Search This Blog

Saturday, October 17, 2020

आयुर्वेद में वर्णित सदवृत्त

 

आज कई लो शास्त्रों में वर्णित आहार, विहार, आचरण, व्यवहार संबंधी नियमो को महत्त्व नहीं देते | उनकी मान्यता रहती है कि ये तो धार्मिक लोगों के लिए हैं | वास्तविकता तो यह है कि ये न केवल आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक, सामजिक आदि दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि निरोग, सबल, समृद्ध व दीर्घ जीवन की आधारशिला भी हैं | अत: आयुर्वेद में इन नियमों के पालन पर बहुत जोर दिया गया हैं | आयुर्वेद ने इन्हें ‘सदवृत्त ‘ की संज्ञा दी गयी है |

चरक संहिता में आता है कि अपना कल्यान चाहनेवालों को सदा स्मरण रखकर सदवृत्त का मन, वचन और कर्म से पालन करना चाहिए | इनका पालन करने से आरोग्यता एवं इन्द्रिय – विजय दोनों कार्य एक साथ ही सिद्ध हो जाते हैं |

क्या करें

१] समय पर हितकर, थोड़ी और मधुर अर्थ से युक्त वाणी बोले |

२] सद्गुरु, देव, गौ, वृद्ध ( ज्ञानवृद्ध),सिद्ध ( ब्रह्मवेत्ता महापुरुष), इनकी पूजा – सेवा करनी चाहिए |

३] यदि आपके पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे पहले ही बोलना चाहिए |

४] जितेन्द्रिय और धर्मात्मा बने |

५] प्रतिदिन स्वच्छ एवं न फटे हुए वस्त्र धारण करें, सदा प्रसन्न – मन रहें |

६] दूसरे पर आपत्ति आने पर दया करें |

७] प्रात: सायं दोनों समय स्नान करना चाहिए |

८] मंगलकारी कार्यो में तत्पर रहें |

क्या न करें

१] सज्जनों या गुरुजनों की निंदा न करें |

२] पूज्य देवता, गुरु आदि एवं मांगलिक पदार्थों के दक्षिण ( दायें) भाग में होकर तथा अपूज्य और अमंगलकारी वस्तुओं के वाम (बायें) भाग में हो के न चलें |

३] शत्रुता में रूचि न लें, पापाचार न करें |

४] चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण होने पर, स्न्ध्याकालों में, अधिक मात्रा में , रक्ष व विकृत स्वर से , पदों की व्यव्य्स्था के बिना (विराम आदि चिन्हों का ध्यान न रखकर), अतिशीघ्र या अति विलम्ब से उच्चारण करते हुए एवं आलस्यपूर्वक, अधिक ऊँचे तथा अधिक नीचे स्वर से अध्ययन न करें |


ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से

No comments: