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Wednesday, May 5, 2021

पुण्यदायी तिथियाँ

 


१९ मई         : बुधवारी अष्टमी ( दोपहर १२:५१ से २० मई सूर्योदय तक )

२३ मई         : त्रिस्पृशा-मोहिनी एकादशी

२४ मई       : वैशाख शुक्ल त्रयोदशी इसी दिन से वैशाखी पूर्णिमा ( २६ मई) तक के प्रात: पुण्यस्नान से सम्पूर्ण वैशाख मास-स्नान का फल व गीता-पाठ से अश्वमेध यज्ञ का फल |

२६ मई     : खग्रास व खंडग्रास चन्द्रग्रहण (पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रों में खंडग्रास दिखेगा, वही नियम पालनीय | कुछ प्रमुख स्थानों के ग्रहण – समयों हेतु देखें लिंक : www.ashram.org/grahan

२ जून          : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से रात्रि १:१३ तक )

६ जून          : अपरा एकादशी ( व्रत से बहुत पुण्यप्राप्ति और बड़े-बड़े पातकों का नाश )

१३ जून       : रविपुष्यामृत योग ( रात्रि ७:०१ से १४ जून सुयोदय तक )

१५ जून       : षडशीति संक्रान्ति (पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर १२:३९ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल)

 

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

हजार एकादशी व्रतों का फल देनेवाला व्रत

 


त्रिस्पृशा एकादशी : २३ मई

एक त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से १००० एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है  | इस एकादशी को रात्रि-जागरण करनेवाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है |

पद्म पुराण में देवर्षि नारदजी के पूछने पर भगवान शिवजी इस व्रत की महिमा बताते हैं कि  “विद्वन ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है इसलिए इसे “वैष्णवी तिथि” कहते हैं |

पूर्वकाल में जब गंगाजी ने भगवान माधव से अपनी पापमुक्ति का उपाय पूछा कि “हृषिकेश ! करोड़ों पापराशियों से युक्त मनुष्य मेरे जल में स्नान करते हैं, उनके पापों और दोषों से मेरा शरीर कलुषित हो गया है | देव ! मेरा वह पातक कैसे दूर होगा ?”

तब भगवान बोले  : “शुभे ! तुम त्रिस्पृशा का व्रत करो | इससे तुम पापमुक्त हो जाओगी | जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा’ समझना चाहिए | यह धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा १०० करोड़ तीर्थों से भी अधिक महत्वपूर्ण है | इस दिन भगवान के साथ सदगुरु कि पूजा करनी चाहिए |”

यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महा दु:खों  का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है | इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा १००० अश्वमेध और १०० वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है | 

यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है | 

इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए | 

जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया | करोड़ों तीर्थों में जो पुण्य तथा करोड़ों क्षेत्रों (पुण्यस्थानों ) में जो फल मिलता है, वह त्रिस्पृशा के उपवास से मनुष्य प्राप्त कर सकता है | पूर्वकाल में स्वयं ब्रम्हाजी ने इस व्रत को किया था, तदनन्तर अनेक ऋषियों ने भी इसका अनुष्ठान किया फिर दूसरों की तो बात ही क्या हैं !”

ऋषिप्रसाद – मई  २०२१ से

समस्याओं के समाधान का बढिया उपाय

 


कोई भी समस्या आये तो बड़ी ऊँगली (मध्यमा) और अँगूठा मिलाकर भ्रूमध्य के नीचे और तर्जनी ( अँगूठे के पासवाली पहली ऊँगली) ललाट पर लगा के शांत हो जायें | श्वास अंदर जाय तो ‘ॐ , बाहर आये तो ‘शांति – ऐसा कुछ समय तक करें | आपको समस्याओं का समाधान बढिया मिलेगा |

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

एक अजूबा है आँवला-चुकंदर शरबत

 


बिना पानी के कोई शरबत आज तक बनता देखा-सुना नहीं किंतु इस शरबत में एक बूँद भी पानी नहीं हैं, है न आश्चर्य की बात ! हाँ, यह सच्चाई है कि इसकी बूँद-बूँद में आँवला रस ही है भरपूर और शरबत के लाभों को चार चाँद लगाने के लिए अल्प मात्रा में चुकंदर (beet) रस भी मिश्रित है | और एक ख़ास बात, इसमें प्रयुक्त आँवले फाल्गुन (मार्च) महीने के हैं, जो कि खटासरहित एवं गुणवत्ता में सर्वोपरि हैं | ये आँवले पूज्य बापूजी की एकांत-स्थली डुंगरिया (पुष्कर) के आध्यात्मिक स्पंदनो से युक्त एवं जैविक खाद से पुष्ट, आरोग्यवर्धक, त्रिदोषशामक, विशेषकर पित्तशामक तथा सर्वगुणकारी हैं |

