वैद्याचार्य, आयुर्वेद के जानकार पंचसकार चूर्ण देते हैं | पंचसकार चूर्ण पेट के तमाम रोगों को मिटा देता है, स्वास्थ्यदायक है | जैसे पंचसकार चूर्ण स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ऐसे ही साधना में भी ‘पंचसकार’ परमात्मप्राप्ति में बहुत जरूरी है | ईश्वरत्व का अनुभव करने में, अंतर्यामी राम का दीदार करने में यह ‘पंचसकारी साधना सहयोग करती है | कोई किसी भी जाति, सम्प्रदाय अथवा मजहब का क्यों न हो, सबके जीवन में यह साधना चार चाँद लगा देती है | इस साधना के पाँच अंग है तथा पाँचों अंगों के नाम ‘स’कार से आरम्भ होते हैं इसलिए इसे ‘पंचसकारी संज्ञा दी गयी है |
१] सहिष्णुता :
जीवन में सहिष्णुता (सहनशीलता) लायें | अधैर्य न करें | कैसी भी परिस्थियाँ आयें,
थोडा धीरज रखें | चाहे कितना भी कठिन वक्त हो, चाहे कितना भी बढ़िया वक्त हो –
दोनों बीतनेवाले हैं और आपका चैतन्य रहनेवाला है | ये परिस्थियाँ आपके साथ नहीं
रहेंगी किंतु आपका परमेश्वर तो मौत के बाद भी आपके साथ रहेगा | इस प्रकार की समझ
बनायें रखें |
२] सेवा : जीवन
में सेवा का सद्गुण लायें | सेवासे औदार्य सुख, अंतर का सुख प्रकट होता है, जो
बाहर के विकारों का आकर्षण कम कर देगा |
३] सम्मान-दान :
सम्मान का दान करें | होता क्या है कि हम सम्मान चाहते हैं, सम्मान देने से हम
पीछे हटते हैं | सम्मान देंगे तो सम्मान की चाह मिटेगी | जितनी = जितनी चाहें
मिटती जायेंगी उतना-उतना व्यक्ति मुक्त होता जायेगा, स्वतंत्रा होता जायेगा |
४] स्वार्थ-त्याग
: स्वार्थ-त्याग से तुम्हारी बुद्धि निखरेगी और तुम्हारे काम बहुत सुंदर होंगे |
स्वार्थ का भूत ही तुम्हारी योग्यता दबोच रखता है | जैसे किसी व्यक्ति की नाक दबोच
रखो या गला दबोच रखो, ऐसे ही स्वार्थ तुम्हारी योग्यताओं का गला दबोच देता है |
जितने नि:स्वार्थ होते हो उतनी सहजता से तुम्हारे काम सुंदर होने लगते हैं | तुम
कार्यालय में जाते हो और तुम्हारे स्वार्थ की बात किसीसे करते हो तो तुम्हारी धडकन
अलग प्रकार की होती है और तुम्हारा लेश भी स्वार्थ नहीं होता तो तुम इतने सिंह की
नाइ बात करते हो कि वह तो तुम्हारा दिल जानता है | जितना नि:स्वार्थ चित्त होता है
उतना सिंह जैसा बल तुम्हारे ह्रदय में प्रकट होने लगता है | तो जितना हो जाय उतना
स्वार्थ-त्याग करते जायें |
५] समता : सुख के
, दुःख के प्रसंग जीवन में आयेंगे, मान और अपमान की घड़ियाँ आयेगी, सफलता और विफलता
के झोंके, उतार-चढ़ाव जीवन में आयेंगे | चित्त को सम रखने का अभ्यास करें | इससे
आपकी आत्मशक्ति बढ़ेगी, क्षमताएँ बढ़ेंगी | और सब योग अपनी जगह पर हैं लेकिन इस
समत्व योग की महिमा अपरम्पार है |
यह ‘पंचसकरी
साधना’ जीवन में आये तो जीवन महक जाय | आप किसी भी मार्ग में जाओ – योग के, भक्ति
के .... व्यवहार में ये ५ बातें आ गयी तो आप बिल्कुल आसानी से संसार में जीने की
कला में सफल हो गये और जो संसार में जीने की कला में सफल हो गया वह मरने की कला
में भी सफल हो ही गया | वह तो जीते-जी मुक्त हो गया | जैसे पंचसकार चूर्ण से उदर
का शूल मिट जाता है और स्वास्थ्य प्राप्त होता है, ऐसे ही इस पंचसकारी सिद्धांत को
अपने जीवन में ला दें तो आसानी से भवरोग मिट जाता है |
ऋषिप्रसाद
– अगस्त २०२० से
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