Search This Blog

Monday, February 5, 2018

बल, वीर्य, स्फूर्ति व बौद्धिक विकास हेतु विशेष औषधि संग्रह

केसरयुक्त च्यवनप्राश, संजीवनी गोली, ब्राह्म रसायन, व्रज रसायन, अश्वगंधा पाक, सौभाग्य शुंठी पाक

बहुमूल्य जड़ी-बूटियों एवं भस्मों (शुद्ध हीरा भस्म आदि) से बनी ये औषधियाँ पुष्टिदायक, वीर्यवर्धक, मेधावर्धक व उत्तम स्वास्थ्य-प्रदायक हैं | ये अत्यंत क्षीण अवस्था को प्राप्त रोगी को भी नवजीवन प्रदान करने में सक्षम हैं | इनका सेवन कर सभी निरोगता और दीर्घायुष्य की प्राप्ति कर सकते हैं |

उपरोक्त उत्पाद आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते है | रु. १६०० /- डाक खर्च बिल्कुल मुफ्त ! केवल रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा उपलब्ध !


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से   

पंचामृत रस – स्वास्थ्य व ऊर्जा प्रदायक, पाचक, रोगनाशक अदभुत योग

यह आँवला, तुलसी, हल्दी, अदरक एवं पुदीना – इन पाँचों के मिश्रण से बना अत्यंत लाभदायी औषध-योग है | यह भूख को बढ़ानेवाला, भोजन पचाने में सहायक, कृमिनाशक एवं ह्रदय के लिए हितकर अनुभूत रामबाण योग है | इसके सेवन से पाचनशक्ति सबल होकर शरीर स्वस्थ, मजबूत व ऊर्जावान बनता है, चेहरे पर निखार आता है | रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है | थकान दूर होकर प्रसन्नता एवं स्फूर्ति बढ़ती है | यह मोटापा, मधुमेह (diabetes), कैंसर, ह्रदय की रक्तवाहिनियों का अवरोध (coronary artery disease), उच्च रक्तचाप (hypertension), कोलेस्ट्रोल का बढ़ना आदि रोगों में अत्यंत लाभदायी है |

पंचामृत रस के घटकों के गुणधर्म :
१] आँवला : यह त्रिदोषनाशक है | यह जीर्ण कोशिकाओं को पुन: नवजीवन देता है | स्वस्थ व्यक्ति यदि इसका सेवन करता रहे तो उसे निरोगी रहने में मदद मिलेगी, उसकी रोगप्रतिकारक क्षमता पुष्ट होगी अत: इसे रसायन कहा जाता है | यह रक्तवाहिनियों की कार्यक्षमता बनाये रखता है, जिससे वृद्धावस्था के लक्षण देरी से प्रकट होते हैं | यह आमाशय, मस्तिष्क व ह्रदय को बल देता है तथा यकृत के कार्यों को व्यवस्थित करता है |
२] तुलसी : यह वात व कफ शामक, कृमिनाशक, ह्रदय के लिए हितकर तथा प्रचंड जीवाणुनाशक गुणों से युक्त है |
३] हल्दी : यह कफ-पित्तनाशक, रक्तशुद्धिकर, वर्णनिखारक, कृमिनाशक एवं यकृत के रोगों में लाभदायक है | कैंसर-रोधक विशेष गुण के कारण यह कैंसर से रक्षा करने में सहायक है | इसकी अल्प मात्रा शरीर को कई रोगों से निजात दिलाती है | यह रक्त में कोलेस्ट्रोल को कम करके ह्रदय एवं रक्तवाहिनियों से संबंधित रोगों से रक्षा करने में सहायक है | यह एंटीहिस्टामिन है अर्थात एलर्जी प्रतिक्रिया का शमन करती है |
३]अदरक : यह कफ – वातनाशक एवं भूख बढ़ानेवाला है | यह समस्त वात-व्याधियों एव आमवात की उत्तम औषधि है |
४] पुदीना : यह कफ – वातशामक है | यह कैन्सरजनक फ्री रेडिकल्स को नष्ट करके कैंसर से रक्षा करने में सहायक है |

सेवन विधि: १० से १५ मि.ली. रस सुबह खाली पेट मिश्री या शहद एवं पानी मिलाकर ही लें | उपयोग से पूर्व बोतल को अच्छी तरह हिलायें |

सावधानी: पंचामृत रस लेने के २ घंटे पूर्व एवं बाद के अंतराल के दूध न लें | शुक्रवार एवं रविवार को इसका सेवन न करें | (वैद्यकीय सलाहानुसार लें |)


