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Tuesday, March 24, 2015

स्वाइन फ्लू से सुरक्षा

स्वाइन फ्लू एक संक्रामक बीमारी हैं, जो श्वसन-तंत्र को प्रभावित करती है |

लक्षण – नाक ज्यादा बहना, ठंठ लगना, गला खराब होना, मांसपेशियों में दर्द, बहुत ज्यादा थकान, तेज सिरदर्द, लगातार खाँसी, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि |

सावधानियाँ –


- लोगों से हाथ-मिलाने, गले लगाने आदि से बचें | अधिक भीडवाले थिएटर जैसे बंद स्थानों पर जाने से बचें |

- बिना धुले हाथों से आँख, नाक या मुँह छूने से परहेज करें |

- जिनकी रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो उन्हें विशेष सावधान रहना चाहिए |

- जब भी खाँसी या छींक आये तो रुमाल आदि का उपयोग करें |

स्वाइन फ्लू से कैसे बचें ?


यह बीमारी हो तो इलाज से कुछ ही दोनों में ठीक हो सकती है, दरें नहीं | प्रतिरक्षा व श्वसन तन्त्र को मजबूत बनायें व इलाज करें |

पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी जैविक दिनचर्या से प्रतिरक्षा तन्त्र मजबूत होता है | सुबह 3 से 5 बजे के बीच में किये गये प्राणायाम से श्वसन तन्त्र विशेष बलशाली बनता है | घर में गौ-सेवा फिनायल से पोछा लगाये व् गौ-चन्दन धूपबत्ती पर गाय का घी, डाल के धुप करें | कपूर भी जलाये | इससे घर का वातावरण शक्तिशाली बनेगा | बासी, फ्रिज में रखी चीजें व बाहर के खाने से बचें | खुलकर भूख लगने पर ही खायें | सूर्यस्नान, सूर्यनमस्कार, आसन प्रतिदिन करें | कपूर, इलायची व तुलसी के पत्तो को पतले कपड़े में बाँधकर बार-बार सूंघें | तुलसी के 5 - 7 पत्ते रोज खायें | आश्रमनिर्मित होमियों तुलसी गोलियाँ, तुलसी अर्क, संजीवनी गोली से रोगप्रतिकारक क्षमता बढती है |

कुछ वर्ष पहले जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब पूज्य बापूजी ने इसके बचाव का उपाय बताया था : ‘ नीम की 21 डंठलियाँ (जिनमें पत्तियाँ लगती हैं, पत्तियाँ हटा दें ) व 4 काली मिर्च पानी डालकर पीस लें और छान के पिला दें | बच्चा हैं तो 7 डंठलियाँ व सवा काली मिर्च दें |’

स्वाइन फ्लू से बचाव के कुछ अन्य उपाय

- 5 – 7 तुलसी पत्ते, 10 - 12 नीमपत्ते, 2 लौंग, 1 ग्राम दालचीनी चूर्ण, 2 ग्राम हल्दी, 200 मि.ली. पानी में डालकर उबलने हेतु रख दें | उसमें 4 - 5 गिलोय की डंडियाँ कुचलकर डाल दें अथवा 2 से 4 ग्राम गिलोय चूर्ण मिलाये | 50 मि.ली. पानी शेष रहने पर छानकर पिये | यह प्रयोग दिन में 2 बार करें | बच्चों को इसकी आधी मात्रा दें |

- दो बूँद तेल नाक के दोनों नथुनों के भीतर ऊँगली से लगाये | इससे नाक की झिल्ली के ऊपर तेल की महीन परत बन जाती हैं, जो एक सुरक्षा-कवच की तरह कार्य करती हैं, जिससे कोई भी विषाणु, जीवाणु तथा धुल-मिटटी आदि के कण नाक की झिल्ली को संक्रमित नहीं कर पायेंगे |

- स्वाइन फ्लू के लिए विशेष रूप से बनायी गयी आयुर्वेदिक औषधी (सुरक्षा चूर्ण व सुरक्षा वटी) संत श्री आशारामजी औषधी केन्द्रों पर उपलब्ध हैं | सम्पर्क करें : 09227033056

- स्वाइन फ्लू से बचाव की होमियोपैथिक दवाई हेतु सम्पर्क करे : 09541704923

(यदि किसी को स्पष्ट रूपसे रोग के लक्षण दिखाई दें तो वैद्य या डॉक्टर से सलाह लें |)

- ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१५ से

शंखपुष्पी सिरप - त्रिफला चूर्ण

शंखपुष्पी सिरप

लाभ – चक्कर आना, थकावट अनुभव करना, मानसिक तनाव, सहनशक्ति का अभाव, चिडचिडापन, निद्रल्पता, मन की अशांति तथा उच्च रक्तचाप आदि रोगों में लाभप्रद स्मरणशक्ति बढाने हेतु एक दिव्य औषधि |

त्रिफला चूर्ण

लाभ – आँखों की सुजन, लालिमा, दृष्टिमांद्य, कब्ज, मधुमेह, मूत्ररोग, त्वचा-विकार, जीर्णज्वर व पीलिया में लाभदायक |

सभी संत श्री अशारामजी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |

- ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१५ से

वसंत ऋतू में बीमारीयों से सुरक्षा

वसंत ऋतू में शरीर में संचित कफ पिघल जाता है | अत: इस ऋतू में कफ बढानेवाले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए | दिन में सोने से भी कफ बढ़ता है | इस ऋतू में नमक का कम उपयोग स्वास्थ्य के लिए हितकारी है | तुलसी-पत्ते व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्यस्नान से कफ का शमन होता है | मुँह में कफ आने पर उसे अंदर न निगलें | कफ निकालने के लिए जलनेति, गजकरणी का प्रयोग कर सकते हैं | (देखें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन’, पृष्ठ 43, 44 )

वसंत ऋतू में सर्दी-खाँसी, गले की तकलीफ, दमा, बुखार, पाचन की गडबडी, मंदाग्नि, उलटी-दस्त आदि बीमारियाँ अधिकांशत: देखने को मिलती हैं | नीचे कुछ सरल घरेलू उपाय दिये जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आसानी से इन रोगों से छुटकारा पाया जा सकता हैं |

मंदाग्नि :
10 – 10 ग्राम सौंठ, कालीमिर्च, पीपर व सेंधा नमक – सभी को कूटकर चूर्ण बना लें | इसमें 400 ग्राम काली द्राक्ष (बीज निकाली हुई) मिलायें और चटनी की तरह पीस के काँच के बर्तन में भरकर रख दें | लगभग 5 ग्राम सुवह-शाम खाने से भूख खुलकर लगती है |

कफ, खाँसी और दमा : 4 चम्मच अडूसे के पत्तों के ताजे रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2 बार खाली पेट लें | (रस के स्थान पर अडूसा अर्क समभाग पानी मिलाकर उपयोग कर सकते हैं | यह आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |) खाँसी, दमा, क्षयरोग आदि कफजन्य तकलीफों में यह उपयोगी है | इनमें गोझरण वटी भी अत्यंत उपयोगी हैं | आश्रमनिर्मित गोझरण वटी की 2 से ४ गोलियाँ दिन में 2 बार पानी के साथ लेने से कफ का शमन होता हैं तथा कफ व वायुजन्य तकलीफों में लाभ होता हैं |

दस्त :
इसबगोल में दही मिलाकर लेने से लाभ होता है | अथवा मूँग की दाल की खिचड़ी में देशी घी अच्छी मात्रा में डालकर खाने से पानी जैसे पतले दस्त में फायदा होता है |

दमे का दौरा : अ] साँस फूलने पर २० मि.ली.तिल का तेल गुनगुना करके पीने से तुरंत राहत मिलती हैं |

आ] सरसों के तेल में थोडा-सा कपूर मिलाकर पीठ पर मालिश करें | इससे बलगम पिघलकर बाहर आ जायेगा और साँस लेने में आसानी होती है |

इ] उबलते हुए पानी में अजवायन डालकर भाप सुंघाने से श्वास-नलियाँ खुलती हैं और राहत मिलती है |

- ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१५ से

मंडूकासन

इस आसन में शरीर मंडूक (मेढ़क) जैसा दिखता है | अत: इसे मंडूकासन कहते हैं |

लाभ : १] प्राण और अपान की एकता होती है | वायु-विकारवालों के लिए यह आसन रामबाण के समान है | यह आसन ऊर्ध्व वायु और अधोवायु का निष्कासन करता है |

