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Wednesday, August 26, 2020

महान सुख व सर्वत्र सम्मान किसे प्राप्त होता है ?

 

अनसूयु: कृतप्रज्ञ: शोभनान्याचरन् सदा |    

न कृच्छ्रं महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते ||


‘दोषदृष्टि से रहित शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष सदा शुभ कर्मों का अनुष्ठान करता हुआ महान सुख को प्राप्त होता है और सर्वत्र उसका सम्मान होता है |” (महाभारत, उद्योग पर्व: ३५.६५)


 लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से

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