ऋषिप्रसाद –फरवरी २०१८ से 

कर्ज-निवारक कुंजी

प्रदोष व्रत यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे ‘भौम प्रदोष व्रत’ कहते हैं | मंगलदेव ऋणहर्ता हैं | उस दिन संध्या के समय यदि भगवान शिव एवं सदगुरुदेव का पूजन करें तो उनकी कृपा से हम जल्दी कर्ज से मुक्त हो सकते हैं | इस दैवी सहायता के साथ थोडा स्वयं भी पुरुषार्थ करें | पूजा करते समय यह मंत्र बोलें :

मृत्यंजय महादेव त्राहि मां शरणागतम |
जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनै: ||

(वर्ष २०१८ में १३ व २७ फरवरी, १० जुलाई, २० नवम्बर तथा ४ दिसम्बर को भौम प्रदोष व्रत आ रहा है | कर्ज निवारण हेतु इन दिनों का उपयोग कर सकते हैं |)


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

धनात्मक उर्जा का भंडार : कपूर

(कृतिम नहीं, प्राकृतिक रम फ्रेशनर !)
आप जहाँ रहते हैं वहाँ थोडा-सा कपूर छिडक दें अथवा उसे दिये या बर्तन में जला दिया करें | कपूर दहन में बाह्य वातावरण को शुद्ध करने की अद्भुत क्षमता है | इसमें जीवाणुओं, विषाणुओं तथा सूक्ष्मतर जीवों को नष्ट करने की शक्ति है | 

रूम फ्रेशनर स्प्रे करने  के बजाय कपूर जलायें | यह अशुद्धि को दूर करता है तथा ऋणायनों का उत्सर्जन कर ताजगी व धनात्मक ऊर्जा बढ़ाता है | इससे आपका मनोबल, बुद्धिबल और स्वास्थ्यबल भी बढ़ेगा |


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

स्नान कब और कैसे करें

क्या करें
·       सूर्योदय से पूर्व का स्नान स्वास्थ्य व सात्त्विकता वर्धक होता है अत: सूर्योदय से पहले स्नान करना उत्तम है |
·       सामान्य ठंडे पानी से स्नान करना हितकारी है | इससे शरीर की गर्मी, पित्तदोष, झुरियाँ आदि में भी फायदा होता है |
·       सप्तधान्य उबटन से स्नान पापनाशक और बुद्धिवर्धक है, साथ ही सात्विकता, प्रसन्नता, निरोगता प्रदान करनेवाला है |

क्या न करें
·       गर्म पानी से स्नान करना पड़े तो सिर के ऊपर से न डालें | इससे शारीरिक शक्ति कम होती है तथा मस्तिष्क के ज्ञानतंतुओं, आँखों एवं बालों को हानि होती है |
·       दौड़कर, धूप में से आने के तुरंत बाद, भोजन के तुरंत पहले तथा बाद में स्नान नहीं करना चाहिए |
·       बुखार, दस्त, अजीर्ण होने पर स्नान नहीं करना चाहिए |


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

बिना दवा की चिकित्सा

स्वास्थ्यप्राप्ति के लिए सिर पर हाथ रखकर निम्न मंत्र का १०८ बार उच्चारण करें |

अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात  |
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम ||

हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविंद ! – इस नामोच्चारणरूप औषध से तमाम रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य कहता हूँ... सत्य कहता हूँ |’



ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

लवण रस के गुण-दोष

लवण (खारा) रस : यह स्निग्ध, उष्ण, तीक्ष्ण, पित्तवर्धक, वातशामक व कफ पिघलनेवाला होता है |
o  यह भूख, लार-स्त्राव वर्धक, पाचक स्त्रावों का निर्माता होने से पाचक, मल-मूत्र लानेवाला तथा फेफड़ों, आँतों आदि में संचित कफ, मल आदि को निकालनेवाला है |
o  अंगों की जकड़न, कठिनता, अवरोध व संचित दोषों को दूर कर उन्हें कोमल बनाता है |

लवण रसयुक्त पदार्थ : सभी प्रकार के नमक (सेंधा, समुद्री आदि) व क्षार |

इसके अति सेवन से होनेवाली समस्याएँ :
१] पित्त-प्रकोप होकर रक्त दूषित होने से बार-बार प्यास लगना, आँखों के आगे अँधेरा छाना, मूर्च्छा आदि |
२] दाँत ढीले हो के गिरना, बाल सफेद होकर झड़ना, त्वचा पर झुरियाँ पड़ना और कांति नष्ट होना तथा आँख, कान,जीभ आदि ज्ञानेंद्रियों की शक्ति क्षीण होना |
३] बल, ओज तथा रोगप्रतिकारक शक्ति का नाश | शुक्र धातु पतली होने से स्वप्नदोष, पुंसत्वनाश जैसी व्याधियाँ |
४] अनेक त्वचा-रोग, सूजन व उच्च रक्तचाप (hypertension) जैसी व्याधियाँ |
उपरोक्त समस्याएँ होने पर नमक का सेवन पूर्णत: बंद कर कडवे, कसैले व मधुर पदार्थो का सेवन करें |

