स्वाइन फ्लू एक संक्रामक बीमारी हैं, जो श्वसन-तंत्र को प्रभावित करती है |
लक्षण – नाक ज्यादा बहना, ठंठ लगना, गला खराब होना, मांसपेशियों में दर्द, बहुत ज्यादा थकान, तेज सिरदर्द, लगातार खाँसी, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि |
सावधानियाँ –
- लोगों से हाथ-मिलाने, गले लगाने आदि से बचें | अधिक भीडवाले थिएटर जैसे बंद स्थानों पर जाने से बचें |
- बिना धुले हाथों से आँख, नाक या मुँह छूने से परहेज करें |
- जिनकी रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो उन्हें विशेष सावधान रहना चाहिए |
- जब भी खाँसी या छींक आये तो रुमाल आदि का उपयोग करें |
स्वाइन फ्लू से कैसे बचें ?
यह बीमारी हो तो इलाज से कुछ ही दोनों में ठीक हो सकती है, दरें नहीं | प्रतिरक्षा व श्वसन तन्त्र को मजबूत बनायें व इलाज करें |
पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी जैविक दिनचर्या से प्रतिरक्षा तन्त्र मजबूत होता है | सुबह 3 से 5 बजे के बीच में किये गये प्राणायाम से श्वसन तन्त्र विशेष बलशाली बनता है | घर में गौ-सेवा फिनायल से पोछा लगाये व् गौ-चन्दन धूपबत्ती पर गाय का घी, डाल के धुप करें | कपूर भी जलाये | इससे घर का वातावरण शक्तिशाली बनेगा | बासी, फ्रिज में रखी चीजें व बाहर के खाने से बचें | खुलकर भूख लगने पर ही खायें | सूर्यस्नान, सूर्यनमस्कार, आसन प्रतिदिन करें | कपूर, इलायची व तुलसी के पत्तो को पतले कपड़े में बाँधकर बार-बार सूंघें | तुलसी के 5 - 7 पत्ते रोज खायें | आश्रमनिर्मित होमियों तुलसी गोलियाँ, तुलसी अर्क, संजीवनी गोली से रोगप्रतिकारक क्षमता बढती है |
कुछ वर्ष पहले जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब पूज्य बापूजी ने इसके बचाव का उपाय बताया था : ‘ नीम की 21 डंठलियाँ (जिनमें पत्तियाँ लगती हैं, पत्तियाँ हटा दें ) व 4 काली मिर्च पानी डालकर पीस लें और छान के पिला दें | बच्चा हैं तो 7 डंठलियाँ व सवा काली मिर्च दें |’
स्वाइन फ्लू से बचाव के कुछ अन्य उपाय
- 5 – 7 तुलसी पत्ते, 10 - 12 नीमपत्ते, 2 लौंग, 1 ग्राम दालचीनी चूर्ण, 2 ग्राम हल्दी, 200 मि.ली. पानी में डालकर उबलने हेतु रख दें | उसमें 4 - 5 गिलोय की डंडियाँ कुचलकर डाल दें अथवा 2 से 4 ग्राम गिलोय चूर्ण मिलाये | 50 मि.ली. पानी शेष रहने पर छानकर पिये | यह प्रयोग दिन में 2 बार करें | बच्चों को इसकी आधी मात्रा दें |
- दो बूँद तेल नाक के दोनों नथुनों के भीतर ऊँगली से लगाये | इससे नाक की झिल्ली के ऊपर तेल की महीन परत बन जाती हैं, जो एक सुरक्षा-कवच की तरह कार्य करती हैं, जिससे कोई भी विषाणु, जीवाणु तथा धुल-मिटटी आदि के कण नाक की झिल्ली को संक्रमित नहीं कर पायेंगे |
- स्वाइन फ्लू के लिए विशेष रूप से बनायी गयी आयुर्वेदिक औषधी (सुरक्षा चूर्ण व सुरक्षा वटी) संत श्री आशारामजी औषधी केन्द्रों पर उपलब्ध हैं | सम्पर्क करें : 09227033056
- स्वाइन फ्लू से बचाव की होमियोपैथिक दवाई हेतु सम्पर्क करे : 09541704923
(यदि किसी को स्पष्ट रूपसे रोग के लक्षण दिखाई दें तो वैद्य या डॉक्टर से सलाह लें |)
लक्षण – नाक ज्यादा बहना, ठंठ लगना, गला खराब होना, मांसपेशियों में दर्द, बहुत ज्यादा थकान, तेज सिरदर्द, लगातार खाँसी, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि |
सावधानियाँ –
- लोगों से हाथ-मिलाने, गले लगाने आदि से बचें | अधिक भीडवाले थिएटर जैसे बंद स्थानों पर जाने से बचें |
- बिना धुले हाथों से आँख, नाक या मुँह छूने से परहेज करें |
- जिनकी रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो उन्हें विशेष सावधान रहना चाहिए |
- जब भी खाँसी या छींक आये तो रुमाल आदि का उपयोग करें |
स्वाइन फ्लू से कैसे बचें ?
