दीपावली पर्व : १३
से १६ नवम्बर
धनत्रयोदशी से लेकर
भाईदूज तक सुंदर पर्वों की शृंखला का नाम है दीपावली |
धनतेरस :
धन्वंतरिजी के आरोग्य-सिद्धांतो और आत्मविश्वासरूपी अमृत को
अपने चित्त में सिंचन करने का संकेत देता है धनत्रयोदशी का पर्व | धन्वंतरि महाराज
खारे समुद्र से अमृत लेकर आये थे | उस अमृत को औषधिरूप में आपके जीवन में उँडेलने
की स्मृति करानेवाली है धनत्रयोदशी |
आपके जीवन में
शारीरिक धन की रक्षा करने की भी कला होनी
चाहिए | धनतेरस के दिन लक्ष्मी-पूजन करते हैं | इस दिन सुबह उठकर संकल्प करो कि ‘मैं
महालक्ष्मी का पूजन करूँगा |’ व्रत करो और संध्याकाल में लक्ष्मी-पूजन करो |
लक्ष्मी का पूजन मतलब नारायण को आमंत्रित करो तो लक्ष्मी आपके कुल में टिकी रहेगी
|
नरक चतुर्दशी :
इस दिन तेल में
लक्ष्मीजी का और जल में गंगाजी का वास कहा गया है, जल
में पवित्रता होती है | इस शुभ अवसर पर जो व्यक्ति प्रात:काल स्नान करता है वह
रूपवान होता है, सुंदर होता है, उसकी परेशानियाँ दूर हो जाती है |
इस दिन श्रीकृष्ण ने
नरकासुर का वध किया और १६ हजार कन्याओं को उसकी कैद से छुडाया था, अपनी शरण दी थी | आपके चित्त में भी नरकासुर यानी अहंकार है और अहंकार के
पास वासनाओं का जत्था यानी १६ हजार कन्याओं को श्रीकृष्ण ने अपनी शरण दी और
नरकासुर का वध किया | वैसे ही आप भी चित्त के नरकासुररूपी अहंकार को आत्मकृष्ण की
शरण भेज दो ताकि उसका नाश हो जाय और हजारों की संख्या में जो वृत्तियाँ उसके अधीन
हो जायें |
इस दिन उजाला करना
होता है | हे मानव ! तेरे जीवन में चाहे कितना अँधेरा दिखता हो, नरकासुर का प्रभाव दिखता हो तब भी तू मेरे आत्मकृष्ण को पुकारना और श्रीकृष्ण
– सत्यभामा को नेतृत्व दे के अंहकाररूपी नरकासुर को ठिकाने लगा देना |
दीपावली :
दिवाली की रात को
सरस्वतीजी और लक्ष्मीजी का पूजन होता है | धन प्राप्त हो, बहुत धन मिले, उसे मई ‘लक्ष्मी ‘ नहीं मानता |
महापुरुष उसे ‘वित्त’ मानते हैं | वित्त से बड़े बँगले
मिलेंगे, लम्बी-लम्बी गाड़ियां मिलेंगी,
लम्बी-लम्बी प्रशंसा होगी पर अंदर में रस नहीं आयेगा | दिवाली की रात को सरस्वतीजी
का पूजन करते हैं, जिससे विद्या मिले पर वह विद्या सिर्फ पेट
भरने की विद्या नहीं, ऐहिक विद्या के साथ आपके चित्त में
विनय आयें, आपके जीवन में ब्रह्मविद्या आये इसलिए सरस्वतीजी
की पूजा करनी होती है और आपका वित्त आपको बाँधनेवाला न हो,
आपको विषय-विलास एवं विकारों में न घसीट ले इसलिए लक्ष्मी -पूजन करना होता है |
लक्ष्मी-पूजन यानी
वित्त महालक्ष्मी बनकर आये | जो वासनाओं का वेग बढाये वह ‘वित्त’ और जो वासनाओं को श्रीहरि के चरणों में पहुँचाये वह ‘महालक्ष्मी’ | वित्त हो तो झगड़ा करायेगा, अनर्थ सर्जित करेगा | लक्ष्मी हो तो व्यवहार
में काम आयेगी और महालक्ष्मी हो तो नारायण के साथ एक कर देगी | भारत के ऋषि कहते