ध्यान दें : १] नमकीन पदार्थ पित्त-प्रकोपक होते हैं परंतु सेंधा नमक इसका अपवाद है | इसके सिवा अन्य सभी नमक आँखों के लिए हानिकारक हैं |
२] ज्यादा नमक खानेवाले व्यक्ति शारीरिक-मानसिक क्लेश व रोग आदि का प्रहार सहने में सक्षम नही होते | वे जल्दी थक जाते हैं |


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

Sunday, February 4, 2018

रूचि व भूखवर्धक,उष्ण प्रकृतिवाला,वात-कफशामक – बैंगन

सब्जियों का राजा कहलानेवाला बैंगन स्वादिष्ट, रूचि व भूख वर्धक, उष्ण प्रकृतिवाला, वात-कफनाशक, अल्प मात्रा में पित्तकारक एवं पचने में हलका होता है | ताजे, छोटे और कोमल बैंगन कफ व वायु के साथ पित्तशामक भी होते हैं | ये बल-वीर्यवर्धक माने जाते हैं | सफेद की अपेक्षा काले बैंगन अधिक गुणवाले होते हैं | शीत, वसंत एवं वर्षा ऋतू में बैंगन का सेवन स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है | बुखार उतरने के बाद कोमल बैंगन की सब्जी का सेवन हितकर है |

बैंगन का भुरता
बैंगन को अंगारों पर भूनकर मसलने से बैंगन का भुरता बनता है | इसमें तेल और नमक मिलाने से यह पचने में भारी एवं स्निग्ध हो जाता है अत: बिना तेल व नमक डाले ही इसका सेवन करना चाहिए | इसमें धनिया, जीरा चूर्ण डाल सकते हैं | इसके सेवन से सप्तधातुओं, विशेषत: शुक्र धातु को पोषण मिलता है | यह कफ, वायु और आम (अपक्व आहार-रस ) को मिटाता है | यह कब्ज व मोटापा कम करने में भी लाभकारी है |

रोगानुसार बैंगन के प्रयोग
तिल्ली (spleen)वृद्धि : मलेरिया बुखार से तिल्ली बढ़ गयी हो और इससे शरीर पीला पड़ गया हो तो भुने हुए कोमल बैंगन रोज सुबह खाली पेट गुड़ के साथ खाने से लाभ होता है |

अरुचि : भूख की कमी या भोजन में अरुचि हो तो कम मसालेवाले भरवाँ बैंगन लाभदायी हैं |

साँस फूलना : ४ चम्मच बैंगन के पत्तों का रस, १ चम्मच शहद और २ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में ३ बार लेने से कफ पिघल के निकल जाता है और साँस फूलने से राहत मिलती है |

वायु की तकलीफ: तेल और हींग का छौंक लगा के बनाया हुआ बैंगन का साग वायु की तकलीफों में एवं बारिश के मौसम में विशेष लाभकारी है |

अफरा : बैंगन का साग, भुरता या सूप बना के हींग और जीरा के साथ सेवन करने से अफरा कम होता हैं |

सावधानियाँ : १] अधिक पके हुए व ज्यादा बीजवाले बैंगन वायु व पित्त वर्धक तथा पचने में भारी होते हैं अत: इनका सेवन न करें |
२] पित्त प्रकृतिवालों को बैंगन का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए | बवासीर, रक्तपित्त आदि पित्तजन्य रोगों में तथा सगर्भा स्त्रियों को बैंगन नही खाने चाहिए | ग्रीष्म व शरद ऋतू में इनका सेवन वर्जित है |


लोककल्याण सेतु – फरवरी २०१८ से 

स्वास्थ्य –कुंजियाँ

-      कब्ज ठीक करने के लिए प्रात:काल गुनगुना पानी अथवा थोडा शहद व नींबू मिला पानी पीकर सैर करना अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेना हितकारी है | कब्ज हेतु त्रिफला का प्रयोग लम्बे समय तक न करें |

