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Wednesday, August 26, 2020

पुण्यदायी तितियाँ

 


१३ सितम्बर : रविपुष्यामृत योग ( शाम ४:३४ से १४ सितम्बर सूर्योदय तक ), इंदिरा एकादशी (बड़े-बड़े पापों का नाशक तथा नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी सदगति देनेवाला व्रत)

१६ सितम्बर : षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल: जप, सत्संग, कीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान, पूजन किये जाते हैं उनका अक्षय फल होता हिया )

२७ सितम्बर : पद्मिनी एकादशी ( पापनाशक तथा भक्ति, मुक्ति व समस्त तीर्थों, यज्ञों का फलप्रद्रायक व्रत)


लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से

भोजन-पानी से १० गुना शक्तिप्रद : प्राणवायु का ऐसे रखें खयाल

हम १ दिन में लगभग १-१.५ किलो भोजन करते हैं, २.५ लीटर पानी पीते हैं , उससे जो शक्ति बनती है वह पर्याप्त नहीं हैं | हम १ दिन में २१,६०० श्वास लेते हैं | जल और भोजन से शक्ति मिलती है उससे १० गुनी शक्ति हम श्वासोच्छवास से लेते हैं अत: अधिक-से-अधिक शुद्ध हवामान का फायदा उठाना चाहिए | शौचालय आदि में वायु-निकासी पंखा होना ही चाहिए |

देशी गाय के गोबर के कंडे पर अथवा गौ-चंदन धूपबत्ती पर घी अथवा खाद्य तेल की बूँदे टपका के निवास की प्राणवायु को उर्जावान बनाना चाहिए | यदि इस प्रकार ८-१० मि.ली. घी की बुँदे डालकर धुप करते हैं तो एक टन शक्तिशाली वायु बनती है | आजकल शुद्ध घी मिलना कठिन-सा है | डेयरी आदि अथवा पैकेटो में क्या -क्या मिलावटवाला आता है | इसकी अपेक्षा प्राणायाम करते समय घानीवाले खाद्य तेल, नारियल तेल से उस  जगह पर ख़ास धुप करें | (खाद्य तेल यानी रिफाइन किया हुआ हानिकारक तेल नहीं | रिफाइंड तेल बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारे हानिकारक रसायनों का उपयोग होता है, ऐसा कहा गया है |) रसायन की सुंगधवाली अगरबत्तियों से घर की वायु हानिकारक हो सकती है अत: उनका उपयोग हितकर नहीं है | तुलसी का पौधा निवास में अवश्य हो | पौधे को चन्द्रमा और सूर्य की किरणें मिले इसका भी खयाल रखना चाहिए |

अपने निवास-स्थान पर बिल्वपत्र व कुछ फूल युक्ति से रखें ताकि उनकी सुगंध आदि का फायदा मिलता रहें | बिल्वपत्र ६ महीने तक बासी नहीं होते |

लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से

महान सुख व सर्वत्र सम्मान किसे प्राप्त होता है ?

 

अनसूयु: कृतप्रज्ञ: शोभनान्याचरन् सदा |    

न कृच्छ्रं महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते ||


‘दोषदृष्टि से रहित शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष सदा शुभ कर्मों का अनुष्ठान करता हुआ महान सुख को प्राप्त होता है और सर्वत्र उसका सम्मान होता है |” (महाभारत, उद्योग पर्व: ३५.६५)


 लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से

ये बर्तन हैं स्वास्थ्य के लिए घातक

 


भोजन की शुद्धि, पौष्टिकता व हितकारिता हेतु जितना ध्यान हम भोज्य पदार्थों आदि पर देते है, उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने, परोसने, रखने व करनेवाले बर्तनों पर भी देना चाहिए | बर्तनों के गुण-दोष भोजन में आ जाते हैं | अत: कौन-से बर्तन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं , आइये जाने :

१] नॉन -स्टिक बर्तन : ये स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होते है | इनको बनाते समय कलई करने हेतु टेफ्लॉन का प्रयोग होता है जो अधिक तापमान पर एक प्रकार की गैस छोड़ता है, जिससे टेफ्लॉन-फ्ल्यू (बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण) होने की आशंका बढती है तथा फेफड़ों पर बहुत विपरीत परिणाम होता है |

२] एल्युमिनियम के बर्तन : नमकवाले खाद्य पदार्थों के अधिक समय तक सम्पर्क में आने से वह धातु गलने लगती है तथा भोजन में मिलकर शरीर में आ के जमती जाती है | इसकी अधिक मात्रा शरीर में जाने से कब्ज, चर्मरोग, मस्तिष्क के रोग, याददाश्त की कमी, अल्जाइमर्स डिसीज, पार्किंसन्स डिसीज जैसे रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है |

३] प्लास्टिक के बर्तन : इनसे किसी भी खाद्य व पेय पदार्थ का संयोग स्वास्थ्य हेतु हितकारी नहीं हैं | कठोर प्लास्टिक में बी.पी. ए. जैसा विषैला पदार्थ होता है, जिसकी कम मात्रा भी कैंसर, मधुमेह तथा रोगप्रतिकारक शक्ति के ह्रास और समय से पूर्व यौवनावस्था प्रारम्भ होने का कारण बन सकती है | अत: इनके उपयोग से बचें |


लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से

कलश मांगलिकता का प्रतिक क्यों ?

