त्रिस्पृशा एकादशी : २३ मई
एक त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से १००० एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है
तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है | इस एकादशी को रात्रि-जागरण करनेवाला भगवान
विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है |
पद्म पुराण में देवर्षि नारदजी के पूछने पर भगवान शिवजी इस व्रत की महिमा
बताते हैं कि “विद्वन ! देवाधिदेव भगवान
ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है इसलिए इसे “वैष्णवी तिथि” कहते
हैं |
पूर्वकाल में जब गंगाजी ने भगवान माधव से अपनी पापमुक्ति का उपाय पूछा कि “हृषिकेश
! करोड़ों पापराशियों से युक्त मनुष्य मेरे जल में स्नान करते हैं, उनके पापों और दोषों से मेरा शरीर कलुषित
हो गया है | देव ! मेरा वह पातक कैसे दूर होगा ?”
तब भगवान बोले : “शुभे ! तुम
त्रिस्पृशा का व्रत करो | इससे तुम पापमुक्त हो जाओगी | जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में
त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा’ समझना चाहिए | यह धर्म,अर्थ,
काम और मोक्ष देनेवाली तथा १०० करोड़ तीर्थों से भी अधिक महत्वपूर्ण है | इस दिन
भगवान के साथ सदगुरु कि पूजा करनी चाहिए |”
यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महा दु:खों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है | इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा १००० अश्वमेध और १०० वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है |
यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है |
इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए |
जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण
व्रतों का अनुष्ठान कर लिया | करोड़ों तीर्थों में जो पुण्य तथा करोड़ों क्षेत्रों (पुण्यस्थानों
) में जो फल मिलता है, वह त्रिस्पृशा के उपवास से मनुष्य प्राप्त कर सकता है |
पूर्वकाल में स्वयं ब्रम्हाजी ने इस व्रत को किया था, तदनन्तर अनेक ऋषियों ने भी इसका
अनुष्ठान किया फिर दूसरों की तो बात ही क्या हैं !”
ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से
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