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Saturday, October 17, 2020

सिंहगर्जनासन

 

बच्चों ! आपको जीभ बाहर निकालकर आवाज करने की शरारत सूझती है एवं ऐसा करने पर सभी आपको डाँटते  है न ? हम आपको एक ऐसी युक्ति बताते हैं जिसे अपनाने पर आपको डाँट भी नहीं पड़ेगी और खूब-खूब लाभ होंगे | इतना ही नहीं, हो सकता है आपके माता-पिता भी आपकी इस क्रिया का अनुकरण करने लग जायें |

लाभ : १] इस आसन से गला, नाक, कान, मुख, जबड़ा, जिव्हा व दाँतों के रोगों में तथा तुतलाकर या हकला के बोलनेवालों को भी बड़ा लाभ होता है |

२] बहुत जल्दी निर्भयता आती है | जो छोटी-छोटी बातों में घबरा जाते हैं उन्हें इस आसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए |

३] जिन्हें अपनी आवाज को स्पष्ट बनाना हो वे भी इसका अभ्यास करके इसके चमत्कारिक प्रभाव का अनुभव कर सकते हैं |

विधि : सूर्योदय के कुछ मिनटों के बाद (लालिमा समाप्त होने पर ) सूर्य की ओर मुख करके वज्रासन में बैठे अर्थात पैरों को घुटनों से मोडकर इस प्रकार बैठे कि एडियाँ नितम्ब को स्पर्श करें एवं पैरों के अँगूठे परस्पर जुड़े रहें |फिर घुटनों को लगभग यथासम्भव फैला लें | हथेलियाँ जमीन पर पैरों के बीच इस प्रकार रखें की उँगलियाँ आपकी ओर रहें | शरीर का वजन हाथ के पंजो पर डालें | पीठ पीछे की ओर ले जायें और धीरे से सिर को भी यथासम्भव पीछे की ओर इस तरह से ले जाए कि गर्दन में सहन हो सके ऐसा हल्का तनाव बने | शाम्भवी मुद्रा करें अर्थात आख्ने आधी खुली रखकर पुतलियाँ ऊपर चढ़ा दें तथा दृष्टि भौहों के मध्य में ले आयें |शरीर को ढीला छोड़ दें | मुँह बदन रखे | नाक से धीरे- धीरे खूब गहरा श्वास लें | फिर मुँह खोल के यथासम्भव जीभ बाहर निकालें ताकि जीभ, महूँ बंद करें और श्वास लें | यह एक बार हुआ | प्रय्तेक बार पूरी प्रक्रिया के अंत में आँख, और मुँह को सामान्य श्थिति में ला सकते है |

सामान्य स्वास्थ्य में इस प्रकार ५ बार तथा उपरोक्त बीमारियों में १० से २० बार तक अभ्यास कर सकते है |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

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