी |

आपके जीवन में शारीरिक धन की रक्षा  करने की भी कला होनी चाहिए | धनतेरस के दिन लक्ष्मी-पूजन करते हैं | इस दिन सुबह उठकर संकल्प करो कि ‘मैं महालक्ष्मी का पूजन करूँगा |’ व्रत करो और संध्याकाल में लक्ष्मी-पूजन करो | लक्ष्मी का पूजन मतलब नारायण को आमंत्रित करो तो लक्ष्मी आपके कुल में टिकी रहेगी |

नरक चतुर्दशी :

इस दिन तेल में लक्ष्मीजी का और जल में गंगाजी का वास कहा गया है, जल में पवित्रता होती है | इस शुभ अवसर पर जो व्यक्ति प्रात:काल स्नान करता है वह रूपवान होता है, सुंदर होता है, उसकी परेशानियाँ दूर हो जाती है |

इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और १६ हजार कन्याओं को उसकी कैद से छुडाया था, अपनी शरण दी थी | आपके चित्त में भी नरकासुर यानी अहंकार है और अहंकार के पास वासनाओं का जत्था यानी १६ हजार कन्याओं को श्रीकृष्ण ने अपनी शरण दी और नरकासुर का वध किया | वैसे ही आप भी चित्त के नरकासुररूपी अहंकार को आत्मकृष्ण की शरण भेज दो ताकि उसका नाश हो जाय और हजारों की संख्या में जो वृत्तियाँ उसके अधीन हो जायें |

इस दिन उजाला करना होता है | हे मानव ! तेरे जीवन में चाहे कितना अँधेरा दिखता हो, नरकासुर का प्रभाव दिखता हो तब भी तू मेरे आत्मकृष्ण को पुकारना और श्रीकृष्ण – सत्यभामा को नेतृत्व दे के अंहकाररूपी नरकासुर को ठिकाने लगा देना |

दीपावली :

दिवाली की रात को सरस्वतीजी और लक्ष्मीजी का पूजन होता है | धन प्राप्त हो, बहुत धन मिले, उसे मई ‘लक्ष्मी ‘ नहीं मानता | महापुरुष उसे ‘वित्त मानते हैं | वित्त से बड़े बँगले मिलेंगे, लम्बी-लम्बी गाड़ियां मिलेंगी, लम्बी-लम्बी प्रशंसा होगी पर अंदर में रस नहीं आयेगा | दिवाली की रात को सरस्वतीजी का पूजन करते हैं, जिससे विद्या मिले पर वह विद्या सिर्फ पेट भरने की विद्या नहीं, ऐहिक विद्या के साथ आपके चित्त में विनय आयें, आपके जीवन में ब्रह्मविद्या आये इसलिए सरस्वतीजी की पूजा करनी होती है और आपका वित्त आपको बाँधनेवाला न हो, आपको विषय-विलास एवं विकारों में न घसीट ले इसलिए लक्ष्मी -पूजन करना होता है |

लक्ष्मी-पूजन यानी वित्त महालक्ष्मी बनकर आये | जो वासनाओं का वेग बढाये वह ‘वित्त और जो वासनाओं को श्रीहरि के चरणों में पहुँचाये वह ‘महालक्ष्मी | वित्त हो तो झगड़ा करायेगा, अनर्थ सर्जित करेगा | लक्ष्मी हो तो व्यवहार में काम आयेगी और महालक्ष्मी हो तो नारायण के साथ एक कर देगी | भारत के ऋषि कहते हैं कि लक्ष्मी-पूजन करो | हमने धन या लक्ष्मी को तिरस्कारा नहीं है किंतु जिसे पाकर असुरों जैसा जीवन जियें ऐसा वित्त, ऐसा धन,  ऐसी लक्ष्मी नहीं बल्कि नारायण से मिला दे ऐसा धन, ऐसी लक्ष्मी, महालक्ष्मी चाहिए |

वर्ष प्रतिपदा :

इस दिन से विक्रम संवत (गुजरात अनुसार ) शुरू होता है | दीपावली की रात्रि को पिछले  संवत में थे, सुबह नये संवत में आये | रात को सोकर सारा वर्ष रूपांतरित कर दिया | वैसे ही मृत्यु भी एक रात्रि है , पूरा जीवन रूपांतरित कर देती है | अपनी मौत को याद करके अमरता की ओर आगे बढने का संकेत इस पर्व में समाया हुआ है |

वर्ष प्रतिपदा का दिन वर्ष की दैनंदिनी  का पहला पन्ना है | जन्मग्रंथ का अध्याय यह शरीर है | मृत्यु की माला में से एक मनका यह जीवन है और यह माला १०८ दानों की नहीं है, यह माला अति विशाल है, अनंत है ( अर्थात इसके पूर्व हमने इतने जन्म लिए है कि जिनकी गिनती नहीं की जा सकती )|

वर्ष के पथम दिन तुम्हारे जीवन की दैनंदिनी के प्रथम पन्ने पर पहले लिखो – ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा |’

भगवान् वेदव्यासजी ने विश्व के सर्वप्रथम आर्षग्रंथ ‘ब्रह्मसूत्र में लिखा है : ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा |’ तुझे कुछ जानना है तो उस एक को जान जिससे सब जाना जाता है | कुछ पाना है तो उस एक को पा जिससे सब पाया जाता है | तुझे मिलना है तो उस एक से मिल जिससे तू सबसे एक ही साथ मिल पाये |

विवेक के विकास से ब्रह्म \जिज्ञासा उपलब्ध होती है और विवेक के नाश से ब्रह्मजिज्ञासा का नाश होता है | विवेक के विकास से जीवन का सर्वांगीण विकास होता है | हम कौन हैं ? कहाँ से आये हैं ? शरीर के नाम और इन दिखनेवाले वस्तु पदार्थों से हमारा क्या संबंध है ? अंत में हमें कहाँ जाना है ? जीवन में इस प्रकार की जिज्ञासा होनी चाहिए |

भाईदूज

भाईदूज मतलब भाई की बहन के लिए सद्भावना और बहन की भाई के लिए सद्भावना और बहन की भाई के लिए सद्भावना क्योंकि आपका मन कल्पतरु है | मन जहाँ से स्फुरता है वह चैतन्य, चिद्घन, सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है तो अपने मन के संकल्प भी देर-सवेर सत्य होते हैं |

भाई बहन के घर जाता है, बहन के प्यारेभारे स्पंदनो, भावों से बना हुआ भोजन करता है,  बहन के संकल्प, आशीष लेता है, बहन के प्रति अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त करता है |

बहन भाई को त्रिलोचन देखता चाहती है और भाई बहन का शील, मान-सन्मान बरकरार रहे यह देखना चाहता है | ४ रोटी की तो भाई को भी कमी नहीं और ४ पैसों की बहन को भी कमी नहीं लेकिन रोटी और और पैसे के निमित्त से दोनों के ह्रदय में दिव्य भाव प्रकटाने का पर्व है भाईदूज |

ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से