२] पेट के अधिकांश रोगों में लाभप्रद है व तोंद कम होती है | अतिरिक्त चरबी दूर होती है |

३] मधुमेह में विशेष लाभ होता है |

४] रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है |

५] पंजों को बल मिलता हैं और उछलने की क्षमता बढती है |

६] शरीर में हलकापन व आराम महसूस होता है |

७] जोड़ों व घुटनों के दर्द में राहत होती है |

विशेष :
जो सामान्य (13 से 15 प्रति मिनट) से ज्यादा श्वास लेते हों, उनको यह आसन अवश्य करना चाहिये |

विधि : दोनों पैरों को पीछे की तरफ मोडकर (वज्रासन में ) बोथे | घुटनों को आपस में मिलाएं | हथेलियों को एक के ऊपर एक रखकर नाभि पर इसप्रकार रखें कि दायें हाथ की हथेली ठीक नाभि पर आये | फिर श्वास छोड़ते हुए शरीर को आगे की और झुकाये और सीने को घुटनों से लगाये | सिर उठाकर दृष्टि सामने रखें | 4 – 5 सेंकड इसी स्थिति में रुकें, फिर श्वास भरते हुए वज्रासन की स्थिति में आए | 3 – 4 बार यह प्रक्रिया दोहराये |

                                                                                                             ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१५ से

Tuesday, March 10, 2015

पुष्टिवर्धक प्रयोग

छोटे बच्चे और गर्भवती माताएँ १५ से २५ ग्राम भुनी हुई मूँगफली पुराने गुड के साथ खायें तो उन्हें बहुत पुष्टि मिलती हैं | जिन माताओं का दूध पर्याप्त मात्रा में न उतरता हो, उनके लिए भी इनका सेवन लाभप्रद है |

-लोक कल्याण सेतु – फरवरी – २०१५ से

अनेक रोगों की एक दवा – कंद-सब्जियों में श्रेष्ठ : सूरन

सूरन (जमीकंद)पचने में हलका,कफ एवं वात शामक, रुचिवर्धक, शूलहर, मासिक धर्म बढानेवाला व बलवर्धक हैं | सफेद सूरन अरुचि, मंदाग्नि, कब्ज, पेटदर्द, वायुगोला, आमवात तथा यकृत व् प्लीहा के मरीजों के लिए एवं कृमि, खाँसी व् श्वास की तकलीफवालों के लिए उपयोगी हैं | सूरन पोषक रसों के अवशोषण में मदद करके शरीर में शक्ति उत्पन्न करता हैं | बेचैनी, अपच, गैस, खट्टी डकारे, हाथ-पैरों का दर्द आदि में तथा शरीरिक रुप से कमजोर व्यक्तियों के लिए सूरन लाभदायी हैं |

सूरन की लाल व सफेद इन दो प्रजातियों में से सफेद प्रजाति का उपयोग सब्जी के रूप में विशेष तौर पर किया जाता हैं |

बवासीर में रामबाण औषधि

- सूरन के टुकड़ों को पहले उबाल लें और फिर सुखाकर उनका चूर्ण बना लें | यह चूर्ण ३२० ग्राम, चित्रक १६० ग्राम, सौंठ ४० ग्राम, काली मिर्च २० ग्राम एवं गुड १ किला – इन सबको मिलाकर देशी बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लें | इसे ‘सूरन वटक’ कहते हैं | प्रतिदिन सुबह-शाम ३ – ३ गोलियाँ खाने से बवासीर में खूब लाभ होता हैं |

- सूरन के टुकड़ों को भाप में पका लें और टिल के तेल में सब्जी बनाकर खायें एवं ऊपर से छाछ पियें | इससे सभीप्रकार की बवासीर में लाभ होता हैं | यह प्रयोग ३० दिन तक करें | खूनी बवासीर में सूरन की सब्जी के साथ इमली की पत्तियाँ एवं चावल खाने से लाभ होता हैं |

सावधानी – त्वचा-विकार, ह्रदयरोग, रक्तस्त्राव एवं कोढ़ के रोगियों को सूरन का सेवन नही करना चाहिए | अत्यंत कमजोर व्यक्ति के लिए उबाला हुआ सूरन पथ्य होने पर भी इसका ज्यादा मात्रा से निरंतर सेवन हानि करता हैं | सूरन के उपयोग से यदि मुँह आना, कंठदाह या खुजली जैसा हो तो नींबू अथवा इमली का सेवन करें |

