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Monday, December 23, 2013

बुद्धि, शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक प्रयोग

हेमंत ऋतू में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है | इस समय पौष्टिक पदार्थों का सेवन कर वर्षभर के लिए शारीरिक शक्ति का संचय किया जा सकता है | निम्नलिखित प्रयोग केवल १५ दिन तक करने से शारीरिक कमजोरी दूर होकर शरीर पुष्ट व बलवान बनता है, नेत्रज्योति बढती है तथा बुद्धि को बाल मिलता है |

सामग्री : बादाम ५ ग्राम, खसखस १० ग्राम, मगजकरी (ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, पेठा व लौकी के बीजों का समभाग मिश्रण) ५ ग्राम, कालीमिर्च ७.५ ग्राम,मालकंगनी २.५ ग्राम, गोरखमुंडी ५ ग्राम |

विधि : रात्रि को उपरोक्त मिश्रण कुल्हड़ में एक गिलास पानी में भिगोकर रखें | सुबह छानकर पानीपी लें व बचा हुआ मिश्रण खूब महीन पीस लें | इस पिसे हुए मिश्रण को धीमी आँच पर देशी घी में लाल होने तक भुने | ४०० मि.ली. दूध में मिश्री व यह मिश्रण मिला के धीरे-धीरे चुसकी लेते हुए पियें |

१५ दिन तक यह प्रयोग करने से बौद्धिक व शारीरिक बल तथा नेत्रज्योति में विशेष वृद्धि होती है | इसमें समाविष्ट बादाम, खसखस व मगजकरी मस्तिष्क को बलवान व तरोताजा बनाते हैं | मालकंगनी मेधाशक्तिवर्धक है | यह ग्रहण व स्मृति शक्ति को बढाती है एवं मस्तिष्क तथा तंत्रिकाओं को बाल प्रदान करती है | अत: पक्षाघात (अर्धांगवायु), संधिवात, कंपवात आदि वातजन्य विकारों में, शारीरिक दुर्बलता के कारण उत्पन्न होनेवाले श्वाससंबन्धी रोगों, जोड़ों का दर्द, अनिद्रा, जीर्णज्वर (हड्डी का बुखार) आदि रोगों में एवं मधुमेह के कृश व दुर्बल रुग्णों हेतु तथा सतत बौद्धिक काम करनेवाले व्यक्तियों व विद्यार्थियों के लिए यह प्रयोग बहुत लाभदायी है | इससे मांस व शुक्र धातुओं की पुष्टि होती है |

For improving strength, intelligence and eye sight

Digestive power remain strong in Autumn season. During this period, one should consume nutritional food to help sustain a healthy body for the rest of the year. By the following practice for only 15 days, physical strength, eye sight and intellect can be greatly improved.


Contents: Almond 5 grams, Poppy seeds 10 grams, Magajkari(Cucumber, Rockmelon, Watermelon, Ashgourd and Bottlegourd seeds are mixed in equal proportions) 5 grams, black pepper 7.5 grams, Malkangani 2.5 grams, Gorakhmundi 5 grams


Procedure: Store the above mixture in a pitcher along with a glass of added water. In the morning, drink that water after sieving properly. The sieved mixture is to be finely grounded and then lightly fried in clarified butter till they turn red. Then, take that mixture along with half liter milk, with little rock sugar and drink with slow sips.

Doing this for 15 days will enhance mental, physical faculties and you shall observe a remarkable improvement in eyesight. Equal proportions of almonds, poppy seeds and Magajkari enhance the intellect. Malkangani improves intellectual capabilities. It also improves grasping power and memory retention and provides strength to nerve centres. Thus, in cases of osteoarthritis, hemiphlegia, uncontrollable shaking of body, etc other ailments of Vata, physical weakness, breathing ailments, joint pain, insomnia, fever of bones, etc. including diabetes, all would greatly benefit from this procedure. This would also help those who are engaged in an occupation which requires constant mental work and students. This also enhances muscles and improves sperm count.
- Rishi Prasad Dec' 2013