यह शरबत पित्तवृद्धि से होनेवाली आँखों व पेशाब की जलन, अम्लपित्त (hyperacidity), बवासीर, महिलाओं में होनेवाले अधिक मासिक स्राव, श्वेतप्रदर आदि में लाभदायी है | उष्ण प्रक्रुतिवालों के लिए तथा गर्मीजन्य समस्याओं, जैसे – अधिक पसीना आना, लू लगना, मूँह में छाले, हाथ-पैर के तलवों में जलन आदि में यह विशेष लाभकारी हैं | गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द में यह शरबत शीघ्र राहत दिलाता है | स्वप्नदोष, धातुक्षय व पुरानी बीमारियों से क्षीण व दुर्बल हुए व्यक्तियों तथा युवक – युवतियों के लिए यह वरदानस्वरूप है | यह सभी आयुवर्ग के रोगी-निरोगो व्यक्तियों के लिए लाभदायी है | इसे रविवार को भी उपयोग में ले सकते हैं |

 

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

 

ग्रीष्मकालीन समस्याओं व गर्मी से बचने हेतु विशेष

 

(ग्रीष्म ऋतू : १९ अप्रैल से २० जून तक )

१] ग्रीष्म ऋतू में खान-पान सुपाच्य हो, थोडा कम हो, पानी पीना अधिक हो और रात्रि को जल्दी शयन करें | भोर (प्रात:काल ) में नहा – धो लें ताकि गर्मी निकल जाय | नहाने में मुलतानी मिटटी का उपयोग कर सकते हैं |



सप्तधान्य उबटन पापनाशक व सात्त्विकतादायक है | ग्रीष्म ऋतू में इसका भी उपयोग करना लाभदायी है | इस ऋतू में शैम्पू, रासायनिक साबुनों से परहेज आवश्यक है | मुलतानी मिटटी व सप्तधान्य उबटन तन-मन की सात्त्विकता व प्रसन्नता की खान हैं |



२] बायें नथुने से श्वास लें, ६० से ९० सेकंड श्वास अंदर रोककर गुरुमंत्र या भगवन्नाम का मानसिक जप करें और दायें नथुने से धीरे-धीरे छोड़ें | ऐसा ३ से ५ बार करें | इससे कैसी भी गर्मी हो, आँखे जलती हों, चिडचिडा स्वभाव हो, फोड़े-फुंसियाँ हों उनमें आराम हो जायेगा |



रात को सोते समय थोडा-सा त्रिफला चूर्ण फाँक लेवें अथवा ३ त्रिफला टेबलेट गुनगुने पानी से लें |

३] गर्मी के दिनों में गर्मी से बचने के लिए लोग ठंडाइयाँ पीते हैं | बाजारू पेय पदार्थ, ठंडाइयाँ पिने की अपेक्षा नींबू की शिंकजी बहुत अच्छी है | दही सीधा खाना स्वास्थ्य के लिए हितकारी नहीं है, उसमे पानी डाल के छाछ बनाकर जीरा, मिश्री आदि डाल के उपयोग करना हितकारी होता है |

४] जिसके शरीर में बहुत गर्मी होती हो, आँखें जलती हों उसको दायीं करवट लेकर थोडा सोना चाहिए , इससे शरीर की गर्मी कम हो जायेगी | और जिसका शरीर ठंडा पड़ जाता हो और ढीला हो उसको बायीं करवट सोना चाहिए, इससे स्फूर्ति आ जायेगी |

५] पित्त की तकलीफ है तो पानी-प्रयोग करें (अर्थात रात का रखा हुआ आधा से डेढ़ गिलास पानी सुबह सूर्योदय से पूर्व पिया करें ) |


दूसरा, आँवले का मुरब्बा लें अथवा आँवला रस व घृतकुमारी रस मिलाकर बना पेय पियें | इससे पित्त-शमन होता है |





६] वातदोष हो तो आधा चम्मच आँवला पाउडर, १ चम्मच घी और १ चम्मच मिश्री मिला के सुबह खाली पेट लेने से वातदोष
दूर होते हैं |

७] इस मौसम में तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए | लाल मिर्च, अदरक, खट्टी लस्सी या दही बहुत नुकसान करते हैं | इस मौसम में तो खीर खाओ |