 


सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व कलश-स्थापना की परम्परा है | विवाह आदि शुभ प्रसंगों, उत्सवों तथा पूजा-पाठ, गृह-प्रवेश, यात्रारम्भ आदि अवसरों पर घर में भरे हुए कलश पर आम के पत्ते रखकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है और कलश की पूजा की जाती है | जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कलश का उपयोग किसी-न-किसी रूप में होता रहता है | दाह-संस्कार के समय व्यक्ति के जीवन की  समाप्ति के सूचकरूप में उसके शव की परिक्रमा करके जल से भरा मटका छेदकर खाली किया जाता है और उसे फोड़ दिया जाता है |

कलश में सभी देवताओं का वास माना गया है | हमारे शास्त्र में आता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिपुटी एवं अन्य सभी देवी-देवता, पृथ्वी माता और उसके सप्तद्वीप, चारों वेदों का ज्ञान एवं इस संसार में जो-जो है वह सब इस कलश-जल में समाया हुआ है |

समुद्र- मंथन के समय अमृत-कलश प्राप्त हुआ था | माना जाता है कि माँ सीताजी का आविर्भाव भी कलश से हुआ था | लंकाविजय के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे तब उनके राज्याभिषेक के समय भी अयोध्यावासियों ने अपने घरों के दरवाजे पर कलश रखे थे |

भरा हुआ कलश मांगलिकता का प्रतिक है | मनुष्य – शरीर भी मिटटी के कलश अथवा घड़े के जैसा ही है | जिस शरीर में जीवनरूपी जल न हो वह मृर्दा शरीर अशुभ माना जाता है | इसी तरह खाली कलश भी अशुभ माना जाता है | इसी तरह खाली कलश भी अशुभ माना जाता है | शरीर में मात्र श्वास चलते है, वह वास्तविक जीवन नहीं है | परंतु जीवन में प्रभु-प्रेम का सत्संग, श्रद्धा, भगवत्प्रेम, उत्साह, त्याग, उद्धम, उच्च चरित्र, साहस आदि गुण हों तभी कलश भी अगर दूध, पानी अथवा अनाज से भरा हुआ हो तभी वह कल्याणकारी कहलाता है |

कलश का तात्त्विक रहस्य बताते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं : “अपना शरीर, अपना जीवन एक कलश या कुम्भ के जैसा है | कलश के अंदर क्या है ? कलश के अंदर पानी है | और यह गागर का चार घूँट या २-५ लीटर पानी सागर की खबर दे रहा है ऐसे ही अंत:करण में समाया चैतन्य, विभु चैतन्य की खबर दे रहा है | हे मानव ! तेरा यह शरीररूपी कलश है | कलश में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात सात्त्तिव्क, राजस और तामस गुणों के अधिष्ठाता देवों का निवास है | इसलिए मंदिर के दर्शन के बाद कलश के दर्शन करने होते हैं, ऐसी ही गृह के दर्शन के साथ-साथ अपने शरीररूपी कलश के दर्शन कर और उसके आधार चैतन्य की स्मृति कर !

कलश का पानी सागर में मिल जाय ऐसे यह जीवात्मा का शरीररूपी कलश यही  छूट जाय इससे पहले वह परमात्मा को मिलने की विधि जान ले तो उसका बेड़ा पार हो जाय |”


लोककल्याणसेतू – अगस्त २०२० से

Tuesday, August 11, 2020

पुण्यदायी तिथियाँ

 

२२ अगस्त : गणेश चतुर्थी ( चन्द्र-दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त – रात्रि ९:४९) (इस दिन ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढती है |


इस दिन चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है | यदि भूल से भी चन्द्रमा दिख जाय तो उसके कुप्रभाव को मिटाने के लिए इस लिंक पर दि गयी ‘सय्मंतक मणि की चोरी की कथा’ पढ़ें : ब्रह्मवैवर्त पुराण के निम्न मंत्र का २१, ५४ या १०८ बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पियें |



सिंह: प्रसेनमवधीत  सिंहो जाम्बवताहत: |

सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येषस्यमन्तक: ||

२६ अगस्त : बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से सुबह १०:४० तक)

२९ अगस्त : पद्मा एकादशी (व्रत करने व माहात्म्य पढ़ने – सुनने से सब पापों से मुक्ति )

से १७ सितम्बर : महालय श्राद्ध

१३ सितम्बर : रविपुष्यामृत योग (शाम ४:३४ से १४ सितम्बर सूर्योदय तक), इंदिरा एकादशी (बड़े-बड़े पापों का नाशक तथा नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी सद्गति देनेवाला व्रत )

१६ सितम्बर : षडशिति संक्रांति (पुण्यकाल : दोपहर १२:३४ से सूर्यास्त) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल )

१७ सितम्बर : सर्व पित्री अमावस्या का श्राद्ध

१८ सितम्बर से १६ अक्टूबर : पुरुषोत्तम मास ( इसमें केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग, कीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान, पूजन किये जाते हैं उनका अक्षय फल होता है |)


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से               

 

नींद खुलते ही वृत्ति अगर भगवान में चली जाती है तो ...

