(श्राद्ध पक्ष : १ से १७ सितम्बर )
श्राद्ध पक्ष के
दिन ऋषियों के प्रति, अपने माँ-बाप के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने,
अनाहत चक्र को विकसित करने और अंदर की सुरक्षा के दिन है |
जैसा दोगे, वैसा
मिले गा
हमारे भौतिक
कल्याण के लिए माँ-बाप ने खून-पसीना एक किया | आध्यात्मिक उत्थान के लिए ऋषियों ने
चमड़ी घिस डाली, खून-पसीना एक कर डाला, जीवन की सुख-सुविधाएँ छोडकर एकांत अरण्य में
रहें | ऐसे महापुरुषों ने हमारे उत्थान के अलग-अलग तरीके बनाये | उन्होंने
तुम्हारे लिए बहुत सारा किया है तो तुम भी उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो |
कृतज्ञता को स्थूलरूप में दिखाने के जो दिन है वे श्राद्ध के दिन कहे जाते हैं |
तुम जो देते हो वह पाते हो | तुम श्रद्धा करते हो, पितरों को देते हो, ऋषियों का
तर्पण करते हो तो तुमको भी उनका आशीर्वाद लौट मिलता है | श्राद्ध करने से तुम्हारे
धन का सामाजिकरण होता है और तुम्हारा
कृतज्ञता में खर्च होता है |
इसका अवश्य ध्यान रखें
श्राद्ध के दिन
श्राद्धकर्ता को तेल लगाना मना है | उस दिन किसी ऐसे बड़े व्यक्ति को नहीं बुलाना
चाहिए जिस पर ध्यान देना पड़े | उस पर ध्यान दोगे तो जिनका श्राद्ध करते हो उनका
अपमान होता है | आँसू बहाते –बहाते अगर श्राद्ध किया जाय तो वह प्रेतों को चला
जाता है | अत: आँसू बहाकर श्राद्ध नहीं करना चाहिए |
भोजनद्वारा
ब्राह्मण को तृप्त करें
तुम खीर बनाओ,
भोजन बनाओ पर यह जरूरी नहीं है कि तुम १० ब्राह्मणों को ही खिलाओ, २ या १ ब्राह्मण
को खिलाओ, जो व्यसनमुक्त, परोपकारी, सदाचारी, सज्जन हो | ब्राह्मण जितना सुयोग्य,
रसोई बनानेवाला जितना सुयोग्य (शुद्धि एवं पवित्रता आदि का ध्यान रखनेवाला ),
वातावरण जितना एकांत और पवित्र उतना उस श्राद्ध का मूल्य होता है |
श्राद्ध का भोजन
करनेवाला ब्राह्मण भोजन करते समय मौन रहे | बोलेगा तो प्राणशक्ति, मन:शक्ति क्षीण
होती है | भोजन करानेवाला भी जन की प्रशंशा करे : महाराज ! यह हलवा देखो, बहुत
बढ़िया बना है .... यह खीर ऐसी है ....’ इस प्रकार ब्राह्मण को खाने के लिए लालायित
करके संतुष्ट करे ( किंतु ब्राह्मण के बार-बार मना करने के बाद भी बहुत हठ करके
इतना भोजन न परोस दें कि जूठन छूटे या वे नाराज हों |)
तुम धनसे,
जमीन-जागीर से अथवा बाहर की सूचनाओं के तथाकथित ज्ञान से किसीको संतुष्ट नहीं कर
सकते | किसीको ५०-१०० रूपये दो तो कहेगा : ‘ठीक है, बहुत है....’ पर अंदर माँग है
| तुमने २-४ बीघा जमीन दान दी तो बोलेगा : ‘ ठीक है |’ पर दूसरी भी ले ने की उसके
पास योग्यता है | वह भीतर से पूरा तृप्त नहीं हैं | एक भोजन ही ऐसा है कि तुम
खिलाते जाओ तो व्यक्ति भीतर और बाहर से तृप्त हो जाता है | दो चची ज्यादा जाती
होगी तो बोलेगा : ‘बस, बस, बस !...’
कुछ भी न हो तो
ऐसे करें श्राद्ध
यदि तुम्हारे पास
दरिद्रता नाच रही हो, खाने-पीने का द्रव्य नहीं हो तो श्राद्ध की पद्धति ऐसा नहीं
कहती कि श्राद्ध में इतना – इतना करो ही | तुम नदी के किनारे अथवा नल के नीचे
स्नान आदि करके जल से अंजलि भर के उसमें थोड़े-से तिल डालो तो डालो, नहीं तो ऐसे ही
उन पितरों का सुमिरन करके तर्पण कर दो | तुममें प्रेम और श्रद्धा होगी तो उससे भी
वे तृप्त हो जायेंगे और तुम्हें आशीर्वाद देंगें |
(श्राद्ध से
संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘श्राद्ध महिमा’ |)
ऋषिप्रसाद
– अगस्त २०२० से
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