८] जिसको भी गगर्मी हो, आँखें जलती हो वह मुलतानी मिटटी लगा के थोड़ी देर बैठे और फिर स्नान कर ले तो शरीर की गर्मी निकल जायेगी, सिरदर्द दूर होगा |

९] जिसको गर्मी लगे वह तरबूज अच्छी तरह से खाये | फोड़े – फुंसी हो गये हों तो पालक, गाजर ( भीतर का पीला भाग हटाकर), ककड़ी का रस और नारियल पानी को उपयोग में लाने से फोड़े-फुंसी ठीक हो जाते हैं |

१०] जो नंगे सर धूप में घूमते हैं उनकी आँखे कमजोर हो जाती हैं, बुढापा और बहरापन जल्दी आ जाता है | धूप में नंगे पैर और नंगे सिर कभी नहीं घूमना चाहिए | जो तीर्थयात्रा करने जाते हैं उन्हें भी नंगे पैर रिया नहीं घूमना चाहिए |

११] पलाश के पुष्पों के ५० ग्राम काढ़े में थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से गर्मी भाग जाती हैं |

 

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

ग्रीष्म ऋतू में स्वास्थ्य-सुरक्षा हेतु

 

दही, लस्सी से सावधान !

शरदग्रीष्मवसन्तेषु प्रायशो दधि गर्हितम |

‘प्राय: शरद, ग्रीष्म व वसंत ऋतू में दही का सेवन निषिद्ध होता हिया |’ (चरक संहिता, सूत्रस्थान : २७.२२७)



ग्रीष्म ऋतू की गर्मी से राहत पाने के लिए अक्सर जिस दही, मीठी लस्सी आदि का सेवन किया जाता है तथा जो सेवनोपरांत आह्लाद व तृप्तिदायी भी प्रतीत होते हैं उनके विषय में आयुर्वेद कहता है कि ये पदार्थ ग्रीष्म ऋतू में सेवनीय नहीं है | ये खाने में भले ही ठंडे लगते हैं लेकिन इनकी प्रकृति उष्ण है | ग्रीष्म में यह कालविरुद्ध आहार हैं | इससे विरुद्ध आहार-सेवनजन्य बुखार, कुष्ठ, रक्ताल्पता, रक्तपित्त आदि रोग उप्तन्न होते हैं | गर्मियों में निम्नलिखित विधि से बनायी गयी छाछ पी सकते हैं |



देशी गाय के दूध से बने ताजे-मीठे दही में ८ गुना पानी मिलाकर लकड़ी की मथनी से खूब मथ के मक्खन निकाल के जो छाछ बनायी जाती है वह सीतल, सुपाच्य, पित्तशामक, श्रम तथा अधिक प्यास को दूर करनेवाली, वातनाशक तथा कफकारक होती है | यदि इसमें सेंधा या काला नमक व भुना हुआ जीरा मिलाया जाय तो यह जठराग्नि – प्रदीपक भी हो जाती है | इसे घी में हींग व जीरे से छौंक भी सकते हैं अथवा जीरा, धनिया, सौंफ व मिश्री मिला के ले सकते हैं | ऐसी छाछ दिन में मात्र एक बार सुबह भोजन के बाद लें |

अति दुर्बल व्यक्तियों को तथा क्षयरोग (टी.बी.), मूर्च्छा, भ्रम (चक्कर), जलन व रक्तपित्त में छाछ का उपयोग नहीं करना चाहिए |



बल-वीर्यवर्धक श्रीखंड

ग्रीष्म की दाहक किरणों से दुर्बल व तप्त हुए शरीर के लिए देशी गोदुग्ध से बने मधुर, स्निग्ध, बल-वर्धक श्रीखंड का सेवन गुणकारी है | अपनी पाचनशक्ति के अनुसार कभी-कभी इसका सेवन कर सकते हैं |

बाजार में मिलनेवाला श्रीखंड कई दिन पुराना होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है | अत: घर पर बनाये गये ताजे श्रीखंड का उपयोग करें |

 


शीतल -सुपाच्य ज्वार की रोटी

ज्वार सुपाच्य व शीतल होने से गर्मियों में सेवनीय है | ज्वार के आटे में थोडा-सा नमक मिला के आटा गुँथे | तवे पर रोटी डालने के बाद ऊपर से पानी लगायें व धीमी आँच पर सेंके | इससे रोटी की २ पर्ते बनकर वह सुपाच्य व स्वादिष्ट बनती है | ज्वार की रुक्षता को दूर करने के लिए रोटी बनाने के बाद उस पर घी या तेल लगायें | कद्दुकश की हुई लौकी या गाजर, पालक, हरा धनिया, जीरा हल्दी, काली मिर्च (कुटी हुई), नमक आदि के साथ ज्वार का आटा गूँथ के पौष्टिक व स्वादिष्ट रोटी भी बनायी जाती है |