 

नींद खुलते ही वृत्ति अगर भगवान में चली जाती है तो उस समय स्नानादि के लिए तुंरत बिस्तर त्यागने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए | ५ – २५ मिनट, जितना समय शांति और ध्यान में जाता है, अच्छा है | - पूज्य बापूजी


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

कोई आपको शत्रु मान के परेशान करता हो तो ...

 

कोई आपको शत्रु मान के परेशान करता हो तो प्रतिदिन प्रात:काल पीपल के नीचे वृक्ष के दक्षिण की ओर अरंडी के तेल का दीपक लगायें तथा थोड़ी देर गुरुमंत्र या भगवन्नाम जपें और उस व्यक्ति को भगवान सद्बुद्धि दें तथा मेरा, उसका-सबका मंगल हो ऐसी प्रार्थना करें | कुछ दिनों तक ऐसा करने से शत्रु शनै: शनै : दब जाते हैं व शत्रु पीड़ा धीरे-धीरे दूर हो जाती है |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

कर्ज –निवारक कुंजी

 

(भौम प्रदोषव्रत : १५ व १९ सितम्बर )

प्रदोष व्रत यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे ‘भौम प्रदोषव्रत’ कहते हैं | मंगलदेव ऋणहर्ता होने से कर्ज-निवारण के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है  भौम प्रदोषव्रत के दिन संध्या के समय यदि भगवान शिव एन सदगुरुदेव का पूजन करें तो उनकी कृपा से जल्दी कर्ज से मुक्त हो जाते हैं | पूजा करते समय यह मंत्र बोलें :

मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम् ||

जन्ममृत्यु जराव्याधिपीडितं कर्म बन्धनै : ||


इस दैवी सहायता के साथ स्वयं भी थोडा पुरुषार्थ करें |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

शरद ऋतू की स्वास्थ्य-समस्याओं में लाभकारी उत्पाद

शरद ऋतू : २२ अगस्त से ३१ अक्टूबर

हाथ-पैर, पेशाब व आँखों की जलन एवं गर्मी की अधिकता में :

१] रसायन टेबलेट : २ – २ गोली सुबह-शाम भोजन से पूर्व लें |

२] शतावरी चूर्ण : २ से ५ ग्राम चूर्ण सुबह दूध में मिला के लें |

३] गुलकंद : १ – १ चम्मच सुबह-शाम भोजन से ३ घंटे पूर्व लें |

४] मुलतानी मिट्टी से नहायें |

कमजोरी में :

१] शतावरी चूर्ण : आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम दूध या पानी के साथ लें |

२] किशमिश : १०-१५ दाने ३-४ बार अच्छी तरह धो के भिगो के खायें |

उपरोक्त सभी उत्पाद संत श्री आशारामजी आश्रम में व समितियों के सेवा केन्द्रों से प्राप्त हो सकते हैं |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

पाचनतंत्र ठीक करने की रहस्यमय कुंजी

 

पाचनतंत्र कमजोर है और खाना पचाना है तो यह मंत्र है :

अगस्त्यं कुम्भकर्ण च शनिं च वडवानलम |

आहारपरिपाकार्थ स्मरेद भीमं च पंचमम ||

ढाई चुल्लू में समुद्र –पान कर जानेवाले महर्षि अगस्त्य, बहुभोजी महाकाय कुम्भकर्ण, जिनकी एक नजर पड़ने से ही अकाल पड़ जाता है ऐसे शनिदेव, सब कुछ भस्मसात कर देनेवाली समुद्र के अंदर की प्रबल बडवाग्नि और अत्यंत तीव्र जठराग्निवाले भीमसेन – इन पाँचों का भोजन के सम्यक परिपाक के लिए स्मरण करना चाहिए |

उपरोक्त मंत्र जपते हुए पेट पर बायाँ हाथ घुमाना चाहिए | कहीं – कहीं घड़ी के काँटे घूमने की दिशा में हाथ घुमाने की बात आती है , कहीं -कहीं उससे विपरीत दिशा में हाथ घुमाने की बात आती है | अंत:प्रेरणा से बायें से दायें घुमायें या दायें से बायें, फायदा होगा | इससे आमाशय में पहुँचे भोजन को मलाशय की ओर गतिशील होने में मदद मिलती है |

उपरोक्त प्रयोग के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “किसीको भोजन नहीं पचता है मानो अजीर्ण है तो दवाइयाँ, टेबलेट लेते हैं अथवा और कुछ उपचार करते हैं, फाँकी मारते हैं अथवा हाजमा-हजम खाते हैं | उसकी अपेक्षा यह (उपरोक्त) मंत्र है हाजमा-हजम का | यह प्रयोग रहस्यमय हैं |

अगस्त्य ऋषि, कुम्भकर्ण, शनिदेव, बडवानल और भीम – इन पाँचों का भोजन पचाने में हम सुमिरन करते हैं | देशी भाषा में ऐसा भी कहोगे तो चल सकता है |

जब भी खायें, थोडा खायें, सँभल के खायें | खाने के बाद मंत्र पढ़ के हाथ पेट पर घुमायें तो पेट का भारीपन ठीक हो जायेगा क्यों कि जठराग्नि प्रदीप्त होगी इस मंत्र के प्रभाव से | अब ठाँस –ठाँस के खाओगे और यह मंत्र प्रयोग करते रहोगे तो काम नहीं करेगा | कायदे से खाओगे और कभी-कभार इसका फायदा लोगे तो ठीक है |”


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

कैसे पायें अम्लपित्त से छुटकारा ?