ख़ास सर्दियों के लिए बुद्धिशक्तिवर्धक प्रयोग

Ø मालकंगनी (ज्योतिष्मती) उत्तम मेधावर्धक हैं | १ से १० बूँद मालकंगनी तेल बतासे पर डालकर खायें | ऊपर से गाय का दूध पियें | ४० दिन तक यह प्रयोग करने से ग्रहण व स्मृति शक्ति में लक्षणीय वृद्धि होती है | इन दिनों में उष्ण, तीखे, खट्टे पदार्थों का सेवन न करें | दूध व घी का उपयोग विशेष रूप से करें |

Ø बादाम बौद्धिक, शारीरिक शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक हैं | रात को ४ बादाम पानी में भिगो दें | सुबह छिलके उतार के जैसे हाथ से चंदन घिसते हैं, इस तरह घिस के दूध में मिलाकर सेवन करें | इस प्रकार से घिसा हुआ १ बादाम १० बादाम की शक्ति देता है | बालकों के लिए १ से २ बादाम पर्याप्त हैं |

प्रतिदिन मोरारजी देसाई गिनकर सात काजू खाते थे | इससे अधिक बादाम या काजू खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं | इससे गुर्दे (किडनी) और यकृत (लीवर) कमजोर हो जाते हैं | बिना भिगोये अथवा बिना छिलके उतारे बादाम खाने से पाचनतंत्र पर अधिक जोर पड़ता है |

Ø काले तिल मस्तिष्क व शारीरिक दुर्बलता को दूर करते हैं | १० ग्राम काले तिल सुबह खूब चबा-चबाकर खायें | ऊपर से ठंडा पानी पियें | बाद में २ – ३ घंटे तक कुछ न खायें | इससे शरीर को खूब पोषण मिलेगा | दाँत व केश भी मजबूत बनेगें | (पित्त प्रकृति के लोग यह प्रयोग न करें )

Ø ५० – ५० ग्राम गुड और अजवायन को अच्छी तरह कूटकर ६ – ६ ग्राम की गोलियाँ बना लें | प्रात: सायं एक-एक गोली पानी के साथ लें | एक सप्ताह में ही शरीर पर फैले हुए शीतपित्त के लाल चकत्ते दूर हो जाते हैं |

Special technique to improve memory during cold season

- Malkangani (Jyotishmati) is a supreme intellectual enhancer. Eat sugar candy with 1 to 10 drops of Malkangani on it. Drink cow milk on top of it. 40 days of this practice will enhance grasping power and memory retention in a remarkable way. During this period, abstain from hot, sour, spicy foods. Use more milk and clarified butter in your diet.


- Almonds are naturally known for enhancing mental, physical power and eyesight. Soak 5 almond seeds in water overnight. Remove the cover of the almonds and then take them with milk. In this way, one almond seed with provide you the power equivalent to 10 seeds. For kids, 1 to 2 seeds are sufficient.


- Everyday Morarji Desai used to eat exactly seven cashews. Any more of it will harm the body. Any excess consumption will weaken the kidney and liver. Also, eating almonds without removing their outer covering puts excess stress on the digestive system.


- Black sesame seeds are used to overcome mental and physical weakness. 10 grams of black sesame seeds should be taken in the morning and chewed thoroughly while eating. Drink cold water on top of it. Do not eat anything else for 2-3 hours after it. This provides great strength to the body. It also strengthens teeth and hair. (Those suffering from acidity should abstain from this procedure.)

- Grind 50-50 grams of jaggery and ajwain finely and make small candies of 6 grams each. Take one-one candy in the morning and evening along with water. Within a week, any of the bile that had accumulated during winter and had spread out across the body will begin to wane away.
- Rishi Prasad Dec' 2013

मकर संक्रांति ( १४ जनवरी )



आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति ( १४ जनवरी )

जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन नारायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है | इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है | उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है | नीचे के केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है | संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है | इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें | जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म होगा | हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे के विकार भोगकर सुखी होने की पाश्च्यात्य सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है |
सम्यक क्रांति.... ऐसे तो हर महीने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है | उसीका इंतजार किया था भीष्म पितामह ने | उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी |
पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन
जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह ७ जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है | संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो |
भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें | इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है | पानी में भी थोड़े तिल डाल के पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है | तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है | इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल होता है | जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं | तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतू-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है | तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतू-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है |


सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र
ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था | उनके बाद रजा मनु को, यमराज को.... ऐसी परम्परा चली | भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं | कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है ! कुछ भी लेना नहीं, न किसीसे राग है न द्वेष हैं | अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं |
‘पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: |  अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा |

ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार
सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोतरी होती है | ॐ सूर्याय नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम: |..... आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है | इसमें प्राणायम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है |
सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है | सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है |
आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान
सूर्य की धुप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है | धुप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते है | इससे सुखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है |
सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है | कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है |
मैं १५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धुप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान कर लें | इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता हिया | सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है | मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं है | स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए |
सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं | रक्त में कौल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है | सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है | लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है | गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है | रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |

नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं | विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सुखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं |

अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धुप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ लो |
दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन
उत्तरायण यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है | तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकुर्ति में लीं करके मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ | और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्दों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे | ॐ शांति .... ॐ आनंद .... ‘

रात को ‘ॐ सूर्याय नम: |’ इस मंत्र का चिंतन करके सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे | उससे बुद्धि का विकास होगा |

-    ऋषि प्रसाद – दिसम्बर २०१३ से              

अमृतफल आँवला

आँवला धातुवर्धक श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है | इसके नित्य सेवन से शरीर में तेज, ओज, शक्ति, स्फूर्ति तथा वीर्य की वृद्धि होती है | यह टूटी हुई अस्थियों को जोड़ने में सहायक है तथा दाँतों को मजबूती प्रदान करता है | इसके सेवन से आयु, स्मृति व बल बढ़ता है | ह्रदय एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलती है | बालों की जड़ें मजबूत होकर बाल काले होते हैं |

ताजे आँवले के रस में नारंगी के रस की अपेक्षा २० गुना अधिक विटामिन ‘सी’ होता है | ह्रदय की तीव्र गति अथवा दुर्बलता, रक्त-संचार में रुकावट आदि विकारों में आँवले के सेवन से लाभ होता है | आँवले के सेवन से त्वचा का रंग निखर आता है व कांति बढती है |

वर्षभर किसी-न-किसी रूप में आँवले का सेवन अवस्य करना चाहिए | यह वर्षभर निरोगता व स्वास्थ्य प्रदान करनेवाली दिव्य औषधि है |

- ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१३ से

Ambrosia of all fruits - Amla

Amla is the supreme fruit that enhances virility. Regular consumption of this fruit builds strength, agility, charisma and virility. It also helps rebuild broken bones in the body and impart strength to the teeth. Regular consumption enhances longevity, memory retention and strength. It nourishes the heart and brain. Roots of hair become strong and remain dark.

Fresh Amla juice has 20 times more vitamin C as compared to orange juice. Rapid heart rate or its weakness, constrictions in blood flow, etc. are also alleviated through amla. Amla brings forth a radiant glow in the skin.

Throughout the year, one should continue to take amla in some form or the other. It is a divine medicine which imparts good well being and freedom from ailments.

Rishi Prasad - December 2013

‘प्रणव’ (ॐ) की महिमा (चतुर्दशी आर्द्रा नक्षत्र योग : १४ जनवरी सुबह ७-२२ से १५ जनवरी सुबह ७-५२ तक)