यह बीमारी हो तो इलाज से कुछ ही दोनों में ठीक हो सकती है, दरें नहीं | प्रतिरक्षा व श्वसन तन्त्र को मजबूत बनायें व इलाज करें |
पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी जैविक दिनचर्या से प्रतिरक्षा तन्त्र मजबूत होता है | सुबह 3 से 5 बजे के बीच में किये गये प्राणायाम से श्वसन तन्त्र विशेष बलशाली बनता है | घर में गौ-सेवा फिनायल से पोछा लगाये व् गौ-चन्दन धूपबत्ती पर गाय का घी, डाल के धुप करें | कपूर भी जलाये | इससे घर का वातावरण शक्तिशाली बनेगा | बासी, फ्रिज में रखी चीजें व बाहर के खाने से बचें | खुलकर भूख लगने पर ही खायें | सूर्यस्नान, सूर्यनमस्कार, आसन प्रतिदिन करें | कपूर, इलायची व तुलसी के पत्तो को पतले कपड़े में बाँधकर बार-बार सूंघें | तुलसी के 5 - 7 पत्ते रोज खायें | आश्रमनिर्मित होमियों तुलसी गोलियाँ, तुलसी अर्क, संजीवनी गोली से रोगप्रतिकारक क्षमता बढती है |
कुछ वर्ष पहले जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब पूज्य बापूजी ने इसके बचाव का उपाय बताया था : ‘ नीम की 21 डंठलियाँ (जिनमें पत्तियाँ लगती हैं, पत्तियाँ हटा दें ) व 4 काली मिर्च पानी डालकर पीस लें और छान के पिला दें | बच्चा हैं तो 7 डंठलियाँ व सवा काली मिर्च दें |’
स्वाइन फ्लू से बचाव के कुछ अन्य उपाय
- 5 – 7 तुलसी पत्ते, 10 - 12 नीमपत्ते, 2 लौंग, 1 ग्राम दालचीनी चूर्ण, 2 ग्राम हल्दी, 200 मि.ली. पानी में डालकर उबलने हेतु रख दें | उसमें 4 - 5 गिलोय की डंडियाँ कुचलकर डाल दें अथवा 2 से 4 ग्राम गिलोय चूर्ण मिलाये | 50 मि.ली. पानी शेष रहने पर छानकर पिये | यह प्रयोग दिन में 2 बार करें | बच्चों को इसकी आधी मात्रा दें |
- दो बूँद तेल नाक के दोनों नथुनों के भीतर ऊँगली से लगाये | इससे नाक की झिल्ली के ऊपर तेल की महीन परत बन जाती हैं, जो एक सुरक्षा-कवच की तरह कार्य करती हैं, जिससे कोई भी विषाणु, जीवाणु तथा धुल-मिटटी आदि के कण नाक की झिल्ली को संक्रमित नहीं कर पायेंगे |
- स्वाइन फ्लू के लिए विशेष रूप से बनायी गयी आयुर्वेदिक औषधी (सुरक्षा चूर्ण व सुरक्षा वटी) संत श्री आशारामजी औषधी केन्द्रों पर उपलब्ध हैं | सम्पर्क करें : 09227033056
- स्वाइन फ्लू से बचाव की होमियोपैथिक दवाई हेतु सम्पर्क करे : 09541704923
(यदि किसी को स्पष्ट रूपसे रोग के लक्षण दिखाई दें तो वैद्य या डॉक्टर से सलाह लें |)
- ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१५ से
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