-लोक कल्याण सेतु – फरवरी – २०१५ से

जोड़ों का दर्द मिटायें, पुष्टि पायें

१०० – १०० ग्राम हल्दी, मेथी व सौंठ का चूर्ण और ५० ग्राम अश्वगंधा चूर्ण सभी को मिलाकर रख लें | २ ग्राम चूर्ण सुबह-शाम भोजन के १ घंटा बाद गुनगुने पानी के साथ लें | इससे जोड़ों का दर्द,गठिया, कमरदर्द व् अन्य वाट रोगों में लाभ होता हैं एवं शरीर पुष्ट होता हैं |

                                                                                        ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१५ से

ह्रदय के लिए हितकर पेय

रात को भिगोये हुए ४ बादाम सुबह छिलका उतारकर १० तुलसी पत्तों और ४ काली मिर्च के साथ अच्छी तरह पीस लें | फिर आधा कप पानी में इनका घोल बना के पीने से विभिन्न प्रकार के ह्रदयरोगों में लाभ होता है | इससे मस्तिष्क को पोषण मिलता है व् रक्त की वृद्धि भी होती हैं |

- ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१५ से

औषधीय गुणों से भरपूर सहजन

सहजन (मुनगा) की फली खाने में मधुर कसैली एवं स्वादिष्ट तथा पचने में हलकी, गर्म तासीरवाली एवं जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाली होती है | इसके फुल तथा कोमल पत्तों की सब्जी बनायी जाती है | सहजन कफ अता वायु शामक होने से श्वास, खाँसी, जुकाम आदि कफजन्य विकारों तथा आमवात, संधिवात, सुजनयुक्त दर्द आदि वायुरोंगों में विशेष पथ्यकर हैं | यकृत एवं तिल्ली वृद्धि, मूत्राशय एवं गुर्दे की पथरी, पेट के कृमि, फोड़ा, मोटापा, गंडमाला (कंठमाला), गलगंड (घेघा) – इन व्याधियों में इसका सेवन हितकारी हैं | सहजन में विटामिन ‘ए’ प्रचुर माता में पाया जाता हैं आयुर्वेद के मतानुसार सहजन वीर्यवर्धक तह ह्दय एवं आँखों के लिए हितकर हैं |

औषधीय प्रयोग –

- सहजन की पत्तियों के ३० मि.ली. रस में १ चम्मच शहद मिलाकर रात को सोने से पूर्व २ माह तक लेने से रतौधी में लाभ होता है | यह प्रयोग सर्दियों में करना हितकर हैं |

- लोह तत्त्व की कमी से होनेवाली रक्ताल्पता (एनीमिया) व विटामिन ‘ए’ की कमी से होनेवाले अंधत्व में पत्तियों की सब्जी (अल्प मात्रा में ) लाभकारी हैं |

- पत्तों को पानी में पीसकर हकला गर्म करके जोड़ों पर लगाने से वायु की पीड़ा मिटती हैं |

- सहजन के पत्तों का रस लगाकर सिर धोने से बालों की रुसी में लाभ होता हैं |

सावधानी – सब्जी के लिए ताज़ी एवं गुदेवाली फली का ही प्रयोग करें | सुखी बड़े बीजवाली एवं ज्यादा रेशेवाली फली पेट में अफरा करती हैं | गर्म (पित्त) प्रकृति के लोगों के लिए तथा पित्तजन्य विकारों में सहजन निषिद्ध हैं | सहजन की पत्तियों का उपयोग पित्त-प्रकृतिवाले व्यक्ति वैद्यकीय सलाह से करें | गुर्दे की खराबी में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए |

- ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१५ से

Saturday, March 7, 2015

केमिकल रंग छूटाने के लिए


यदि किसीने आप पर रासायनिक रंग लगा दिया हो तो तुरंत ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व् तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिए | यदि उबटन लगाने से पूर्व उस स्थान को नींबू से रगड़कर साफ़ कर लिया जाय तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता होती है |
- पूज्य बापूजी (स्त्रोत :ऋषि प्रसाद मार्च 2005 )