 

ऋतू-प्रभाववश चतुर्मास के पहले दो महीनों में शरीर में पित्त का संचय होने लगता है | इस पित्त का शरद ऋतू ( २२ अगस्त से २१ अक्टूबर) में प्रकोप होता है | इस समय यदि पचने में भारी, तले हुए, खट्टे या मसालेदार पदार्थों का सेवन किया जाय तो वे पित्त को दूषित कर अम्लपित्त उत्पन्न करते हैं | मन्दाग्नि से उत्पन्न होने से अम्लपित्त में पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखना जरूरी है |

अम्लपित्त हो तो

क्या करें

१] खुलकर भूख लगने पर ही अल्प मात्रा में सुपाच्य व सात्त्विक भोजन करें | अपना खान-पान व शयन का समय जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या  के अनुसार रखें | शाम के भोजन व सोने के समय में २ से ३ घंटे का अंतर रखें |

२] आहार में जौ, ज्वार, मूँग, पुराने चावल, लाल चावल, परवल, लौकी, गिल्की, तोराई, भिंडी, बथुआ, कुम्हड़ा, अनार, आँवला, उबालकर ठंडा किया जल, देशी गाय का दूध व घी आदि का समावेश करें |

३] नियमित चलने, आसन व कसरत करने का नियम रखें | भोजन के बाद ५ मिनट वज्रासन में बैठना विशेष लाभदायी है |

४] शतावरी चूर्ण  दूध के साथ लेने से पुराने अम्लपित्त में भी लाभ होता है |           

५] भोजन के बाद आधा चम्मच आँवला चूर्ण लेने से गले व छाती में जलन आदि जल्दी ठीक होता है | रात्रि देशी गोदुग्ध ले सकते हैं |

क्या न करें

१] असमय , आवश्यकता से अधिक एवं जल्दी-जल्दी बिना चबाये भोजन न करें | भोजन करते समय २०० मिली से अधिक पानी न पियें | (भोजन के डेढ़ घंटे बाद पानी पीना हितावह है |)

२] छोले, राजमा, उड़द, मावा, मिठाई आदि पचने में भारी तथा खट्टे, तीखे, खमीरीकृत एवं तले हुए व नमकीन पदार्थ, तुअर, कुलथी, दही, पनीर, तिल, गरम मसाले, लहसुन आदि पित्तवर्धक पदार्थों का सेवन न करें |

३] विरुद्ध (दूध के साथ फल, नमकीन या खट्टे पदार्थों का सेवन ) एवं बासी पदार्थ, फास्ट फ़ूड, कोल्डड्रिंक्स व बेकरी पदार्थों का सेवन न करें | दिन में न सोयें, रात्रि जागरण न करें |

४] जलन शांत करने हेतु आइसक्रीम, फ्रिज का ठंडा पानी आदि का सेवन न करें |

५] अम्लपित्त मिटाने के लिए अंग्रेजी दवाइयों का सेवन न करें |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

जीवन को महकानेवाली, भवरोग मिटानेवाली पंचकारी साधना

 वैद्याचार्य, आयुर्वेद के जानकार पंचसकार चूर्ण देते हैं | पंचसकार चूर्ण पेट के तमाम रोगों को मिटा देता है, स्वास्थ्यदायक है | जैसे पंचसकार चूर्ण स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ऐसे ही साधना में भी ‘पंचसकार’ परमात्मप्राप्ति में बहुत जरूरी है | ईश्वरत्व का अनुभव करने में, अंतर्यामी राम का दीदार करने में यह ‘पंचसकारी साधना सहयोग करती है | कोई किसी भी जाति, सम्प्रदाय अथवा मजहब का क्यों न हो, सबके जीवन में यह साधना चार चाँद लगा देती है | इस साधना के पाँच अंग है तथा पाँचों अंगों के नाम ‘स’कार से आरम्भ होते हैं इसलिए इसे ‘पंचसकारी संज्ञा दी गयी है |

१] सहिष्णुता : जीवन में सहिष्णुता (सहनशीलता) लायें | अधैर्य न करें | कैसी भी परिस्थियाँ आयें, थोडा धीरज रखें | चाहे कितना भी कठिन वक्त हो, चाहे कितना भी बढ़िया वक्त हो – दोनों बीतनेवाले हैं और आपका चैतन्य रहनेवाला है | ये परिस्थियाँ आपके साथ नहीं रहेंगी किंतु आपका परमेश्वर तो मौत के बाद भी आपके साथ रहेगा | इस प्रकार की समझ बनायें रखें |

२] सेवा : जीवन में सेवा का सद्गुण लायें | सेवासे औदार्य सुख, अंतर का सुख प्रकट होता है, जो बाहर के विकारों का आकर्षण कम कर देगा |