गर्मियों में आहार में इस प्रकार की सावधानी आपके स्वास्थ्य की रक्षा करेगी |

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

गर्मी के दिनों में विशेष उपयोगी वरुण मुद्रा

 


लाभ : इस मुद्रा के अभ्यास से

(१) त्वचा पर झुरियाँ नहीं पड़तीं |

(२) खुजली का शमन होता है |

(३) प्यास, थकावट आदि का निवारण होता है |

(४) खून शुद्ध एवं रक्त-संचार सुगमता से होता है |

(५) हर प्रकार के त्वचा-संबंधी रोगों से बचाव होता है |

(६) आँखों में जलन, सुखी खाँसी आदि में तुरंत लाभ होता है |

(७) जल-तत्त्व की कमी से होनेवाली कई समस्याएँ दूर होती हैं |

(८) त्वचा सूखने से बचती हैं एवं ठंडी रहती है तथा कांतियुक्त बनती है |

 

विधि : पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन आदि किसी आसन में बैठे जायें | कनिष्ठिका (सबसे छोटी) ऊँगली के अग्रभाग को अंगुठे के अग्रभाग से स्पर्श करायें | शेष तीनों उँगलियाँ सीधी तथा जुडी रहें |

समय : प्रतिदिन २० मिनट |

सावधानी : कफ – संबंधी बीमारीवाले यह मुद्रा अधिक देर तक न करें |

(इनकी विधि हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन |)

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

आरोग्य व दीर्घायुष्य प्रदायक उत्तम रसायन

 


हरड विकृत कफ एवं मल का नाश क्रेक बुद्धि तथा ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों का जडत्व नष्ट कर उन्हें सबल बनाती है एवं बल, ओज व वर्ण की वृद्धि करती हैं | अत: आर्युर्वेद ने इसे ‘कायस्था तथा ‘मेध्या’ नामों से गौरवान्वित किया है | सोंठ उत्तम जठराग्निवर्धक, पाचक, कफ-वात-आमदोष तथा दर्द नाशक, वीर्यवर्धक व ह्रदय के लिए हितकर है | आयुर्वेद ने सोंठ को ‘विश्वभेषज सम्भोधित कर इसके औषधीय मूल्यों को प्रकाशित किया है |

पथ्यकर पुराने गुड़ के साथ इन दो श्रेष्ठ औषधीय द्रव्यों का संयोग कर ‘उत्तम रसायन बनाया गया है | यह योग रोग के कारणों को जड़ से मिटानेवाला, आरोग्य व दीर्घायुष्य प्रदायक है | ह्रदयरोग, आमवात (गठिया), संधिवात, सूजन तथा कफजन्य विकार, जैसे – श्वास (asthma), सर्दी, खाँसी, जुकाम तथा पाचन-संस्थान से सम्बधित विकारों, जैसे – मंदाग्नि,पेटदर्द, वायु, कब्ज आदि में यह विशेष लाभदायी है | इसके सेवन से भोजन का सम्यक पाचन व उत्तम आहार-रस क निर्माण होने से शरीर को स्फूर्ति-सम्पन्न, सशक्त व निरोग होने में सहायता मिलती है |

सेवन विधि : २ – २ गोलियाँ दिन में २ बार भोजन के बाद गुनगुने पानी से लें |


ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

कोविड – १९ की दूसरी लहर .....

 

आज देश कोविड-१९ की दूसरी लहर से जूझ रहा है | ऐसे में इस संबंधी आवश्यक सुरक्षात्मक निर्देशों का पालन करें | भारतीय संस्कृति के अनुसार एक-दूसरे की दूर से ही हाथ जोडकर प्रणाम करें, हाथ न मिलायें | सावधानी रखें, घबरायें नहीं |

अपनाएँ ये सुरक्षात्मक उपाय

·       रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने हेतु पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या का पालन करें | सुबह ९ से ११ एवं शाम ५ से ७ बजे के बिच भोजन कर लें |

·       भोजन ताजा, सुपाच्य व संतुलित मात्रा में करें | भोजन में हल्दी, जीरा, दालचीनी एवं धनिया का उपयोग करें | सोंठ या अदरक व काली मिर्च अपनी प्रकृति के अनुसार अनुकूलता देखकर लें | परिस्थितियों को देखते हुए अल्प मात्रा में लहसुन भी डाल सकते हैं | खुलकर भूख लगने पर ज्वार, बैंगन, करेला, सहजन (सरगवा) – इनका सेवन अपनी प्रकृति के अनुसार विशेषरूप से करें | टमाटर, फूलगोभी, अजवायन व संतरा रोगप्रतिकारक शक्ति बढाते हैं | अत: इनका उपयोग हितकारी हैं |

·       कोविड-१९ में कफ व वात की विकृति पायी जाती है | इससे कोई ग्रसित हों तो कफवर्धक आहार, जैसे – फल, चावल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ, मिठाई एवं सूखे मेवे आदि न लें |

·       बाहर जायें तो नाक में तले लगा के जायें |

·       त्रिद्रोषशामक गिलोय का उपयोग लाभकारी हैं | गिलोय रस या २ ग्राम गिलोय चूर्ण सुबह गुनगुने पानी से लें | गिलोय से निर्मित संशमनी वटी का उपयोग भी लाभकारी है ( यह आश्रमों में आरोग्यकेद्रों पर या www.ashramestore.com के द्वारा प्राप्त हो सकती है ) |




·       रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने हेतु तुलसी बीज टेबलेट तथा गिलोय से बनी सुरक्षा वटी का उपयोग करें | गोमूत्र अर्क, आँवला पाउडर, पंचरस, तुलसी अर्क, च्यवनप्राश का सेवन भी लाभदायी है | भय, शोक, चिंता, व्यसन, अधिक उपवास, रात्रि-जागरण, अधिक प्रवास आदि से बचें |



·       गौ-चंदन धूपबत्ती जलाकर उस पर देशी गाय के घी अथवा घानीवाले खाद्य तेल, नारियल तेल की बुँदे डालते रहें और कमरा बंद करके उस शक्तिशाली वायु में प्राणायाम करें, योगासन करें | पानी में गोमूत्र अथवा गोमूत्र अर्क मिला के एवं सप्तधान्य उबटन लगा के स्नान करें |



·       हल्दी-मिश्रित गुनगुने पानी से सुबह-शाम गरारे करें | अमृत द्रव की बुँदे कपड़े या रुई के फाहे पर ले के अथवा कपूर की पोटली बनाकर उसे सूंघें | नीम के पत्ते अथवा गोवर के कंडे का धुआँ करें | गोमुत्रयुक्त ‘गौ शुधि सुगंध (फिनायल) का पौंछा लगायें |

हितकारी काढ़ा :१ इंच दालचीनी का टुकड़ा, २ लौंग, ९ तुलसी-पत्ते व आधा चम्मच सोंठ, १५० मि. ली. पानी में डाल के धीमी आँच पर उबालें | १०० मि.ली. पानी बचने पर उतार लें | ८-१० दिन सुबह-शाम यह काढ़ा पियें | काढ़ा अगर गर्म पड़ता हो तो उसमें थोड़ी मुलेठी या पुदीना अथवा अडूसा के पत्ते मिला सकते हैं | उससे कोविड होने पर भी यह लाभकारी है |

·       कफ की समस्या हो तो ‘प्राणदा टेबलेट आश्रम में शीघ्र ही उपलब्ध होने जा रहा ‘उत्तम रसायन ले लें |

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से

आरोग्य, बुद्धि व स्मरणशक्ति बढाने की युक्ति

 



सुबह – सुबह बच्चों को चाय कभी नहीं देना | डबलरोटी, टोस्ट-वोस्ट, बिस्कुट-विस्कुट के चक्कर में मत पड़ना | सुबह-सुबह बच्चों को अगर खिलाना चाहते हो तो सेब खिलाओ, जिससे दिल-दिमाग को शक्ति मिलती है | उसके आधा-एक घंटे पहले तुलसी के ५ – ७ पत्ते खिलाकर एक गिलास पानी पिलाओ | उस पानी में भी अमृत का गुण आ जाय इसकी एक युक्ति है | वह युक्ति योगी लोग अपने ख़ास शिष्यों को ही बताते हैं | हम आपको बता देते हैं | पानी पीते समय दायाँ नथुना बंद करके बायें नथुने से श्वास चलाकर पानी पियोगे तो वह पानी तुम्हारे आरोग्य और बुद्धि में बड़ी मदद करेगा और स्मरणशक्ति बढ़ाने में भी मदद करेगा |

ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से