-         ४२ साल की उम्र के बाद घी-शहद की विषम मात्रा के साथ २-३ ग्राम रसायन चूर्ण या त्रिफला चूर्ण – दोनों में से जो अनुकूल हो वह लेना स्वास्थ्य रक्षा के लिए बड़ा हितकारी है |


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से

शरीर को पुष्ट व शक्ति – सम्पन्न कैसे बनाये (भाग – २)

शतावरी क्षीरपाक
लाभ: १] पित्तजन्य विकारों, जैसे – अम्लपित्त, दस्त के साथ खून आना तथा हाथ, पैर, तलवों व आँखों की जलन आदि में बहुत ही लाभदायी है |
२] आमाशय के व्रण मिटाने में लाभकारी है |
३] रक्तपित्त (शरीर के किसी भी भाग से खून आना) में क्षीरपाक में १ चम्मच देशी गाय का घी व मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट लें |
४] सगर्भावस्था में इसके सेवन से गर्भस्त्राव या गर्भपात का भय नही रहता | (सातवें महीने के बाद इसका सेवन न करें, इससे प्रसूति में रुकावट हो सकती है |) प्रसूति के बाद इसे लेने से जिन माताओं को दूध नहीं आता हो उनको भी दूध खुलकर आने लगता है |
५] दिमागी कमजोरी – शुक्र व ओज क्षय से याददाश्त की कमजोरी, पागलपन, मिर्गी आदि विकार उत्पन्न होते हैं | उस समय शतावरी क्षीरपाक में १ चम्मच शतावरी-सिद्ध घृत मिलाकर लेने से विशेष लाभ होता है |

शतावरी क्षीरपाक बनाने की विधि :  १००-१०० मि.ली. दूध व पानी मिला के उसमें ५ ग्राम शतावरी चूर्ण डालें एवं धीमी आँच पर उबालें | पानी जलकर मात्र दूध शेष रहने पर पाक को सिद्ध हुआ समझें | उसमें मिश्री मिला के पियें |
सेवन-मात्रा : १०० मि.ली. क्षीरपाक दिन में १-२ बार लें | बच्चों को ५० मि.ली. दें |

शतावरी-सिद्ध घृत बनाने की विधि :
शतावरी पीस के इसका निकाला हुआ ५० ग्राम रस लें | (ताज़ी शतावरी के अभाव में ५० ग्राम शतावरी चूर्ण रात को १०० मि.ली. पानी में भिगोकर सुबह प्रयोग में लायें |) इसमें २०० ग्राम देशी गाय का घी और ८०० ग्राम पानी डालकर धीमी आँच पर उबलने दें | जब सारा पानी वाष्पीभूत हो जाय और घी को उतार के छान लें और स्वच्छ बोतल में रख लें |

(शतावरी चूर्ण संत श्री आशारामजी आश्रमों व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है तथा शतावरी घृत आश्रम संचालित आरोग्य केन्द्रों पर उपलब्ध है |)

सावधानी : क्षीरपाक सेवन के बाद एक – डेढ़ घंटे तक कुछ भी न खायें |


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

बलवान, तेजस्वी व गोरी संतान हेतु

गर्भिणी स्त्री पलाश का एक कोमल पत्ता घोंटकर देशी गोदुग्ध के साथ रोज सेवन करे | इससे बच्चा शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पिता भले काले हों, फिर भी संतान गोरी होगी | 

इसके साथ (संत श्री आशारामजी आश्रमों व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध) सुवर्णप्राश की २ – २ गोलियाँ लेने से संतान तेजस्वी होगी | - पूज्य बापूजी


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१८ से 

परीक्षा के दिनों में ....

१] पढ़ाई करते समय हर २-३ घंटे में  ५-१०मिनट मस्तिष्क को आराम दें | इस दौरान थोड़ा भगवन्नाम – उच्चारण करें, कीर्तन गुनगुनायें और शांत, एकाग्र हो जायें |

२] ५-६ घंटे बैठक होने पर थोड़ा कूदें –फाँदें, खुली हवा में टहलें अथवा कोई शारीरिक कार्य करें | इससे मानसिक थकान दूर होगी और मन नये उत्साह से पढ़ने में लगेगा |

३] सुबह उठने के बाद अपने शरीर को खींचते हैं तो आलस्य दूर होता है और जीवनी शक्ति का प्रवाह पुरे शरीर में फैलता है | यह प्रयोग कर दिन में भी बीच-बीच में लाभ उठायें |

४] थकान दूर कर ताजगी पाने के लिए उपयोगी कपूर का प्रयोग करें |

परीक्षा के अलावा के दिनों में भी इन कुंजियों का लाभ ले सकते हैं |


ऋषिप्रसाद – फरवरी-२०१८ से