पाचनतंत्र कमजोर
है और खाना पचाना है तो यह मंत्र है :
अगस्त्यं
कुम्भकर्ण च शनिं च वडवानलम |
आहारपरिपाकार्थ
स्मरेद भीमं च पंचमम ||
ढाई चुल्लू में
समुद्र –पान
कर
जानेवाले महर्षि अगस्त्य, बहुभोजी महाकाय कुम्भकर्ण, जिनकी एक नजर पड़ने से ही अकाल
पड़ जाता है ऐसे शनिदेव, सब कुछ भस्मसात कर देनेवाली समुद्र के अंदर की प्रबल बडवाग्नि
और अत्यंत तीव्र जठराग्निवाले भीमसेन – इन पाँचों का भोजन के सम्यक परिपाक के लिए
स्मरण करना चाहिए |
उपरोक्त मंत्र
जपते हुए पेट पर बायाँ हाथ घुमाना चाहिए | कहीं – कहीं घड़ी के काँटे घूमने की दिशा
में हाथ घुमाने की बात आती है , कहीं -कहीं उससे विपरीत दिशा में हाथ घुमाने की
बात आती है | अंत:प्रेरणा से बायें से दायें घुमायें या दायें से बायें, फायदा
होगा | इससे आमाशय में पहुँचे भोजन को मलाशय की ओर गतिशील होने में मदद मिलती है |
उपरोक्त प्रयोग के
बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “किसीको भोजन नहीं पचता है मानो
अजीर्ण है तो दवाइयाँ, टेबलेट लेते हैं अथवा और कुछ उपचार करते हैं, फाँकी मारते
हैं अथवा हाजमा-हजम खाते हैं | उसकी अपेक्षा यह (उपरोक्त) मंत्र है हाजमा-हजम का |
यह प्रयोग रहस्यमय हैं |
अगस्त्य ऋषि,
कुम्भकर्ण, शनिदेव, बडवानल और भीम – इन पाँचों का भोजन पचाने में हम सुमिरन करते
हैं | देशी भाषा में ऐसा भी कहोगे तो चल सकता है |
जब भी खायें, थोडा
खायें, सँभल के खायें | खाने के बाद मंत्र पढ़ के हाथ पेट पर घुमायें तो पेट का
भारीपन ठीक हो जायेगा क्यों कि जठराग्नि प्रदीप्त होगी इस मंत्र के प्रभाव से | अब
ठाँस –ठाँस के खाओगे और यह मंत्र प्रयोग करते रहोगे तो काम नहीं करेगा | कायदे से
खाओगे और कभी-कभार इसका फायदा लोगे तो ठीक है |”
ऋषिप्रसाद
– अगस्त २०२० से
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