३] सम्मान-दान : सम्मान का दान करें | होता क्या है कि हम सम्मान चाहते हैं, सम्मान देने से हम पीछे हटते हैं | सम्मान देंगे तो सम्मान की चाह मिटेगी | जितनी = जितनी चाहें मिटती जायेंगी उतना-उतना व्यक्ति मुक्त होता जायेगा, स्वतंत्रा होता जायेगा |

४] स्वार्थ-त्याग : स्वार्थ-त्याग से तुम्हारी बुद्धि निखरेगी और तुम्हारे काम बहुत सुंदर होंगे | स्वार्थ का भूत ही तुम्हारी योग्यता दबोच रखता है | जैसे किसी व्यक्ति की नाक दबोच रखो या गला दबोच रखो, ऐसे ही स्वार्थ तुम्हारी योग्यताओं का गला दबोच देता है | जितने नि:स्वार्थ होते हो उतनी सहजता से तुम्हारे काम सुंदर होने लगते हैं | तुम कार्यालय में जाते हो और तुम्हारे स्वार्थ की बात किसीसे करते हो तो तुम्हारी धडकन अलग प्रकार की होती है और तुम्हारा लेश भी स्वार्थ नहीं होता तो तुम इतने सिंह की नाइ बात करते हो कि वह तो तुम्हारा दिल जानता है | जितना नि:स्वार्थ चित्त होता है उतना सिंह जैसा बल तुम्हारे ह्रदय में प्रकट होने लगता है | तो जितना हो जाय उतना स्वार्थ-त्याग करते जायें |

५] समता : सुख के , दुःख के प्रसंग जीवन में आयेंगे, मान और अपमान की घड़ियाँ आयेगी, सफलता और विफलता के झोंके, उतार-चढ़ाव जीवन में आयेंगे | चित्त को सम रखने का अभ्यास करें | इससे आपकी आत्मशक्ति बढ़ेगी, क्षमताएँ बढ़ेंगी | और सब योग अपनी जगह पर हैं लेकिन इस समत्व योग की महिमा अपरम्पार है |

यह ‘पंचसकरी साधना’ जीवन में आये तो जीवन महक जाय | आप किसी भी मार्ग में जाओ – योग के, भक्ति के .... व्यवहार में ये ५ बातें आ गयी तो आप बिल्कुल आसानी से संसार में जीने की कला में सफल हो गये और जो संसार में जीने की कला में सफल हो गया वह मरने की कला में भी सफल हो ही गया | वह तो जीते-जी मुक्त हो गया | जैसे पंचसकार चूर्ण से उदर का शूल मिट जाता है और स्वास्थ्य प्राप्त होता है, ऐसे ही इस पंचसकारी सिद्धांत को अपने जीवन में ला दें तो आसानी से भवरोग मिट जाता है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

इससे व्यक्ति त्रिलोचन बन जाता है

भगवन्नाम – जो गुरुमंत्र मिला है उसको जितना दृढ़ता से जपता है उतना ही उस मंत्र की अंत:करण में छाया बनती है, अंत:करण में आकृति बनती है, अपने चित्त के आगे आकृति बनती है | कभी-कभी भ्रूमध्य में (दोनों भौंहों के बीच ) मंत्र जपते-जपते ध्यान करना चाहिए | मानो ‘राम’ मंत्र है तो ‘श्रीराम’ शब्द, ‘हरि ॐ’ मंत्र है तो ‘हरि ॐ’ शब्द भ्रूमध्य में दिखता जाय अथवा और कोई मंत्र है तो उसके अक्षरों को देखते-देखते भ्रूमध्य में जप करें तो तीसरा नेत्र खोलने में बड़ी मदद मिलती है | उसको बोलते हैं ज्ञान-नेत्र, शिवनेत्र | इससे व्यक्ति त्रिलोचन बन जाता है |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

विद्यार्थी किसे कहते है ?

 जो केवल विद्याध्ययन करना चाहता है उसको विद्यार्थी कहते हैं | ‘विद्यार्थी’ शब्द का अर्थ है – विद्या का अर्थी अर्थात केवल विद्या चाहनेवाला | कौन-सी विद्या ? विद्याओं में श्रेष्ठ ब्रह्मविद्या – अध्यात्मविद्या विद्यानाम | (गीता:१०.३२)


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से    

वह अवश्य-अवश्य विजयी होता है

 हजारों प्रतिकूलताओ में भी जो निराश नहीं होता, हजारों विरोधों में भी जो सत्य को नहीं छोड़ता, हजारों मुसीबतों में भी जो पुरुषार्थ को नहीं छोड़ता, वह अवश्य-अवश्य विजयी होता है और आपको विजयी होना ही है | लौकिक युद्ध के मैं दान में तो कई विजेता हो सकता हैं लेकिन आपको तो उस युद्ध में विजयी होना है जिसमें बड़े-बड़े योद्धा भी हार गये | आपको तो ऐसे विजयी होना है जैसे ५ वर्ष की उम्र में ध्रुव, ८ वर्ष की उम्र में रामी रामदास, अल्पायु में ही शुकदेवजी व ७ दिन में राजा परीक्षित विजयी हो गये ( उन्होंने ईश्वरप्राप्ति कर ली ) |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

गणपति-पूजन का तात्त्विक रहस्य

 

(गणेश चतुर्थी : २२ अगस्त)

जो देहभाव में आ गया है, स्थूल जगत को सच्चा मानता है, इन्द्रियों में बहल गया है उसको जब तक गणपति दादा ( तात्त्विक अर्थ में चैतन्यस्वरूप परमात्मा) की कृपा नहीं होगी, इन्द्रियों के जो स्वामी हैं, इन्द्रियों के जो आधार हैं उनका पूजन अगर नहीं करेंगा तब तक प्राकृतिक संसार में और फैलता जायेगा, और बहलता जायेगा | शायद इसलिए तुम्हारा कोई भी शुभकर्म होता है.... फिर चाहे मकान की ईट रखो, चाहे वास्तु-पूजन करो, चाहे विवाह हो, चाहे और कोई शुभ प्रसंग हो, पहले गणपतिजी का पूजन किया जाता है : ॐ गणानां त्वा गणपतियें हवामहे....

आँख, कान, नाक – ये सब हमारी जो इन्द्रियों हैं, इनको भी ‘गण’ कहा है | इन गणों के जो पति, स्वामी ( आधारस्वरूप, नियामक परमात्मा ) है उनको रिझाओ तो तुम्हारे गण ठीक से काम करेंगे, जीवन में विघ्न नहीं डालेंगे और भौतिक जगत की आसक्ति से बचने के लिए भी इन गणपति दादा का पूजन करो |

सामान्य लोग गणों के स्वामी शुद्ध चैतन्य परमात्मा को न समझ पायेंगे इसलिए पौराणिक कथाएँ हैं कि अमुक – अमुक देव की पूजा करते हुए आत्मज्ञान को पायें | जैसे बिजलीघर की लाइन आ जाय और सीधा बल्ब लगा दें तो बल्ब उड़ जाता है | इसलिए उसकी व्यवस्था सीधे बिजलीघर से सब-स्टेशन अथवा ट्रांसफॉर्मरवाली लाइन से फिर बल्ब में होती है | ऐसे ही सीधा आत्मज्ञान न पा सकें तो देवों का सहारा लें |

देव तो बहुत हैं किंतु उन देवों में ५ ख़ास चुने हुए देव हैं – भगवान शिव, भगवान विष्णु, भगवती, सूर्यनारायण और भगवान गणपति | इन पाँचों में भी सब देवों से पहले में पहली पूजा गणपति दादा की होती है |

गणेश चतुर्थी ही क्यों ?

गणेश चतुर्थी ही क्यों मनायी जाती है ? गणेश पंचमी, गणेश सप्तमी, गणेश तीज मनाते....! तत्त्ववेताओं की भावना, मान्यता है कि सत्त्व, रज, तम – ये तीन गुण होते हैं | इन तीनों  गुणों को सत्ता देनेवाला जो चैतन्य है वह चौथा है | जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति – ये तीन अवस्थाएँ है, इन अवस्थाओं को देखनेवाली जो है वह तुरिया अवस्था है, चौथी अवस्था है | भूत, भविष्य और वर्तमान- इन तीनों कालों को जो देखनेवाला है वह कालातीत है , चौथा है | ज्ञानमार्ग का जिन्होंने साक्षात्कार किया है उन महापुरुषों का भी अनुभव है कि ये तीन अवस्थाएँ संसार की हैं और चौथी अवस्था साक्षी चैतन्यस्वरूप की है इसलिए गणपतिजी का उत्सव गणेश चतुर्थी को मनाया जाता है |

और १०-११ दिन उत्सव मनाकर फिर गणपति दादा का विसर्जन किया जाता है | सनातन धर्म की इतनी विशालता-उदारता है कि तुमको अपना मूल स्वरूप समझाने के लिए उसने ऐसा विधान कर रखा है कि जिनकी अपने मूल स्वरूप में स्थिति है उनकी प्रतिमा बनाकर उनके आगे नाचो-कूदो.... अपना अहंकार विसर्जित करो | तुम्हारे अहंकार विसर्जित करने में सहायक प्रतिमा का भी विसर्जन करने की व्यवस्था है तब भी तुम्हारे देव तुम पर नाराज नहीं होते हैं, तुम्हारा कल्याण देख के वे राजी हो जाते हैं | यह हमारे देवों की भी उदारता है | देव की मूर्ति का विसर्जन होने के बाद भी देव का देवत्व राजी हो जाते हैं | ऐसे ही तुम्हारे शरीर का विसर्जन होने के बाद भी तुम्हार आत्मतत्व रहता है, तुम रहते हो | इस अपने असली स्वरूप को समझने के लिए तुम्हे साधना, सत्संग की सुझबुझ ढानी चाहिए |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

कृतज्ञता व्यक्त करने और अंदर की सुरक्षा हेतु श्राद्धकर्म

 (श्राद्ध पक्ष : १ से १७ सितम्बर )

श्राद्ध पक्ष के दिन ऋषियों के प्रति, अपने माँ-बाप के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने, अनाहत चक्र को विकसित करने और अंदर की सुरक्षा के दिन है |

जैसा दोगे, वैसा मिले गा

हमारे भौतिक कल्याण के लिए माँ-बाप ने खून-पसीना एक किया | आध्यात्मिक उत्थान के लिए ऋषियों ने चमड़ी घिस डाली, खून-पसीना एक कर डाला, जीवन की सुख-सुविधाएँ छोडकर एकांत अरण्य में रहें | ऐसे महापुरुषों ने हमारे उत्थान के अलग-अलग तरीके बनाये | उन्होंने तुम्हारे लिए बहुत सारा किया है तो तुम भी उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो | कृतज्ञता को स्थूलरूप में दिखाने के जो दिन है वे श्राद्ध के दिन कहे जाते हैं | तुम जो देते हो वह पाते हो | तुम श्रद्धा करते हो, पितरों को देते हो, ऋषियों का तर्पण करते हो तो तुमको भी उनका आशीर्वाद लौट मिलता है | श्राद्ध करने से तुम्हारे धन का सामाजिकरण होता है  और तुम्हारा कृतज्ञता में खर्च होता है |

इसका अवश्य ध्यान रखें

श्राद्ध के दिन श्राद्धकर्ता को तेल लगाना मना है | उस दिन किसी ऐसे बड़े व्यक्ति को नहीं बुलाना चाहिए जिस पर ध्यान देना पड़े | उस पर ध्यान दोगे तो जिनका श्राद्ध करते हो उनका अपमान होता है | आँसू बहाते –बहाते अगर श्राद्ध किया जाय तो वह प्रेतों को चला जाता है | अत: आँसू बहाकर श्राद्ध नहीं करना चाहिए |

भोजनद्वारा ब्राह्मण को तृप्त करें

तुम खीर बनाओ, भोजन बनाओ पर यह जरूरी नहीं है कि तुम १० ब्राह्मणों को ही खिलाओ, २ या १ ब्राह्मण को खिलाओ, जो व्यसनमुक्त, परोपकारी, सदाचारी, सज्जन हो | ब्राह्मण जितना सुयोग्य, रसोई बनानेवाला जितना सुयोग्य (शुद्धि एवं पवित्रता आदि का ध्यान रखनेवाला ), वातावरण जितना एकांत और पवित्र उतना उस श्राद्ध का मूल्य होता है |

श्राद्ध का भोजन करनेवाला ब्राह्मण भोजन करते समय मौन रहे | बोलेगा तो प्राणशक्ति, मन:शक्ति क्षीण होती है | भोजन करानेवाला भी जन की प्रशंशा करे : महाराज ! यह हलवा देखो, बहुत बढ़िया बना है .... यह खीर ऐसी है ....’ इस प्रकार ब्राह्मण को खाने के लिए लालायित करके संतुष्ट करे ( किंतु ब्राह्मण के बार-बार मना करने के बाद भी बहुत हठ करके इतना भोजन न परोस दें कि जूठन छूटे या वे नाराज हों |)

तुम धनसे, जमीन-जागीर से अथवा बाहर की सूचनाओं के तथाकथित ज्ञान से किसीको संतुष्ट नहीं कर सकते | किसीको ५०-१०० रूपये दो तो कहेगा : ‘ठीक है, बहुत है....’ पर अंदर माँग है | तुमने २-४ बीघा जमीन दान दी तो बोलेगा : ‘ ठीक है |’ पर दूसरी भी ले ने की उसके पास योग्यता है | वह भीतर से पूरा तृप्त नहीं हैं | एक भोजन ही ऐसा है कि तुम खिलाते जाओ तो व्यक्ति भीतर और बाहर से तृप्त हो जाता है | दो चची ज्यादा जाती होगी तो बोलेगा : ‘बस, बस, बस !...’

कुछ भी न हो तो ऐसे करें श्राद्ध

यदि तुम्हारे पास दरिद्रता नाच रही हो, खाने-पीने का द्रव्य नहीं हो तो श्राद्ध की पद्धति ऐसा नहीं कहती कि श्राद्ध में इतना – इतना करो ही | तुम नदी के किनारे अथवा नल के नीचे स्नान आदि करके जल से अंजलि भर के उसमें थोड़े-से तिल डालो तो डालो, नहीं तो ऐसे ही उन पितरों का सुमिरन करके तर्पण कर दो | तुममें प्रेम और श्रद्धा होगी तो उससे भी वे तृप्त हो जायेंगे और तुम्हें आशीर्वाद देंगें |

(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘श्राद्ध महिमा’ |)


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से     

महापातक- नाशक, महापुण्य-प्रदायक पुरुषोत्तम मास

 (अधिक मास : १८ सितम्बर से १६ अक्टूबर )

अधिक मास ३२ महीने १६ दिन और ४ घड़ियों (९६ मिनट) के बाद आता है | हमारा भारतीय गणित कितना ठोस है ! ग्रह-मंडल की व्यवस्था में इस कालखंड के बाद एक अधिक मास आने से ऋतुओं आदि की गणना ठीक चलती है |

एक सौर वर्ष ३६५ दिनों का और चान्द्र वर्ष ३५४ का होने से दोनों की वर्ष-अवधि में ११ दिनों का अंतर रह जाता है | पंचांग- गणना हेतु सौर और चान्द्र वर्षों में एकरूपता लाने के लिए हर तीसरे चान्द्र वर्ष में एक अति रिक्त चान्द्र मास जोडकर दोनों की अवधि समान कर ली जाती है | यही अतिरिक्त चान्द्र मास अधिक मास, पुरुषोत्तम या मल मास कहलाता है |

पुरुषोत्तम मास नाम कैसे पड़ा ?

