अनसूयु: कृतप्रज्ञ:
शोभनान्याचरन् सदा |
न कृच्छ्रं महदाप्नोति
सर्वत्र च विरोचते ||
‘दोषदृष्टि से
रहित शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष सदा शुभ कर्मों का अनुष्ठान करता हुआ महान सुख को
प्राप्त होता है और सर्वत्र उसका सम्मान होता है |” (महाभारत, उद्योग पर्व: ३५.६५)
लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२० से
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