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Tuesday, August 11, 2020

महापातक- नाशक, महापुण्य-प्रदायक पुरुषोत्तम मास

 (अधिक मास : १८ सितम्बर से १६ अक्टूबर )

अधिक मास ३२ महीने १६ दिन और ४ घड़ियों (९६ मिनट) के बाद आता है | हमारा भारतीय गणित कितना ठोस है ! ग्रह-मंडल की व्यवस्था में इस कालखंड के बाद एक अधिक मास आने से ऋतुओं आदि की गणना ठीक चलती है |

एक सौर वर्ष ३६५ दिनों का और चान्द्र वर्ष ३५४ का होने से दोनों की वर्ष-अवधि में ११ दिनों का अंतर रह जाता है | पंचांग- गणना हेतु सौर और चान्द्र वर्षों में एकरूपता लाने के लिए हर तीसरे चान्द्र वर्ष में एक अति रिक्त चान्द्र मास जोडकर दोनों की अवधि समान कर ली जाती है | यही अतिरिक्त चान्द्र मास अधिक मास, पुरुषोत्तम या मल मास कहलाता है |

पुरुषोत्तम मास नाम कैसे पड़ा ?

मल मास ने भगवान को प्रार्थना की तो भगवान ने कहा : “जो ! ‘मल मास’ नहीं तो ‘पुरुषोत्तम मास’ | इस मास में जो मेरे उद्देश्य से जप, सत्संग, ध्यान, पुण्य, स्नान आदि करें गे उनका वह सब अक्षय होगा | अन्तर्यामी आत्मा के लिए जो भी करेंगें वह विशेष फलदायी होगा |

तब से मल मास का नाम पड़ गया ‘पुरुषोत्तम मास’ | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि “इसका फलदाता, भोक्ता और अधिष्ठाता – सब कुछ मैं हूँ |”

पुरुषोत्तम मास में क्या करें, क्या न करें ?

इस मास में :

१] भूमिपर (चटाई, कम्बल, चादर आदि बिछाकर) शयन, पलाश की पत्तल पर भोजन करने और ब्रह्मचर्य –व्रत पालनेवाले की पापनाशिनी ऊर्जा बढती है तथा व्यक्तित्त्व में निखार आता है |

२] आँवला व तिल के उबटन से स्नान करनेवाले को पुण्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है |

३] आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से स्वास्थ्य-लाभ व प्रसन्नता मिलती है |

४] सत्कर्म करना, संयम से रहना आदि तप, व्रत, उपवास बहुत लाभदायी हैं |

५] मकान-दुकान नहीं बनाये जाते तथा पोखरे, बावड़ी, तालाब, कुएँ नहीं खुदवाये जाते हैं |

६] शादी-विवाह आदि सकाम कर्म वर्जित हैं और निष्काम कर्म कई गुना विशेष फल देते हैं |


घोर पातक से दिलाता मुक्ति

राजा नहुष को इंद्र पदवी की प्राप्ति हुई थी | अनधिकारी, अयोग्य को ऊँची चीज मिलती है तो अनर्थ पैदा हो जाता है | नहुष ने इन्द्रपद के अभिमान- अभिमान में महर्षि अगस्त्य का अपमान किया | अगस्त्यजी और अन्य ऋषियों को अपनी डोली उठाने में नियुक्त कर दिया | जीव का तब विनाश होता है जब श्रेष्ठ पुरुषों का अनादर-अपमान करके अपने को बड़ा मानने की कोशिश करता है |

नहुष अगस्त्य ऋषि को रुआब मारने लगा : “सर्प-सर्प !.... अर्थात शीघ्र चलो, शीघ्र चलो ! संस्कृत में शीघ्र चलो – शीघ्र चलो का ‘सर्प-सर्प’ बोलते हैं |

अगस्त्य ऋषि ने कहा : ‘सर्प-सर्प ..... बोलता है तो जा, तू ही सर्प बन !”

उस शाप की निवृत्ति के लिए नहुष को अधिक मास का व्रत रखने का महर्षि वेदव्यासजी से आदेश मिला और इतने घोर पातक से वह छुट गया |

इतना तो अवश्य करें

पूरा मास व्रत रखने का विधान भविष्योत्तर पुराण आदि शास्त्रों में आता है | पूरा मास यह व्रत न सकें तो कुछ दिन रखें और कुछ दिन भी नहीं तो एकाध दिन तो इस मास में व्रत करें | इनसे पापों की निवृत्ति और पुण्य की प्राप्ति बतायी गयी है | परंतु उपवास वही लोग करें जो बहुत कमजोर नहीं हैं |

सुबह उठकर भगवन्नाम-जप तथा भगवान के किसी भी स्वरूप का चिंतन-सुमिरन करें, फिर संकल्प करें : ‘आज के दिन मैं व्रत-उपवास रखूँगा | हे सच्चिदानंद ! मैं तुम्हारे नजदीक रहूँ, विकार व पाप-ताप के नजदीक न रहूँ | भोग के नजदीक नहीं, योगेश्वर के नजदीक रहूँ इसलिए मैं उपवास करता हूँ |’

फिर नहा –धोकर भगवान का पूजन करें | यथाशक्ति दान पुण्य करें और भगवन्नाम –जप करें | सादा-सूदा फलाहार आदि करें |

१० हजार वर्ष गंगा-स्नान करने से अथवा १२ वर्ष में आनेवाले सिंहस्थ कुम्भ में स्नान से जो पुण्य होता है वही पुण्य पुरुषोत्तम मास में प्रात:काल स्नान करने से हो जाता है |

जो पुरषोत्तम मास का फायदा नहीं लेता उसका दुःख-दारिद्र्य और शोक नहीं मिटता | यह मास शारीरिक-मानसिक आरोग्य और बौद्धिक विश्रांति देने में सहायता करेगा | भजन-ध्यान अधिक करके पुरुषोत्तमस्वरूप परमात्मा को पाने में यह मास मददरूप है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०२० से

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