Search This Blog

Sunday, February 4, 2018

रूचि व भूखवर्धक,उष्ण प्रकृतिवाला,वात-कफशामक – बैंगन

सब्जियों का राजा कहलानेवाला बैंगन स्वादिष्ट, रूचि व भूख वर्धक, उष्ण प्रकृतिवाला, वात-कफनाशक, अल्प मात्रा में पित्तकारक एवं पचने में हलका होता है | ताजे, छोटे और कोमल बैंगन कफ व वायु के साथ पित्तशामक भी होते हैं | ये बल-वीर्यवर्धक माने जाते हैं | सफेद की अपेक्षा काले बैंगन अधिक गुणवाले होते हैं | शीत, वसंत एवं वर्षा ऋतू में बैंगन का सेवन स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है | बुखार उतरने के बाद कोमल बैंगन की सब्जी का सेवन हितकर है |

बैंगन का भुरता
बैंगन को अंगारों पर भूनकर मसलने से बैंगन का भुरता बनता है | इसमें तेल और नमक मिलाने से यह पचने में भारी एवं स्निग्ध हो जाता है अत: बिना तेल व नमक डाले ही इसका सेवन करना चाहिए | इसमें धनिया, जीरा चूर्ण डाल सकते हैं | इसके सेवन से सप्तधातुओं, विशेषत: शुक्र धातु को पोषण मिलता है | यह कफ, वायु और आम (अपक्व आहार-रस ) को मिटाता है | यह कब्ज व मोटापा कम करने में भी लाभकारी है |

रोगानुसार बैंगन के प्रयोग
तिल्ली (spleen)वृद्धि : मलेरिया बुखार से तिल्ली बढ़ गयी हो और इससे शरीर पीला पड़ गया हो तो भुने हुए कोमल बैंगन रोज सुबह खाली पेट गुड़ के साथ खाने से लाभ होता है |

अरुचि : भूख की कमी या भोजन में अरुचि हो तो कम मसालेवाले भरवाँ बैंगन लाभदायी हैं |

साँस फूलना : ४ चम्मच बैंगन के पत्तों का रस, १ चम्मच शहद और २ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में ३ बार लेने से कफ पिघल के निकल जाता है और साँस फूलने से राहत मिलती है |

वायु की तकलीफ: तेल और हींग का छौंक लगा के बनाया हुआ बैंगन का साग वायु की तकलीफों में एवं बारिश के मौसम में विशेष लाभकारी है |

अफरा : बैंगन का साग, भुरता या सूप बना के हींग और जीरा के साथ सेवन करने से अफरा कम होता हैं |

सावधानियाँ : १] अधिक पके हुए व ज्यादा बीजवाले बैंगन वायु व पित्त वर्धक तथा पचने में भारी होते हैं अत: इनका सेवन न करें |
२] पित्त प्रकृतिवालों को बैंगन का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए | बवासीर, रक्तपित्त आदि पित्तजन्य रोगों में तथा सगर्भा स्त्रियों को बैंगन नही खाने चाहिए | ग्रीष्म व शरद ऋतू में इनका सेवन वर्जित है |


लोककल्याण सेतु – फरवरी २०१८ से 

No comments: