ऋतू-प्रभाववश
चतुर्मास के पहले दो महीनों में शरीर में पित्त का संचय होने लगता है | इस पित्त
का शरद ऋतू ( २२ अगस्त से २१ अक्टूबर) में प्रकोप होता है | इस समय यदि पचने में
भारी, तले हुए, खट्टे या मसालेदार पदार्थों का सेवन किया जाय तो वे पित्त को दूषित
कर अम्लपित्त उत्पन्न करते हैं | मन्दाग्नि से उत्पन्न होने से अम्लपित्त में
पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखना जरूरी है |
अम्लपित्त हो तो
क्या करें
१] खुलकर भूख लगने
पर ही अल्प मात्रा में सुपाच्य व सात्त्विक भोजन करें | अपना खान-पान व शयन का समय
जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या के अनुसार
रखें | शाम के भोजन व सोने के समय में २ से ३ घंटे का अंतर रखें |
२] आहार में जौ,
ज्वार, मूँग, पुराने चावल, लाल चावल, परवल, लौकी, गिल्की, तोराई, भिंडी, बथुआ,
कुम्हड़ा, अनार, आँवला, उबालकर ठंडा किया जल, देशी गाय का दूध व घी आदि का समावेश
करें |
३] नियमित चलने,
आसन व कसरत करने का नियम रखें | भोजन के बाद ५ मिनट वज्रासन में बैठना विशेष
लाभदायी है |
४] शतावरी
चूर्ण दूध के साथ लेने से पुराने
अम्लपित्त में भी लाभ होता है |
५] भोजन के बाद
आधा चम्मच आँवला चूर्ण लेने से गले व छाती में जलन आदि जल्दी ठीक होता है | रात्रि
देशी गोदुग्ध ले सकते हैं |
क्या न करें
१] असमय ,
आवश्यकता से अधिक एवं जल्दी-जल्दी बिना चबाये भोजन न करें | भोजन करते समय २००
मिली से अधिक पानी न पियें | (भोजन के डेढ़ घंटे बाद पानी पीना हितावह है |)
२] छोले, राजमा,
उड़द, मावा, मिठाई आदि पचने में भारी तथा खट्टे, तीखे, खमीरीकृत एवं तले हुए व
नमकीन पदार्थ, तुअर, कुलथी, दही, पनीर, तिल, गरम मसाले, लहसुन आदि पित्तवर्धक
पदार्थों का सेवन न करें |
३] विरुद्ध (दूध
के साथ फल, नमकीन या खट्टे पदार्थों का सेवन ) एवं बासी पदार्थ, फास्ट फ़ूड,
कोल्डड्रिंक्स व बेकरी पदार्थों का सेवन न करें | दिन में न सोयें, रात्रि जागरण न
करें |
४] जलन शांत करने
हेतु आइसक्रीम, फ्रिज का ठंडा पानी आदि का सेवन न करें |
५] अम्लपित्त
मिटाने के लिए अंग्रेजी दवाइयों का सेवन न करें |
ऋषिप्रसाद
– अगस्त २०२० से
No comments:
Post a Comment