हैं कि लक्ष्मी-पूजन करो | हमने धन या लक्ष्मी को तिरस्कारा नहीं है किंतु जिसे
पाकर असुरों जैसा जीवन जियें ऐसा वित्त, ऐसा धन, ऐसी लक्ष्मी नहीं बल्कि नारायण
से मिला दे ऐसा धन, ऐसी लक्ष्मी,
महालक्ष्मी चाहिए |
वर्ष प्रतिपदा :
इस दिन से विक्रम
संवत (गुजरात अनुसार ) शुरू होता है | दीपावली की रात्रि को पिछले संवत में थे, सुबह नये संवत में आये | रात को
सोकर सारा वर्ष रूपांतरित कर दिया | वैसे ही मृत्यु भी एक रात्रि है , पूरा जीवन
रूपांतरित कर देती है | अपनी मौत को याद करके अमरता की ओर आगे बढने का संकेत इस
पर्व में समाया हुआ है |
वर्ष प्रतिपदा का
दिन वर्ष की दैनंदिनी का पहला पन्ना है |
जन्मग्रंथ का अध्याय यह शरीर है | मृत्यु की माला में से एक मनका यह जीवन है और यह
माला १०८ दानों की नहीं है, यह माला अति विशाल है,
अनंत है ( अर्थात इसके पूर्व हमने इतने जन्म लिए है कि जिनकी गिनती नहीं की जा
सकती )|
वर्ष के पथम दिन
तुम्हारे जीवन की दैनंदिनी के प्रथम पन्ने पर पहले लिखो – ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा |’
भगवान् वेदव्यासजी
ने विश्व के सर्वप्रथम आर्षग्रंथ ‘ब्रह्मसूत्र’ में लिखा
है : ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा |’ तुझे कुछ जानना है तो उस एक को जान जिससे सब जाना जाता
है | कुछ पाना है तो उस एक को पा जिससे सब पाया जाता है | तुझे मिलना है तो उस एक
से मिल जिससे तू सबसे एक ही साथ मिल पाये |
विवेक के विकास से
ब्रह्म \जिज्ञासा उपलब्ध होती है और विवेक के नाश से ब्रह्मजिज्ञासा का नाश होता
है | विवेक के विकास से जीवन का सर्वांगीण विकास होता है | हम कौन हैं ? कहाँ से
आये हैं ? शरीर के नाम और इन दिखनेवाले वस्तु पदार्थों से हमारा क्या संबंध है ?
अंत में हमें कहाँ जाना है ? जीवन में इस प्रकार की जिज्ञासा होनी चाहिए |
भाईदूज
भाईदूज मतलब भाई की
बहन के लिए सद्भावना और बहन की भाई के लिए सद्भावना और बहन की भाई के लिए सद्भावना
क्योंकि आपका मन कल्पतरु है | मन जहाँ से स्फुरता है वह चैतन्य, चिद्घन, सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है तो अपने
मन के संकल्प भी देर-सवेर सत्य होते हैं |
भाई बहन के घर जाता
है, बहन के प्यारेभारे स्पंदनो, भावों से बना हुआ भोजन
करता है, बहन के
संकल्प, आशीष लेता है, बहन के प्रति अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त
करता है |
बहन भाई को त्रिलोचन
देखता चाहती है और भाई बहन का शील, मान-सन्मान
बरकरार रहे यह देखना चाहता है | ४ रोटी की तो भाई को भी कमी नहीं और ४ पैसों की
बहन को भी कमी नहीं लेकिन रोटी और और पैसे के निमित्त से दोनों के ह्रदय में दिव्य
भाव प्रकटाने का पर्व है भाईदूज |
ऋषिप्रसाद
– अक्टूबर २०२० से
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