आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति ( १४ जनवरी )
जिस
दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन नारायण (मकर
संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है | इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है
और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है | उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ,
लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है | नीचे के
केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति
और आनंद होता है | संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है | इस दिन आप सोच
व कर्म की दिशा बदलें | जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म
होगा | हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे के विकार भोगकर सुखी होने की पाश्च्यात्य
सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों
में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच
है |
सम्यक
क्रांति.... ऐसे तो हर महीने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार
आती है | उसीका इंतजार किया था भीष्म पितामह ने | उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने
के बाद ही देह त्यागी थी |
पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन
जो
संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह ७ जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो
संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है | संक्रांति
के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो |
भगवान
सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें | इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल
का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है | पानी में भी थोड़े तिल डाल के
पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है | तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है | इस दिन सुर्योद्रय
से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल होता है | जो भी पुण्यकर्म
उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं | तिल और गुड के व्यंजन,
चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतू-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है |
तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतू-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते
हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है |
सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र
ब्रम्हज्ञान
सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था | उनके बाद रजा मनु को, यमराज को.... ऐसी
परम्परा चली | भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व
निष्काम हैं | कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन
कर सकता है ! कुछ भी लेना नहीं, न किसीसे राग है न द्वेष हैं | अपनी सत्ता-समानता
में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं |
‘पद्म
पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं
स: सूर्याय नम: | अगर इस सूर्य
मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का
प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा |
ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार
सूर्यनमस्कार
करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोतरी होती है | ॐ सूर्याय
नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम: |..... आदि
मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है | इसमें
प्राणायम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है |
सूर्य
की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से
कामनापूर्ति होती है | सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और
नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है |
आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान
सूर्य
की धुप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य
हो जाता है | धुप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते है | इससे सुखा रोग
(Rickets) नहीं होता और
रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है |
सूर्य
की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है | कांड – १, सूक्त
२२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है |
मैं
१५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता
है लेकिन सूर्य की कोमल धुप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान
कर लें | इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता हिया
| सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है | मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं
है | स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन
सूर्यस्नान करना चाहिए |
सूर्यस्नान
से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं | रक्त में कौल्शियम,
फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता
है | सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है | लाल रक्त
कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है | गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के
रोग में भी लाभ होता है | रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य,
प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की
किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर
नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |
नियमित
सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं | विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले
सुखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं |
अत:
आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धुप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ
लो |
दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन
उत्तरायण
यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल
है | तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक
शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकुर्ति में लीं करके मैं परमात्मा में
शांत हो रहा हूँ | और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख
मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्दों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और
समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे | ॐ शांति .... ॐ आनंद .... ‘
रात
को ‘ॐ सूर्याय नम: |’ इस मंत्र का चिंतन करके
सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे |
उससे बुद्धि का विकास होगा |
- ऋषि प्रसाद –
दिसम्बर २०१३ से
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