सनातन धर्म में
किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व कलश-स्थापना की परम्परा है | विवाह
आदि शुभ प्रसंगों, उत्सवों तथा पूजा-पाठ,
गृह-प्रवेश, यात्रारम्भ आदि अवसरों पर घर में भरे हुए कलश पर आम के पत्ते रखकर
उसके ऊपर नारियल रखा जाता है और कलश की पूजा की जाती है | जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त
कलश का उपयोग किसी-न-किसी रूप में होता रहता है | दाह-संस्कार के समय व्यक्ति के
जीवन की समाप्ति के सूचकरूप में उसके शव
की परिक्रमा करके जल से भरा मटका छेदकर खाली किया जाता है और उसे फोड़ दिया जाता है
|
कलश में सभी
देवताओं का वास माना गया है | हमारे शास्त्र में आता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिपुटी एवं अन्य सभी देवी-देवता, पृथ्वी माता और उसके सप्तद्वीप, चारों वेदों का
ज्ञान एवं इस संसार में जो-जो है वह सब इस कलश-जल में समाया हुआ है |
समुद्र- मंथन के
समय अमृत-कलश प्राप्त हुआ था | माना जाता है कि माँ सीताजी का आविर्भाव भी कलश से
हुआ था | लंकाविजय के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे तब उनके राज्याभिषेक के समय
भी अयोध्यावासियों ने अपने घरों के दरवाजे पर कलश रखे थे |
भरा हुआ कलश
मांगलिकता का प्रतिक है | मनुष्य – शरीर भी मिटटी के कलश अथवा घड़े के जैसा ही है |
जिस शरीर में जीवनरूपी जल न हो वह मृर्दा शरीर अशुभ माना जाता है | इसी तरह खाली
कलश भी अशुभ माना जाता है | इसी तरह खाली कलश भी अशुभ माना जाता है | शरीर में
मात्र श्वास चलते है, वह वास्तविक जीवन नहीं है
| परंतु जीवन में प्रभु-प्रेम का सत्संग, श्रद्धा, भगवत्प्रेम, उत्साह, त्याग, उद्धम, उच्च चरित्र, साहस आदि
गुण हों तभी कलश भी अगर दूध, पानी अथवा अनाज से भरा हुआ हो
तभी वह कल्याणकारी कहलाता है |
कलश का तात्त्विक
रहस्य बताते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं : “अपना शरीर, अपना जीवन एक कलश या कुम्भ
के जैसा है | कलश के अंदर क्या है ? कलश के अंदर पानी है | और यह गागर का चार घूँट
या २-५ लीटर पानी सागर की खबर दे रहा है ऐसे ही अंत:करण में समाया चैतन्य, विभु चैतन्य की खबर दे रहा है | हे मानव ! तेरा यह शरीररूपी कलश है | कलश
में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात सात्त्तिव्क, राजस और तामस गुणों के अधिष्ठाता देवों का निवास है | इसलिए मंदिर के
दर्शन के बाद कलश के दर्शन करने होते हैं, ऐसी ही गृह के
दर्शन के साथ-साथ अपने शरीररूपी कलश के दर्शन कर और उसके आधार चैतन्य की स्मृति कर
!
कलश का पानी सागर
में मिल जाय ऐसे यह जीवात्मा का शरीररूपी कलश यही छूट जाय इससे पहले वह परमात्मा को मिलने की विधि
जान ले तो उसका बेड़ा पार हो जाय |”
लोककल्याणसेतू
– अगस्त २०२० से
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