मल मास ने भगवान को प्रार्थना की तो भगवान ने कहा : “जो ! ‘मल मास’ नहीं तो ‘पुरुषोत्तम मास’ | इस मास में जो मेरे उद्देश्य से जप, सत्संग, ध्यान, पुण्य, स्नान आदि करें गे उनका वह सब अक्षय होगा | अन्तर्यामी आत्मा के लिए जो भी करेंगें वह विशेष फलदायी होगा |

तब से मल मास का नाम पड़ गया ‘पुरुषोत्तम मास’ | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि “इसका फलदाता, भोक्ता और अधिष्ठाता – सब कुछ मैं हूँ |”

पुरुषोत्तम मास में क्या करें, क्या न करें ?

इस मास में :

१] भूमिपर (चटाई, कम्बल, चादर आदि बिछाकर) शयन, पलाश की पत्तल पर भोजन करने और ब्रह्मचर्य –व्रत पालनेवाले की पापनाशिनी ऊर्जा बढती है तथा व्यक्तित्त्व में निखार आता है |

२] आँवला व तिल के उबटन से स्नान करनेवाले को पुण्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है |

३] आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से स्वास्थ्य-लाभ व प्रसन्नता मिलती है |

४] सत्कर्म करना, संयम से रहना आदि तप, व्रत, उपवास बहुत लाभदायी हैं |

५] मकान-दुकान नहीं बनाये जाते तथा पोखरे, बावड़ी, तालाब, कुएँ नहीं खुदवाये जाते हैं |

६] शादी-विवाह आदि सकाम कर्म वर्जित हैं और निष्काम कर्म कई गुना विशेष फल देते हैं |


घोर पातक से दिलाता मुक्ति

राजा नहुष को इंद्र पदवी की प्राप्ति हुई थी | अनधिकारी, अयोग्य को ऊँची चीज मिलती है तो अनर्थ पैदा हो जाता है | नहुष ने इन्द्रपद के अभिमान- अभिमान में महर्षि अगस्त्य का अपमान किया | अगस्त्यजी और अन्य ऋषियों को अपनी डोली उठाने में नियुक्त कर दिया | जीव का तब विनाश होता है जब श्रेष्ठ पुरुषों का अनादर-अपमान करके अपने को बड़ा मानने की कोशिश करता है |

नहुष अगस्त्य ऋषि को रुआब मारने लगा : “सर्प-सर्प !.... अर्थात शीघ्र चलो, शीघ्र चलो ! संस्कृत में शीघ्र चलो – शीघ्र चलो का ‘सर्प-सर्प’ बोलते हैं |

अगस्त्य ऋषि ने कहा : ‘सर्प-सर्प ..... बोलता है तो जा, तू ही सर्प बन !”

उस शाप की निवृत्ति के लिए नहुष को अधिक मास का व्रत रखने का महर्षि वेदव्यासजी से आदेश मिला और इतने घोर पातक से वह छुट गया |

इतना तो अवश्य करें

पूरा मास व्रत रखने का विधान भविष्योत्तर पुराण आदि शास्त्रों में आता है | पूरा मास यह व्रत न सकें तो कुछ दिन रखें और कुछ दिन भी नहीं तो एकाध दिन तो इस मास में व्रत करें | इनसे पापों की निवृत्ति और पुण्य की प्राप्ति बतायी गयी है | परंतु उपवास वही लोग करें जो बहुत कमजोर नहीं हैं |

सुबह उठकर भगवन्नाम-जप तथा भगवान के किसी भी स्वरूप का चिंतन-सुमिरन करें, फिर संकल्प करें : ‘आज के दिन मैं व्रत-उपवास रखूँगा | हे सच्चिदानंद ! मैं तुम्हारे नजदीक रहूँ, विकार व पाप-ताप के नजदीक न रहूँ | भोग के नजदीक नहीं, योगेश्वर के नजदीक रहूँ इसलिए मैं उपवास करता हूँ |’

फिर नहा –धोकर भगवान का पूजन करें | यथाशक्ति दान पुण्य करें और भगवन्नाम –जप करें | सादा-सूदा फलाहार आदि करें |

१० हजार वर्ष गंगा-स्नान करने से अथवा १२ वर्ष में आनेवाले सिंहस्थ कुम्भ में स्नान से जो पुण्य होता है वही पुण्य पुरुषोत्तम मास में प्रात:काल स्नान करने से हो जाता है |

जो पुरषोत्तम मास का फायदा नहीं लेता उसका दुःख-दारिद्र्य और शोक नहीं मिटता | यह मास शारीरिक-मानसिक आरोग्य और बौद्धिक विश्रांति देने में सहायता करेगा | भजन-ध्यान अधिक करके पुरुषोत्तमस्वरूप परमात्मा को पाने में यह मास मददरूप है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से