१] भगवान से
प्रार्थना करना |
२] ब्रह्मवेत्ता
महापुरुषों का सत्संग -श्रवण करना |
३] कुसंग से सर्वथा
दूर रहना |
४] आलस्य और प्रमाद
न करना |
५] नाच-गान, तमाशा , नाटक, सिनेमा आदि न देखना |
६] बुरी किताबें न
पढना |
७] मन और इन्द्रियों
को बुरे विषयों की ओर बुरे विषयों की ओर जाने से रोकते रहना |
८] एकांत में मन और
इन्द्रियों की विशेष रखवाली करना |
९] ब्रह्मवेत्ता महात्माओं
के वचनों और सत्शास्त्रो की शिक्षाओं को याद रखना |
१०] अपनी स्थिति को
सर्वथा देखते रहना | (सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए | रात्रि को सोने से
पूर्व अपने दिनभर के कार्यों को विचारकर देखना चाहिए कि ‘हमारा जीवन अवनति अर्थात
पतन की ओर तो नहीं जा रहा ?’ इस प्रकार अपने जीवन का अध्ययन करते हुए दुर्गुण,
दुष्ट विचार, विकृत स्वभाव को त्याग के श्रेष्ठ गुण, श्रेष्ठ स्वभाव और सदाचार को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करना चाहिए
|)
११] मृत्यु, नरकों
की यातना और हल्की योनियों इ कष्ट की बातों को याद करते रहना |
शरीर अनित्य, नाशवान और क्षणभंगुर है, किसी भी समय मृत्यु को प्राप्त
हो सकता है | जो मनुष्य-जन्म में किये गये गलत कार्यों के फलस्वरूप मिलनेवाली दुःखद
यातनाओ, नीच योनियों के कष्टों एवं मृत्यु को हमेशा स्मरण में रखता है , वह
बुराइयों से, निदनीय कृत्यों से स्वयं को बचाकर उन्नति के
शिखर पर पहुँच जाता है और जीवन में महान-से-महान ईश्वरप्राप्ति के लक्ष्य तक पहुँचने
में भी सफल हो जाता है |
कहा भी गया है :
दो बातन को भूल मत
जो चाहे कल्यान |
नारायण इक मौत को
दूजे श्रीभगवान ||
ऋषिप्रसाद
– अक्टूबर २०२० से
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