आज कई लो शास्त्रों में वर्णित आहार,
विहार, आचरण, व्यवहार संबंधी नियमो को महत्त्व नहीं देते | उनकी
मान्यता रहती है कि ये तो धार्मिक लोगों के लिए हैं | वास्तविकता तो यह है कि ये न
केवल आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक, सामजिक आदि दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि
निरोग, सबल, समृद्ध व दीर्घ जीवन की आधारशिला भी हैं | अत: आयुर्वेद
में इन नियमों के पालन पर बहुत जोर दिया गया हैं | आयुर्वेद ने इन्हें ‘सदवृत्त ‘
की संज्ञा दी गयी है |
चरक संहिता में आता है कि अपना कल्यान चाहनेवालों को सदा स्मरण रखकर सदवृत्त
का मन, वचन और कर्म से पालन करना चाहिए | इनका पालन करने से
आरोग्यता एवं इन्द्रिय – विजय दोनों कार्य एक साथ ही सिद्ध हो जाते हैं |
क्या करें
१] समय पर हितकर, थोड़ी और मधुर अर्थ से युक्त वाणी बोले |
२] सद्गुरु, देव, गौ, वृद्ध ( ज्ञानवृद्ध),सिद्ध ( ब्रह्मवेत्ता महापुरुष),
इनकी पूजा – सेवा करनी चाहिए |
३] यदि आपके पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे पहले ही बोलना चाहिए |
४] जितेन्द्रिय और धर्मात्मा बने |
५] प्रतिदिन स्वच्छ एवं न फटे हुए वस्त्र धारण करें,
सदा प्रसन्न – मन रहें |
६] दूसरे पर आपत्ति आने पर दया करें |
७] प्रात: सायं दोनों समय स्नान करना चाहिए |
८] मंगलकारी कार्यो में तत्पर रहें |
क्या न करें
१] सज्जनों या गुरुजनों की निंदा न करें |
२] पूज्य देवता, गुरु आदि एवं मांगलिक पदार्थों के दक्षिण ( दायें) भाग
में होकर तथा अपूज्य और अमंगलकारी वस्तुओं के वाम (बायें) भाग में हो के न चलें |
३] शत्रुता में रूचि न लें, पापाचार न करें |
४] चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण होने पर, स्न्ध्याकालों में, अधिक मात्रा में
, रक्ष व विकृत स्वर से , पदों की व्यव्य्स्था के बिना (विराम आदि चिन्हों का
ध्यान न रखकर), अतिशीघ्र या अति विलम्ब से उच्चारण करते हुए एवं आलस्यपूर्वक, अधिक
ऊँचे तथा अधिक नीचे स्वर से अध्ययन न करें |
ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०२० से
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