सूतजी ने ऋषियों से कहा : “महर्षियों ! ‘प्र’ नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसाररूपी महासागर का | प्रणव इससे पार करने के लिए (नव) नाव है | इसलिए इस ॐकार को ‘प्रणव’ की संज्ञा देते हैं | ॐकार अपना जप करनेवाले साधकों से कहता है – ‘प्र –प्रपंच, न – नहीं है, व: - तुम लोगों के लिए |’ अत: इस भाव को लेकर भी ज्ञानी पुरुष ‘ॐ’ को ‘प्रणव’ नाम से जानते हैं | इसका दूसरा भाव है : ‘प्र – प्रकर्षेण, न – नयेत, व: -युष्मान मोक्षम इति वा प्रणव: | अर्थात यह तुम सब उपासकों को बलपूर्वक मोक्ष तक पहुँचा देगा|’ इस अभिप्राय से भी ऋषि-मुनि इसे ‘प्रणव’ कहते हैं | अपना जप करनेवाले योगियों के तथा अपने मंत्र की पूजा करनेवाले उपासको के समस्त कर्मो का नाश करके यह उन्हें दिव्य नूतन ज्ञान देता है, इसलिए भी इसका नाम प्रणव – प्र (कर्मक्षयपूर्वक) नव (नूतन ज्ञान देनेवाला) है |

इस मायारहित महेश्वर को ही नव अर्थात नूतन कहते हैं | वे परमात्मा प्रधान रूप से नव अर्थात शुद्धस्वरुप हैं, इसलिए ‘प्रणव’ कहलाते हैं | प्रणव साधक को नव अर्थात नवीन (शिवस्वरूप) कर देता है, इसलिए भी विद्वान पुरुष इसे प्रणव के नाम से जानते है अथवा प्र – प्रमुख रूप से नव – दिव्य परमात्म – ज्ञान प्रकट करता है, इसलिए यह प्रणव है |

यध्यपि जीवन्मुक्त के लिए किसी साधन की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह सिद्धरुप है, तथापि दूसरों की दृष्टि में जब तक उसका शरीर रहता है, टीवी तक उसके द्वारा प्रणव – जप की सहज साधना स्वत: होती रहती है | वह अपनी देह का विलय होने तक सूक्ष्म प्रणव मंत्र का जप और उसके अर्थभूत परमात्म-तत्त्व का अनुसंधान करता रहता है | जो अर्थ का अनुसंधान न करके केवल मंत्र का जप करता है, उसे निश्चय ही योग की प्राप्ति होती है | जिसने इस मंत्र का ३६ करोड़ जप कर लिया ही, उसे अवश्य ही योग प्राप्त हो जाता है | ‘अ’ शिव है, ‘उ’ शक्ति है और ‘मकार’ इन दोनों की एकता यह त्रितत्त्वरूप है, ऐसा समझकर ‘ह्रस्व प्रणव’ का जप करना चाहिए | जो अपने समस्त पापों का क्षय करना चाहते हैं, उनके लिए इस ह्रस्व प्रणव का जप अत्यंत आवश्यक है |

वेद के आदि में और दोनों संध्याओ की उपासना के समय भी ॐकार का उच्चारण करना चाहिए | भगवान शिव ने भगवान ब्रम्हाजी और भगवान विष्णु से कहा : “मैंने पूर्वकाल में अपने स्वरूपभूत मंत्र का उपदेश किया है, जो ॐकार के रूप में प्रसिद्ध है | वह महामंगलकारी मंत्र है | सबसे पहले मेरे मुख से ॐकार ( ॐ ) प्रकट हुआ, जो मेरे स्वरूप का बोध करानेवाला है | ॐकार वाचक है और मैं वाच्य हूँ | यह मंत्र मेरा स्वरुप ही है | प्रतिदिन ॐकार का निरंतर स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है |

मुनीश्वरो ! प्रतिदिन दस हजार प्रणवमंत्र का जप करें अथवा दोनों संध्याओं के समय एक-एक हजार प्रणव का जप किया करें | यह क्रम भी शिवप्रद की प्राप्ति करानेवाला है |

‘ॐ’ इस मंत्र का प्रतिदिन मात्र एक हजार जप करने पर सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है |

