लाभ : इस मुद्रा के अभ्यास से
(१) त्वचा पर झुरियाँ नहीं पड़तीं |
(२) खुजली का शमन होता है |
(३) प्यास, थकावट आदि का
निवारण होता है |
(४) खून शुद्ध एवं रक्त-संचार सुगमता से होता है |
(५) हर प्रकार के त्वचा-संबंधी रोगों से बचाव होता है |
(६) आँखों में जलन, सुखी
खाँसी आदि में तुरंत लाभ होता है |
(७) जल-तत्त्व की कमी से होनेवाली कई समस्याएँ दूर होती हैं |
(८) त्वचा सूखने से बचती हैं एवं ठंडी रहती है तथा कांतियुक्त बनती है |
विधि : पद्मासन,
सिद्धासन या सुखासन आदि किसी आसन में बैठे जायें | कनिष्ठिका (सबसे छोटी) ऊँगली के
अग्रभाग को अंगुठे के अग्रभाग से स्पर्श करायें | शेष तीनों उँगलियाँ सीधी तथा
जुडी रहें |
समय : प्रतिदिन २० मिनट |
सावधानी : कफ – संबंधी बीमारीवाले यह मुद्रा अधिक देर तक न करें |
(इनकी विधि हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन’ |)
ऋषिप्रसाद – मई २०२१ से
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