प्रणव के ‘अ’ , ‘उ’ और ‘म’ इन तीनों अक्षरों से जीव और ब्रम्ह की एकता का प्रतिपादन होता है – इस बात को जानकर प्रणव ( ॐ ) का जप करना चाहिए | जपकाल में यह भावना करनी चाहिए कि ‘हम तीनों लोकों की सृष्टि करनेवाले ब्रम्हा, पालन करनेवाले विष्णु तथा संहार करनेवाले रुद्र जो स्वयंप्रकाश चिन्मय हैं, उनकी उपसना करते हैं | यह ब्रम्हस्वरूप ॐकार हमारी कर्मन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों की वृत्तियों को, मन की वृत्तियों को तथा बुद्धि की वृत्तियों को सदा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले धर्म एवं ज्ञान की ओर प्रेरित करे | प्रणव के इस अर्थ का बुद्धि के द्वारा चिंतन करता हुआ जो इसका जप करता है, वह निश्चय ही ब्रम्ह को प्राप्त कर लेता है | अथवा अर्थानुसंधान के बिना भी प्रणव का नित्य जप करना चाहिए | (‘शिव पुराण’ अंतर्गत विद्धेश्वर संहिता से संकलित)

भिन्न-भिन्न काल में ‘ॐ’ की महिमा

आर्दा नक्षत्र से युक्त चतुर्दशी के योग में (दिनांक १४ जनवरी २०१४ को सुबह ७-२२ से १५ जनवरी सुबह ७-५२ तक) प्रणव का जप किया जाय तो वह अक्षय फल देनेवाला होता है |

 - ऋषि प्रसाद –दिसम्बर २०१३ से


Friday, December 6, 2013

दिमागी ताकत व तरावट लानेवाला योग

लाभ : यह योग शरीर के लिए तो पौष्टिक है ही, साथ ही दिमागी ताकत और तरावट के लिए भी बहुत गुणकारी है | विद्यार्थियों के लिए यह नुस्खा विशेष लाभदायी है |

विधि : ५०० ग्राम बबूल की गोंद शुद्ध घी में तलें व फुल जाने पर निकाल के बारीक़ पीस लें | इसमें बराबर मात्रा में पिसी मिश्री मिला लें | २५० ग्राम बीज निकाला हुआ मुनक्का और १०० ग्राम बादाम की गिरी दोनों को कूट-पीसकर इसमें मिला लें |

मात्रा : सुबह नाश्ते के रूप में इसे २ चम्मच अर्थात लगभग २० – २५ ग्राम खूब चबा-चबाकर खायें | फिर एक गिलास मीठा दूध घूँट –घूँट करके पी लें |

ध्यान दें : अच्छी तरह खुलकर भूख लगने पर ही भोजन करें |

Yoga for mental strength and acuity
Benefits: This yoga not only energises the body, but is also beneficial towards improving your mental strength and acuity. This yoga will specially benefit students.
Technique: Take 500 grams of amber from Acacia (Babul) tree and stir fry in clarified cow butter and once it swells up, pull it out and grind it to powder. Add equal proportion of ground rock sugar in it. Also, add 250 grams of pitted Munakka and 100 grams of  almonds, all grounded to get a uniform mixture.

Dosage: Take two spoons, roughly 20-25 grams of this mixture as a morning breakfast. Chew it properly while consuming it. Then, take a glass of sweet milk after it.
Caution: Take meals only after you have a proper sensation of hunger.

लोक कल्याण सेतु – नवम्बर २०१३ से

छुहारे की पौष्टिक खीर

विधि : १ से ३ मीठे छुहारे रात को पानी में भिगो दें | सुबह गुठली निकालकर पीस लें | एक कटोरी दूध में थोडा पानी, पिसे छुहारे व मिश्री मिला के उबाल लें | खीर तैयार !

लाभ : यह खीर बालकों के शरीर में रक्त, मांस, बाल तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढाती है | टी.बी., कुक्कर खाँसी, सुखारोग आदि से बच्चों का रक्षण करती हैं | गर्भिणी स्त्री यदि तीसरे महीने से इसका नियमित सेवन करे तो गर्भ का पोषण उत्तम होता है | कुपोषित बालकों व गर्भिणी स्त्रियों के लिए यह खीर अमृततुल्य है |


Milk porridge made from Chhuara (a type of date)

How to prepare: Soak 1-3 sweet chhuara overnight. Remove the seeds in the morning. Take a bowl of  milk, with little water, mashed chhuara and rock sugar, boil them together. Porridge is ready!
Benefits: This porridge enhances the blood level in the body, nourishes the muscles, hair follicles and enhances immunity. Tuberculosis, dry cough, dehydration, etc. and many other ailments can be prevented in children. If pregnant women take this regularly from their third month, it nourishes the womb greatly. For malnourished children or expectant mothers, this porridge is like ambrosia.

लोक कल्याण सेतु – नवम्बर २०१३ से 

घरेलु सात्त्विक शिशु आहार (Baby Food)

आजकल बालकों को दूध के आलावा बाजारू बेबीफ़ूड (फँरेक्स आदि) खिलाने की रीति चल पड़ी है | बेबीफ़ूड बनाने की प्रक्रिया में अधिकांश पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, कई बार कृतिम रूप से वापस मिलाये जाते हैं, जिसे बालकों की आँते अवशोषित नही कर पाती | बेबीफूड का मुख्य घटक अतिशय महीन पिसा हुआ गेहूँ का आटा है, जो चिकना होने के कारण आँतों में चिपक जाता है | आटा पीसने के बाद एक हप्ते में ही गुणहीन हो जाता है जबकि बेबीफ़ूड तैयार होने के बाद हाथ में आने तक तो कई हफ्ते गुजर जाते हैं | ऐसे हानिकारक बेबीफ़ूड की अपेक्षा शिशुओं के लिए ताजा, पौष्टिक व सात्त्विक खुराक परम्परागत रीति से हम घर में ही बना सकते हैं |

विधि : १ कटोरी चावल (पुराने हो तो अच्छा), २ - २ चम्मच मूँग की दाल व गेंहूँ – इन सबको साफ़ करके धोकर छाँव में अच्छी तरह से सुखा लें | धीमी आँच पर अच्छे – से सेंक लें | मिक्सर में महीन पीर के छान लें | ३ – ४ माह के बालक के लिए शुरुआत में आधा कप पानी में आधा छोटा चम्मच मिलाकर पका लें | थोडा–सा सेंधा नमक डालकर पाचनशक्ति अनुसार दिन में एक या दो वार दे सकते हैं | धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते जायें | बालक बड़ा होने पर इसमें उबली हुई हरी सब्जियाँ, पिसा जीरा, धनिया भी मिला सकते हैं | हर ७ दिन बाद ताजा खुराक बना लें |

यह स्वादिष्ट व पचने में अतिशय हल्का होता है | साथ ही शारीरिक विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन्स, खनिज व कार्बोहाइड्रेटस की उचित मात्रा में पूर्ति करता है |

लोक कल्याण सेतु – नवम्बर २०१३ से

Pure and pious homely food for babies

These days, babies are fed with market foods (Forex, etc.) along with milk. Most of these baby foods lose their nutrition during their preparation. Sometimes, they are re-introduced artificially which a baby's intestines are not always capable of fully absorbing. The main ingredient of any baby food is finely grounded wheat. It is shiny in nature and easily sticks to the inner walls of intestines. After a week of grinding, most of the wheat loses all its essential nutrients. But, many weeks pass by before one gets his hands on that food. Contrary to such harmful babyfood, it is better to feed babies with fresh, nutritious and pious food prepared at home in traditional ways.

Process: Take one bowl of rice (preferably old rice), 2-2 spoons of moong lentils and wheat. Wash them thoroughly and then dry them out in a shaded area. Then, roast them lightly in mild heat. Then grind them out in a mixer and sieve it. For a baby who is 3-4 months old, prepare the food with boiling half cup water with half small spoon of this mixture. You may also add a little rock salt to improve digestion for once or twice a day. Start increasing the quantity gradually. Once the baby grows bigger, you can also add boiled vegetables, grounded cumin seeds and coriander. Make a fresh potion once a week.

This is tasty and very easy to digest. Simultaneously, the baby gets all the necessary proteins, nutrients and carbohydrates for growth.

Lok Kalyan Setu - November 2013